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रूस द्वारा यूक्रेन पर लगातार हमले किए जा रहे हैं. इसी हमले के दौरान यूक्रेन स्थित यूरोप के सबसे बड़े परमाणु ऊर्जा संयंत्र जेपोरजिया न्यूक्लियर पावर प्लांट (Zaporizhia Nuclear Power Plant) में आग लग गई. हालांकि आग पर काबू पर लिया गया लेकिन सबसे अहम बात जो है वह यूक्रेन के विदेश मंत्री के ट्वीट में बताई गई. जिन्होंने चेतावनी भरे ट्वीट में कहा कि "अगर जेपोरजिया न्यूक्लियर पावर प्लांट में विस्फोट हो जाता है, तो यह चेर्नोबिल से 10 गुना बड़ा होगा!..." ऐसे में आइए जानते हैं चेर्नोबिल घटना क्या थी और इसके परिणाम क्या थे? लेकिन उससे पहले एक नजर जेपोरजिया न्यूक्लियर पावर प्लांट की ताजा स्थिति
जेपोरजिया न्यूक्लियर पावर प्लांट 1984 से 1995 के बीच बनाया गया था. यह यूरोप का सबसे बड़ा और दुनिया का 9वां सबसे बड़ा न्यूक्लियर पावर प्लांट है. इसमें 6 रिएक्टर हैं, जिसमें से हर एक रिएक्टर 950 मेगावाट ऊर्जा पैदा करता है. इससे कुल 5,700MW ऊर्जा पैदा होती है जोकि 4 मिलियन यानी 40 लाख घरों के लिए पर्याप्त ऊर्जा है.
सामान्यत: इस संयंत्र से यूक्रेन की बिजली का पांचवां हिस्सा उत्पन्न होता है. देश के सभी परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से मिलनी वाली बिजली का आधा उत्पादन इसी संयंत्र से होता है.
जेपोरजिया न्यूक्लियर पावर प्लांट दक्षिण-पूर्व यूक्रेन में एनरहोदर में नीपर नदी पर काखोवका जलाशय के तट पर स्थित है. यह विवादित डोनबास क्षेत्र से लगभग 200 किमी और कीव से 550 किमी दक्षिण-पूर्व में मौजूद है.
रूसी सेना द्वारा गोलाबारी किए जाने के बाद यूक्रेन के अधिकारियों ने कहा कि शुक्रवार तड़के संयंत्र के बाहर एक ट्रेनिंग बिल्डिंग में आग लग गई. सबसे पहली जानकारी प्लांट में काम करने वाले कर्मचारी की ओर से आई. उसने टेलीग्राम पर पोस्ट किया कि रूसियों ने यहां हमला किया है और यूरोप का सबसे बड़ा न्यूक्लियर पावर प्लांट वास्तविक खतरे में है.
यूक्रेन के विदेश मंत्री ने रिपोर्ट की पुष्टि करते हुए ट्वीट किया कि रूसी सेना यूरोप के सबसे बड़े परमाणु ऊर्जा संयंत्र, जेपोरजिया न्यूक्लियर पावर प्लांट पर हर तरफ से गोलीबारी कर रही थी. आग पहले ही लग चुकी है. यदि यह पावर प्लांट फटता है तो चेर्नोबिल से 10 गुना ज्यादा बड़ा होगा.
विदेश मंत्री ने तत्काल संघर्ष विराम की मांग की ताकि दमकलकर्मियों को आग पर काबू पाने की अनुमति दी जा सके.
इसके कुछ देर बाद, यूक्रेनी स्टेट इमरजेंसी सर्विस ने कहा कि संयंत्र में विकिरण "सामान्य सीमा के भीतर" था और संयंत्र में आग की स्थिति "सामान्य" थी. उनकी ओर से कहा गया कि आग बिजली संयंत्र के बाहर एक इमारत में लगी थी. उनके द्वारा यह भी कहा गया कि पावर प्लांट के तीसरी यूनिट की पावर सप्लाई रोक दी गई थी. प्लांट की 6 में से केवल एक (यूनिट 4) यूनिट अभी भी चल रही है. इस घटना के बाद एशियाई बाजारों में स्टॉक में गिरावट और तेल की कीमतों में बढ़ोत्तरी देखने को मिली.
यूक्रेन की राजधानी कीव के उत्तर में 130 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चेर्नोबिल (Chernobyl) न्यूक्लियर पावर प्लांट कभी दुनिया के सबसे बड़े परमाणु पावर प्लांट में से एक था. इस संयंत्र में 26 अप्रैल, 1986 को दुनिया की सबसे भीषण परमाणु दुर्घटनाओं में एक हुई थी. इसके परमाणु रिएक्टर नंबर 4 में विस्फोट हुआ था जिसके बाद इसका रेडिएशन पूरे यूरोप में फैल गया था और हर जगह हाहाकार मच गया था. जिस दौरान यहां धमाका हुआ था तब यूक्रेन सोवियत संघ का हिस्सा था.
