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वॉलमार्ट आ गया, क्या उसकी ‘सोशल जस्‍टिस’ पॉलिसी भी भारत आएगी?

भारतीय कंपनियां जो नहीं कर पाईं, क्या वॉलमार्ट उसे करेगा?

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वॉलमार्ट दुनियाभर में 23 लाख लोगों को नौकरी देता है. इसमें से 15 लाख अमेरिका में हैं. वॉलमार्ट के स्टोर मैनेजर्स अमेरिकी में अच्छी तनख्वाह पाने वाले लोग हैं. अमेरिका में लोगों को काम पर रखते समय वॉलमार्ट डायवर्सिटी और इनक्लूसन, यानी सबको साथ लेकर चलने की पॉलिसी की बात करता है.

सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि वॉलमार्ट ने डायवर्सिटी को अपने रिक्रूटमेंट प्रोसेस का हिस्सा बनाया है, इसके लिए कंपनी के अंदर संस्थाएं बनाई हैं और इस बारे में सारी जानकारियां वॉलमार्ट अपनी वेबसाइट पर डालता है.

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वॉलमार्ट हर साल अपनी डायवर्सिटी रिपोर्ट भी जारी करता है, जिसे वह अपनी वेबसाइट पर डालता है. कोई भी व्यक्ति इस रिपोर्ट को देख सकता है. इस रिपोर्ट से पता चलता कि वॉलमार्ट में किस-किस तरह के कितने लोग काम करते हैं. साथ ही विविधता लाने की वॉलमार्ट की नीतियां क्या हैं. अलग अलग पृष्ठभूमियों के लोगों की कामयाबियों के किस्से भी इस रिपोर्ट में होते हैं.

अमेरिका में वॉलमार्ट में काम करने वाले 15 लाख लोगों में 22 फीसदी अफ्रीकन अमेरिकन हैं, जिन्हें हमारे यहां अश्वेत, ब्लैक या पहले नीग्रो कहा जाता था. अमेरिकी आबादी में अफ्रीकन अमेरिकन लोगों की संख्या 12.2 फीसदी है. यानी वॉलमार्ट इन समूह को आबादी के अनुपात से अधिक रोजगार दे रहा है.

यह मुमकिन है कि वॉलमार्ट में नीचे के पदों पर काम करने वालों से यह संख्या ज्यादा नजर आ रही हो, फिर भी वॉलमार्ट की इस बात के लिए तारीफ होनी चाहिए कि वह अपने वर्कफोर्स में डायवर्सिटी का खयाल रखता है.

इसके अलावा वॉलमार्ट में काम करने वालों में 14 फीसदी लोग हिस्पैनिक या लैटीनो, चार परसेंट एशियन अमेरिकन, एक परसेंट नैटिव हवाइयन और एक परसेंट अमेरिकन इंडियन या अलास्कन नैटिव हैं. वॉलमार्ट के स्टोर मैनेजर और अफसरों के लेवल पर भी गैर-श्वेत लोगों की अच्छी संख्या है. यह सब आपको वॉलमार्ट की सालाना डायवर्सिटी रिपोर्ट में विस्तार से लिखा मिलेगा.

जेंडर डायवर्सिटी की बात करें, तो वॉलमार्ट में पुरुषों से ज्यादा महिलाएं काम करती हैं. कुल वर्कफोर्स में 55 फीसदी महिलाएं हैं. 43 फीसदी स्टोर मैनेजर महिलाएं हैं और ऑफिस में काम करने वालों में 31 फीसदी महिलाएं हैं.

कंपनियों के लिए फायदेमंद है डायवर्सिटी

दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका में कंपनियां डायवर्सिटी को अपने बिजनेस के लिए अच्छा मानती है. अमेरिका में डायवर्सिटी के पीछे सरकारी दबाव से ज्यादा मुनाफे की नीति ने काम किया. डायवर्सिटी अपनाने वाली कंपनियों में अमेरिकी ग्राहकों के मिजाज को समझने की बेहतर क्षमता होती है, क्योंकि अमेरिकी आबादी काफी विविधतापूर्ण हैं. अमेरिका में उन कंपनियों को बेहतर माना जाता है जिनके वर्कफोर्स में डायवर्सिटी हो. सरकार भी ऐसी कंपनियों को इंसेंटिव देती है.

वॉलमार्ट ने तो डायवर्सिटी को अपना मिशन माना है. वॉलमार्ट के मुताबिक, इनोवेशन यानी नए-नए तरीके खोजने के लिए जरूरी है कि कंपनी में अलग-अलग तरह के लोग हों, जो अलग-अलग तरीके से सोचें. वॉलमार्ट का मानना है कि दुनियाभर में उसके 26 करोड़ ग्राहक अलग अलग पृष्ठभूमियों के हैं और उनके साथ नाता रखने के लिए विविधतापूर्ण वर्कफोर्स जरूरी है.

भारत में क्या करेगा वॉलमार्ट

वॉलमार्ट अब फ्लिपकार्ट में सबसे बड़ी हिस्सेदारी खरीदकर भारत आ गया है. क्या वॉलमार्ट भारत में भी अपनी डायवर्सिटी पॉलिसी पर अमल करेगा? क्या भारतीय समाज की विविधता वॉलमार्ट इंडिया के वर्कफोर्स और उसके मैनेजमेंट में भी नजर आएगी? क्या वॉलमार्ट के भारतीय मैनेजर डायवर्सिटी की उसी भावना से प्रेरित होंगे, जिस पर अमल करके इस अमेरिकी कंपनी ने दुनिया के कई देशों में सफलता के झंडे गाड़े हैं? या फिर वॉलमार्ट के भारतीय मैनेजर जाति और लिंग भेद की उसी परंपरा से संचालित होंगे, जिससे भारतीय समाज पीड़ित है?

