भारत के सबसे ज्यादा अमीर भारत छोड़ रहे हैं, ये रफ्तार चीन और फ्रांस से भी ज्यादा है. इकनॉमिक टाइम्स ने मॉर्गन स्टेनली के रुचिर शर्मा की रिसर्च के हवाले देते हुए बताया है कि 2014 से अब तक 23 हजार करोड़पति देश छोड़ चुके हैं. इनमें 7000 अकेले 2017 में देश छोड़कर गए.
मॉर्गन स्टेनली के चीफ ग्लोबल स्ट्रैटेजिस्ट रुचिर शर्मा की टीम की इस रिपोर्ट में दावा है कि भारत के 2.1% अमीर देश छोड़कर गए हैं जबकि फ्रांस में सिर्फ 1.3% और चीन में सिर्फ 1.1% अमीर देश छोड़कर गए हैं.
रुचिर शर्मा के मुताबिक इस तरह के अमीरों के देश छोड़ने से भारत को नुकसान होगा क्योंकि ये लोग देश में रकम लगाते और खपत करते तो इकोनॉमी की रफ्तार बढ़ती.
रुचिर शर्मा के आंकड़ों के मुताबिक ऑकलैंड, दुबई, मॉन्ट्रियल, तेल अवीव और टोरंटो दुनिया के अमीरों के पसंदीदा शहर बनकर उभरे हैं.
भारत छोड़कर जाने वाले अमीरों की पसंदीदा जगह ब्रिटेन, दुबई और सिंगापुर है. देश छोड़ने वाले अमीरों की कैटेगरी में ऐसे लोग शामिल हैं जो छह महीने से ज्यादा से देश से बाहर हैं.
देश छोड़कर जाने वाले इन अमीरों में उन लोगों को रखा गया है जिनकी संपत्ति 10 लाख डॉलर यानी करीब 6.5 करोड़ रुपए से ज्यादा है.
साउथ अफ्रीका की एक मार्केट रिसर्च एजेंसी न्यू वर्ल्ड वेल्थ एक दूसरी रिपोर्ट में भी यही बताया गया है कि भारत के अमीर देश छोड़ रहे हैं. पिछले तीन साल में भारत के 17 हजार अमीर (डॉलर मिलियनेयर, जिनके पास कम से कम 6.5 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति है) देश छोड़ गए हैं. हर साल ये रिपोर्ट निकलती है. उसकी ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 में 7,000, 2016 में 6,000 और 2015 में 4,000 सुपर रिच लोगों ने भारत छोड़ा और उन्होंने अपना निवास (Domicile) किसी दूसरे देश में बना लिया.
रुचिर शर्मा की रिपोर्ट के मुताबिक ये कहीं ज्यादा 23,000 है.
माइग्रेशन कोई नई चीज नहीं है. जबसे इंसान है, तब से माइग्रेशन है. पूंजी और इंसान सतत प्रवाहमान हैं. लेकिन किसी भी ट्रेंड को देश, काल और परिस्थिति के संदर्भ में आंका जाना चाहिए.
इस रिपोर्ट में ये आंकड़ा नहीं है कि जो लोग डॉलर मिलियनेयर नहीं हैं, वैसे कितने लोग भारत से बाहर चले गए. पिछले कुछ वर्षों से कारोबार, टैक्स और टूरिज्म की दुनिया में ये काफी चर्चा का विषय है. कहते हैं कि ये तादाद लाखों में हो सकती है. जो अनुमान उपलब्ध हैं, उनके मुताबिक कम से कम 2-3 लाख लोग अपना मुकाम बाहर बसा चुके हैं.
कुछ लोग कहते हैं कि ये संख्या 4-5 लाख तक हो सकती है. सरकार हमें ये आसानी से नहीं बताती कि हर साल कितने लोगों ने भारत में टैक्सपेयर न रहने का फैसला कर लिया. कितने लोगों ने पासपोर्ट जमा कर दिया या फिर किस देश में कितने लोग जाकर रेजिडेंट, टैक्सपेयर बन गए. अलग-अलग पब्लिक जानकरियों से ऐसे कुछ मोटे अनुमान आते रहते हैं.
क्यों गए हैं ये लोग?
ऐसे वक्त में, जब पिछले तीन साल दुनियाभर में कारोबार सुस्त था, तब लोग क्यों भारत में मौके न तलाशकर, बाहर जाना पसंद कर रहे थे? एक जवाब है, इसमें कुछ असामान्य नहीं है. जहां कमाई का मौका हो, लोग वहां पहुंच जाते हैं. दूसरा जवाब है, बाहर का रुख करने वालों को टैक्स बचाना है, चुराना है, वो बेईमान लोग हैं और डर के मारे भाग रहे हैं.
एक तीसरा जवाब भी है. वो ये कि यहां आसानी से कारोबार करने का माहौल नहीं है. बिजनेस करना सिर्फ मुश्किल ही नहीं, टॉर्चर भी है. जो बाहर गए हैं, वो टैक्स चुराने-बचाने के लिए गए हैं, जांच एजेंसियों के डर से गए हैं, सिर्फ ऐसा मानना, खुद को गुमराह करने जैसा होगा.
जो लोग बाहर गए हैं, वो दरअसल एक लंबे इंतजार से थककर बाहर जा रहे हैं. 2008 से लेकर 2014 तक ग्लोबल मंदी और भारत के बिगड़े हुए माहौल में ये लोग बेचैन थे. महत्वाकांक्षाएं थीं, लेकिन काम नहीं था. काफी लोग हताशा में बाहर गए हैं. ये लोग आपको आसानी से दुबई, सिंगापुर और लंदन में नजर आएंगे. और भी दर्जनों देश हैं, जहां निवेश, टैक्स और रिहाइश- अब काफी आसान है. और अब सफर करना पहले जैसा मुश्किल नहीं रहा.
ये NRI हैं. हम या तो इन्हें बड़ा देशभक्त मानते हैं या बेईमान- हमको अपनी दुविधा दूर कर लेनी चाहिए. मैं आपको इतना बता सकता हूं कि जो नए लोग पिछले कुछ वर्षों में गए हैं, वो खुशी से नहीं, डरकर नहीं, दुःख और हताशा में बाहर गए हैं. काफी लोग लौटना भी चाहते हैं, लेकिन उनके लिए मौके और मुकाम, दोनों नहीं हैं.
ईज आफ डूइंग बिजनेस अगर वास्तव में होता, भारत में बसे हुए उद्यमी नए प्रोजेक्ट लगा रहे होते, लोग बाहर न जा रहे होते.
ध्यान दीजिएगा कि भारत की कंपनियों का विदेश में निवेश इस साल रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचा. ये अच्छी बात है. बुरी बात ये है कि इनके पास नकद पूंजी मौजूद होते हुए भी ये भारत में निवेश नहीं कर पा रहे.
हम आजकल हर दिन राष्ट्रवाद का नगाड़ा सुनते रहते हैं. राष्ट्रप्रेम पर लेक्चर सुनते रहते हैं. ये भी कि कैसे सारी दुनिया भारत पर अचानक लट्टू हो गई है और ग्लोबल निवेशक भारत में निवेश नहीं करेगा, तो कहां करेगा?
अगर ये सब सच है, तो हमारे छोटे अमीर-बड़े अमीर भारत छोड़ो अभियान को क्यों बढ़ा रहे हैं?
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