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लोकतंत्र को भीड़तंत्र बनाने वालों पर कानून का हंटर कौन चलाएगा?

झारखंड के पाकुड़ में ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाते हुए स्वामी अग्निवेश को बुरी तरह पीटा गया

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“मेरा कातिल ही मेरा मुंसिफ है
क्या मिरे हक में फैसला देगा”

देश के किसी भी कोने में भीड़तंत्र के शिकार किसी शख्स की तस्वीरें देखता हूं, तो मुझे सुदर्शन फाकिर का ये मशहूर शेर याद आ जाता है. सत्ताधारी दल के कथित बेलगाम समर्थकों के हाथों पिटे आर्यसमाजी नेता स्वामी अग्निवेश अब फरियाद करें भी तो किससे करें?

देश और प्रदेश में जिस दल की सरकार है, उसी दल के शोहदों ने झारखंड के पाकुड़ में जय श्रीराम के नारे लगाते हुए स्वामी अग्निवेश को बुरी तरह पीटा है. कपड़े फाड़े, जमीन पर गिराकर लात-घूसों की बरसात कर दी. जब जख्मी जिस्म के साथ भगवाधारी अग्निवेश लड़खड़ाते हुए खड़े हुए, तो भी हमलावरों के नारे गूंज रहे थे: गीता का अपमान, नहीं सहेगा हिन्दुस्तान’ और ‘भारत माता की जय’. जाते-जाते कह भी गए कि अब भी होश में नहीं आए, तो बार-बार पिटोगे. लुटे-पिटे और लाचार अग्निवेश ने शिकायत दर्ज करा दी है.

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कुछ लोग गिरफ्तार भी हुए हैं, लेकिन सबको पता है कि इस भीड़ का कुछ नहीं बिगड़ेगा. उल्टे उनके पक्ष में जयकारा लगेगा. कोई माला पहना देगा. कोई इस पराक्रम के लिए मिठाई खिलाकर मुंह मीठा करा देगा. वैसे ही जैसे केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने अलीमुद्दीन अंसारी के कातिलों का मुंह मीठा कराया था.

हिंसक और हमलावर विचार

मैं सोशल मीडिया पर लगातार ऐसे लोगों को देख रहा हूं, जो झारखंड में स्वामी अग्निवेश की पिटाई को सही ठहराने में लगे हैं. 80 साल के इस शख्स के साथ हुई बदसलूकी को जस्टिफाई कर रहे हैं. हिंसक और हमलावर भीड़ के इस हमले को स्वामी अग्निवेश के विचारों को कुचलने का हथियार मानकर खुश हो रहे हैं. सोशल मीडिया पर अपनी पोस्ट और कमेंट में लिंचिंग दस्ते की वकालत करने वाले ये लोग हमारे आपके बीच भरे पड़े हैं, बहुतायत में. ये भीड़ सड़क पर किसी को दौड़ाकर पीटने वाली भीड़ से हजारों गुना बड़ी है

ये भीड़ तैयार हो रही है देश को भीड़तंत्र की तरफ ले जाने के लिए. असहमत आवाजों को दफन करने के ये तरीके इस भीड़ को ऊर्जा देते हैं. भीड़ की इस ऊर्जा से उन्हें ऊर्जा मिलती है, जो 'लड़ाओ और राज करो' के फॉर्मूले पर देश को धकेले रखना चाहते हैं, ताकि बुनियादी मुद्दों पर सरकार की घेराबंदी न हो सके.

देश तो वही है, जो चार साल पहले था. हिन्दू-मुसलमान भी वही हैं, जो चार साल पहले थे. मंदिर-मस्जिद का झगड़ा भी पुराना है. मसले भी वही हैं. मतभेद भी वहीं हैं. तो फिर बदला क्या है कि नफरतों की खेती तेज हो गई है ? इससे फायदा किसको हो रहा है?  रोटी, रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा और विकास के बुनियादी मुद्दे को पीछे धकेलकर बार-बार हिन्दू-मुसलमान करने वालों का मकसद क्या है?

सरकार आपकी, फिर पिटाई क्यों?

