एक युवा भारतीय बीच-बीच में पीछे मुड़कर देखता है कि कहीं कोई उड़ती हुई गोली उसकी ओर तो नहीं आ रही. वो सांस रोककर फोन पर बात करते हुए अपनी स्थिति हर उस इंसान को बता रहा है जो सुनने को तैयार है. वो बताता है कि कई सूडानी लोग वहां की राजधानी खार्तूम छोड़कर अपने गांवों की ओर भाग रहे हैं, लेकिन उसके पास जाने के लिए कोई जगह नहीं है. युद्ध में उलझे सूडान (Sudan Crisis) में फंसे इस बेबस भारतीय की तस्वीर शायद आपने भी देखी होगी क्योंकि यह आजकल भारतीय न्यूज चैनलों पर खूब दिखाया जा रहा.
इस खबर से न सिर्फ देश के विभिन्न राज्यों के लोग अपने हमवतनों के लिए चिंतित हो रहे हैं, बल्कि इसका असर कर्नाटक राज्य में जारी 'गलाकाट' चुनाव अभियान पर भी हो रहा है.
जैसा कि सबको उम्मीद था, कांग्रेस पार्टी के नेता, सिद्धारमैया ने युद्धग्रस्त देश में फंसे कर्नाटक के 31 हक्की पिक्की आदिवासियों को बचाने के लिए विदेश मंत्री एस जयशंकर के हस्तक्षेप की मांग की है.
सुदूर सूडान में भारत के ये आदिवासी क्या कर रहे हैं? यह लगभग वैसा ही सवाल है जो अनजान लोगों उस समय उठाया था जब रूस ने यूक्रेन पर बमबारी शुरू कर दी थी- उस समय सवाल था कि यूक्रेन में 30,000 भारतीय क्या कर रहे हैं?
सच्चाई यह है कि अगर सूडान में दो जनरलों- सूडान राष्ट्रीय सेना के अब्दुल फतह अल-बुरहान और रैपिड सपोर्ट फोर्सेज (RSF) के मुहम्मद हमदान दगालो के बीच वर्चस्व की लड़ाई से शुरू हुए गृहयुद्ध के बीच में हक्की पिक्की समुदाय के ये 31 लोग नहीं फंसते तो कोई भी इस सवाल को उठाने की जहमत नहीं उठाता.
सूडान में फंसे एक भारतीय जनजातीय समुदाय ने संकट की ओर ध्यान खिंचा
ये हक्की पिक्की आदिवासी आयुर्वेदिक दवा बेचने के लिए अफ्रीकी देश में थे- उनके अपने और कुछ प्रसिद्ध भारतीय ब्रांड के भी. इस आदिवासी समूह ने सूडान में कथित तौर पर कोविड-19 संक्रमण से इम्यून होने के लिए एक प्रतिष्ठा बनाई है.
वे अकेले नहीं हैं. कई अन्य विदेशियों के अलावा, कई और भारतीय हैं जो सूडान में व्यापार और काम के लिए गए और वहां हिंसा शुरू होने के बाद फंस गए. एक अनुमान के अनुसार, उनमें से लगभग 8,000 लोग हिंसा से बाहर निकलने का रास्ता खोजने की कोशिश कर रहे हैं और भारत सरकार से समर्थन की तलाश कर रहे हैं.
सिद्धारमैया द्वारा इस मुद्दे को उठाए जाने के बाद, जयशंकर शुरू में कांग्रेस नेता द्वारा इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने के प्रयासों से चकित थे, लेकिन बाद में इसका कारण समझ गए. तब से विदेश मंत्रालय फंसे भारतीयों को निकालने के लिए क्या कर रहा है, इसके बारे में अपडेट भेज रहा है. जयशंकर ने अबू धाबी और रियाद में अपने समकक्षों से बात की है.
दोनों देश 'द क्वॉर्टर' का हिस्सा हैं, जिसमें अमेरिका, यूके, यूएई और सऊदी अरब शामिल हैं. 'द क्वॉर्टर' दो जनरलों के बीच शांति बहाल करने की कोशिश कर रहे हैं.
