ADVERTISEMENT

त्रिपुरा में बीजेपी की सबसे बड़ी चिंता-समर्थक वोटर और अपनी ही पार्टी से 'बगावत'?

Tripura Assembly Elections 2023: त्रिपुरा में बीजेपी मोदी फैक्टर पर निर्भर नजर आ रही है

Published
त्रिपुरा में बीजेपी की सबसे बड़ी चिंता-समर्थक वोटर और अपनी ही पार्टी से 'बगावत'?
i
Hindi Female
listen to this story

रोज का डोज

निडर, सच्ची, और असरदार खबरों के लिए

By subscribing you agree to our Privacy Policy

साल 2018 में हुए चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने पूर्वोत्तर के राज्य त्रिपुरा (Tripura) में, जहां उसने कभी एक भी विधानसभा सीट नहीं जीती थी, पहली बार सत्ता में आकर इतिहास रच दिया था. हालांकि इस बार हालात अलग हैं, क्योंकि वह राज्य में सत्ता में बने रहने के लिए संघर्ष कर रही है. बीजेपी 55 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और पांच सीटें अपने सहयोगी इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (Indigenous People’s Front of Tripura) के लिए छोड़ दी हैं.

ADVERTISEMENT

नए चेहरों और महिला उम्मीदवारों पर दारोमदार

बीजेपी ने केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री प्रतिमा भौमिक (Pratima Bhoumik) सहित 12 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. ओबीसी वर्ग से आने वाली केंद्रीय मंत्री भौमिक धानपुर (Dhanpur) विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रही हैं, जहां से उन्होंने पिछली बार पूर्व मुख्यमंत्री माणिक सरकार (Manik Sarkar) के खिलाफ चुनाव लड़ा था और हार गई थीं.

पहली बार चुनाव लड़ रही कुछ महिलाओं में अगरतला (Agartala) से पार्टी महासचिव पापिया दत्ता, राजनगर (Rajnagar) (एससी) से स्वप्ना मजूमदार, अंबास्सा (Ambassa) (एसटी) से सुचित्रा देबबर्मा और बाधारघाट (Badharghat) (एससी) से मीनारानी सरकार शामिल हैं.

भौमिक को उम्मीदवार बनाने के पार्टी के फैसले से एक बार फिर कयास लगाए जा रहे हैं कि पार्टी अगर सत्ता में वापसी करती है तो वह भी मुख्यमंत्री पद की दौड़ में होंगी. वैसे पिछले महीने गृह मंत्री अमित शाह एक रैली में माणिक साहा (Manik Saha) को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित कर चुके हैं. मुख्यमंत्री की दौड़ में एक और दावेदार राजीव भट्टाचार्य (Rajib Bhattacharjee) हैं. पार्टी ने बिप्लब देब को मुख्यमंत्री बनाया था लेकिन चार साल बाद अचानक उन्हें हटा दिया.

इस बार चुनाव लड़ने वाले पुराने नेताओं में मंडई बाजार (Mandaibazar) (एसटी) से राजीव भट्टाचार्य, तड़ित देबबर्मा, सोनामुरा (Sonamura) से देबब्रत भट्टाचार्य और जुबराजनगर (Jubarajnagar) से मलीना देबनाथ शामिल हैं. पार्टी ने इस बार दो मुस्लिम उम्मीदवारों- बॉक्सानगर (Boxanagar) से तोफजल हुसैन (नया चेहरा) और कैलाशहर (Kailashahar) से मोबाशर अली को उम्मीदवार बनाया है. अली ने पिछले चुनाव में CPI(M) के उम्मीदवार के रूप में यह सीट जीती थी, लेकिन उनकी सीट कांग्रेस को दे दिए जाने के बाद पिछले महीने उन्होंने वामपंथी पार्टी छोड़ दी थी.

गुटबाजी में घिरी बीजेपी

पार्टी द्वारा प्रत्याशियों के नामों के ऐलान के बाद कई जगह प्रत्याशियों के खिलाफ प्रदर्शन हुए. राज्य के उत्तरी हिस्से में चांदीपुर, कदमतला-कुर्ती, बागबासा और जुबराजनगर में पार्टी उम्मीदवारों के खिलाफ प्रदर्शन हुए. चांदीपुर में पार्टी के एक पुराने कार्यकर्ता राज्य समिति के सदस्य रंजन सिन्हा ने टिकट काट दिए जाने के बाद पार्टी छोड़ दी और अब इस सीट से टिपरा मोथा (TIPRA Motha) के उम्मीदवार हैं, जिससे बीजेपी के लिए लड़ाई मुश्किल हो गई है.

खोवाई जिले की कृष्णापुर (Krishnapur) (एसटी) सीट से पार्टी के पुराने नेता और मौजूदा विधायक अतुल देबबर्मा टिकट नहीं मिलने के बाद पार्टी को अलविदा बोल कर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में हैं.

