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गुरु नानक का ‘सच्चा सौदा’, जिससे बहुत नाराज हो गए थे उनके पिता  

नानक का आध्यात्म की तरफ झुकाव था और उन्हें संन्यास पसंद था, लेकिन वह संन्यासियों की तरह अविवाहित जीवन नहीं चाहते थे 

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चिड़ियों की चहचहाहट बंद हो गई और रात ने शहर की चहल-पहल को शांत कर दिया था. शहर के उस पार नानक का घर था. उनकी मां, माता तृप्ता पूजा घर में हिंदू देवी-देवताओं के सामने बैठी, बेटे के सही-सलामत घर लौटने की प्रार्थना कर रही थीं. उनके पति, मेहता कालू हाथ पीछे किए बरामदे के दोनों छोर के बीच टहल रहे थे.

नानक अपने घर से सुबह निकले थे, पिता ने उन्हें 20 रुपये की मोटी रकम देकर करीब 12 कोस (45 किमी) दूर बाजार भेजा था और कारोबार के लिए मुनाफे का सौदा करने के लिए कहा था.

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नानक का आध्यात्म की तरफ झुकाव था और उन्हें संन्यास पसंद था, लेकिन वह संन्यासियों की तरह अविवाहित जीवन नहीं चाहते थे 
हारून खालिद की किताब ‘वॉकिंग विद नानक’ का कवर
( फोटो: Amazon.in)

‘ये लड़का कोई भी काम ठीक से नहीं कर सकता,’ बेटी के हाथ से तांबे का गिलास लेकर दूध पीते हुए मेहता कालू बोले.

‘वो ठीक होगा, बापूजी. वह बहुत समझदार इंसान है,’ बेबे नानकी ने भाई का बचाव करते हुए कहा.

‘क्या समझदार है?’ सूरज डूब गया और अब तक वह घर नहीं लौटा, क्या ये समझदारी है? तुम्हें तो पता है ये जंगल कितने खतरनाक हैं. मुझे मालूम है वह फिर उन नकारे संन्यासियों के साथ बैठकर अनाप- शनाप बातें कर रहा होगा. उनके साथ क्या मिलता है इसे? उसकी उम्र के दूसरे लड़कों को देखो. नवरंग तो नानक के आसपास ही पैदा हुआ था. अब तो उसने अपने पिता के कपड़ों के कारोबार को पूरी तरह संभाल लिया है. दूसरी तरफ रजत अपने परिवार की लंबी-चौड़ी खेती-बाड़ी का हिसाब-किताब रखने लगा है. बेबे नानकी, तुम तो जानती हो ना कि हमारे पास खेतीबाड़ी के लिए उतनी जमीन है, ना ही कोई बड़ा कारोबार है. मैं एक मुनीम हूं. यह कोई पुश्तैनी काम तो है नहीं. मैं मर गया तो फिर क्या होगा?’

‘आप ऐसी बातें मत बोलो, बापूजी.’

‘नानक को कोई व्यापार, कोई काम शुरू करना चाहिए. मुझे मालूम है तुम्हें और तुम्हारी मां को लगता है कि मैं बेमतलब ही उसके साथ इतनी सख्ती से पेश आता हूं. लेकिन एक दिन तुम्हें पता चलेगा, ये सब उसके लिए कितना जरूरी है. वह पूरी जिंदगी भैंस तो नहीं चराता रहेगा. यह सब उसके ओहदे का काम नहीं है. हम बेदी हैं. हमारे पूर्वज वेद सुनाते थे. क्या अपने दादा-परदादाओं की याद का कर्ज हम ऐसे उतारेंगे?’

मेहता कालू ने खाली गिलास वापस अपनी बेटी को थमाया और हंसते हुए कटाक्ष किया, ‘नानक के भैंस चराने से हमारे परिवार को क्यों शर्मिंदगी झेलनी पड़ेगी? सच्चाई तो यह है कि वह यह भी नहीं कर सकता. याद है एक बार जब मैंने उसे अपनी भैंसों की देखरेख करने को कहा था? वह सो गया और सारे जानवर राज कुमार के खेतों में पहुंच गए थे. अगर राय बुलारजी समय रहते बीच-बचाव कर सारे नुकसान की भरपाई के लिए राजी नहीं होते, तो हमारा बहुत बड़ा नुकसान हो जाता.’