अग्निवेश पर हमला करने वाले बीजेपी युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं का कहना है कि स्वामी अग्निवेश यहां के भोले-भाले आदिवासियों को भड़काने आए थे. ये पाकिस्तान और ईसाई मिशनरियों के इशारे पर काम कर रहे हैं. अगर ये सही है, तो उनके खिलाफ मामले दर्ज करवाइए. झारखंड और दिल्ली में आपकी सरकार है. इतनी एजेंसियां हैं. जांच करवाइए. अपने नेताओं पर दबाव बनाकर उनके खिलाफ कानून कार्रवाई करवाइए. सबूतों के साथ कोर्ट में जाइए. ये सारे तरीके हैं आपके पास, फिर ये कौन सा तरीका है? बर्बरता की हद तक जाकर आप किस हिन्दुस्तान और किस भारत माता की जयकार कर रहे हैं?

अग्निवेश ने कुछ नया तो कहा नहीं

स्वामी अग्निवेश की पिटाई करने वालों को ‘वाह मेरे हिन्दू शेर’ कहकर बधाई देने वाले और जश्न मनाने वाले कह रहे हैं, ''अग्निवेश ने अपने बयानों में अमरनाथ का अपमान किया है. शिवलिंग का अपमान किया है. तिरुपति का अपमान किया है. लिहाजा उनकी पिटाई जितनी भी हुई, कम हुई. उन्हें और कूटा जाना चाहिए था.''

स्वामी अग्निवेश आर्यसमाजी हैं. पूजा-पाठ, कर्मकांड और मंदिरों के बारे में अग्निवेश जो बातें आज कह रहे हैं, यही बात आर्यसमाजी कहते रहे हैं. स्वामी अग्निवेश भी दशकों से यही सब बोलते कहते रहे हैं. फिर इसमें नई बात क्या है?

उनके विचार से हिन्दुओं का बड़ा तबका असहमत हो सकता है . उनकी राय को खारिज कर सकता है. करता भी रहा है. उनके समर्थकों की बहुत छोटी सी दुनिया है. उनकी बैठकों में चंद सौ लोग ही होते हैं. उनके बोलने से हम-आप असहमत हो सकते हैं. उनके खिलाफ लिख-बोल सकते हैं. उनकी सभाओं का बहिष्कार या उनके कार्यक्रमों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं. काले झंडे दिखा सकते हैं. अगर किसी की धार्मिक या राजनीतिक भावनाएं आहत हो रही हैं, तो उन पर मुकदमा ठोक सकते हैं, लेकिन ये क्या कि लंपटों का एक झुंड 80 साल के शख्स को जमीन पर गिरा कर पीटने लगे. उसके कपड़े फाड़कर उसे सरे आम नंगा करने पर उतारू हो जाए. उस पर लात-जूतों की बारिश करने लगे. अहसमत आवाजों को कुंद करने का ये कौन सा तरीका है?

और अगर ये तरीका है, तो कल को दूसरा या तीसरा पक्ष आपके विचारधारियों और पुरोधाओं के साथ ऐसा ही बर्ताव करने लगे तो?

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हिंसा करके ठहाके लगाने वाले कौन हैं?

अराजकता के चरम की तरफ देश को क्यों ढकेलना चाहते हैं आप? बेंगलुरु में गौरी लंकेश को गोलियों से छलनी किया गया था, तब भी सोशल मीडिया पर लोग ठहाके लगा रहे थे. उनकी हत्या के लिए उनके विचारों को जिम्मेदार ठहरा रहे थे. एक महिला को उसके विचारों की वजह से मार दिया गया था और उसके कत्ल को जस्टिफाई किया जा रहा था.

मारने वाला जब पकड़ा गया, तो उसने भी अपने बयान में यही कहा कि उसने अपने धर्म की रक्षा के लिए गौरी की हत्या की है. उसे यही बताया गया था कि गौरी से धर्म को खतरा है. वैसे ही तर्क फिर दिए जा रहे हैं. नफरतों की ऐसी फसल बोई जा रही है कि आने वाले बुरे दौर की तस्वीरें जेहन में कौंधने लगती है.

