एक पिता की ओपन हार्ट सर्जरी ने बेटी के पार्टनर के लिए दिल के दरवाजे खोल दिए. वह उम्मीद की किरण बनकर आया. बॉलिवुड शैली की कहानी के पन्ने पलटने लगे. पंजाब में रहने वाले एक आध्यात्मिक गुरु ने इस कहानी को क्लाइमेक्स तक पहुंचाया. उसने कैलीफोर्निया में रहने वाले अपने शिष्य को वह संदेश दिया, जिसे पूरी दुनिया को समझने की जरूरत है.
बेटी का नाम है, माया असर, जोकि अब माया असर मलिक बन चुकी है. 2020 में उसने जिया मलिक से शादी रचाई जोकि उसका सहपाठी और फिर बिजनेस पार्टनर है. शादी से पहले माया और जिया दस साल से भी ज्यादा समय से एक दूसरे को डेट कर रहे थे. माया याद करती है:
“मेरे पिता बहुत धार्मिक हैं, और मेरी पसंद को लेकर उनमें बहुत हिचकिचाहट थी. कई साल पहले उनकी ओपन हार्ट सर्जरी हुई थी, जिसमें उन्हें कई बोतल खून दिया गया था. उनके गुरुजी ने उनसे कहा- क्या तुम्हें यह च्वाइस मिली थी कि तुम्हें किसका खून चढ़ाया जाएगा ताकि तुम्हारी जान बचाई जा सके. खून खून होता है, और इनसान भी इनसान होता है. सभी तो एक बराबर हैं. बस, गुरुजी का बात सुनकर मेरे पिता की आंखें खुल गईं.”
उनके प्यार ने धर्म और सरहदों की दीवारों को गिरा दिया. असर भारतीय हिंदू है, और मलिक पाकिस्तानी मुसलमान. दोनों के परिवार कैलीफोर्निया के कैरिटोस में रहते हैं और हाल ही में उन्होंने अपनी शादी की पहली वर्षगांठ मनाई है.
मेहंदी में भी दिखता है परस्पर संस्कृतियों का मेल
माया की बहन नेहा असर एक काफी मशहूर हिना आर्टिस्ट है जो नब्बे के दशक से कैलीफोर्निया की दक्षिण एशियाई शादियों में दुल्हनों के हाथों को रचने का काम कर रही है. खास तौर से उनकी मेहंदी में अलग-अलग संस्कृतियों का मेल नजर आता है, जो दो तहजीब और आस्था वाले जोड़ों की शादियों को और खूबसूरत बनाता है.
“यह दो संस्कृतियों को एक साथ लाना है. मैं दुल्हन की मेहंदी में यही दिखाती हूं. एक दफा एक गुजराती लड़की एक यहूदी लड़के से शादी कर रही थी. तो मैंने लड़की के एक हाथ पर ‘स्टार ऑफ डेविड’ बनाया. एक बार एक गुजराती हिंदू लड़की और पेरू के लड़के की शादी में मैंने दुल्हन के हाथ पर ‘तुमी’ बनाया जोकि हमारे यहां गणेश जी जैसे देवता हैं. हां, इस बात का जरूर ध्यान रखा कि इससे उनकी भावनाओं को ठेस न पहुंचे.”
अध्यात्म और ध्यान ने भारतीय रूसी को मिलाया
जूलिया और निश की शादी में भी एक आध्यात्मिक गुरु ने अहम भूमिका निभाई. रूस में जन्मी जूलिया एक व्हाइट है जो पढ़ाई के लिए अमेरिका पहुंची थी. यहां आध्यात्म और ध्यान के एक प्रकार, ‘हार्टफुलनेस’ में उसका मन रम गया. इसी दौरान उसकी मुलाकात जम्मू में जन्मे निश से हुई जोकि सैन फ्रांसिस्को में नौकरी कर रहा था.
दोनों एक ही मेडिटेशन ग्रुप के सदस्य थे लेकिन ‘सामान्य अमेरिकन शैली’ में दोनों ने डेट करना शुरू नहीं किया. जूलिया और निश हैदराबाद में अपने गुरु से शादी की इजाजत लेने पहुंचे. उनके आशीर्वाद से दोनों ने एक साल बाद शादी की और अब सैन फ्रांसिस्को बे एरिया में रहते हैं. ‘हार्टफुलनेस’ के बारे में जूलिया कहती है:
“मैं हार्टफुलनेस का अभ्यास समर्पित भाव से करती हूं और यह मेरे लिए बहुत अहम है कि मेरे पति इसे समझते हैं और ध्यान लगाते हैं. वह 20 साल से यह कर रहे हैं और शाकाहारी हैं. मैं लोगों का शराब पीना भी पसंद नहीं करती.”
नस्लवादी रवैये से ज्यादा अपने बच्चों के भविष्य की चिंता?