बाधारघाट की मौजूदा विधायक मिमी मजूमदार टिकट नहीं मिलने से नाराज हैं. पार्टी नेताओं के उन्हें मनाने उनके घर जाने के बावजूद वह और उनके समर्थक निर्वाचन क्षेत्र में पार्टी के प्रचार अभियान से दूरी बनाए हुए हैं. बीजेपी की मिमी मजूमदार ने हालांकि 2019 के उपचुनाव में सीट जीती थी, लेकिन पार्टी का वोट शेयर वामपंथी और कांग्रेस गठबंधन से कम था. इस बार दोनों पार्टियां एक साथ हैं और फॉरवर्ड ब्लॉक के पार्थ रंजन सरकार उनके संयुक्त उम्मीदवार हैं. इससे बीजेपी फिक्रमंद है.

इसके अलावा बीजेपी के स्थानीय नेता और कार्यकर्ता सहयोगी IPFT के उम्मीदवारों से नाखुश हैं. उत्तरी त्रिपुरा की कंचनपुर (Kanchanpur) (एसटी) सीट पर पार्टी के बागी बिमानजॉय रियांग IPFT के उम्मीदवार प्रेम कुमार रियांग के सामने निर्दलीय मैदान में हैं. प्रेम कुमार रियांग IPFT के कार्यकारी अध्यक्ष हैं.

ADVERTISEMENT

खोवाई जिले की रामचंद्रघाट (Ramchandraghat) (एसटी) सीट पर पार्टी के बागी संजीत देबबर्मा IPFT के मौजूदा विधायक प्रशांत देबबर्मा के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं. दक्षिण त्रिपुरा की जोलाईबाड़ी (Jolaibari) (एसटी) सीट पर बीजेपी के तीन बागी उम्मीदवारों ने पर्चा भरा था, लेकिन स्क्रूटनी के दौरान उनमें से एक को खारिज कर दिया गया था. पार्टी बाद में दो बागी उम्मीदवारों को मुकाबले से हटने के लिए राजी करने में कामयाब रही. बागी उम्मीदवार नहीं होने के बावजूद बीजेपी के कुछ कार्यकर्ता और समर्थक IPFT के शुक्लाचरण नोआतिया के प्रचार से दूरी बनाए हुए हैं.

प्रदेश की बीजेपी सरकार के खिलाफ गुस्सा

बीजेपी बेरोजगारी को काबू करने का वादा करके सत्ता में आई थी, जो CPI(M) के नेतृत्व वाले वाम मोर्चा के 25 साल के शासन के अंत की वजहों में से एक था. छंटनी किए गए 10,323 शिक्षकों का मसला हल करने का वादा करने के बावजूद बीजेपी सरकार उनकी नौकरी बहाल करने में नाकाम रही. शिक्षकों ने विरोध प्रदर्शन किया और उन पर लाठीचार्ज किया गया. इस बार ये शिक्षक चुनाव में बीजेपी के खिलाफ प्रचार कर रहे हैं.

एक और असरदार वर्ग राज्य सरकार के कर्मचारी, जिन्होंने पिछली बार बड़ी संख्या में बीजेपी को वोट दिया था, सरकार से नाखुश हैं. बीजेपी ने पिछले चुनाव से पहले 7वां पे कमीशन लागू करने का वादा किया था लेकिन सत्ता में आने के बाद सरकार ने केवल बेसिक जरा सा बढ़ाया.

इतना ही नहीं मौजूदा सरकार ने अपने पांच साल के कार्यकाल में सिर्फ तीन बार DA दिया- अभी भी 18 फीसद DA बाकी है. इसके अलावा पार्टी ने 2018 के चुनाव से पहले वादा करने के बावजूद संविदा कर्मियों को रेगुलर नहीं किया.

इन सबके अलावा इस चुनाव में कानून व्यवस्था एक बड़ा मुद्दा है. बीजेपी के इस दावे के बावजूद कि उसने राज्य में राजनीतिक हिंसा को खत्म कर दिया है, सच्चाई यह है कि CPM और कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों के नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों पर हमले के जोरदार आरोप लगे हैं. केंद्रीय नेतृत्व और बीजेपी नेताओं का कहना कि वह राज्य में शांति लाए, सच नहीं है क्योंकि पूर्वोत्तर के इस राज्य में लेफ्ट शासन के दौरान शांति आई थी, जिसने 2000 के दशक के अंत तक उग्रवाद को खत्म करने में बड़ी भूमिका निभाई थी.

मोदी कार्ड पर टिकीं बीजेपी की उम्मीदें

कोई बीजेपी नेताओं के भाषणों को सुने तो यही सोचेगा कि क्या मोदी राज्य के मुख्यमंत्री हैं! पार्टी के नेता ज्यादातर मोदी की कल्याणकारी योजनाओं और कैसे मोदी सभी वर्गों के लोगों की परवाह करते हैं, के बारे में ही बात करते हुए प्रचार कर रहे हैं.

पार्टी जिन योजनाओं की याद दिला रही है, उनमें आवास योजना, जन औषधि, आयुष्मान भारत, पीएम उज्ज्वला, स्वच्छ भारत योजना के तहत शौचालयों का निर्माण, किसान सम्मान निधि, मुफ्त अनाज और पीने का पानी उपलब्ध कराना शामिल हैं.