अबू धाबी और रियाद ने मदद का वादा किया है. लेकिन याद रहे कि 2019 की जन क्रांति के जनरलों द्वारा क्रूरता से कुचले जाने के बाद 'द क्वॉर्टर' अपने तरीके से सूडानी समाज के सैन्यीकरण में शामिल था. ऐसे में देखना होगा कि वह आगे कैसे कदम रखता है.
और इसके पीछे एक वजह है. सऊदी अरब और यूएई सूडानी सेना के सैनिकों और क्रूर मिलिशिया का इस्तेमाल यमन में हौथियों के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए कर रहे हैं. यह वही मिलिशिया है, जो खार्तूम में सत्ता के लिए संघर्ष कर रही है और इसका इस्तेमाल पहले के तानाशाह बशीर ने दारफुर में विद्रोह को दबाने के लिए किया था.
सूडान में बवाल क्यों हो रहा है?
2019 में, लंबे समय से शासन कर रहे सत्तावादी नेता, उमर अल-बशीर के खिलाफ लोगों का विद्रोह वास्तविक था. बशीर को सत्ता से हटाए जाने के बाद, नागरिक सरकार को सत्ता सौंपने तक एक संक्रमणकालीन परिषद का गठन किया गया, जहां सेना ने एक असैन्य प्रधानमंत्री के साथ सत्ता साझा की. लेकिन 25 अक्टूबर 2021 को एक तख्तापलट में सेना ने इस व्यवस्था को उखाड़ फेंका और सत्ता अपने हाथों में ले ली.
अफ्रीकी संघ और संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप के कारण, 5 दिसंबर 2022 को सूडान के लोगों को शांति, लोकतंत्र और सतत विकास की उनकी इच्छा को जमीन पर उतारने में मदद करने के लिए एक समझौता किया गया था. शांति के इच्छुक लोगों के लिए यह एक सुखद आशा ही बनी रही क्योंकि जनरलों ने सत्ता छोड़ने से इनकार कर दिया.
सूडान की अर्थव्यवस्था चरमराई हुई है. इसकी लगभग 40 प्रतिशत आबादी भुखमरी में जी रही है. देश के विभाजन से उनका दुख और बढ़ गया है क्योंकि तेल संसाधन दक्षिण सूडान में चले गए हैं. सेना के शासकों द्वारा असैनिक नेतृत्व को बेदखल करने और इस प्रक्रिया में बहुपक्षीय संस्थानों से देश को मिल रहे सभी समर्थन खत्म होने से अर्थव्यवस्था और भी चरमरा गई है.
2021 के सैन्य तख्तापलट के बाद जब जनरल बुरहान ने अपने व्यक्तित्व के इर्द-गिर्द सत्ता को मजबूत किया और प्रधानमंत्री अब्दुल्ला हमदोक और उनके कैबिनेट सदस्यों को बाहर कर दिया. इसके बाद सूडान को सभी फंडिंग रोक दी गई. जनरल बुरहान ने हमदोक को वापस लाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने उस व्यवस्था से इस्तीफा दे दिया.
सूडान पर लोन का बोझ है और यह देश के रूप में राहत प्राप्त कर रहा था. उसने यूक्रेन में युद्ध के कारण अपनी समस्याओं को और अधिक गंभीर होते देखा है, क्योंकि इसके जनता को डोनर देशों से प्राप्त होने वाला खाद्यान्न सूखने लगा था. यदि सूडान अविभाजित होता, तो उसे अप्रत्याशित लाभ से लाभ होता, जैसा यूक्रेन युद्ध के कारण कई तेल-समृद्ध देशों में हुआ था—सऊदी, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका मुख्य लाभार्थी थे.
देश में स्थिति इतनी विकट है कि ऐसा लगता है कि लाखों लोग राजधानी में फंसे हुए हैं. आपस में लड़ रही आर्मी और पैरामिलिट्री इन लोगों के पानी और बिजली सप्लाई को काट रही है. नागरिकों के खिलाफ भी फाइटर प्लेन का इस्तेमाल किया गया है. कुछ ही दिनों में नियंत्रण से बाहर हो चुकी इस भीषण मानवीय त्रासदी में यह देखना होगा कि क्या कूटनीति या हस्तक्षेप के लिए कोई जगह है या नहीं, जैसा कि सिद्धारमैया विदेश मंत्री जयशंकर से अपेक्षा कर रहे हैं.
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