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Swati Maliwal Case: क्या AAP का स्टैंड सही, जानें दिल्ली में BJP को होगा कितना फायदा?

संक्षेप में कहें तो, दिल्ली में वोटिंग की तारीख नजदीक आ रही है और केजरीवाल के पास प्रचार के लिए कम समय बचा है.

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जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल को राज्यसभा उम्मीदवार घोषित किया तो कार्यकर्ताओं में खुशी की लहर दौड़ गई.

आम आदमी पार्टी (AAP) के पुराने वॉलंटियर्स और समर्थकों के लिए, मालीवाल एक राजनीतिक व्यक्ति से कहीं अधिक थीं; वह उन आदर्शों का प्रतीक थीं जिन्हें आम आदमी पार्टी ने इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन की शुरुआत से ही अपनाया था. फिर भी, अब, एक महत्वपूर्ण क्षण में, पार्टी एक ऐसे चौराहे पर खड़ी है, जहां उसके आंतरिक मतभेद उभर कर आ गए हैं.

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मालीवाल द्वारा अरविंद केजरीवाल के निजी सचिव विभव कुमार के खिलाफ मुख्यमंत्री आवास में मारपीट का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराने से पार्टी को झटका लगा है.

रिश्ते में दरार रातोरात नहीं उभरी हैं.

मालीवाल का राज्यसभा सांसद के रूप में प्रमोट होना आगामी लोकसभा चुनावों का पूर्व संकेत था - एक ऐसा समय जब राजनीतिक हमले तेज हो जाते हैं. आम आदमी पार्टी की चुनावी रणनीतियों के पीछे प्रमुख किरदार होने के नाते, सुर्खियों से उनकी अचानक अनुपस्थिति ने लोगों को हैरान कर दिया.

पार्टी के करीबी लोग मालीवाल की छवि एक ऐसे नेता के रूप में दर्शाते हैं जो दिल्ली में रहते हुए भी बहुत कम समय ही दिखती हैं. उनकी बहन की गंभीर बीमारी के कारण उनके अचानक चले जाने से पार्टी नेतृत्व सकते में आ गया.

केजरीवाल की गिरफ्तारी के साथ मामला और तेज हो गया जिससे मालीवाल की वापसी के लिए जोरदार तरीक से मांग उठने लगीं. कथित तौर पर उनका अचानक छोड़ देना आम आदमी पार्टी के लिए एक झटका था, विशेष रूप से संजय सिंह के जेल जाने के कारण केवल दो राज्यसभा सांसद, संदीप पाठक और एनडी गुप्ता, जमीन पर पार्टी की जिम्मेदारियां संभालने के लिए बचे थे.

केजरीवाल की अंतरिम जमानत मालीवाल की दिल्ली वापसी के साथ ही हुई और उनके फिर से संपर्क करने के प्रयासों के बावजूद, मुख्यमंत्री कार्यालय मौन रहा और उन्हें किसी भी तरह मुलाकात का समय देने से इनकार कर दिया.

इसके बाद मालीवाल मुख्यमंत्री के आवास पर बिना बुलावे के गई, ये एक साहसिक कदम था जो अंतिम विश्वास के टूटने का प्रतीक बना.

AAP द्वारा मुद्दे को गलत तरीके से हैंडल किया गया

केजरीवाल के चुनाव प्रचार की समय सीमा घटकर मात्र 21 दिन रह गई है और दिल्ली में चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है, ऐसे में स्वाति मालीवाल की स्थिति से निपटने के लिए आम आदमी पार्टी की कार्यप्रणाली की जांच की जरूरत है.

संजय सिंह की प्रेस कॉन्फ्रेंस, जिसमें विभव कुमार के कथित गतल व्यवहार का खुलासा किया गया था, विवाद का केंद्र बिंदु बन गया है. आम आदमी पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि आम आदमी पार्टी की महिला सशक्तीकरण कथा की प्रतीकात्मक शख्सियत मालीवाल शुरू में इस बात पर सहमत थीं कि अगर पार्टी उन (विभव) पर एक्शन लेती है तो वो कुमार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं करेंगी.

हालांकि, दिल्ली पुलिस को दिए गए उनके बाद के बयान ने सार्वजनिक रुख और निजी आश्वासनों के बीच एक मतभेद को उजागर करते हुए, पार्टी को चौंका दिया.

