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बलात्कार पर सावरकर के विचारों की कीमत चुका रहा है देश- आशुतोष

‘हिंदुओं का मुस्लिम महिलाओं के प्रति नरम रवैया सावरकर को पसंद नहीं था.’

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आइये मैं आपसे एक सवाल करता हूं. हिंदुत्ववादी नेताओं का धर्म क्या है ? वो अपने जीवन में राम धर्म को मानते है या रावण धर्म को ? आप कहेंगे क्या बेवकूफी भरा सवाल है. जी हां, बिलकुल. आज जब पूरे देश में कठुआ मे एक आठ साल की बच्ची के साथ अमानवीय बलात्कार पर पूरा देश स्तब्ध है तब बीजेपी के नेता उन लोगों के साथ खडें है जिन पर बलात्कार के गंभीरतम आरोप हैं.

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ये जानते हुये भी कि जिस हैवानियत के साथ कठुआ में आठ लोगों ने बलात्कार किया उसे सुनकर किसी शैतान का भी सिर शर्म से झुक जायेगा. लेकिन हिंदुत्व के स्वघोषित स्वयंसेवकों का सिर शर्म से नहीं झुका, वो उन हैवानों के साथ खड़े हो गये जिन्हें इंसान कहना हैवानियत का भी अपमान होगा.

देशभर में जब इस घटना के बाद आक्रोश लावा बनकर धधकने लगा और लगा की वो बीजेपी को निगल जायेगा तब उन दोनों बीजेपी नेताओं का इस्तीफा ले लिया गया जो बलात्कारियों की तरफ से भारत माता की जय का नारा बेशर्मी से बुलंद कर रहे थे.

ऐसे में ये सवाल उठना लाजिमी है कि भारतीय संस्कृति की दुहाई देने वाले ये हिन्दुत्ववादी इतने खूंखार कैसे हो सकते हैं, वो बलात्कारियों के साथ कैसे खडे हो सकते हैं? इसका जवाब मेरे उस सवाल में है जो मैंने ऊपर पूछा था कि हिंदुत्ववादी नेता राम धर्म को मानते हैं या रावण धर्म को?

ये सवाल बहुत अटपटा है. लोग कहेंगे कि ये नेता तो जय श्रीराम का नारा लगाने वाले हैं, राम मंदिर के लिये जान-प्राण न्यौछावर करने को तत्पर हैं. वैसे में इस सवाल का क्या अर्थ है?

इस सवाल का अर्थ है. क्योंकि अगर ये नहीं समझेंगे तो उस मानसिकता के व्याकरण को नहीं समझ पायेंगे जो दंगों में औरतों का पेट फाड़ते हैं, मासूम बच्चों को जिंदा जला देते हैं, गर्भवती महिलाओं के साथ बलात्कार करते हैं .
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उन्हें वीर सावरकर कहते हैं. वीर क्यों कहते है ये मैं आज तक नहीं समझ पाया. मैं उन्हे विनायक दामोदर सावरकर के नाम से जानता हूं जिन्होंने भारतीय इतिहास की वो व्याख्या की है जिसने देश में आग लगा दी. सावरकर के समर्थक आज देश की सत्ता पर काबिज हैं.

राम-राम की वकालत करते हैं पर वो ये नहीं जानते कि सावरकर खुद ‘रावण धर्म’ को मानते थे. आइये उनकी किताब से एक उदाहरण देकर समझाता हूं. सावरकर अपनी किताब भारतीय इतिहास के छह वैभवशाली युग में चैप्टर आठ के पैरा 442-443 में लिखते हैं:

‘हिंदुओं का मुस्लिम महिलाओं के प्रति नरम रवैया सावरकर को पसंद नहीं था.’

राक्षसनाम् परोधर्म: परदाराविघर्षणम्

परोधर्म: उतकृष्टतम कर्तव्य.

दूसरो की औरतों को अगवा करना और उनको बरबाद करना, अपने आप में राक्षस का परम धार्मिक कर्तव्य है.

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ये किस्सा बता कर सावरकर कहते हैं:

‘हिंदुओं का मुस्लिम महिलाओं के प्रति नरम रवैया सावरकर को पसंद नहीं था.’

सावरकर को ये तकलीफ थी कि उधर हिंदू, मुसलमान औरतों के साथ तमीज से पेश आते थे. उन्हें पूरा सम्मान देते थे. हिंदू उनकी तरफ आंख उठा कर भी नहीं देखते थे. जिसकी वजह से मुसलमान हमलावरों को इस बात का कोई डर नहीं था कि अगर वो हार गये तो उनकी महिलाएं सुरक्षित नहीं रहेंगी. महिलाओं के प्रति हिंदू राजाओं और सैनिकों का ये रवैया सावरकर को नागवार गुजरा. वो क्रोधित हो गये. पैरा 449 में सावरकर लिखते हैं:

‘हिंदुओं का मुस्लिम महिलाओं के प्रति नरम रवैया सावरकर को पसंद नहीं था.’
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सावरकर औरतों के प्रति हिंदू पुरूषों के इस कृत्य को आत्महत्या के समान मानते थे. यानी उनका मानना था कि हिंदुओं को भी मुस्लिम औरतों के साथ बुरा बर्ताव करना चाहिये जैसा कि उनकी नजर में मुस्लिम आक्रमणकारी करते थे.

दिलचस्प बात है कि जिन शिवाजी को वो भारत के इतिहास में ऊंचा स्थान देते हैं कि उन्होंने मुगल बादशाह औरंगजेब के दांत खट्टे किये और हिंदू राज की स्थापना की, उनका वो उपहास उड़ाते हैं.

