ADVERTISEMENTREMOVE AD

द वायर और उनके संपादकों की पुलिस तलाशी पर पूर्व जजों, वकीलों ने उठाए सवाल

The Wire-Meta Controversy: जस्टिस अंजना प्रकाश ने बताया पुलिस ने कैसे सिलसिलेवार कदम नहीं उठाए.

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

“द वायर के ऑफिस में दिल्ली पुलिस की तलाशी को तभी ‘निष्पक्ष जांच’ कहा जा सकता है, जब इस बात के सबूत हों कि न्यूज पोर्टल ने सबूतों को नष्ट किया था या उनके साथ छेड़छाड़ की थी.” ये बात पटना हाई कोर्ट की जज और (मौजूदा) सीनियर एडवोकेट अंजना प्रकाश ने क्विंट को 1 नवंबर को कहा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

उससे एक दिन पहले सोमवार को द वायर ने दावा किया था कि उसके एडिटर्स- सिद्धार्थ वरदराजन, एमके वेणु, सिद्धार्थ भाटिया और जाह्नवी सेन के घरों पर दिल्ली पुलिस के पुलिसकर्मियों ने छापेमारी की और उनके “डिवासेज़ को जब्त कर लिया.”

दिल्ली पुलिस ने उसके ऑफिस की भी तलाशी ली और उनके एक वकील ने आरोप लगाया कि “वहां पुलिस वालों ने उसके साथ धक्का-मुक्की की.”

इस बीच दिल्ली पुलिस की प्रवक्ता सुमन नलवा ने क्विंट को बताया कि भारतीय जनता पार्टी के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने न्यूज पोर्टल के खिलाफ एक शिकायत दर्ज की थी, जिससे जुड़ी "जांच" के लिए पुलिस न्यूज पोर्टल के एडिटर्स के घर गई थी.

एक अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया था कि उन्होंने "सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस लिए थे" और उनकी "चेकिंग" के बाद "जांच की जाएगी."

लेकिन जस्टिस प्रकाश सीधी सी बात कहती हैं, वह कहती हैं कि पुलिस ने “जांच” की आड़ में उचित क्रम से कार्रवाई नहीं की- बल्कि कई चरणों को लांघ गई.

"उन्होंने कई कदम लांघे. वे पहले एफआईआर में दर्ज आरोपों के आधार पर प्रारंभिक जांच कर सकते थे. बेशक, तलाशी प्रारंभिक जांच नहीं हो सकती,” वह कहती हैं.

द वायर और मेटा के बीच हफ्ते भर चले विवाद और सोमवार की 'तलाशी' के बाद क्विंट ने यह समझने की कोशिश की कि क्या दिल्ली पुलिस की कार्रवाई 'वैध' थी. इसके लिए हमने कानूनी विशेषज्ञों से बात की.

द वायर-मेटा विवाद: खबर हटाने के बाद भी FIR

द वायर ने रिपोर्ट्स की एक सीरीज पब्लिश की थी, जिनमें यह दावा किया गया था कि एक 'एक्सचेक' प्रोग्राम की मदद से इंस्टाग्राम (जो कि विशाल मेटा एंपायर का एक हिस्सा है) बीजेपी के अमित मालवीय की फ्लैग की हुई कोई भी पोस्ट हटा देता है.

हालांकि जब मेटा रिपोर्ट की प्रामाणिकता पर सवाल उठे तो न्यूज पोर्टल ने उसे हटा दिया (साथ ही टेक कंपनी से जुड़ी कुछ पहले की खबरों और टेक फॉग पर तीन हिस्सों में छपी सीरीज को भी हटा लिया).

उन्होंने यह कहते हुए माफी भी मांगी कि उनकी "आंतरिक संपादकीय प्रक्रिया, जो उसकी मेटा स्टोरीज़ के पब्लिकेशन से पहले थी, उन मानकों पर खरी नहीं उतरती थी जो हमने अपने लिए तय किए हैं और जैसा कि हमारे पाठक हमसे उम्मीद करते हैं."

इसके बावजूद अमित मालवीय ने 29 अक्टूबर को शिकायत दर्ज कराई और एफआईआर दर्ज होने के दो दिन बाद दिल्ली पुलिस ने छापा मारा.

द वायर ने इन स्टोरीज़ पर काम करने वाले रिसर्चर देवेश कुमार के खिलाफ पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई थी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

द वायर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की निम्नलिखित धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई है:

  • 420 (धोखाधड़ी और बेईमानी से संपत्ति देने के लिए उकसाना)

  • 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी)

  • 469 (प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से जालसाजी)

  • 471 (फर्जी दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को असली के तौर पर इस्तेमाल करना)

  • 500 (मानहानि की सजा), जिसे 120(बी) [आपराधिक साजिश के लिए सजा] और 34 (समान इरादे) के साथ पढ़ा जाए.