पार्टी के भीतर मालीवाल के कद पर विचार करने पर दुविधा और गहरी हो जाती है. महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा और वित्तीय सहायता प्रस्तावों जैसी प्रमुख नीतियों में उनका योगदान महत्वपूर्ण रहा है. यदि उनके बीजेपी का मोहरा होने का संदेह पहले से मौजूद था (जैसा कि आतिशी ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था), तो फिर संजय सिंह ने कुमार के अपराधों को स्वीकार क्यों किया?

घटना को स्पष्ट करने का प्रयास करने वाले अस्पष्ट वीडियो जारी करने से संदेह दूर करने में कोई मदद नहीं मिली है. 2024 के लोकसभा चुनावों में महिलाओं का वोट निर्णायक भूमिका निभाने के लिए तैयार है, मालीवाल मामले में AAP का कुप्रबंधन हानिकारक साबित हो सकता है. दिल्ली में बीजेपी का लगातार वोट शेयर AAP के लिए अपना चुनावी आधार बनाए रखने और अंतिम समय में किसी भी बदलाव से बचने की आवश्यकता को रेखांकित करता है.

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सवाल यह है कि क्या विभव कुमार का सामना करने में केजरीवाल का शांत रहना गहरी चिंता की उपज है, जो संभवतः शराब नीति मामले में उनसे ईडी की पूछताछ से जुड़ी है. पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के भरोसेमंद सहयोगी सी अरविंद जैसे व्यक्तियों के बयानों पर बना यह मामला, सामने आ रही घटनाओं में जटिलता की एक और परत जोड़ता है.

BJP मुद्दा भुनाना चाहती है

इस निष्कर्ष पर पहुंचना कि स्वाति मालीवाल ने आम आदमी पार्टी को बदनाम करने के लिए बीजेपी के प्रभाव में काम किया, यह जल्दबाजी होगी. हालांकि, इसके कोई पुख्ता सबूत नहीं है. इस स्थिति का लाभ उठाने की बीजेपी की इच्छा स्वतः ही मालीवाल को उसके हाथों में मात्र एक उपकरण नहीं बना देती है लेकिन इस मामले में दिल्ली पुलिस की असामान्य रूप से त्वरित प्रतिक्रिया, समान स्थितियों में उनकी ऐतिहासिक झिझक को देखते हुए, विशेष रूप से संदिग्ध है.

तथ्य यह है कि वित्त मंत्री, गृह मंत्री और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने इस घटना पर गंभीरता से विचार किया है, जो बहुत कुछ कहता है. पार्टी ने दिल्ली में लगातार 35 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर हासिल किया है, यहां तक कि विधानसभा चुनावों में भी वह AAP से हार गई थी.

उदाहरण के लिए, बीजेपी ने 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में लगभग 38 प्रतिशत और 2019 के लोकसभा चुनावों में प्रभावशाली 56 प्रतिशत हासिल किया, जहां उसने सभी सात सीटों पर कब्जा कर लिया. दोनों के वोट शेयर में लगभग 18 प्रतिशत का अंतर था.
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जबकि केजरीवाल की गिरफ्तारी और रिहाई के बाद AAP के प्रति सहानुभूति स्पष्ट है, दिल्ली में मतदाताओं का मूड महत्वपूर्ण तौर पर स्वीकार करना भी जरूरी है, जो विधानसभा चुनावों में AAP का समर्थन करते हैं और लोकसभा चुनावों के लिए बीजेपी की ओर रुख करते हैं.

2015-2024 तक डीसीडब्ल्यू प्रमुख के रूप में मालीवाल के सराहनीय कार्यकाल को ध्यान में रखते हुए, दिल्ली की झुग्गी बस्तियों की महिलाओं की अटूट समर्पण के साथ सेवा करते हुए, बीजेपी को पता है कि उनके आसपास कोई भी विवाद उनके समर्थकों का मोहभंग कर सकता है, संभावित रूप से उन्हें AAP से दूर कर सकता है.

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(लेखक, एक स्तंभकार और शोध विद्वान, सेंट जेवियर्स कॉलेज (स्वायत्त), कोलकाता में पत्रकारिता पढ़ाते हैं. यह एक ओपिनिय पीस है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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