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‘लेकिन बापूजी आपको यह समझना होगा, हमारा नानक कोई आम इंसान नहीं है. वह भावुक और सजग है. वह ऐसे विषयों के बारे में सोचता और बातें करता है जो आम लोगों की सोच से परे है,’ बेबे नानकी ने कहा.

‘लेकिन बापूजी आपको यह समझना होगा, हमारा नानक कोई आम इंसान नहीं है. वह भावुक और सजग है. वह ऐसे विषयों के बारे में सोचता और बातें करता है जो आम लोगों की सोच से परे है,’ बेबे नानकी ने कहा.

‘हर बहन को लगता है उसका भाई खास है और हर मां सोचती है उसका बच्चा सबसे अलग है,’ मेहता कालू ने हंसी उड़ाते हुए जवाब दिया. ‘नानक के पास अद्भुत ज्ञान है, लेकिन अपने ज्ञान का उसे व्यावहारिक चीजों में इस्तेमाल करना चाहिए. वह इस दुनिया में कैसे रह पाएगा, अगर ऐसे ही हर वक्त आध्यात्मिक और काल्पनिक चीजों के बारे में बात करता रहेगा? उसे खाते का हिसाब-किताब और दूसरी ऐसी बातें सीखनी ही होंगी जिससे कि गुजर-बसर हो सके. भक्ति से उसका गुजारा कैसे चलेगा?

माता तृप्ता अपनी पूजा पूरी कर कमरे से बाहर निकलीं. ‘नानकी, जाओ रसोईघर से मटकी लेकर, कुएं से पानी निकाल लाओ. घर में रात के लिए पानी नहीं है.’

जैसे बेबे नानकी घर से बाहर निकली, माता तृप्ता ने अपने पति से पूछा, ‘नानक की कोई खबर मिली क्या?’

‘नहीं, अभी तक तो नहीं.’

नानक का आध्यात्म की तरफ झुकाव था और उन्हें संन्यास पसंद था, लेकिन वह संन्यासियों की तरह अविवाहित जीवन नहीं चाहते थे 
गुरु नानक के साथ बाला, मर्दाना, और महान मछली (मत्स्यवतार में विष्णु)
(Wikimedia Commons)
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तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया. मेहता कालू ने भाग कर दरवाजा खोला तो एक नौजवान लड़का, नानक से उम्र में थोड़ा बड़ा, बाहर खड़ा था. ‘हमने नानक को ढूंढ लिया है,’ उसने कहा. ‘वह शहर के बाहर जंगलों में छुपा है.’

‘लेकिन वह छुपा क्यों है?’ मेहता कालू ने पूछा और बिना जवाब का इंतजार किए घर से निकल पड़े. उन्होंने अपने हाकिम और दोस्त, राय बुलर, को बुलाया और दोनों नानक को लाने के लिए निकल पड़े.

उन्होंने देखा नानक पेड़ों के नीचे बैठे सुबक-सुबक कर रो रहे थे. उनके सफेद कपड़े कीचड़ से सने थे. पहले तो मेहता ने सोचा कि नानक को किसी ने रास्ते में लूट लिया है.  नेक नानक को पंसद करने वाले राय बुलर ने धीरे से अपना हाथ उनके सिर पर रखा और पूछा, ‘क्या हुआ, बेटे? तुम घर क्यों नहीं लौटे?’

‘क्योंकि मुझे बापूजी से डर लग रहा है.’

‘तुम्हें मुझसे डर क्यों लग रहा है?’ मेहता ने पूछा, गुस्से से उनकी आवाज ऊंची हो रही थी.‘मेहता, मुझे जरा इससे बातें करने दो,’ राय बुलर ने टोका, वह बाप-बेटे के बीच जटिल रिश्ते को जानते थे.‘तुम अपने पिता से क्यों डर रहे हो? क्या तुमने कोई गलती की है?’‘मैंने कोई गलती नहीं की है,’ नानक ने जवाब दिया. ‘असल में, मैंने एक नेक काम किया है. लेकिन मैं जानता हूं मैंने जो किया है वह जानकर पिताजी खुश नहीं होंगे. मैंने उन्हें निराश किया है, जो कि अच्छा काम नहीं है. मैं इस अच्छे और बुरे के फर्क को लेकर दुविधा में हूं.
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‘तुमने ऐसा क्या किया है?’

