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वोटरों के 3 मैसेज, जिनकी राजनीतिक पार्टियां अनदेखी कर रही हैं

एक साथ, ये 3 संदेश भविष्य में एक नए रूख की ओर इशारा कर रहे हैं

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  • राजेश जैन हाल ही में हुए चुनावों से जुड़े 3 अहम संदेश बता रहे हैं
  • पहला-हम समृद्धि चाहते हैं, ध्रुवीकरण नहीं
  • दूसरा-हमारी पिछली वफादारी भविष्य में वोट की गारंटी नहीं देती है
  • तीसरा-हम राजनीतिक स्टार्टअप पर विचार कर सकते हैं

भारत में हर चुनाव, बड़ा हो या छोटा- उसका एक प्रासंगिक विषय और संदेश होता है. त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में चुनाव के परिणाम यह संदेश देते हैं कि भाजपा का उत्तर पूर्व भारत में विकास हुआ है. पर यह परिणाम भाजपा की बढ़ोत्तरी और कांग्रेस व वामदल की गिरावट से अधिक हैं. पिछले कुछ सालों में चुनाव के माध्यम से मतदाता कई विशेष संदेश राजनीतिक पार्टियों को देते आए हैं.

लेकिन लगता है कि अब तक इन संदेशों को राजनीतिक पार्टियों ने समझा नहीं है. अगर इस संदेश को सुना नहीं गया और इस पर अमल नहीं लाया गया तो, यह संदेश आने वाले राष्ट्रीय चुनावों में बड़ा बदलाव लाने की क्षमता रखते हैं.

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ये 3 संदेश अहम हैं...

ऐसा लग रहा है कि भाजपा के नेताओं को मतदाताओं का संदेश समझ में नहीं आ रहा है. उनका इस तरह का बहरापन प्रमुख बदलावों को जन्म देगा, जो वह पसंद नहीं करेंगे. कुल तीन प्रमुख संदेश हैं.

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पहला संदेश है: “हम समृद्धि चाहते हैं, ध्रुवीकरण नहीं”

2014 से आम जनता समृद्धि चाहती है. भाजपा का नारा अच्छे दिन को ध्यान में रखते हुए ही मतदान दिए गए थे. आम जनता भले ही समृद्धि की परिभाषा न दे पाए, पर वह इसे महसूस व देख सकते हैं. समस्या यह है कि राजनैतिक पार्टियां अब तक सिर्फ इन समस्याओं पर बातचीत करने में ही लगी हैं, वास्तव में उन्हें समझ ही नहीं है कि वे समृद्धि कैसे लाएं. जब तक वे ये नहीं समझेंगे कि भारतीय अब तक गरीब क्यों हैं, वे तब तक उन्हें समृद्धि के मार्ग पर नहीं ला सकते.

सत्ता में आसीन राजनेताओं के लिए, समृद्धि का मतलब गरीबों को सरकारी सेवाओं पर और भी अधिक निर्भर बनाना है, न कि उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करना ताकि वे स्वयं समृद्धि के मार्ग पर चले. इसके लिए, सरकार को छोटे उत्पादक वर्गों से कर लेना पड़ता है, और फलस्वरूप एक समृद्धि-विरोधी मशीन का निर्माण होता है.

इसका निर्माण कांग्रेस द्वारा किया गया और अब केंद्र सरकार व विभिन्न राज्यों की सरकारों द्वारा लगातार संचालित किया जा रहा है. सिर्फ लोक कल्याण से समृद्धि लाना संभव नहीं- कई बार सरकार के पास से दूसरों के पैसे खत्म हो जाते हैं, जैसा सोवियत युनियन और हाल ही में वेनेजुएला में हुआ.

व्यक्तिगत और आर्थिक स्वतंत्रता को कम कर, विभिन्न समूहों के बीच भेदभाव कर, खराब सरकार को बढ़ावा देना लेकिन अच्छी सरकार में निवेश ना कर, आयात पर टैरिफ लागू कर, श्रम कानूनों में सुधार न करने से रोजगार के अवसर न पैदा होना, विभिन्न क्षेत्रों और बाजारों में कीमतों के साथ खिलवाड़ कर, भारत में हर सरकार ने समृद्ध विरोधी मशीन विकसित की है.

यहां तक की राजनीतिक पार्टीयों और उनके नेताओं ने भी समृद्धि विरोधी मशीन को बढ़ावा दिया है, मतदाताओं को इस मशीन को खत्म करना होगा. अपेक्षा और वास्तविकता के बीच की यह खाई तत्कालीन राजनीतिक पार्टियों को नुकसान पहुंचा सकती है.

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दूसरा संदेश है: “हमारी पिछली वफादारी भविष्य में वोट की गारंटी नहीं देती है.”

वोट शेयरों में काफी अस्थिरता आने लगी है ये परिणामों को पराकाष्ठा तक ले जा सकते हैं. 2014 में, भाजपा के राष्ट्रीय वोट शेयर में तेजी से बढ़ोतरी हुई. त्रिपुरा में, भाजपा का उदय अभूतपूर्व है. इसके साथ ही कांग्रेस के वोट शेंयरों में भी भारी गिरावट आना भी उतना ही अभूतपूर्व है. हाल ही में राजस्थान में हुए उपचुनाव में, भाजपा की वोट शेयरों में गिरावट देखने को मिली.

