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क्या बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकता की कोशिशों को कमजोर कर रही TMC?

ममता हमेशा इस बात से इनकार करती हैं लेकिन टीएमसी लगातार उन्हें मोदी के मुकाबले प्रधानमंत्री चेहरा बता रही है.

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पश्चिम बंगाल में राजनीतिक तपिश जल्दी ठंडी होने वाली नहीं है. अभी 17 सितंबर को तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के अखबार ‘जागो बांग्ला’ में एक लीड आर्टिकल छपा है जिसकी हेडलाइन है, ‘राहुल गांधी फेल्ड टू सकसीड: ममता बनर्जी इज द ओनली ऑल्टरनेटिव फेस’ (राहुल गांधी सफल नहीं हुए, ममता बनर्जी ही अकेला विकल्प हैं.)

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इसने विवाद को जन्म दिया और भारत में विपक्षी पार्टियों की एकता पर भी सवाल खड़े किए हैं. दो महीने पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भारी बहुमत से विधानसभा चुनाव जीतने के बाद पहली बार राष्ट्रीय राजधानी आई थीं. अपनी पांच दिन की यात्रा में वह विपक्षी पार्टियों के जिन अहम नेताओं से मिली थीं, उनमें कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी और सीनियर नेता राहुल गांधी शामिल थे. इसके बाद से चर्चा गरम थी कि 2024 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के खिलाफ ‘संयुक्त विपक्षी मोर्चा’ तैयार हो रहा है, और ममता ने उसकी पतवार संभाली है.

बंगाल के चुनावों के बाद टीएमसी का राष्ट्रीय अभियान

ममता के कदम ने इन अटकलों को हवा दी और बहुतों ने सोचा कि 2024 के लोकसभा चुनावों में ममता खुद को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश करना चाहती हैं.

लेकिन हर बार जब राष्ट्रीय राजनीति में उनकी भूमिका के बारे में बात होती है तो ममता इस बात को नकार देती हैं कि उनमें प्रधानमंत्री बनने की लालसा है.

ममता ने दिल्ली दौरे के समय कहा था, “कोलकाता में मेरा सुंदर सा घर है और मैं वहीं रहना चाहती हूं. मैं नेता नहीं, कैडर बनना चाहती हूं. मैं कोई वीआईपी नहीं, एलआईपी हूं यानी लेस इंपॉर्टेंट पर्सन. ऐसा कोई प्लेटफॉर्म होना चाहिए जहां हम एक साथ मिलकर काम कर सकें. संसद के सत्र के बाद हमें एक साथ बैठना चाहिए और विपक्ष की रणनीति तय करनी चाहिए. राजनीति में ऐसा वक्त कई बार आता है जब हम अपने मतभेद भूल जाते हैं और देश के लिए एक साथ आ जाते हैं. यह वही समय है.”

दो महीने बाद लोकसभा में टीएमसी नेता सुदीप बंदोपाध्याय ने उत्तर कोलकाता में पार्टी कार्यकर्ताओं से एक निजी बैठक में कहा था,

“मैं एक लंबे समय से राहुल गांधी को देख रहा हूं और उन्होंने खुद को मोदी के विकल्प के तौर पर विकसित नहीं किया है. पूरा देश ममता को चाहता है इसलिए हम ममता को ही केंद्र में रखकर चुनाव कैंपेन करेंगे.”

लेकिन उन्होंने यह भी कहा था कि टीएमसी किसी भी तरह कांग्रेस के बिना गठबंधन की वकालत नहीं कर रही.

उन्होंने कहा था, “हम सभी विपक्षी पार्टियों से बात करेंगे और चुनाव अभियान शुरू करने से पहले ममता को विकल्प के तौर पर पेश करेंगे.”

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20 अगस्त को ममता ने उन 19 विपक्षी पार्टियों की वर्चुअल मीटिंग में भी हिस्सा लिया जिसे सोनिया गांधी ने आयोजित किया था. वहां उन्होंने जोर दिया था कि जिन पार्टियों का कांग्रेस से गठबंधन नहीं, उन्हें भी विपक्षी गुट में न्यौता दिया जाना चाहिए ताकि भगवा पार्टी के खिलाफ सभी एकजुट हों. आप, बीजेडी, टीआरएस, वाईएसआर कांग्रेस और बीएसपी जैसी पार्टियां विपक्ष की बैठक का हिस्सा नहीं थीं. बीएसपी को छोड़कर बाकी सभी दिल्ली, ओड़िशा, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की सत्तारूढ़ पार्टियां हैं.

2019 के आम चुनावों के दौरान ममता उन नेताओं में शुमार थीं जिन्होंने सबसे पहले आगे आकर एकजुट विपक्ष की रणनीति बनाई थी. टीएमसी ने कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में भव्य युनाइटेड इंडिया रैली आयोजित की थी जिसमें 19 अलग-अलग पार्टियों ने भाग लिया था.

शनिवार 18 सितंबर को जब पूर्व केंद्रीय मंत्री और आसनसोल से बीजेपी के सांसद बाबुल सुप्रियो टीएमसी में गए तब पार्टी के वरिष्ठ नेता और तीन बार से सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा, “तस्वीर बहुत साफ हो गई है. 2024 के लोकसभा चुनावों में भारत भर में नरेंद्र मोदी के सामने एक ही चेहरा होगा, ममता बनर्जी का.”

ये बयान सिर्फ व्यक्तिगत नहीं थे. टीएमसी योजनाबद्ध तरीके से ममता को राष्ट्रीय मंच पर लगाने की पुरजोर कोशिश कर रही है.और ऐसे बयान देने के निर्देश पार्टी की टॉप लीडरशिप से ही मिलते हैं.