‘जैसा कि आप जानते हैं आज सुबह बापूजी ने मुझे सच्चा सौदा के लिए 20 रुपए दिए और मैं चुहरखाना बाजार की तरफ निकल पड़ा. रास्ते में एक जंगल है जिसे मुझे यकीन है आप लोगों ने कई बार देखा होगा. जंगल में मैंने एक अनोखी चीज देखी. वहां संन्यासियों की एक टोली देखी जो ध्यान में मग्न थी.

किसी के बदन पर कपड़े नहीं थे. उनके उलझे हुए बाल दोनों कंधों तक लटके थे. उनका मुखिया संतरैन नाम का एक बुद्धिमान व्यक्ति था. मैं जानता था कि मुझे रुकना नहीं चाहिए और अपने रास्ते चलते हुए पिताजी की दी गई जिम्मेदारी पूरी करनी चाहिए. मुझे मालूम था कि अगर मैं रुक गया तो उनके साथ दार्शनिक विचार-विमर्श में उलझ जाऊंगा और मुझे समय का ख्याल नहीं रह जाएगा.

इसके बावजूद मैं खुद को रोक नहीं सका. वह सचमुच में अजीबोगरीब नजारा था. उनमें से कुछ अपने सिर के बल खड़े थे, जबकि एक तो बरगद के पेड़ के बीच बनी खोह में ध्यान की मुद्रा में खड़ा था. वह सब चिंतन में इतने लीन थे कि मेरे पास से गुजरने का उन्हें आभास तक नहीं हुआ. मैं उनके मुखिया के पास गया और उनकी आस्था के बारे में पूछने लगा. वह निरबानी नाम की किसी मंडली से थे. उन्होंने मुझे बताया कि उन लोगों ने कई दिनों से खाना नहीं खाया है.

‘खाना क्यों नहीं खाया?’ मैंने पूछा.

‘क्योंकि हमारा विश्वास हमें सांसारिक चीजों से नाता बनाने से रोकता है, इसलिए हमारे पास ना तो खाना खरीदने के लिए पैसा है, ना ही कोई जमीन है जिस पर हम अन्न उगा सकें.’

‘तो आप शहर क्यों नहीं चले जाते और दूसरे संन्यासियों की तरह मांग कर खाना क्यों नहीं खाते?’ मैंने उससे पूछा.

‘हमारे पंथ में भीख मांगने की मनाही है,’ उन्होंने मुझे कहा.

‘वो नंगे क्यों थे?’ राय बुलर को अब इस कहानी में रुचि आने लगी थी, जबकि मेहता ये सब बेमन से सुन रहे थे.

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‘हमारे पंथ में भीख मांगने की मनाही है,’ उन्होंने मुझे कहा.‘वो नंगे क्यों थे?’ राय बुलर को अब इस कहानी में रुचि आने लगी थी, जबकि मेहता ये सब बेमन से सुन रहे थे.‘वह कह रहे थे उनका शरीर पवित्र है, परमात्मा ने उन्हें ये शरीर वरदान में दिया है और कपड़े पहनने से उस वरदान का अनादर होगा. दूसरे योगियों की तरह उनके कानों में छेद नहीं थे, क्योंकि वह मानते हैं कि उन्हें बिल्कुल वैसे ही शरीर में परमात्मा के पास लौटना है जैसे वह धरती पर आए थे. उनके लिए पवित्रता के यही मायने थे.’

‘अगर मुझे ऐसे संन्यासियों की बकवास सुननी हो, तो इसके लिए मैं चुहरखाना नहीं जाऊंगा. तलवंडी से ऐसे कई लोग गुजरते हैं. मैं उनसे पूछ लूंगा. तुम यह बताओ कि पैसे कहां हैं?’ नानक के पिता ने पूछा.