अभी-अभी एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि भारत में साल 2018 के पहले 6 महीनों में हेट क्राइम के 100 मामले दर्ज किए गए. इसमें ज्यादातर शिकार दलित, आदिवासी, जातीय और धार्मिक रूप से अल्पसंख्यक समुदाय के लोग और ट्रांसजेंडर बने हैं. आंकड़े डराने लगे हैं कि हालात काबू में आने के बजाए खतरे के निशान को पार करता जा रहा है.

भीड़तंत्र को कोई भड़का रहा है?

सोमवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने भीड़तंत्र पर रोक लगाने की नसीहत दी और अगले ही दिन भीड़तंत्र की लिंचिंग मानसिकता के सबूत के तौर पर ताजा तस्वीरें भी सामने आ गई. कहीं गोहत्या के नाम पर, कहीं बीफ के नाम पर, कहीं हिन्दू-मुसलमान के नाम पर, कहीं अफवाह के नाम पर, लोग मारे जा रहे हैं. बीते चार सालों में ही ऐसी घटनाओं की बाढ़ आ गई है.

झारखंड में लिंचिंग के आरोप में बंद सजायाफ्ता कातिलों के गले में माला डालकर मुंह मीठा कराने वाले केन्द्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने चौतरफा लानत-मलामत के बाद माफी भले ही मांग ली हो, लेकिन सच तो यही है कि इस भीड़ को पता है कि उसके पीछे सत्ता है. तंत्र है. नेता हैं. विधायक हैं. सांसद हैं. मंत्री हैं और सोशल मीडिया पर उनके पक्ष में शोर मचाने के लिए हिन्दुत्ववादी दस्ते हैं.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कानून बनाओ

हिंसक भीड़ के हाथों लगातार हो रही हत्याएं रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र और राज्य सरकारों को फटकार लगाई. संसद से नया कानून बनाने पर विचार करने को कहा. सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ कहा कि भीड़तंत्र को देश का कानून रौंदने की इजाजत नहीं दी सकती. जांच, ट्रायल और सजा सड़कों पर नहीं हो सकती. ऐसी भीड़ का हिस्सा बने लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो और हत्या होने पर उनके खिलाफ सीधे 302 का मुकदमा दर्ज हो.

सुप्रीम कोर्ट की ये चिंता और संसद में पहले ही दिन गैर बीजेपी दलों के हंगामे के बाद भी अगर हालात नहीं बदले और सरकारों ने कड़े संदेश नहीं दिए, तो आने वाले महीनों में देश बहुत बुरे दौर से गुजरेगा.

दंगा आरोपियों से मिलकर मंत्री जी रो पड़े

दस दिन पहले की ही तो बात है, जब मोदी सरकार के घोर हिन्दुत्वादी मंत्री और नवादा के सांसद गिरिराज सिंह पहले अपने इलाके के दंगा आरोपियों से मिलने पहले जेल गए. फिर दंगा आरोपियों के परिजनों से मिलने उनके घर गए. बजरंग दल के कार्यकर्ताओं के घर जाकर मंत्री जी इतने भावुक हो गए कि उनके सब्र का पैमाना छलक गया.

आंखों में आंसू आ गए. मंत्री जी की आंखों से लरजते आंसुओं को देखकर उनके साथ मौजूद कई कार्यकर्ता भी रो पड़े. मंत्री जी ने दंगा आरोपियों को शांति दूत घोषित कर दिया और बिहार सरकार पर शांति बहाली कराने वालों को जेल भेजने का आरोप लगाकर खुलेआम आरोपियों को समर्थन देने और इंसाफ दिलाने का ऐलान कर दिया.

गिरिराज सिंह के इस 'आंसू बहाओ' कार्यक्रम से दो दिन पहले ही मोदी सरकार के ही दूसरे मंत्री जयंत सिन्हा मॉब लिंचिंग के आरोपियों को माला पहनाते दिखे थे. झारखंड के मांस कारोबारी अलीमुद्दीन अंसारी नामक एक शख्स को गोमांस रखने के शक में पीट-पीटकर मारने वाली हत्यारी भीड़ के कुछ सजायाफ्ता चेहरे रांची हाईकोर्ट से जमानत पर छूटकर आए थे और सीधे जयंत सिन्हा के हजारीबाग वाले घर पर ले जाए गए थे. साथ में बीजेपी नेता थे. कार्यकर्ता थे. माला और मिठाई का इंतजाम था.

