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डियर आशिकों, प्रेस्ली-नुसरत-गुलजार के गानों से सीखिए इश्क के टिप्स

सुपरहिट आशिक बनने के लिए यही है फॉर्मूला

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'मैं बचपन से ड्रीमर था, सपने देखता था. हर मूवी देखते वक्त सोचता था कि मैं ही हीरो हूं. जो भी सपने मैंने जिंदगी में देखे, उनमें से हरेक सपना मैंने सौ-सौ बार जिया है.''

- एल्विस प्रेस्ली, रॉक एंड रोल के बादशाह

रॉक एंड रोल म्यूजिक के बादशाह एल्विस प्रेस्ली आशिकों के लिए ऐसा फॉर्मूला दे गए हैं कि हर आशिक (और जो खुद को आशिक समझता है) इनसे सबक ले सकता है. आशिकी में डूबा शख्स अपनी फिल्म का हीरो होता है, और वो फिल्म ही क्या, जिसमें हीरो गाना न गाए.

लेकिन मेरे आशिक भाइयों, कोई भी ऐसा वैसा गाना मत गा बैठना, वरना आवारा आशिक बनने में देर नहीं लगेगी.

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आशिकी करना कोई मामूली काम नहीं है, बड़ा सीरियस काम है, इसे सीरियसली लीजिए, तो खास तौर पर सुपरहिट आशिक बनने के लिए मेरे सेलेक्शन पर भरोसा कीजिए और लग जाइए.

एल्विस प्रेस्ली और इन जैसे संगीतकारों, गायकों, गीतकारों और गानों का दिल से शुक्रिया, जिन्होंने आशिकों की कई किस्मों से भी हमें रूबरू कराया है. अब एक अलहदा और टूटकर प्यार करने वाला आशिक कैसे होना चाहिए? क्या गाने हमें ये सिखा सकते हैं? जवाब शायद हां है....

ये भी जानना जरूरी है कि आज के दौर के आशिकों को गंगा-जमुनी तहजीब से आगे निकलकर गंगा-जमुनी-मिसिसिपी तहजीब यानी गुलजार-नुसरत फतेह अली खान-एल्विस प्रेस्ली के गाए या लिखे गए गानों को अपने अंदर क्यों बसाना चाहिए.

आशिक की जिंदगी दो हिस्सों में बंटी होती है....

दरअसल, एक आशिक की जिंदगी दो हिस्सों में बंटी होती है. पहला वो जिसमें वो सच में जी रहा है, जहां परिवार है, नौकरी है, काम है, बैचेनी है और थोड़ा आराम है.

दूसरा हिस्सा, उसकी रूह से जुड़ा होता है, इस सपनीली दुनिया में आशिक नियम कायदे नहीं मानता. इस दुनिया का हीरो सिर्फ और सिर्फ आशिक ही होता है. इसी सपनीली दुनिया में आशिक गुलजार-नुसरत फतेह अली खान-एल्विस प्रेस्ली से सीख ले सकता है.

इसलिए आशिकी के ये स्टेप जान लीजिए-

स्टेप 1. एल्विस प्रेस्ली का ‘रॉक एंड रोल’ वाला अंदाज

प्रेस्ली का ये अंदाज देखिए कभी सिर झटकना तो लगातार पैर हिलाना..ये अंदाज आपको एक उत्साही आशिक के तौर पर पेश कर सकता है.... यानी उसका प्यार अगर साथ है, तो वो कभी बोर नहीं हो सकता.

प्रेस्ली के गानों का अंदाज आपने सीख लिया, तो कसम से आशिकी का दो-तीन स्टेप तो पार कर ही लिया.

‘’कुछ लोग कदमताल करते हैं

कुछ चुटकी से काम चलाते हैं

कुछ आगे पीछे झुमते हैं, मैं सारी चीजें एक वक्त पर करता हूं’’

-एल्विस प्रेस्ली, 1956

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स्टेप 2. नुसरत साहब का सूफियाना अंदाज

दूसरा स्टेप शिद्दत का है, जुनून का है. इस स्टेप को पार लगा सकते हैं नुसरत फतेह अली खान साहब. आप साहब के गानों से बहुत कुछ सीख सकते हैं. शहंशाह-ए-कव्वाली नाम से भी जाने-जाने वाले नुसरत साहब के गानों में सूफियाना झलक मिलती है, यानी मोहब्बत में सबकुछ देखना.

नुसरत साहब के गाने मसलन, ये जो हल्का-हल्का सुरूर है, तेरी नजर का कसूर है.....

पिया रे पिया रे.. थारे बिन लागे नहीं मेरा जिया रे

ऐसे गाने हैं जो आशिकों के सिलेबस में तो शामिल कर ही लेने चाहिए .

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गुलजार का जुदाई, तकरार वाला अंदाज

गम, जुदाई या तकरार के वक्त आप गुलजार के लिखे नगमों को सीख लें....मसलन- 'दिल से' का 'ऐ अजनबी तू भी कभी आवाज दे मुझे' याद ही होगा.

''तू तो नहीं है, लेकिन तेरी मुस्कुराहटें हैं

चेहरा कहीं नहीं है, पर तेरी आहटें हैं

तू है कहाँ, कहाँ है

तेरा निशाँ कहाँ है

मेरा जहाँ कहाँ है

मैं अधूरा तू अधूरी जी रहे हैं

ऐ अजनबी...''

ऐसा नहीं कि गुलजार सिर्फ दर्द और जुदाई के ही गाने लिखते हैं, गलतफहमी है तो कजरारे-कजरारे भी सुन ही लीजिए.

लेकिन इस दौर में या किसी भी दौर में ये कहां गारंटी है कि इश्क मीठा ही निकले...इसलिए शायद गुलजार की कलम से निकला ...नमक इश्क का..

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