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सुचित्रा सेन: जो ‘आंधी’ की तरह पर्दे पर आईं और मिसाल बन गईं 

सुचित्रा एक ऐसी महिला,जिन्हें पुरुषों के वर्चस्व वाली दुनिया में संघर्ष करना था.वो इस संघर्ष के पहलुओं से वाकिफ थीं

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सुचित्रा सेन को एक दृढ़ महिला राजनीतिज्ञ के रूप में पेश करने वाली फिल्म आंधी (1975) ने तत्कालीन सत्ताधारी कांग्रेसी नेताओं के तेवर इस कदर तीखे कर दिये थे कि करीब 20 हफ्ते तक सफलतापूर्वक चलने के बाद फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लग गई. वजह??? फिल्म की नायिका आरती देवी की सूती साड़ी और चांदी के समान चमकीले सिर के सफेद बाल काफी कुछ इंदिरा  गांधी के व्यक्तित्व से मेल खा रहे थे.

फिल्म में उस आरती देवी की वैवाहिक नौका राजनीतिक भंवर में फंसी थी. कांग्रेसी नेताओं की नैतिकता अपने आलाकमान की वास्तविक जिंदगी से मेल खाती ये छवि स्वीकार करने को कतई तैयार नहीं थी.

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इंदिरा गांधी और उनकी कट्टर प्रतिद्वंदी के रूप में सुचित्रा सेन की दोहरी चुनौती

फिल्म में दर्शकों को विदेश में पढ़ी और एक कद्दावर कारोबारी की फायर ब्रांड बेटी, जो राजनीति में अपने लिए ऊंची जगह बनाना चाहती थी और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बीच काफी समानता दिखी. हालांकि बाद में आंधी फिल्म के निर्देशक गुलजार ने बताया कि आरती देवी की शख्सियत मुख्य रूप से तारकेश्वरी सिन्हा से प्रभावित थी.

तारकेश्वरी सिन्हा बिहार से कांग्रेस की सांसद थीं, और बताया जाता है कि इंदिरा गांधी उन्हें बेहद नापसंद करती थीं. नेहरू कैबिनेट की युवा मंत्री तारकेश्वरी सिन्हा की फिरोज गांधी के साथ नजदीकियां इंदिरा गांधी को नापसंद थीं.

सिन्हा वित्त मंत्रालय में मोरारजी देसाई की सहयोगी थीं और दोनों के बीच काफी छनती थी. लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार की लड़ाई में सिन्हा ने मोरारजी का साथ दिया और कांग्रेस को अलविदा कह दिया. बताया जाता है कि इंदिरा गांधी इस बात को कभी नहीं भूलीं और ये तय कर लिया कि सिन्हा राजनीतिक रूप से फिर कभी मजबूत न होने पाएं.

लिहाजा आंधी की आरती देवी को अब दो व्यक्तित्वों के मिश्रण के रूप में देखा जा सकता है. एक तो इंदिरा गांधी और दूसरा वो व्यक्तित्व, जिसे इंदिरा गांधी ने कभी पसंद नहीं किया. ये उस मनोवैज्ञानिक विश्लेषण के लिए बिलकुल सटीक मामला है, जिसमें आरती देवी के रूप में सुचित्रा सेन ने दोनों व्यक्तित्वों का बखूबी सम्मिश्रण किया था.

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सुचित्रा सेन का सटीक महिला राजनीतिज्ञ अवतार

एक बेहतरीन कलाकार के रूप में सुत्रिता सेन ने एक महिला राजनीतिज्ञ के जीवन में दृढ़ता और अपूर्णता के विरोधाभास को बखूबी निभाया. फिल्म के एक सीन में आरती देवी जिस होटल में ठहरती हैं, वहां अपने पुराने वफादार बिन्दा काका को पाती हैं. बिन्दा काका को देखकर आरती देवी के चेहरे पर सामान्य जीवन को खोने और असंतुष्टि का दर्द, दर्शकों के दिल में गहरा पैठ जाता है. बाद में वही वफादार जब उनसे दाल में तड़का लगाने जैसे घरेलू काम न करने को कहता है, क्योंकि एक राजनीतिज्ञ के रूप में उनकी भूमिका बदल चुकी है, तो दिलों को छू जाने वाला वही दर्द एक बार फिर नायिका के चेहरे पर झलक उठता है.

