दुनिया की नामचीन थ्रिलर लेखिका अगाथा क्रिस्टी का मशहूर वाक्य है- Very few of us are what we seem. यानी
हममें से चंद लोग ही वैसे हैं जैसे वो दिखते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार संजीव पालीवाल का उपन्यास नैना पढ़ते वक्त आप हर पन्ने पर इस वाक्य को महसूस करेंगे. हर किरदार के चेहरे पर लगे मुखौटे और मुखौटों के पीछे छिपी लिजलिजी असलियत.
ये संजीव पालीवाल का पहला उपन्यास है. पहली ही कोशिश में उन्होंने थ्रिलर लिखने का जोखिम उठाया है जिसमें वो खासे कामयाब दिखते हैं. पृष्ठभूमि एक चकाचौंध न्यूज चैनल की है और कहानी सितारों सी शोहरत रखने वाले उसके पत्रकारों की. लेकिन दूसरों को खबरदार करने वाले ये वॉचडॉग असल में कितनी दोहरी जिंदगी जीते हैं, संजीव ने इसका सख्त पोस्टमार्टम किया है.
उपन्यास अपने कवर पेज पर ही एलान कर रहा है कि प्लॉट एक न्यूज एंकर के कत्ल के इर्दगिर्द बुना गया है. उपन्यास का कोई वाक्य उस साहित्यिक जिम्मेदारी के दंभ में दबा नजर नहीं आता जो भाषा को कलिष्ठ और कई बार बोझिल बना देती है.
खबरिया अंदाज में लिखे छोटे-छोटे वाक्य और सुपरिचित शब्दावली उस फेविकोल का काम करते हैं जो आपको उपन्यास से चिपका देता है. तीसरे ही पेज से अपने दिमाग में हथौड़े की तरह बजने लगता है कि- हत्यारा कौन? और पेज-दर-पेज इसकी चोट तेज होती जाती है.
क्राइम थ्रिलर में अपने किरदारों के जहन में उतरना लेखक की बड़ी चुनौती है. तभी वह आखिर तक जाते जाते कत्ल, कातिल और कत्ल की वजहों को लेकर पाठक को संतुष्ट कर पाता है. कहना होगा कि खुद बरसों टीवी न्यूजरूम में गुजार चुके संजीव ने इस पहलू को बेहद बारीकी से पकड़ा है.
पढ़िए ‘नैना’ का एक अंश
नवीन शर्मा के तनबदन में आग लगी हुई थी. उसे कभी अहसास भी नहीं हुआ कि ऐसा भी हो सकता है. नैना और गौरव दोनों से उसकी गहरी दोस्ती थी. गौरव उससे कभी कोई बात नहीं छुपाता, दफ्तर के ज्यादातर काम गौरव उसी की मार्फत करता, और अपना हर सुख-दुख उसके साथ बांटता पर यह बात उसने छुपा ली.
इसी तरह नैना, वह तो उसे हर रोज यही अहसास कराती थी कि आज वह जो कुछ भी है, वह नवीन की वजह से है. नवीन इस समय इतने गुस्से में था कि आज वह खुद को बहुत छोटा पा रहा था. दोस्ती और प्यार, दोनों ने उसे छला था. एकदम रिजेक्टेड. वह नैना के लिए सब कुछ था, लेकिन वह गौरव नहीं था, जिसके साथ वह सेक्स कर रही थी. इधर गौरव था कि नैना का कुछ न होकर भी नैना को हासिल कर चुका था. उससे यह बर्दाश्त ही नहीं हो रहा था. वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे? किसका सिर तोड़े? अपना, गौरव का या नैना का?
क्या कहा था नैना ने कि आपको क्या फर्क पड़ता है कि मैं सर्वेश की बीवी हूँ या गौरव वर्मा की? आपका और मेरा रिश्ता थोड़ी बदल जायेगा. अपने केबिन में बैठे-बैठे उसने ठहाका लगाया. मतलब मैं बस ‘हूं’. मैं हमेशा रहूंगा भी. मेरा स्टेटस कभी नहीं बदलेगा. मुझसे बड़ा उल्लू का पट्ठा कोई नहीं है. मैं इतना अंधा था कि दोनों के रिश्ते को कभी समझ नहीं पाया. क्यों कभी दफ्तर में चल रही गॉसिप पर विश्वास नहीं किया? हमेशा इन्हें अफवाह कह कर ही टाल दिया.
नवीन ने फिर खुद से ही सवाल किया, ‘लेकिन मैं हूं क्या? मेरा वजूद क्या है? क्या है मेरा रिश्ता नैना के साथ? मेरे लिए यह जानना बेहद जरूरी है.’ उसने खुद से पूछा, ‘क्या नैना नहीं जानती कि मेरी उसे लेकर क्या भावनाएं हैं. क्या मैंने कभी नैना से नहीं कहा कि मैं उससे प्यार करता हूँ? हर बार, हर रोज बस यही तो जताया है कि मैं उससे प्यार करता हूँ. फिर भी वह कहती है कि मुझे क्या फर्क पड़ता है कि वह किससे शादी करती है. उसकी जिंदगी में मेरी जगह यथावत है. लेकिन मेरी जगह है क्या? कौन-सा रिश्ता है मेरा? क्या मिला है मुझे इस रिश्ते से? नैना ने क्या दिया है?
क्या नहीं किया मैंने उसकी खुशी के लिए. उसको खुश करने की खातिर किस-किस का हक नहीं मारा मैंने. कितने लोगों के साथ ज्यादती की, सिर्फ इसलिए कि नैना को हासिल कर सकूं, लेकिन नैना को इस बात का अहसास ही नहीं हुआ. या इस अहसास को वह समझना नहीं चाहती थी. अगर उसे अहसास होता तो शायद वह गौरव के साथ यह रिश्ता बनाती ही नहीं.’
उसका दिमाग बस दौड़े जा रहा था. तरह-तरह के विचार मन में आते जा रहे थे. ‘यह कैसी नैना है? क्या मैं इस नैना को जानता हूँ? क्या इसी नैना से मैंने प्यार किया? नहीं...नहीं...इस नैना को नहीं जानता मैं! वह लड़की कोई और है. यह वह नैना नहीं हो सकती, जिसे मैं जानता था.’
वाकई हम जीवन में जिसके सबसे ज़्यादा करीब होते हैं उसे भी कितना कम जानते हैं. नवीन का दिमाग फट रहा था. आज नवीन वो नवीन नहीं था जो हमेशा शान्त रहने के लिए पूरी इंडस्ट्री में जाना जाता था. नवीन आज अपने आपे में नहीं था. उसे गौरव की परवाह नहीं थी. गौरव के जाने का फायदा उसे ही होता. चैनल में वही नम्बर टू था और मैनेजिंग एडिटर बनने का चाँस भी उसी को मिलता. लेकिन ये बातें इस वक्त बेमानी हैं. उसके लिए अभी भी सबसे अहम सवाल यही है कि नैना की जिंदगी में उसकी क्या अहमियत है?
नैना की जिंदगी में लोग आते-जाते रहेंगे और वह बस देखता रहेगा?
‘नैना’ उपन्यास को ‘एका’ पब्लिकेशन ने पब्लिश किया है.
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