कल्याण के मुसलमान सूबेदार पर जीत के बाद जब उनके सैनिकों ने कब्जे में ली गई उसकी पुत्रवधु को शिवाजी के सामने पेश किया तो शिवाजी ने उसको पूरे सम्मान के साथ वापस घर भेजने का फरमान जारी किया. इतिहास में शिवाजी की इस काम के लिये जमकर तारीफ की गई. आम जनता इसे उनकी महानता से जोड़कर देखती है. लेकिन सावरकर को ये पसंद नहीं.

वो लिखते हैं:

‘हिंदुओं का मुस्लिम महिलाओं के प्रति नरम रवैया सावरकर को पसंद नहीं था.’
‘हिंदुओं का मुस्लिम महिलाओं के प्रति नरम रवैया सावरकर को पसंद नहीं था.’
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सावरकर के जीवनी लेखक धनंजय कीर की कलम से सावरकर का मंतव्य और भी स्पष्ट हो जाता है. कीर लिखते हैं:

उन्होंने (सावरकर ने) कहा कि हिंदुस्तानी औरतों का अपहरण और बलात्कार जैसी पाकिस्तान की अमानवीय और नृशंस गतिविधियों पर तभी रोक लग सकती है जब उसके साथ जैसे का तैसा सलूक किया जाये.
धनंजय कीर, लेखक

यानी अब कोई संदेह नहीं रह जाता कि सावरकर औरतों के साथ बलात्कार की वकालत कर रहे थे. इस संदर्भ में प्रसिद्ध चिंतक पुरूषोत्तम अग्रवाल कहते हैं:

बलात्कारी भी बलात्कार को नैतिक दर्जा देने से हिचकिचाता है. सदगुण विकृति की धारणा के जरिये सावरकर इस हिचकिचाहट का झटके से अंत कर डालते हैं. वो बेझिझक सदगुण को बड़े व्यवस्थित ढंग से विकृति कहते हैं और वह भी शिवाजी की निंदा करते हुये.
पुरूषोत्तम अग्रवाल, चिंतक

यानी सावरकर रावण धर्म का समर्थन करते हैं. उन्हें राम का मर्यादित आचरण पसंद नहीं है. वो उनके लिये आदर्श नहीं हैं. सावरकर का तर्क है कि युद्ध में शत्रु के साथ किसी भी तरह की रियायत आत्महत्या है, घाटे का सौदा है और अगर शत्रु को परास्त करने के लिये उनकी औरतों के साथ बलात्कार भी करना पड़े तो हिचकना नहीं चाहिये.

सावरकर का दर्जा हिंदुत्व विचारधारा में वही है जो साम्यवादी आंदोलन में कार्ल मार्क्स का है. उनका कहा एक-एक शब्द वेद-वाक्य है. उनके समर्थकों को लगता है कि जब वो ये कर रहे होते हैं तो वो हिंदू धर्म के लिये पुनीत काम कर होते हैं. देश के वैभव को बढ़ाने वाला काम कर रहे होते हैं. इसलिये इनमें न तो ग्लानिभाव होता है और न ही अपराधबोध.

दरअसल समस्या सावरकर की उस नजर में है जो राष्ट्रवाद की नई परिभाषा गढ़ती है. वो भारतीय इतिहास को धर्मों के बीच एक सतत संघर्ष के रूप में देखते हैं. जहां हिंदू धर्म की हानि इसलिये होती है क्योंकि वो परोपकारी है, दयालु है, सदगुण संपन्न है, नैतिक मूल्यों से सजा संवरा है. ये सब उनकी नजर में हिंदू समाज की कमजोरियां हैं.

फिर वो मुसलमानों को शत्रु मान बैठते हैं. जिससे हिंदू सदियों से लड़ता आ रहा है और अकसर हारता भी रहा है. सावरकर को लगता है कि मुसलमान इसलिये जीतते हैं कि क्योंकि वो क्रूर हैं, उनमे दया ममता नहीं है, वो आक्रामक हैं, और शत्रु का मनोबल तोड़ने के लिये बलात्कार को युद्ध नीति के तौर पर इस्तेमाल करने से भी नहीं हिचकते.

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सावरकर का ये नजरिया गलत है, विकृत है और इतिहास की समझ से परे है. ये जानबूझ कर गढ़ा हुआ लगता है कि क्योंकि यही सावरकर 1857 की बगावत पर लिखी अपनी किताब 1857 का स्वतंत्रता संग्राम में मुसलमानों की जमकर प्रशंसा करते हैं. उन्हें राष्ट्रवादी मानते हैं. पेज 114 पर सावरकर लिखते हैं:

भारत माता ने- इसके बाद तुम सब समान सहोदर हो और मैं तुम दोनों की मां हूं- इस दिव्य मंत्र का उच्चारण किया. हिंदुस्तान अपना देश है, और हम सब सगे भाई हैं, ऐसी गर्जना करते हुये हिंदू, मुसलमानों ने सम समानता और एकमत से दिल्ली के तख्त पर स्वराज्य का उभय स्वीकृत झंडा तभी खड़ा किया.
विनायक दामोदर सावरकर, हिंदुत्व विचारक

सावरकर यहीं नहीं रुकते. वो पेज 169 पर फिर लिखते हैं:

‘हिंदुओं का मुस्लिम महिलाओं के प्रति नरम रवैया सावरकर को पसंद नहीं था.’

ऐसे में क्या कारण है कि सावरकर रावण धर्म को मानने लगते हैं. ये विश्लेषण का विषय है. पर बलात्कार को उदात्त रूप देने का उनका प्रयास निंदनीय है. भारत आज उसकी कीमत चुका रहा है.

ये भी देखें: VIDEO | हिंदुत्व के नाम पर गुंडागर्दी का लाइसेंस किसकी शह पर?

(लेखक आम आदमी पार्टी के प्रवक्‍ता हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)

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