लेकिन सभी देसी लोगों के इश्क की राह से कांटे चुनने के लिए आध्यात्मिक गुरु मौजूद नहीं होते. दक्षिण एशियाई बिरादरी में माता-पिता इतनी आसानी से इस बात को कबूल नहीं करते कि उनके बच्चे दूसरी नस्ल या धर्म के शख्स को अपना जीवन साथी चुनें. रूढ़िवादी हिंदू भारतीय परिवार के लोग अक्सर अपने बच्चों को हिदायत देते सुनाई देते हैं- ‘बीएमडब्ल्यू से शादी मत करना. बीएमडब्ल्यू, मतलब ब्लैक, मुसलमान और व्हाइट.’
किसी और सांस्कृतिक पहचान वाले व्यक्ति से इश्क- यह नामुमकिन इसलिए भी लगता है क्योंकि उसके देश से आपके देश की दुश्मनी हो सकती है. साथियों और परिवार से बेदखल कर दिए जाने का डर हो सकता है या फिर सामाजिक लांछन की दहशत भी. कई देसी लोगों को लगता है कि किसी ब्लैक के मुकाबले व्हाइट से शादी करना ज्यादा आसान है. बेशक, इसके पीछे नस्लवाद की भावना है जो पूरे सामाजिक ढांचे में मौजूद है. और इसके लिए बहुत ज्यादा काम किए जाने की जरूरत है.
कई मामलों में देसी नौजवानों को लगता है कि उनके माता-पिता की आशंका सिर्फ नस्ल या धर्म से जुड़ी नहीं है, बल्कि वे अपने बच्चों के भविष्य को लेकर सचमुच चिंतित होते हैं. हालांकि वे यह भी मानते हैं कि यह चिंता गलत धारणाओं की वजह से है और इसकी जड़ में नस्लवाद ही है.
बेशक, उनके बच्चे अच्छे पढ़े-लिखे, अपने पेशे में सफल हों, फिर भी दक्षिण एशियाई माता-पिता को हमेशा ऐसा लगता है कि समाज में उनकी स्थिति खराब न हो. शुरुआती ना-नुकुर और हिचकिचाहट, और फिर सोच-विचार के बाद ज्यादातर माता-पिता बेमन से ही, नरम पड़ जाते हैं.
ब्लैक लोगों के प्रति रवैया कैसे बदलें
‘गोरेपन’ के प्रति मोह के चलते दक्षिण एशियाई माता-पिता को किसी ब्लैक पार्टनर से मिलाना सबसे मुश्किल काम है. उगांडा में जन्मे अमेरिकी जोनाह की शादी गुंटूर (आंध्र प्रदेश) में जन्मी ब्रिटिश श्वेता से हुई है. दक्षिण एशियाई लोगों में एंटी ब्लैक रवैये को देखकर जोनाह बाटेमबज ने एक पहल की. उसने हैशटैगबीइंडियनप्रॉजेक्ट (#BlindianProject) की शुरुआत की जिसका मकसद ब्लैक विरोधी सोच को खत्म करना है.
इस समय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर उसके हजारों फॉलोअर्स हैं. जोनाह चाहता है कि ब्लैक और दक्षिण एशियाई लोगों के रिश्ते सामान्य हों.
‘बीइंडियन’ कपल्स आपबीतियों के साथ तस्वीरों और वीडियोज़ को ऑनलाइन साझा करते हैं और ग्रुप उन्हें मदद करता है. जोनाह वर्कशॉप्स करता है और बताता है कि दक्षिण एशियाई बिरादरी में ब्लैक्स को लेकर लोगों के मन में कैसी धारणाएं हैं और मानता है कि भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर भी बीइंडियन प्रॉजेक्ट उतना ही जरूरी है.
“मैंने पाया कि जब मैंने इन वर्कशॉप्स में लोगों को समझाना शुरू किया तो भारत के लोग भी इनमें आने लगे. अलग-अलग जगह के लोगों को यह बात समझ में आने लगी. दरअसल आधार तो प्यार ही है. सिर्फ ‘बीइंडियन’ कपल्स ही नहीं, अलग-अलग जातियों और धर्मों के लोग भी ऐसे ही संघर्ष कर रहे हैं.”
एक जैसे जीवन मूल्यों ने भारतीय और नाइजीरियाई जोड़े को एक दूसरे से जोड़ा
दिलचस्प यह है कि कई दक्षिण एशियाई माता-पिता अपने बच्चों के पार्टनर्स को इतनी आसानी से कबूल कर लेते हैं कि कोई सोच भी नहीं सकता था.
नेहा और तुंदे एहिंडेरो की शादी को दस साल के करीब हो गए हैं. दोनों एटलांटा के एमबीए स्कूल में मिले थे. उन्हें शुरुआत में लगा कि नेहा के माता-पिता चाहेंगे कि उनकी बेटी एक भारतीय लड़के को पसंद करे. तुंदे का परिवार भी अपने लिए नाइजीरियाई बहू चुनना चाहेगा. सिएटल में रहने वाला नेहा का परिवार एक ‘स्टीरियोटिपिकल’ भारतीय परिवार है जोकि भारतीय और अमेरिकी पहचान के बीच लगभग झूलता सा रहता है- हिंदी भाषी, शाकाहारी, भारतीय सोशल सर्किल वाला, साईं बाबा का भक्त.