एक केंद्रीय मंत्री ने जेल से जमानत पर छूटे सजायाफ्ता कातिलों को माला पहनाकर और मुंह मीठा कराकर ये संदेश दे दिया कि हम तुम्हारे साथ हैं . बीजेपी के स्थानीय नेता और विधायक तो पहले से ही उनके साथ थे. निचली अदालत में हिंसक भीड़ के जिन चेहरों को अलीमुद्दीन अंसारी के कत्ल में दोषी पाया गया, वो चेहरे केंद्रीय मंत्री के सौजन्य से माला और मिठाई के पात्र बन गए.

सोशल मीडिया पर जयंत सिन्हा के साथ अंसारी के कातिलों की तस्वीरों वायरल हुई तो उनके पिता, पूर्व वित्त मंत्री और बीजेपी के बागी नेता यशवंत सिन्हा ने अपने ट्वीट में कहा, ‘’पहले मैं लायक बेटे का नालायक बाप था. अब भूमिका बदल गई है. यह ट्विटर है. मैं अपने बेटे की करतूत को सही नहीं ठहराता. लेकिन मैं जानता हूं कि इससे और गाली-गलौज होगी. आप कभी नहीं जीत सकते.’’
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खतरे की तरफ देश चल पड़ा है?

अब आप समझिए कि देश किस तरफ जा रहा है. विदेश में पढ़ा-लिखा और मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर चुका मोदी का एक मंत्री अपने इलाके में हिन्दुत्व और गोरक्षा के नाम पर उत्पाती जत्थे को अपने पक्ष में करने के लिए कत्ल के सजायाफ्ता मुजरिमों को मिठाई खिलाकर संदेश देता है, तो हमेशा मुस्लिमों के खिलाफ जहर उगलने वाला दूसरा मंत्री दंगे के आरोपियों के घर जाकर आंसू बहा आता है. दंगा पीड़ितों से उसे कोई सहानूभूति नहीं, क्योंकि वो मुस्लिम है.

दंगा आरोपियों के घर जाकर आंसू झड़ते हैं, क्योंकि इन आंसुओं की कीमत है. ये आंसू वोट दिलवाने में मददगार साबित हो सकते हैं. देश में हिन्दू-मुसलमान को लड़ाने और बांटने वाली राजनीति के क्लाइमेक्स का वक्त जो आ रहा है. 2019 का चुनाव जो आ रहा है.

क्या करना होगा?

इन्हें क्या फर्क पड़ता है कि कोई अलीमुद्दीन मारा जाए या कोई अखलाक. कोई जुनैद मारा जाय या कोई असगर. जब तक ये मारे नहीं जाएंगे, तब तक हिन्दू एकजुट कैसे होंगे? गिरिराज सिंह नवादा जेल में दंगा के आरोपियों से मिलने गए, ये उतनी चौंकाने वाली बात नहीं है, जितनी जयंत सिन्हा की तरफ मॉब लीचिंग के सजायाफ्ता मुजरिमों को माला पहनाने की घटना.

कठुआ कांड के आरोपियों को बचाने के लिए निकली तिरंगा यात्रा में महबूबा मुफ्ती सरकार में शामिल बीजेपी के दो मंत्रियों ने हिस्सा लिया था. हंगामे के बाद उन्हें कुर्सी गंवानी पड़ी थी. केन्द्रीय मंत्री महेश शर्मा अखलाक के कातिलों के समर्थन में दादरी हो आए थे. उनके पदचिह्नों पर चलते हुए बीजेपी के कई और नेता भी दादरी गए थे.

ऐसी मिसालें देश के हर सूबे के नेताओं ने कायम की हैं. अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है. सचेत होने का वक्त है. नेता तो वही करेंगे, जिससे उनके वोटों की फसल लहलहाए, लेकिन हम-आप तो सचेत हो ही सकते हैं.

(अजीत अंजुम सीनियर जर्नलिस्‍ट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है. )

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