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शीतकालीन सत्र: संसद में टीएमसी के 'एकला चोलो रे' रुख का क्या मतलब है?

कांग्रेस के साथ तालमेल न बिठाने के बावजूद टीएमसी सदन में कई आम मुद्दों उनके साथ लड़ती दिखाई देगी.

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संसद का शीतकालीन (Monsoon session) सत्र शुरू होने से कुछ समय पहले तृणमूल कांग्रेस (TMC) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Congress) ने महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की प्रतिमा के सामने अलग-अलग विरोध प्रदर्शन किया, जो इस बार दोनों दलों के बीच समीकरण कैसे चलने वाला है, इसका सही सार है.

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टीएमसी नेताओं ने सोमवार, 29 नवंबर को कांग्रेस द्वारा बुलाई गई विपक्षी पार्टी की बैठक में भी भाग नहीं लिया.

यह दोनों दलों के बीच बढ़ते तनाव को दर्शाता है, क्योंकि तृणमूल कांग्रेस देश भर में बड़े पैमाने पर भर्ती अभियान चला रही है और इसने कई कांग्रेस नेताओं के दलबदल को अंजाम दिया है. इनमें मेघालय के पूर्व सीएम मुकुल संगमा, गोवा के पूर्व सीएम लुइज़िन्हो फलेरियो, कीर्ति आजाद और अशोक तंवर जैसी कुछ उल्लेखनीय हस्तियां शामिल हैं.

टीएमसी के करीबी सूत्रों का कहना है कि संबंधित सदनों के फ्लोर नेताओं को विपक्षी दलों के साथ समन्वय करने के लिए कहा गया है जो मोदी सरकार के खिलाफ हैं लेकिन वह कांग्रेस के साथ गठबंधन में नहीं है.

इस बीच, सदन में कथित रूप से हंगामा करने के बाद सोमवार, 29 नवंबर को संसद के शेष सत्र के लिए राज्यसभा के 12 सांसदों को निलंबित कर दिया गया. निलंबन की निंदा करते हुए विपक्षी दलों ने एक संयुक्त बयान जारी किया. लेकिन टीएमसी ने इस बयान पर हस्ताक्षर नहीं किए थे, हालांकि उनके दो सांसदों डोला सेन और शांता छेत्री को भी निलंबित कर दिया गया था.

कांग्रेस के साथ तालमेल न बिठाने के बावजूद टीएमसी सदन में कई आम मुद्दों उनके साथ लड़ती दिखाई देगी.

साझा बयान पर टीएमसी नेता के साइन नहीं थे.

फोटो- ट्विटर

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टीएमसी कांग्रेस के साथ तालमेल क्यों नहीं करना चाहती?

पीटीआई के अनुसार, टीएमसी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि पार्टी कांग्रेस के साथ समन्वय करने के लिए उत्सुक नहीं है क्योंकि उसका मानना ​​​​है कि "कांग्रेस को अन्य खेमों के साथ समन्वय करने के बारे में सोचने से पहले अपना घर ठीक करना चाहिए."

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राज्यसभा में तृणमूल के संसदीय नेता डेरेक ओ ब्रायन ने मीडिया को दिए एक बयान में आगे स्पष्ट किया कि

कांग्रेस के साथ एकता की शर्तें अलग-अलग पार्टियों के लिए अलग-अलग हैं, खासकर टीएमसी के लिए क्योंकि वे चुनावी रूप से कांग्रेस के लिए बाध्य नहीं हैं. दरअसल, वे कुछ महीने पहले बंगाल चुनाव के दौरान चुनावी प्रतिद्वंदी थे. हां, संसद में विपक्ष की एकता रहेगी. यह आम मुद्दे हैं जो विपक्ष को एकजुट करेंगे. मुझे यह भी बताना चाहिए कि राजद, द्रमुक और माकपा के बीच अंतर है, वे सभी कांग्रेस के चुनावी सहयोगी हैं. एनसीपी-शिवसेना और झामुमो कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार चलाते हैं. कांग्रेस हमारी चुनावी सहयोगी नहीं है और न ही हम उनके साथ सरकार चला रहे हैं, यही अंतर है.
डेरेक ओ ब्रायन, टीएमसी सांसद, राज्यसभा

इसलिए टीएमसी नेताओं के अनुसार, उन्हें संसद में कांग्रेस के नक्शेकदम पर चलने की जरूरत नहीं है.

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कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने अप्रत्यक्ष रूप से टीएमसी को बीजेपी का सहयोगी बताकर उन पर तंज कसा. उन्होंने कहा कि,

यह हमारा कर्तव्य है कि हम विपक्षी दलों को संसद (सत्र) से पहले मुद्दों पर चर्चा करने के लिए बुलाएं, लेकिन अगर उन्हें लगता है कि हमारे साथ हाथ मिलाने से वे सरकार के विरोध में नजर आएंगे, तो उन्हें ऐसा करने की जरूरत नहीं है. जो लोग सरकार से लड़ना नहीं चाहते वे शामिल नहीं हो सकते.
अधीर रंजन चौधरी, कांग्रेस सांसद
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दोनों की एक ही लड़ाई

संसद सत्र शुरू होने से पहले कृषि कानूनों को निरस्त करने के खिलाफ कांग्रेस और टीएमसी को अलग-अलग विरोध करते देखा गया. सत्र के दौरान भी, उन्होंने इसी मुद्दे पर विरोध किया कि सदन के पटल पर उचित चर्चा के बिना बिल क्यों पारित किए गए.

टीएमसी और कांग्रेस के शीतकालीन सत्र के एजेंडे पर एक त्वरित नज़र डालने से पता चलेगा कि वे कृषि कानूनों, एमएसपी पर गारंटी, COVID-19 महामारी से निपटने, ईंधन की बढ़ती कीमतों, बेरोजगारी और पेगासस का उपयोग करके जासूसी करने सहित कई मुद्दों को साझा करते हैं.

यदि शीतकालीन सत्र का पहला दिन आने वाली चीजों का संकेत था, तो कोई उम्मीद कर सकता है कि दोनों पार्टियां एक ही लड़ाई लड़ रही होंगी, भले ही वे थोड़े अलग मोर्चों पर हों. वे कई मौकों पर एक-दूसरे से सहमत होते भी नजर आएंगे.

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तृणमूल कांग्रेस का गठन कांग्रेस से ही हुआ था, इसलिए वो कितना भी इनकार कर लें, वे अभी भी उल्लेखनीय रूप से समान लाइन पर काम करते हैं. लेकिन जैसा कि पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करने की कोशिश कर रही है, वह खुद को कांग्रेस से अलग दिखाने की अधिक कोशिश करती दिखेगी.

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