तुंदे के साथ चार साल के ‘लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप’ के बाद नेहा समझ गई कि दोनों के जीवन मूल्य, मान्यताएं एक जैसी ही हैं. वह कहती है:
“हमारा प्यार गहरा हुआ तो हमें यह एहसास भी हुआ कि भले ही हमारी सांस्कृतिक पहचान अलग-अलग है लेकिन हमारा लालन-पालन एक ही जैसा है. और जो मायने रखता है, वह है, पढ़ाई-लिखाई, कड़ी मेहनत, नैतिक सोच, परिवार का महत्व, बड़ों की इज्जत, हर किसी के लिए दयालु होना, किसी को उसकी त्वचा के रंग से नहीं, उनके कर्मों से पहचानना.”
नेहा तुंदे के साथ नाइजीरिया गई और उसके परिवार वालों से मिली. सबसे पहले वह उसके भाई-बहनों से मिली और फिर उनकी मदद से उसके माता-पिता से. सब कुछ बहुत सहज रहा. “फिर हमारे माता-पिता मिले. मेरा पापा ने रेस्त्रां में उन लोगों से कहा, तो हमें इनकी शादी कब तक करनी है! हमारी तब तक सगाई भी नहीं हुई थी.”
मैक्सिको में इस नाइजीरियाई-कैथोलिक और भारतीय-हिंदू जोड़े की शादी हुई. मेहमान भी अलग-अलग महाद्वीपों से यहां पधारे.
जिनसे प्यार पर पाबंदी है, उनमें और बिरादियां भी जोड़ दी गई हैं
जहां ज्यादा से ज्यादा देसी नौजवान नस्ल और धर्म के पूर्वाग्रहों को तोड़ रहे हैं, वहीं जड़ता ने भी अपना दायरा बढ़ाया है. जिन संस्कृतियों और नस्लों से प्यार करने पर पाबंदी है, उसमें और बिदारियां भी शामिल होती जा रही हैं. ‘निषिद्ध’ ‘बीएमडब्ल्यू’ में चाइनीज, वियतनामी और लैटिनएक्स जुड़े गए हैं.
स्टीव के परंपरागत चीनी माता-पिता और दादा-दादी को इस बात से कोई ऐतराज नहीं कि वह सिख भारतीय अमेरिकी लड़की से शादी करे जोकि कैलीफोर्निया की सिलिकॉन वैली में पली-बढ़ी है. स्टीव की अपनी मंगेतर के भाई-बहन से तो बनती है लेकिन उसके माता-पिता से नहीं. स्टीव को लगता है कि ‘भारतीय तौर तरीका’ काफी दमघोंटू है.
“वह मुझे अपने माता-पिता से मिलने की कोशिश कर रही है. भारतीय शादियों में माता-पिता की मंजूरी जरूरी है. इस सीमा रेखा को आप पार नहीं कर सकते. आप किसी को डेट नहीं करेंगे, ऑपोजिट सेक्स से गहरा रिश्ता नहीं बनाएंगे. यह अमेरिकन शैली से एकदम अलग है. उसके परिवार में दूसरी जातियों में शादियां हुई हैं. हमें इसमें कोई उज्र नजर नहीं आता. इसी वजह से हमारी हिम्मत बढ़ी है. विविधता का तो जश्न मनाया जाना चाहिए. वैसे मैंने अपने हमउम्र भारतीय लोगों को देखा है. वे सभी किसी न किसी रिलेशनशिप में हैं पर अपने माता-पिता को बता नहीं सकते.”
देसी दिल है कि मानता नहीं
जिसे सात समुंदर पार कहते हैं, वहां पहुंचकर देसी दिलों ने हर संस्कृति, विश्वास और वर्ण के लिए धड़कना सीख लिया है. पूर्व धारणाओं के कितने भी किले बने हों, देसी दिल उन्हें प्यार के आघात से तोड़ रहे हैं. उनका मानना है कि दूसरी सांस्कृतिक पहचान वाला शख्स उनकी पहचान को मिटाता नहीं, उसमें चार चांद लगाता है. प्यार हर मजहबी रुख, नस्ल-वर्ण की रवायत और सरहद की चौहद्दी से परे है.
(सविता पटेल एक सीनियर जर्नलिस्ट और प्रोड्यूसर हैं. वह फिलहाल सैन फ्रांसिस्को बे एरिया में रहती हैं. यह एक ओपनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
पढ़ें ये भी: क्यों ऐतिहासिक था ट्रंप के खिलाफ ट्रायल? US में महाभियोग का इतिहास
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)