इस दुर्घटना के बाद 1 लाख 16 हजार लोगों को एक्सक्लूजन जोन से बाहर निकाला गया था.
WHO के अनुसार इस घटना के बीस साल बाद लगभग 5 हजार लोगों की मौत कैंसर से हुई, जोकि चेर्नोबिल त्रासदी से ही संबंधित थी. इस रेडिएशन की वजह से थाइरॉयड कैंसर या ल्यूकेमिया की बीमारी फैली.
2015 तक चेर्नोबिल रेडिएशन से प्रभावित बेलारूस, रूस और यूक्रेन के करीब 20 हजार लोगों को थॉयराइड कैंसर हुआ था, जिनमें से अधिकतर बच्चे और किशोर थे.
2005 के दौरान यूक्रेन में 19 हजार परिवार सरकारी सहायता प्राप्त कर रहे थे क्योंकि इनके घर से एक कमाने वाले की मृत्यु हो गई थी, इनकी मौत को चेर्नोबिल दुर्घटना से संबंधित माना गया था.
वर्ल्ड न्यूक्लियर.org के अनुसार इस दुर्घटना के परिणामस्वरूप लगभग 3 लाख 50 हजार लोगों को निकाला गया था. जिन क्षेत्रों से लोगों को स्थानांतरित किया गया था, उनका पुनर्वास जारी है.
रेडिएशन फैलने से रूस, यूक्रेन, बेलारूस के 50 लाख लोग इसकी चपेट में आए.
इस हादसे से 2.5 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। लाखों लोगों का स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हुआ.
दुर्घटनाग्रस्त रिएक्टर की सफाई करने और उसे कंक्रीट के खोल से ढकने के काम में करीब 6 लाख सोवियत कामगारों को लगाया गया था. उनमें से बहुत से विकिरण के शिकार हो गए.
रिपोर्टों से यह स्पष्ट हो चुका है कि चेर्नोबिल में खराब डिजाइन और मानवीय चूक के कारण भयंकर परमाणु हादसा हुआ था. न्यूक्लियर मटीरियल विशेषज्ञ प्रोफेसर क्लेयर कॉरखिल ने बीबीसी को बताया था कि उस (1986) घटना में रेडियोऐक्टिव पदार्थों का रिसाव एक अग्निकांड की वजह से हुआ था. तब ये इमारतें रेडियोऐक्टिव पदार्थों को अपने अंदर बनाए रखने के लिए बनाई गई थीं, लेकिन इनमें किसी तरह का कवच नहीं लगा है और यह युद्ध क्षेत्र के लिए नहीं बनाई गई थीं.
दुर्घटना का शिकार होने वाले प्लांट से 3 किलोमीटर दूर प्रिपयेत सोवियत संघ के संभ्रांत शहरों में से एक था. यहां रहने के लिए लोग मॉस्को, लेनिनग्राद और कीव से आए थे. लेकिन इस त्रासदी के बाद यह शहर भुतहा शहर में तब्दील हो गया. यहां कोई नहीं रहा.
टेक्सास टेक यूनिवर्सिटी के नेशनल साइंस रिसर्च लेबोरेटरी के अनुसार इस हादसे के बाद आसपास के जंगलों में मौजूद पेड़ रेडिएशन की वजह से मर गए. यह इलाका बाद में रेड फॉरेस्ट कहलाने लगा. क्योंकि यहां रेडिएशन से खराब हुए पेड़ों का रंग लाल हो गया था. बाद में इन पेड़ों को गिरा दिया गया और उनके तनों को जमीन में दफन कर दिया गया.
चेर्नोबिल के आस-पास 30 किलोमीटर क्षेत्र के अंदर रेडियोधर्मी कचरे का होना अब भी खतरे का प्रतीक है.
नेशनल जियोग्राफिक की रिपोर्ट के अनुसार यहां पूरी तरह से सफाई कार्य 2065 तक चनले की संभावना है.
1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद यूक्रेन ने चेर्नोबिल को ज्यादा सुरक्षित बनाने के लिए पूरी दुनिया से मदद मांगी. इस तबाही के एक दशक बाद 1997 में अमेरिका के डेनवर में जी-7 देशों के नेताओं की बैठक हुई. इसमें चेर्नोबिल के लिए तीन सौ अरब डॉलर के खर्च को मंजूरी दी गई. चेर्नोबिल को सुरक्षित रखने में यूक्रेन की मदद के लिए दानदाता देशों ने 8.75 करोड़ यूरो की मदद का आश्वासन दिया.