यह होने का कारण वर्तमान स्थिति पर नाखुशी का मिश्रण या सकारात्मक बदलाव की उम्मीद है. परीक्षाओं की तरह ही, हर चुनाव नया है, और शून्य से शिखर पर पहुंचने के लिए लड़ा जाता है. इसमें आर्थिक प्रदर्शन सबसे ज्यादा मायने रखता है. मतदाता नए वादों को एक मौका दे सकते हैं, लेकिन अगर यह वादें पूरे नहीं किए गए तो वे काफी भयावह तरीकों से निष्कासन के बारे में भी सोच सकते हैं.

इसलिए भाजपा के लिए चेतावनी का संकेत हैं क्योंकि क्रेंद्र व कई राज्यों में उनका ही नियत्रंण है. समृद्ध भारत को बनाने के लिए कोई शॉट कर्ट नहीं है- यानी की व्यक्तिगत और व्यापार के लिए आर्थिक स्वतंत्रता. इस मामले में भाजपा बुरी तरह से गिरी है.

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तीसरा संदेश है- “हम राजनीतिक स्टार्ट अप पर विचार कर सकते हैं”

अगर मौजूदा राजनीतिक पार्टियां मतदाताओं को समृद्ध नहीं बना पा रही हैं, तो मतदाता उनके अलावा अन्य विकल्पों को देखने के लिए तैयार हैं. त्रिपुरा की भाजपा, यूपी, मध्य प्रदेश या राजस्थान की भाजपा नहीं थी. यह स्टार्टअप था. उन्होंने नए मतदाताओं के समूह( ईसाई और आदिवासियों) को अपना लक्ष्य बनाया, स्थानीय स्तर पर नए गठजोड़ किए गए, अरूचिकर भाग को छोड़कर उन्होंने अपने संदेश में बदलाव लाए, तथा आम जनता तक अपना संदेश पहुंचाने के लिए प्रौद्योगिकी के साथ-साथ जमीनी स्तर पर मजबूत संगठन का उपयोग किया. भाजपा ने एक मुरझायी औऱ पूराने रवैये वाली ताकतवर सरकार को हटाकर, जीत हासिल की.

बेशक, कई स्टार्ट अप असफल हुए हैं, सफलता के लिए कोई सामान्य सूत्र नहीं है. राजनीतिक स्टार्ट अप कोई छोटी बात नहीं. कहने का आशय यह है कि त्रिपुरा में भाजपा रिलायंस जियो की तरह है-एक चुस्त स्टार्ट अप, लेकिन शक्तिशाली ब्रांड व संसाधनों के समर्थन के साथ. जियों ने टेलिकॉम सेक्टर के कई अधिकारियों को दिवालिया बना दिया. ऐसा ही कुछ भाजपा अपने विपक्षियों के साथ विभिन्न राज्यों में कर रही है.

एक समय था जब भाजपा और अन्य क्षेत्रीय पार्टियां स्टार्ट अप ही थीं, लेकिन आज वे सत्ता में आसीन है. भाजपा द्वारा उन क्षेत्रीय दलों से मुकाबला करना, जहां वे सत्ता में नहीं है, वहां एक बार फिर शुरूआत करने जैसा ही है. कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों को भाजपा से मुकाबला करने के लिए, जहां भाजपा पहले से ही सत्ता में है वहां उन्हें एक उद्यमी की सोच रखनी होगी.

राजनीतिक स्टार्टअप के लिए नए विचारों की आवश्यकता होती है, न कि सिर्फ प्रयास और वही पूरानी चीजों को दोहराना- जैसा कि व्यवसाय की दुनिया में होता है. रजनीकांत और कमल हसन द्वारा दो नई राजनीतिक पार्टियों की शुरुआत से तमिलनाडु में इसकी शुरूआत हो चुकी है.

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भारत की वास्तविकता यह है कि पुरानी कांग्रेस और आज की भाजपा की आर्थिक नीतियों के बीच में ज्यादा अंतर नहीं है. (यह भी तर्क दिया जाता है कि, कुछ राज्यों में स्थानीय स्तर के नेताओं में भी ज्यादा अंतर नहीं है, क्योंकि भाजपा खुले बाहों के साथ दलबदलु नेताओं का स्वागत करती है.) आज भी कई असफल नीतियों पर ही कार्य किया जा रहा है. सत्ताधारी राजनीतिक दलों के लिए अभी ज्यादा देर नहीं हुई है यह समझने के लिए कि स्वतंत्रता, गैर-भेदभाव, गैर-हस्तक्षेप, सीमित सरकार और विकेंद्रीकरण की नींव ही समृद्धि की जरूरत है.

एक साथ, यह 3 संदेश भविष्य में एक नए रूख की ओर इशारा कर रहे हैं:

  • समृद्धि पर केंद्रित एक राजनीतिक स्टार्टअप वह है, जो सीमित समय में नीचले स्तर पर मजबूत संगठन बना कर सफल हो सके तथा अगले चुनावों पर प्रभाव डाल सके.
  • सफल होने के लिए, राजनीतिक स्टार्टअप को एक नए तीसरे तरीके की आवश्यकता है -जो कांग्रेस और भाजपा के तरीकों से अलग हो.
  • मतदाता आज भी एक ऐसे राजनीतिक नेता के इंतजार में है जो समृद्ध विरोधी मशीन का खात्मा कर, देश का ऐसा पहला प्रधानमंत्री बने जो समृद्धि को बढ़ावा दे.

(राजेश जैन 2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के कैंपेन में सक्रिय भागीदारी निभा चुके हैं. टेक्नोलॉजी एंटरप्रेन्योर राजेश अब 'नई दिशा' के जरिए नई मुहिम चला रहे हैं. ये आलेख मूल रूप से NAYI DISHA पर प्रकाशित हुआ है. इस आर्टिकल में छपे विचार लेखक के हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति जरूरी नहीं है)

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