‘मैंने संतरैन को पैसे देने की कोशिश की लेकिन उन्होंने मना कर दिया. उन्होंने कहा पैसे लेना उनके पंथ के खिलाफ है. उन्होंने बताया अगर मैं उन्हें खिलाना चाहता हूं तो खाना खरीदकर दे दूं. इसलिए जैसे ही मैं चुहरखाना पहुंचा, मुनाफे की चीजें खरीदने के बदले मैंने संन्यासियों के लिए खाना खरीदा और उन्हें खिला दिया. मेरे लिए यही सच्चा सौदा था.

मेहता कालू अपने गुस्से पर काबू नहीं कर पाए और राय बुलर, जिनकी वह काफी इज्जत करते थे, उनके सामने ही नानक को एक थप्पड़ जड़ दिया. पहले से डरे नानक जोर से रो पड़े.

‘मेहता!’ राय बुलर चिल्लाए. ‘खुद पर काबू करो! यह कोई तरीका नहीं है एक जवान लड़के से पेश आने का.’

‘एक जवान लड़का अपने बाप के पैसे बर्बाद नहीं करता फिरता है. वह अपने पैसे खुद कमाता है. क्योंकि यह पैसे इसके बाप की मेहनत की कमाई थी, इसलिए इसने आराम से संन्यासियों में बांट दिया. मैं देखना चाहूंगा कैसे यह अपने पैसे से ऐसा करता है, लेकिन ऐसा तभी मुमकिन है जब यह कभी पैसे कमाना चाहे. मुझे अपने दुर्भाग्य पर यकीन नहीं हो रहा. एक बेटे, एक वारिस के लिए मैंने कितना लंबा इंतजार किया था.’

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अगर मुझे मालूम होता कि वह ऐसा बनने वाला है, तो मैं एक बेटे की उम्मीद में रात-रात भर पूजा-पाठ और मंदिरों में दान-पुण्य नहीं करता. मैं अपनी पूरी जिंदगी बिना किसी नर-संतान के जी लेता और अपने वंश को खत्म हो जाने देता. इस लड़के ने जो राह पकड़ी है, उसमें हमारी वंशावली ऐसे भी खतरे में है.

‘अगर नानक से तुम्हें इतनी दिक्कत है, तो तुम मुझे इसे गोद क्यों नहीं दे देते? आज से तुम इसके पिता होने की सारी जिम्मेदारियों से आजाद हो. यह अब मेरा बेटा है,’ राय बुलर ने कहा.

इस घटना के बाद पिता और बेटे के बीच संबंध और खराब होते चले गए. एक घर में रहने के बावजूद वह एक दूसरे से बात नहीं करते थे.

धीरे-धीरे नानक अपने परिवार से दूर होते चले गए और अपना ज्यादा वक्त तलवंडी के बाहर एक वीरान टीले पर बिताने लगे. इसी बीच हमेशा नानक का साथ देने वाली बेबे नानकी की शादी हो गई और वह सुल्तानपुर चली गईं. इसके बाद पिता और बेटे के बीच का फासला और बढ़ गया.
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हमेशा अपने में खोए रहने वाले, घर के किसी काम या किसी व्यवसाय में कोई ध्यान नहीं देने वाले नानक की हालत देखकर बेबे नानकी ने उनकी शादी कर देने की सलाह दी.

उन दिनों नानक का सारा समय शहर के पास के जगंलों में बीतता था. बेबे नानकी ने सोचा एक पत्नी की जिम्मेदारी मिलने के बाद वह घर पर अपना समय बिताएंगे.

जब बेबे नानकी ने अपनी मां के सामने शादी का जिक्र किया तो उन्हें भी यह बात पसंद आई. बेबे नानकी ने नानक के लिए एक लड़की चुन रखी थी. उनका नाम सुलखनी था, वह गुरदासपुर के पास पखोखे गांव के मूलचंद खत्री की बेटी थीं.

बेबे नानकी ने लड़की से बातचीत की थी और वह हर नजरिए से बेदी परिवार की बहू बनने लायक लगी. वह बड़ों का आदर करती थीं और एक महिला होने की सारी जिम्मेदारियां समझती थीं. शादी का यह प्रस्ताव मेहता कालू को भी बहुत पसंद आया था.