पार्टी के नेता यह भी याद दिला रहे हैं कि मोदी ने किस तरह COVID-19 टीके मुफ्त में दिलाए और उनकी सरकार का फोकस कनेक्टिविटी और हाईवे निर्माण पर है. ईमानदारी से कहें तो केंद्र की योजनाएं और विकास के प्रोजेक्ट जमीन पर नजर आते हैं और इसी का नतीजा है कि मोदी की अपनी लोकप्रियता है. इसके साथ ही ये योजनाएं सभी वर्गों तक पहुंची हैं, जिनमें आदिवासी, अनुसूचित जातियों के साथ मुसलमान भी शामिल हैं. अंबास्सा और उदयपुर में अपनी चुनावी रैलियों में खुद मोदी ने भी अपना भाषण अपनी जनकल्याणकारी योजनाओं पर केंद्रित रखा.
ADVERTISEMENT

आदिवासी बेल्ट में विस्तार नहीं हुआ

सत्ता में होने के बावजूद बीजेपी आदिवासी बेल्ट में विस्तार करने में नाकाम रही, जहां राज परिवार के प्रद्योत देबबर्मा की पार्टी TIPRA मोथा का असर है. बीजेपी के लिए मोथा गहरी चिंता का सबब रही है क्योंकि आदिवासी वोट पार्टी की सफलता के लिए जरूरी हैं. मोदी कार्ड खेलते हुए पार्टी का मानना है कि वह उनका वोट हासिल करने में कामयाब होगी. खास बात यह है कि मोदी ने अपनी रैलियों में कई बार इस बात का जिक्र किया कि किस तरह उनकी सरकार की जनकल्याणकारी योजनाएं आदिवासियों तक पहुंची हैं.

पार्टी के घोषणा पत्र में वादा किया गया है कि बीजेपी सत्ता में आती है, तो किसान सम्मान निधि के तहत किसानों को अभी हर साल दिए जाने वाले 6000 रुपये में 2000 रुपये बढ़ाए जाएंगे. घोषणापत्र में आदिवासी परिवारों को 5000 रुपये सालाना देने, पीएम उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों को दो मुफ्त LPG सिलेंडर, आनंद कैंटीन के जरिये 5 रुपये में तीन बार खाना, त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद को ज्यादा अधिकार, अनुसूचित जनजाति समुदाय के समाजपतियों के लिए 5000 रुपये की सोशल पेंशन देने का भी वादा किया गया है. कमजोर वर्ग के हर परिवार को बेटी के जन्म पर 50,000 रुपये का बांड और कॉलेज जाने वाली मेधावी छात्राओं को मुफ्त स्कूटी देने का वादा किया गया है.

बीजेपी का घोषणापत्र रोजगार, 10,323 शिक्षकों और सरकारी कर्मचारियों पर खामोश है, मगर पार्टी नेता वाम-कांग्रेस गठबंधन पर सवाल उठाने में आगे हैं. वे इसे अपवित्र गठबंधन बता रहे हैं और पार्टी नेताओं के भाषणों में ज्यादा समय वाम-कांग्रेस गठबंधन की आलोचना में ही बीतता है. वे खासतौर से कांग्रेस के मतदाताओं को CPM के साथ उनकी पिछली लड़ाइयों की याद दिला रहे हैं. यहां तक कि खुद मोदी ने भी अपनी दो रैलियों में दोनों पार्टियों पर निशाना साधा.

शुरू में पार्टी नेता दावा कर रहे थे कि बीजेपी को सभी 60 सीटें मिलेंगी लेकिन अब वे ऐसा दावा नहीं कर रहे हैं. उनका कहना है कि पार्टी को पिछली बार से ज्यादा सीटें मिलेंगी. हालांकि इस बार लड़ाई कड़ी है और बीजेपी भी इस बात से वाकिफ है. इसलिए वह पूर्वोत्तर के इस राज्य में सत्ता में वापसी के लिए मोदी सरकार की कल्याणाकारी योजनाओं, विकास परियोजनाओं और वाम-कांग्रेस गठबंधन के नकारात्मक वोटों पर निर्भर है.

(सागरनील सिन्हा एक राजनीतिक टिप्पणीकार हैं और उनका ट्विटर हैंडल @SagarneelSinha है. आलेख में दिए गए विचार लेखक के अपने हैं और उनसे क्विंट हिंदी का सहमत होना जरूरी नहीं है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

ADVERTISEMENT
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
0
3 माह
12 माह
12 माह
मेंबर बनने के फायदे
अधिक पढ़ें
ADVERTISEMENT
क्विंट हिंदी के साथ रहें अपडेट

सब्स्क्राइब कीजिए हमारा डेली न्यूजलेटर और पाइए खबरें आपके इनबॉक्स में

120,000 से अधिक ग्राहक जुड़ें!
ADVERTISEMENT
और खबरें
×
×