"एक जीवन जो दूसरों के लिए नहीं जीया गया वह जीवन नहीं है."
"दया और प्रेम भरे शब्द छोटे हो सकते हैं, लेकिन वास्तव में उनकी गूंज की कोई सीमा नहीं."
"यह अहम नहीं है कि आपने कितना दिया, बल्कि यह अहम है कि देते समय आपने कितने प्रेम से दिया."
मदर टेरेसा के कहे इन वाक्यों को जिस किसी ने भी अपनी जिंदगी में उतारा, उसकी जिंदगी के मायने बदल गए. मदर टेरेसा एक ऐसी शख्सियत की धनी थीं, जिन्होंने गरीबों, अनाथों, असहायों और जरूरतमंद लोगों की सेवा को ही अपनी जिंदगी का इकलौता मकसद बनाया, और उसी साधना में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया. इसी वजह से उन्हें शांति और सदभावना के क्षेत्र में अहम योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
दुनियाभर में एक ममतामयी मां और गरीबों की मसीहा की छवि वाली मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को अग्नेसे गोंकशे बोजशियु के नाम से एक अल्बेनीयाई परिवार में उस्कुब, उस्मान साम्राज्य (मौजूदा सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) में हुआ था. मदर टेरसा रोमन कैथोलिक नन थीं. जनवरी 1929 को वो भारत आईं, और हमेशा के लिए यहीं की होकर रह गयीं. 1948 में उन्होंने स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता ले ली. उन्होंने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की.
इन चुनिंदा तस्वीरों के जरिए देखिए मदर टेरेसा के जीवन की कुछ झलकियां.
मदर टेरेसा द्वारा स्थापित मिशनरीज ऑफ चैरिटी की शाखाएं भारत समेत दुनिया के कई देशों में असहाय और अनाथों का घर हैं. उन्होंने ‘निर्मल हृदय’और ‘निर्मला शिशु भवन’ के नाम से आश्रम खोले, जिनमें वे बीमारी से पीड़ित रोगियों और गरीबों की स्वयं सेवा करती थीं. 5 सितंबर 1997 को मदर टेरेसा ने दुनिया को अलविदा कह दिया. मदर टेरेसा ने मानवता, दया, और प्रेम-स्नेह की जो मिसाल पेश की, वो आने वाली पीढ़ियों को एक अच्छा इंसान बनने और अच्छे काम करने के लिए हमेशा प्रेरित करता रहेगा.
ये भी पढ़ें - मदर टेरेसा, जिनकी ममतामयी सेवा से कई घरों से दूर हुआ अंधेरा
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)