नानक का आध्यात्म की तरफ झुकाव था और उन्हें संन्यास पसंद था, लेकिन वह संन्यासियों की तरह अविवाहित जीवन नहीं चाहते थे 
भक्तों के बीच में खड़े हुए गुरु नानक
(Wikimedia Commons)

जब नानकी ने नानक से शादी के बारे में बात की, उन्होंने तुरंत हामी भर दी थी. ऐसा नहीं था कि नानक शादी के लिए उतावले थे. लेकिन उनके दिमाग में कोई दूसरा विकल्प नहीं था.

नानक का आध्यात्म की तरफ झुकाव था और उन्हें संन्यास पसंद था, लेकिन वह संन्यासियों की तरह अविवाहित जीवन नहीं चाहते थे. वह समाज से जुड़े रहना चाहते थे और शादी इसका एक जरिया बन सकता था.

इसके बाद बेबे नानकी ने शादी का प्रस्ताव सुलखनी के परिवारवालों के सामने रखा और उन्होंने इसे फौरन स्वीकार कर लिया. वह जानते थे कि बेदी परिवार का समाज में सम्मान है और उनकी बेटी वहां महफूज रहेगी. पुरोहितों ने शादी की तारीख पक्की की और एक सादे समारोह में शादी संपन्न हो गई.

नानक पर शादी का ठीक वैसा ही असर हुआ, जैसी उम्मीद थी और वह पहले से ज्यादा वक्त घर पर बिताने लगा. वह अब भी तलवंडी के आसपास संन्यासियों और सूफी संतों से मिलते थे, लेकिन अब उन्हें व्यवहार में संयम नजर आता था.

पिता और बेटे के बीच के रिश्ते भी धीरे-धीरे बेहतर हुए क्योंकि अब सुलखनी दोनों के बीच एक पुल का काम करती थीं. शादी के तुरंत बाद नए जोड़े को बेटे का सुख मिला जिनका नाम श्री चंद रखा गया. नानक की जिंदगी में इससे ज्यादा खुशी पहले कभी नहीं आई थी. मेहता कालू को लगने लगा कि नानक ने अब खुद को आध्यात्मिक चीजों से दूर कर लिया है.

एक दिन जब बेबे नानकी और उनके पति, जय राम, सुल्तानपुर से तलवंडी आए, मेहता कालू ने अपने दामाद, जिनकी सुल्तानपुर के गवर्नर नवाब दौलत खान के दरबार में अच्छी नौकरी थी, के सामने नानक के लिए नौकरी की बात छेड़ दी. जय राम ने सलाह दी कि नानक को उनके साथ सुल्तानपुर जाने दिया जाए ताकि वहां उसके लिए वहां कोई अच्छा काम ढूंढा जा सके.

माता तृप्ता और मेहता कालू ये सुनकर हैरान रह गए. बेदी परिवार में आज तक कोई बेटा शादी के बाद अपनी बहन के साथ नहीं रहा था. हालांकि बाद में दोनों तैयार हो गए, क्योंकि इससे पहले बेदी परिवार में नानक जैसा बेटा भी पैदा नहीं हुआ था.
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नानक, जो कि अपने बेटे के जन्म के बाद काफी जिम्मेदार हो गए थे, तुरंत अपनी बहन और जीजा के साथ सुल्तानपुर जाने के लिए राजी हो गए. उनके जीजा ने सुल्तानपुर के गवर्नर के यहां नवाब के किराना भंडार में नौकरी दिला दी. नानक को अपनी नई जिम्मेदारियां रास आने लगीं.

जल्द ही उनकी पत्नी और बेटे भी उनके पास आकर रहने लगे. सुल्तानपुर आने के एक साल बाद नानक की पत्नी ने दूसरे बच्चे को जन्म दिया. जिनका नाम उन्होंने लक्ष्मण दास रखा.

(हारून खालिद, ट्रांकवबार प्रेस की किताब 'वॉकिंग विद नानक' की किताब का एक हिस्सा)

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