साल 2011 के मई महीने की 21 तारीख थी. आनंद बाजार पत्रिका समूह के अंग्रेजी अखबार ‘द टेलीग्राफ’ ने कोलकाता संस्करण में अपना मास्टहेड अखबार के बॉटम में, मतलब सबसे नीचे कर दिया. मास्टहेड वाली जगह पर (सबसे ऊपर) लाल रंग के पहाड़ को चीरती ममता बनर्जी की एक बड़ी तस्वीर छापी गई. इसके साथ वह खबर थी, जिसमें पश्चिम बंगाल में 34 साल तक लगातार चली वाम मोर्चा सरकार के पतन और तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने की कहानी लिखी गई थी.
अखबारों में ऐसे प्रयोग नहीं किए जाते, जब मास्टहेड (अखबार का नाम छपने वाली जगह) ही अपनी जगह से खिसक जाए. मगर कोलकाता के प्रतिष्ठित अखबार ने यह प्रयोग कर लोगों को चौंका दिया. मानो वह ममता बनर्जी के उदय का इस्तकबाल कर रहा हो.
इसके बाद उसी अखबार ने कभी विदेशी (सिटीजन कंपनी की) घड़ी पहनने, तो कभी सार्वजनिक जगहों पर सफेद और नीले रंग की पेंटिंग (ममता बनर्जी के कथित पसंदीदा रंग) को लेकर ममता बनर्जी की आलोचना भी की.
हाउ टु गिव इट बैक
‘द टेलीग्राफ’ नामक उसी अखबार ने आज (6 फरवरी) अपने पहले पन्ने पर दो कॉलम में ऊपर से करीब-करीब नीचे तक ममता बनर्जी के बाएं हाथ की तस्वीर छापी है. इसमें उनकी मुट्ठी बंद है और साथ छपी लीड खबर का शीर्षक है –व्हाम! हाऊ टु गिव इट बैक. मतलब, हमें जवाब देना आता है. तस्वीर का कैप्शन बता रहा है कि तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने ‘सेव इंडिया’ के बैनर तले चल रहा अपना धरना अब खत्म कर दिया है. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की मौजूदगी में मंगलवार की शाम उन्होंने इसे खत्म करने की घोषणा की.
विपक्षी एकजुटता
इससे पहले राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) प्रमुख लालू यादव के बेटे और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और राज्यसभा सासंद कनिमोझी ने उनके धरना स्थल पर आकर लोगों को संबोधित किया. समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने अंग्रेजी में खुली चिट्ठी लिखकर, तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने फोन कर ममता बनर्जी के आंदोलन को सपोर्ट किया था.
नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला, एनसीपी नेता शरद पवार, दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप नेता अरविंद केजरीवाल, झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, झारखंड विकास मोर्चा के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, पूर्व प्रधानमंत्री और जनता दल (सेक्युलर) के नेता एचडी देवेगौड़ा, बीजू जनता दल के नेता और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक समेत तमाम विपक्षी नेताओं ने ममता बनर्जी के इस आंदोलन को अपना समर्थन देने की घोषणा की थी और कहा कि केंद्र की सत्ता पर काबिज नरेंद्र मोदी की सरकार संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग कर रही है, अब इसके विरोध की बारी है. अब यह तय हुआ है कि तमाम विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे पर दिल्ली में संयुक्त धरना देंगी.
सवाल उठता है कि ममता बनर्जी आखिर किस बात का जवाब दे रही थीं.
प्रधानमंत्री पद की दावेदारी
क्या ममता बनर्जी कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के घर पर सीबीआई अधिकारियों की धमक का जवाब दे रही थीं? क्या वह शारदा घोटाले की सीबीआई जांच का विरोध कर रही थीं या फिर उनकी नजरें कहीं और थीं?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ममता बनर्जी के इस दांव ने गैर-कांग्रेसी विपक्षी नेताओं में उन्हें सबसे आगे लाकर खड़ा कर दिया है. लोकसभा चुनाव के दौरान उन्हें इसका फायदा मिलेगा.
बीजेपी के कमजोर होने और कांग्रेस को ज्यादा सीटें ना मिलने की स्थिति में वह तीसरे मोर्चे (गैर-बीजेपी, गैर-कांग्रेस दलों के समूह) की सबसे बड़ी नेता के तौर पर प्रधानमंत्री पद पर सीधे-सीधे अपनी दावेदारी ठोक सकेंगी. सीबीआई के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुली चुनौती देने वाली इस नेता के मेट्रो चैनल (कोलकाता) पर दिए गए धरने का हासिल यही है.
सीपीएम-कांग्रेस पीछे
इसे किसी छोटी घटना के तौर पर लेने की भूल नहीं करनी चाहिए. उनके इस आंदोलन ने बंगाल की सियासी स्थिति को टीएमसी बनाम बीजेपी या ममता बनाम मोदी पर लाकर छोड़ दिया है. इसमें कांग्रेस और मार्क्सवादी पार्टी काफी पीछे छूट गई है. उन्हें सियासी फ्रेम में वापसी के लिए बहुत मेहनत करनी होगी.
शायद इसी वजह से राहुल गांधी के समर्थन के बावजूद पश्चिम बंगाल के कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी और सीपीएम के तमाम नेता ममता बनर्जी के इस आंदोलन के खिलाफ बोल रहे हैं. इस नए सियासी माहौल में जो भी फायदा होने वाला है, उसकी हिस्सेदार सिर्फ बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस होगी.
एक पहलू ये भी
इस घटना के बाद ममता सरकार पर भारत के संघीय ढांचे के खिलाफ काम करने या कम से कम उस फ्रेम को तोड़ने की कोशिशों के आरोप लग रहे हैं. गृह मंत्रालय ने उन्हें कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार पर कार्रवाई करने को कहा है. उन्हें दुनिया का सबसे काबिल अधिकारी बताने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के लिए यह कार्रवाई आसान नहीं है. अगर वह उस अधिकारी पर कार्रवाई करती हैं, तो उन पर बिना किसी मतलब के धरना देकर कानून-व्यवस्था को चुनौती देने का आरोप लगेगा.
अगर वह पुलिस कमिश्नर पर कार्रवाई से बचेंगी, तब केंद्र सरकार के पास वहां राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश करने के पर्याप्त आधार मौजूद होंगे. दोनों ही परिस्थितियां ममता बनर्जी के राजनीतिक सेहत के अनुकूल नहीं हैं. इस बीच सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अब उनके पुलिस कमिश्नर को सीबीआई के सामने पेश होना होगा और कोर्ट में अपना जवाब भी दाखिल करना होगा. बीजेपी ने इसे अपनी जीत बताना शुरू कर दिया है.
इधर, ममता बनर्जी भी इसे अपनी जीत करार दे रही हैं. उनका तर्क है कि कोलकाता पुलिस कमिश्नर की गिरफ्तारी पर रोक, अवमानना का मामला स्वीकार ना करने जैसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले उनके पक्ष में हैं. इसी वजह से उन्होंने अपना धरना भी खत्म किया है. बहरहाल सीबीआई के बहाने शुरू हुई यह सियासत आने वाले समय की भारतीय राजनीति में नए अध्याय जोड़ने जा रही है. जाहिर है इसका श्रेय अपने कार्यकर्ताओं के बीच ‘दीदी’ नाम से मशहूर ममता बनर्जी को जाएगा.
(लेखक रवि प्रकाश कोलकाता के एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. इनका टि्वटर हैंडल है @ravijharkhandi. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति जरूरी नहीं है.)
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