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यह तो तय है कि वॉलमार्ट इंडिया अपने वर्कफोर्स में जेंडर डायवर्सिटी को लागू करने की कोशिश करेगा और इसमें उसे कोई दिक्कत नहीं आएगी. हालांकि भारत में वॉलमार्ट जेंडर के मामले में उतना डायवर्स शायद ही हो पाए, जितना कि वह अमेरिका में है. वॉलमार्ट में डिफरेंटली एबल लोगों को नौकरियों में स्थान देने का मामला भी विवादों में नहीं आएगा. यहां तक तो ठीक है.

लेकिन क्या वॉलमार्ट भारत में जातीय विविधता को ध्यान में रखकर अपनी भर्तियां करेगा? ऐसी भर्तियां क्या मैनेजर और अफसर लेवल पर भी होंगी? भारत में एक्सक्लूसन यानी मुख्यधारा से लोगों को बाहर करने का सबसे प्रमुख औजार जाति है. यह समाज को विभाजित करने वाली संस्था है और हायरार्की में जो लोग नीचे हैं, उनके लिए यह बेहद अपमानजनक और दमनकारी है. इसलिए अगर भारत में डायवर्सिटी के सवाल के केंद्र में जाति का प्रश्न है.

भारत में निजी क्षेत्र डायवर्सिटी को लेकर उलझन में

अभी इस सवाल का जवाब देना मुश्किल होगा कि क्या वॉलमार्ट जैसी कंपनी भारत आने के बाद डायवर्सिटी को महत्व देगी. अमेरिका में कॉरपोरेट जगत इस बारे में एकमत है कि डायवर्सिटी जरूरी है. भारत में ऐसी कोई आम सहमति नहीं बन पाई है. भारत सरकार या राज्य सरकारों ने डायवर्स वर्कफोर्स वाली कंपनियों को प्रोत्साहित करने के लिए कोई नीति नहीं बनाई है.

भारत में विविधता लाने का एकमात्र उपाय सरकारी नौकरियों और सरकारी संस्थानों की शिक्षा में आरक्षण है. आज जबकि 90 फीसदी से ज्यादा नौकरियां प्राइवेट सेक्टर में हैं, तब सिर्फ सरकारी क्षेत्र में आरक्षण से विविधता के लक्ष्यों को हासिल कर पाना मुमकिन नहीं है. सरकारी क्षेत्र में आरक्षण जरूरी है. लेकिन यह काफी नहीं है. इसके अलावा बाकी उपायों की भी जरूरत है.

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निजी क्षेत्र में आरक्षण की बीच-बीच में चर्चा होती रहती है. हाल ही में केंद्रीय खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री रामविलास पासवान ने निजी क्षेत्र में आरक्षण की जरूरत बताई है. उदित राज जैसे बीजेपी सांसद भी निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग करते रहे हैं. लेकिन भारतीय कॉरपोरेट जगत में इसे लेकर कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं है.

तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2006 में भारतीय कॉरपोरेट जगत से अफरमेटिव एक्शन के तहत वंचित सामाजिक समूहों को नौकरियां देने की अपील की थी. प्राइवेट सेक्टर ने निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग की काट के लिए स्वच्छेक तौर पर अफरमेटिव एक्शन की बात की.

भारतीय कॉरपोरेट जगत की संस्था सीआईआई ने अफरमेटिव एक्शन पर एक डॉक्यूमेंट भी जारी किया. इसमें बताया गया है कि किस तरह भारत की सौ कंपनियों ने स्वैच्छिक रूप से अफरमेटिव एक्शन को लागू करने की पहल की है. टाटा ग्रुप ने कहा है कि वह दलितों आदिवासियों को नौकरियों में प्राथमिकता देगा. सीआईआई से जुड़ी 600 से ज्यादा कंपनियों ने एक कोड ऑफ कंडक्ट पर दस्तखत किए हैं कि नौकरियां देने में वे कोई भेदभाव नहीं करेंगी.

लेकिन अमेरिकी कंपनियों की तरह कोई भी भारतीय कंपनी यह आंकड़ा जारी करने को तैयार नहीं है कि उसके वर्कफोर्स में किस सामाजिक समूह के कितने लोग हैं. किसी भी कंपनी का विविधता का कोई लक्ष्य यानी टारगेट भी नहीं है. विविधता की किसी भी नई पहल के लिए वर्कफोर्स में विविधता की वास्तविक स्थिति का आकलन करना जरूरी है. भारतीय कंपनियां अगर डायवर्सिटी के लिए गंभीर हैं, तो उन्हें सबसे पहले यह बताना चाहिए कि वे कितनी डायवर्स हैं और उनके वर्कफोर्स की सामाजिक बनावट कैसी है. इसके बाद उन्हें डायवर्सिटी का लक्ष्य तय करना चाहिए और उसे हासिल करने के लिए समय सीमा बनानी चाहिए.

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वॉलमार्ट जैसी ग्लोबल कंपनी इस मामले में नई मिसाल कायम कर सकती है. वॉलमार्ट इंडिया ने अगर यह साबित कर दिखाया कि वर्कफोर्स में विविधता होने से उसका बिजनेस बढ़ रहा है, तो इससे डायवर्सिटी और अफर्मेटिव एक्शन को लेकर भारत में माहौल बदलेगा.

भारतीय कंपनियां जो नहीं कर पाईं, क्या वॉलमार्ट उसे करेगा?

(दिलीप मंडल सीनियर जर्नलिस्‍ट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है. आर्टिकल की कुछ सूचनाएं लेखक के अपने ब्लॉग पर छपी हैं)

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