कभी पति को दिल की गहराई से प्यार करने वाली महिला, तो कभी उसकी पुरुष प्रधान सोच और बचकानी हरकतों से नाराज होने वाली पत्नी और फिर एक चतुर महिला राजनीतिज्ञ की विरोधाभासी भूमिकाओं को सुचित्रा ने बखूबी निभाया. 

देखा जाए तो चाल-ढाल और पोशाक में इंदिरा गांधी की हूबहू नकल उतारने पर कांग्रेसियों की झुंझलाहट सुचित्रा की बेहतरीन अदाकारी का नतीजा कही जा सकती है. कांग्रेसियों की सोच यहां तक पहुंच गई थी कि आंधी में दिखाया टूटा हुआ विवाहित जीवन उनके प्रधानमंत्री की देवी वाली छवि को ठेस पहुंचाएगा. एक महिला राजनीतिज्ञ सभी नागरिक स्वतंत्रताओं का निलंबन कर सकती है, सभी घरेलू संस्थानों को कमजोर बना सकती है, लेकिन उसकी विवाहित जिंदगी की नाकामी पर कोई उंगली उठाए... ये कभी बर्दाश्त नहीं कर सकती.

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चुनाव प्रचार के दौरान वोटर आरती देवी पर आरोप लगाते हैं और जब भीड़ हिंसक हो जाती है तो आरती देवी को शारीरिक चोट पहुंचती है. इसपर वो हैरान हैं, लेकिन अपने वैध पति के साथ सार्वजनिक रूप से देखे जाने की आम लोगों की प्रतिक्रिया से निबट नहीं पातीं. दरअसल इंटरनेट आने से पहले व्यक्तिगत सम्बंधों को सार्वजनिक जीवन से दूर रखना आसान था. लेकिन एक ओर रंजिशजदा पत्नी और दूसरी ओर एक महिला राजनीतिज्ञ के रूप में संघर्ष सामान्य बात नहीं थी. दामन पर लगा दाग न सिर्फ मन की शांति के लिए, बल्कि चुनाव के लिए भी खतरनाक था.

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आरती देवी की तरह सुचित्रा भी एक ऐसी महिला थीं, जिन्हें पुरुषों के वर्चस्व वाली दुनिया में संघर्ष करना था. वो इस संघर्ष के तमाम पहलुओं से वाकिफ थीं.

हालांकि आरती देवी की जिंदगी के विपरीत उन्हें हर कदम पर अपने पति दिबानाथ सेन का सहयोग मिला. सेन की निजी जिदगी के बारे में कम ही जानकारी है, लेकिन फिल्म आंधी पर काम शुरू होने के ठीक पहले उनका निधन हो गया था. ऐसे में कहा जा सकता है कि आरती देवी के चेहरे पर सबकुछ खो देनेवाले भाव, वास्तव में सुचित्रा के दिल के मूल भाव थे.

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आंधी और दुर्घटना

इंदिरा गांधी की जीवंत प्रवृत्तियों की झलक दिखाते हुए पोस्टरों और शीर्षकों के जरिये फिल्म आंधी की मार्केटिंग की गई थी. एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर का विषय भी बिलकुल स्पष्ट है. दोनों ही फिल्मों के साथ एक बात कॉमन है. दोनों को अपराध से कम नहीं आंका गया. ‘Visuals and Other Pleasures’ में लौरा मल्वी के कथन का सार है,

“दर्शनरति, साधुत्व के साथ जुड़ा हुआ है: अपराधबोध, आत्म नियंत्रण और दोषी को सजा देने या माफ कर देने का अपना ही आनंद है.”

अपना मत बनाने वाले और दर्शनरति करने वाले, दोनों को ही सजा पसंद है. लेकिन अंत में दोनों ही अपने मनमुताबिक जीत हासिल कर सकते हैं. फिल्म आंधी में आरती देवी के रूप में सुचित्रा सेन जीत गईं, लेकिन चुनावों में इन्दिरा गांधी को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा.

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