सीनियर पार्टी विधायक मदन मित्रा ने तो एक गाना भी बनाया है, “इंडिया वॉन्ट्स हर बिटिया”. “बांग्ला नीजेर मेयके चाये” (बंगाल अपनी बेटी को चाहता है) तो 2021 के विधानसभा चुनावों में टीएमसी का नारा ही था.

पॉलिटिकल एनालिस्ट मैदुल इस्लाम द क्विंट से कहते हैं. “टीएमसी का अखबार ममता के नाम का प्रचार कर रहा है, इसे राजनीतिक संदर्भ में समझने की जरूरत है. जब ममता राजनीतिक नेताओं से मिलने दिल्ली गईं तो वह राजनीतिक मूड को भांपना चाहती थीं. अब उनकी पार्टी ने यह रणनीति बनाई है कि उन्हें विपक्ष का नेता प्रॉजेक्ट किया जाए. 2019 में भी हमने क्षेत्रीय पार्टियों के हितों में टकराव देखा था. ममता, पवार और दूसरी क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस से इतर एक विपक्षी मोर्चा बनाने की कोशिश कर रही थीं. संभव है कि ये नेता 1996 की स्थिति चाहते हों जब कांग्रेस ने सरकार को बाहर से समर्थन दिया था. मौजूदा कांग्रेस तो 1996 की कांग्रेस से भी कमजोर है इसलिए क्षेत्रीय पार्टियां चाहती हैं कि कांग्रेस की बजाय खुद फैसला लिया जाए.”

मैदुल इस्लाम कोलकाता में सेंटर फॉर स्टडीज़ इन सोशल साइंसेज में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर हैं.

कांग्रेस को कब्जाने की कोशिश में है टीएमसी

इस महीने की शुरुआत में टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव और सांसद अभिषेक बनर्जी को दिल्ली में एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट (ईडी) ने समन किया. बंगाल में कथित कोयला चोरी घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उन्हें समन किया गया था. उनके साथ आठ घंटे तक सवाल जवाब किए गए. इसके बाद अभिषेक मीडिया के सामने बीजेपी पर खूब बरसे. उन्होंने कहा, “बीजेपी का अत्याचार खत्म होगा. चाहे वह अपनी सारी ताकत लगा दे, आतंक फैलाए, कोई भी उपाय करे, याद रखिएगा, उनके सारे उपाय धरे के धरे रह जाएंगे. टीएमसी अगले चुनावों में बीजेपी को हराएगी.”

हालांकि उनका सबसे अहम बयान यह था, “अगर उसे (बीजेपी को) ऐसा लगता है कि टीएमसी कांग्रेस और दूसरी पार्टियों की तरह हार मान लेगी तो वह गलत सोचती है. हम ज्यादा ताकत लगाकर लड़ेंगे. हम हर उस राज्य में जाएंगे, जहां उसने लोकतंत्र की हत्या की है.”

अगले दो महीनों में त्रिपुरा के सात कांग्रेसी नेता टीएमसी में चले गए. इनमें पूर्व मंत्री प्रकाश चंद्र दास और पूर्व कांग्रेसी विधायक सुबल भौमिक शामिल हैं.

अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष और असम के सिलचर से पूर्व सांसद सुष्मिता देव ने कांग्रेस से तीन दशक पुराना नाता तोड़ लिया और टीएमसी में चली गईं. वह राहुल गांधी की निकट सहयोगी हुआ करती थीं. टीएमसी ने अब सुष्मिता देव को राज्यसभा के लिए नामांकित किया है.

अटकलें लगाई जा रही हैं कि आने वाले दिनों में कई सीनियर नेता टीएमसी में जाने वाले हैं. वह भी उस वक्त जब विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने का काम जारी है. ऐसे में क्या टीएमसी की जाल फैलाने की योजना से राजनीतिक सर्वसम्मति को ठेस नहीं पहुंचेगी?

पिछले बुधवार टाइम मैगेजीन ने ‘100 मोस्ट इंफ्लूएंशियल पीपुल ऑफ 2021’ की वार्षिक सूची जारी की है. इस सूची में भारत के दो ही लोग शामिल हैं. एक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दूसरी टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी. इस प्रचार से टीएमसी नेता खूब जोश में हैं और ममता को मोदी के सामने अकेले भरोसेमंद चेहरा बता रहे हैं.

“टीएमसी जानबूझकर ऐसा कर रही है. वह ममता बनर्जी को विपक्ष की अकेली काबिल नेता बता रही है. चूंकि वह भवानीपुर के मतदाताओं को संदेश भी देना चाहती है. भवानीपुर में 30 सितंबर को उप चुनाव होने वाले हैं. दूसरा, शायद टीएमसी कांग्रेस को कब्जाना चाहती है. आने वाले समय में राष्ट्रीय स्तर के कई बड़े कांग्रेस नेता टीएमसी में शामिल हो सकते हैं. प्रशांत किशोर टीएमसी की रणनीति बना रहे हैं. ऐसे कदम के दो नतीजे हो सकते हैं. या तो टीएमसी 2024 के लोकसभा चुनावों में मोदी के सामने सबसे बड़ी चुनौती बनेगी या विपक्षी वोटों को बांटेगी और तीसरी बार मोदी की जीत सुनिश्चित करेगी.” पॉलिटिकल कमेंटेटर बिश्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं.

(हिमाद्री घोष कोलकाता के पत्रकार हैं और पश्चिम बंगाल की राजनीति और नीतियों पर रिपोर्टिंग करते हैं. उनका ट्विटर हैंडिल @onlineghosh है. यह एक ओपनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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