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ममता मतलब आंदोलन, इस बार सिर्फ पश्चिम नहीं, सेंटर में हैं दीदी

यूं तो देश की सियासत रायसीना हिल्स और लुटियन जोन से तय होती है लेकिन रविवार शाम से इसने अपना पता बदल लिया है.

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यूं तो देश की सियासत रायसीना हिल्स और लुटियन जोन से तय होती है, लेकिन रविवार शाम से इसने अपना पता बदल लिया है. थोड़े वक्त के लिए ही सही, यह सियासत अब कोलकाता के मेट्रो चैनल पर शिफ्ट हो गई है. इसकी वजह बनी हैं ममता बनर्जी. पश्चिम बंगाल की मौजूदा मुख्यमंत्री ने मामूली-सी बात पर गंभीर बहस छेड़ी है.

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भले ही इस बहस की तात्कालिक शुरुआत सीबीआई की भूमिका और उस पर पॉलिटिकल वैंडेटा के तहत काम करने के आरोपों से हुई हो, लेकिन आखिरकार यह केंद्र-राज्य संबंध, भारत की संघीय संरचना और विपक्षी एकता पर होने वाली चर्चाओं तक पहुंच जाएगी. ममता बनर्जी ने इस बहाने खुद को सेंटर पॉइंट (केंद्र) में रख दिया है.

बीजेपी को विपक्ष से मिल रही है सीधी चुनौती

अगर इसे पॉलिटिक्स कहें, तो यह भी मानना होगा कि तृणमूल कांग्रेस की नेता ने फिलहाल बाजी मार ली है. तभी तो राहुल गांधी, लालू यादव, शरद पवार, एचडी देवगौड़ा, राज ठाकरे, चंद्रबाबू नायडू, अखिलेश यादव, उमर अब्दुल्ला, अरविंद केजरीवाल, तेजस्वी यादव, हेमंत सोरेन समेत तमाम विपक्षी नेताओं ने ममता बनर्जी की इस पहल की ना केवल सराहना की है बल्कि वे साथ में ‘कदमताल’ के लिए भी तैयार हो गए हैं. यह ‘मिले सुर मेरा-तुम्हारा…’ जैसे कोरस गान ती तरह नहीं है.

इस साल होने वाले संसदीय चुनावों से ठीक पहले हुई यह घटना वार्साय की उस संधि की तरह है, जो द्वितीय विश्व युद्ध का तात्कालिक कारण बनी थी. सीबीआई के बहाने केंद्र के हस्तक्षेप को नकारने की यह कोशिश दरअसल लोकसभा चुनाव में विपक्षी एकता की मजबूत पहल के बतौर हमारे सामने है. विपक्षी नेता इस बहाने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और उसके नेता नरेंद्र मोदी को सीधी चुनौती दे रहे हैं.

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क्या ममता बनर्जी को इससे फायदा होगा?

ममता बनर्जी की सियासत समझने वाले लोग मानते हैं कि उन्होंने अपना हर फैसला नतीजों की चिंता किए बगैर लिया है. वह दरअसल एक एक्टिविस्ट हैं और अपनी सारी रणनीतियां उसी एक्टिविज्म के इर्द-गिर्द तैयार करती हैं.

बात चाहे जुलाई-1993 में उनके रॉयटर्स मार्च की हो या फिर सितंबर-2008 के सिंगूर आंदोलन की, उन्होंने अपनी राजनीतिक जमीन खुद तैयार की है. यह इत्तेफाक है कि अचानक से मिली सियासी जमीन पर ममता बनर्जी ने बाद में सियासी महल भी खड़े किए हैं. मौजूदा घटनाक्रम को भी उसी परिप्रेक्ष्य में लिए जाने की जरूरत है.

3 फरवरी की शाम अपने धरने की शुरुआत के बाद ममता बनर्जी ने कहा कि वह संविधान बचाने की लड़ाई लड़ रही हैं, उन्हें अपनी जान की परवाह नहीं हैं, इसका भी डर नहीं है कि उनकी सरकार चली जाए और यहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए. बकौल ममता, वह देश बचाने की लड़ाई लड़ रही हैं. इसमें सबके सहयोग की आकांक्षा है. उनके इस बयान का मतलब समझिए. दरअसल वह यह मुनादी कर रही हैं कि मेट्रो चैनल (कोलकाता) पर बैठकर उनकी नजरें सीधे रायसीना हिल्स (दिल्ली) पर हैं.

ऐसे में पश्चिम बंगाल बीजेपी के प्रमुख दिलीप घोष के अनजाने में दिए गए उस बयान को दोबारा सुनने की जरुरत है, जिसमें उन्होंने पश्चिम बंगाल और प्रधानमंत्री पद को लेकर कुछ बातें कही थीं.

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रविवार को कोलकाता में क्या हुआ था?