अगर जांच का इरादा निष्पक्ष था... :जस्टिस अंजना प्रकाश

जस्टिस प्रकाश अपनी बात साफ करती हैं कि पुलिस ने कैसे सिलसिलेवार कदम नहीं उठाए. वह कहती हैं कि जांच का इरादा इस तरह निष्पक्ष होता कि उनसे कहा जाता कि वे उन स्टोरीज़ को पेश करें, जिन्हें हटाया गया है.

तब एफआईआर में लगाए गए आरोपों के साथ उन स्टोरीज़ को मिलाया जाता.

“एफआईआर में जालसाजी का आरोप लगाया गया है. जालसाजी कैसे की गई, यह जाने बिना आप किसी के यहां तलाशी कैसे ले सकते हैं? मुझे इसका मतलब समझ में नहीं आ रहा है,” वह कहती हैं.

'ऐसी खामियों पर बहस हो चुकी है': जस्टिस प्रदीप नंदराजोग

राजस्थान और बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस प्रदीप नंदराजोग कानून की सीमाओं की तरफ इशारा करते हैं.

तलाशी के पीछे "संदिग्ध" इरादे के बावजूद जस्टिस नंदराजोग ने क्विंट से कहा कि यह तलाशी अपने आप में "तकनीकी रूप से गलत नहीं थी".

ऐसा इसलिए है क्योंकि एक बार एफआईआर दर्ज होने के बाद पुलिस तलाशी ले सकती है. वह समझाते हैं:

"कानून की अपनी सीमाएं हैं. इस तरह की खामियां दशकों से बहस का विषय रही हैं, सिर्फ इसलिए कि सत्ता में बैठे लोग कानून की सीमाओं का फायदा उठा सकते हैं."

ADVERTISEMENTREMOVE AD

'जबरदस्ती तलाशी लेना गैरमुनासिब...': इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के अपार गुप्ता

एडवोकेट और द इंटरनेट फ़्रीडम फाउंडेशन के को-फाउंडर अपार गुप्ता ने ट्विटर पर लिखा कि कैसे "जबरदस्ती तलाशी लेना" "पत्रकारीय नैतिकता का उल्लंघन करने वाला और गैर मुनासिब" था.

“मैं पूरी तरह से मानता हूं कि द वायर ने लापरवाही की और एक झूठी रिपोर्ट पब्लिश की. यहां यह बात नहीं है और अगर हम ईमानदारी से देखें तो हम यह जानते हैं. यह क्रिमिनल प्रॉसीक्यूशन उन्हें “सबक सिखाने के लिए है.” उन्होंने ट्वीट किया.

वह कहते हैं, “क्रिमिनल केस रजिस्टर करना, और अब द वायर के एडिटर्स के घरों की जबरन पुलिस तलाशी करना, इसकी व्यापक और साफ निंदा की जानी चाहिए. क्रिमिनल प्रॉसीक्यूशन पत्रकारीय नैतिकता के लिहाज से, या फैक्ट्स पर आधारित कानून का उल्लंघन है और गैर मुनासिब भी.”

उनके साथ इससे बेहतर व्यवहार किया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट सलमान खुर्शीद

सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट सलमान खुर्शीद ने द वायर के एडिटर्स की हिमायत की. वह कहते हैं, "उनके घर आधी रात को दस्तक देना गलत था. वे इससे बेहतर के हकदार थे."

“द वायर के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और एम के वेणु दो ऐसी शख्सीयतें हैं जिन पर आपको गर्व होना चाहिए. उन्हें एक स्टोरी के जरिए गुमराह किया गया जिसके लिए उन्होंने अफसोस जताया. उनके घर आधी रात को दस्तक देना गलत था. हम उनके साथ खड़े हैं,” सलमान खुर्शीद अपने ट्वीट में कहा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

'दुर्भावनापूर्ण इरादा, नियमों का उल्लंघन': पत्रकार संगठन

इस बीच डिजीपब न्यूज इंडिया फाउंडेशन ने एक बयान जारी कर कहा:

"पुलिस ने एडिटर्स के घरों की तुरंत और मनमर्जी से तलाशी ली, वह भी सत्ताधारी पार्टी के प्रवक्ता की मानहानि की एक निजी शिकायत के नाम पर, इसमें दुर्भावनापूर्ण इरादे की बू आती है."

बयान में कहा गया है, "इसके अलावा यह आशंका भी है कि तलाशी के नाम पर पुलिस ने द वायर के गोपनीय और संवेदनशील डेटा को जब्त और डुप्लिकेट कर लिया.”  

इसके अलावा एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने यह भी कहा कि पुलिस ने "स्थापित नियमों का उल्लंघन किया है."

संगठन ने कहा:

"जिस जल्दबाजी के साथ पुलिस ने कई जगहों की तलाशी ली, वह हद से ज्यादा गैर मुनासिब है और फिशिंग और रोविंग इंक्वायरी का मामला है (यानी ऐसी कार्रवाई जोकि मूल विषय से बिल्कुल संबंधित नहीं)."

संगठन ने कहा, "पुलिस ने स्थापित नियमों का उल्लंघन करते हुए, और डराने-धमकाने के तरीके से तलाशी ली, जोकि और भी चिंताजनक है."

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×