अब थोड़ी चर्चा उस घटना की, जिसने देश में गंभीर बहस छेड़ दी है. 3 फरवरी की शाम जब दिल्ली में लोग सर्दी से बचने की कोशिशों में लगे थे, कोलकाता का मौसम गुलाबी था. ना तो ज्यादा सर्दी थी और ना चिपचिपे पसीने वाली वह उमस, जिसके लिए कोलकाता जाना जाता है. तापमान करीब 21 डिग्री सेल्सियस पर था. तभी सीबीआई के तीन दर्जन से भी अधिक अधिकारियों की टीम कोलकाता के पॉश इलाके लाउडन स्ट्रीट स्थित पुलिस कमिश्नर के सरकारी आवास पर पहुंची. सीबीआई ने दावा किया कि यह टीम कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से सारदा घोटाले से संबंधित पूछताछ के लिए गई थी.

कोलकाता पुलिस ने इन अधिकारियों से वॉरंट मांगा. सीबीआई के पास वॉरंट नहीं था. पुलिस ने सीबीआई के अधिकारियों को उनकी गाड़ी से उतरने भी नहीं दिया और पांच बड़े अफसरों को हिरासत में लेकर शेक्सपियर सरणी थाने लिए चली गई. वहां उनसे प्रारंभिक पूछताछ की गई. करीब डेढ़ घंटे की हिरासत के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया. तब के विजुअल्स बताते हैं कि सीबीआई के अधिकारियों और कोलकाता पुलिस के बीच थोड़ी धक्का-मुक्की भी हुई. वहां तब मीडिया के सैकड़ों लोग मौजूद थे.

जाहिर है इस धक्का-मुक्की की एक वजह वह भीड़ भी थी. इस बीच मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पुलिस कमिश्नर के घर पहुंचीं. वहां ममता के करीबी फिरहाद हाकिम को बुलवाया गया. मीटिंग हुई और फिर ममता बनर्जी ने बाहर आकर मीडिया के सामने अपने अनिश्चितकालीन धरने का ऐलान कर दिया.

सवाल यह कि सीबीआई को किस बात की हड़बड़ी थी, जो उसके अधिकारी कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के घर बगैर वॉरंट के पहुंच गए. वह भी 40 लोगों की भारी भरकम टीम के साथ. क्या पुलिस कमिश्नर कोई पेशेवर अपराधी या आतंकवादी थे, जो उनसे पूछताछ में इतनी हड़बड़ी दिखाई गई. ममता बनर्जी ने इस कार्रवाई को भयादोहन की कोशिश बताया है. उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी प्रमुख अमित शाह के इशारे पर सीबीआई ने यह कार्रवाई की.

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि सीबीआई पर राजनीतिक टूल बनने के आरोप पहले भी लगते रहे हैं. कुछ दिनों पहले सीबीआई के दो शीर्ष अधिकारियों के बीच विवाद ने इसकी साख पर कई सवाल भी खड़े किए हैं. ऐसे समय में सीबीआई की यह कार्रवाई आत्मघाती भी हो सकती है.

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सीबीआई सुप्रीम कोर्ट पहुंची

सीबीआई इस मुद्दे को लेकर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट गई. कोर्ट ने कहा कि अगर राजीव कुमार (कोलकाता पुलिस कमिश्नर) के खिलाफ ठोस सबूत हैं तो उनहें कोर्ट में पेश किया जाए. सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को इस मुद्दे पर आगे की सुनवाई करेगा. इस बीच संसद के दोनों सदनो में इस मुद्दे पर हंगामा हुआ. उधर, ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के कार्यकर्ता पूरे बंगाल में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

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मामले में ये बात भी ध्यान देने लायक

इस प्रसंग में यह उल्लेख भी मौजूं है कि पश्चिम बंगाल में बुजुर्ग केशरीनाथ त्रिपाठी राज्यपाल हैं. उत्तर प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष रहते हुए उनके कुछ फैसलों की काफी आलोचना हो चुकी है. राज्यपाल होने के कारण वे पश्चिम बंगाल में संविधान के कस्टोडियन भी हैं.

उन्हें इसका अधिकार है कि वे संवैधानिक संकट या अराजकता की स्थिति में राष्ट्रपति से धारा 356 के तहत कार्रवाई (राष्ट्रपति शासन) की वकालत करें. हालांकि, इसपर कुछ भी कहना अभी जल्दीबाजी होगी. लेकिन, बीजेपी बंगाल में संवैधानिक संकट और अराजकता का हवाला दे रही है. ऐसे में इसकी संभावनाओं से इनकार भी नहीं किया जा सकता है.

बहरहाल, सियासत के इस ड्रामे का मंचन जारी है. यह कब तक चलेगा, इसके कितने पात्र हैं, कौन से दृश्य और प्रसंग आने वाले हैं...इस बारे में अभी कुछ भी स्क्रिप्टेड नहीं है. चलिए, बगैर स्क्रिप्ट वाले इस नाटक का मजा लेते हैं. यह जानते हुए कि यह नाटक देश की सियासत में बड़े नतीजे लाने वाला हो सकता है.

(लेखक रवि प्रकाश कोलकाता के एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. इनका टि्वटर हैंडल है @ravijharkhandi. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति जरूरी नहीं है.)

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