इस आपदा से लगभग 235 अरब डॉलर के नुकसान का अनुमान लगाया गया है.
1991 में बेलारूस ने इस आपदा से निपटने के लिए अपने कुल बजट का 22 प्रतिशत खर्च किया था.
बाद में इस इलाके को पर्यटकों के लिए खोल दिया गया था. हालांकि यह इलाका आज भी पूरी तरह रेडिएशन मुक्त नहीं है. साल 2011 में यूक्रेन की सरकार के इस जगह को पर्यटकों को खोलने के बाद अब तक हजारों लोग यहां जा चुके हैं.
कई रिपोर्ट्स में ऐसा बताया गया है कि सोवियत संघ यानी USSR द्वारा इस हादसे को दुनिया से छिपाने की कोशिश गई थी. लेकिन चूंकि रेडिएशन हवा में फैल चुका था, इसलिए उसको छिपाना मुश्किल था. रेडिएशन और न्यूक्लियर पावर प्लांट में लगी आग की वजह से निकलने वाली राख स्वीडन के रेडिएशन मॉनिटरिंग स्टेशन तक पहुंच गई थी. जोकि चेर्नोबिल से करीब 1100 किलोमीटर की दूरी पर था. हवा में अचानक से रेडिएशन बढ़ने पर स्वीडन चौकन्ना हो गया. वे पता लगाने में जुट गए कि यह रेडिएशन कहां से आया. जब स्वीडन ने मॉस्को सरकार से पूछा तब सोवियत संघ ने इस घटना को स्वीकारा.
पिछले साल इस घटना की 35वीं वर्षगांठ मनाई गई थी. तब यूक्रेन की सुरक्षा सेवा (SBU) की ओर से कुछ डॉक्यूमेंट जारी किए गए थे. उन पुराने दस्तावेजों के अनुसार 1982 में ही इस प्लांट से रेडिएशन रिलीज हुआ था. जिसे दुनिया के सामने नहीं आने दिया गया था. उस समय KGB ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि पैनिक और अफवाहों को रोकने के लिए उसने ऐसा किया था. SBU ने अपने बयान में यह भी कहा कि 1983 में मॉस्को के नेतृत्व को इस बात का पता था कि इस न्यूक्लियर पावर प्लांट में सुरक्षा उपकरणों की कमी है. जिसके कारण USSR में यह सबसे खतरनाक पावर स्टेशन बन गया था.
चेर्नोबिल में रेडिएशन फैला तो इसको रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सोवियत संघ के रसायन विज्ञानी वालेरी लेगासोव ने इसका खुलासा किया था. लेकिन सोवियत संघ के दबाव के चलते प्रोफेसर वालेरी लेगासोव ने चेर्नोबिल हादसे के ठीक 2 साल बाद 26 अप्रैल 1988 को 51 साल की उम्र में आत्महत्या कर ली थी.
रिएक्टर नंबर 4 के सेफ्टी टेस्ट की तैयारी 1-2 दिन पहले ही शुरू हो गई थी. 26 अप्रैल 1986 की रात टेस्ट शुरू हुआ. रात करीब 1ः30 बजे टरबाइन को कंट्रोल करने वाले वॉल्व को हटाया गया.
रिएक्टर को आपात स्थिति में ठंडा रखने वाले सिस्टम और रिएक्टर के अंदर होने वाले न्यूक्लियर फ्यूजन को भी रोक दिया गया.
अचानक रिएक्टर के अंदर न्यूक्लियर फ्यूजन की प्रक्रिया कंट्रोल से बाहर हो गई. रिएक्टर के सभी आठ कूलिंग पम्प कम पॉवर पर चलने लगे, जिससे रिएक्टर गर्म होने लगा.
इससे न्यूक्लियर रिएक्शन और तेज हो गया. रिएक्टर को बंद करने की कोशिशें होने लगी इसी दाैरान रिएक्टर में जोरदार धमाका हुआ. धमाका इतना जबरदस्त था कि रिएक्टर की छत उड़ गई.
सुबह करीब पांच बजे आधिकारिक तौर पर रिएक्टर नंबर 3 को बंद किया गया.
27 अप्रैल को सुबह 10 बजे आग बुझाने के लिए हेलिकॉप्टर्स से रेत गिराई गई. 2 बजे लोगों को निकालने की प्रक्रिया शुरु हुई.
28 अप्रैल को स्वीडन की एयर मॉनिटर एजेंसी ने बताया कि हवा में काफी ज्यादा रेडिएशन मौजूद है.
29 अप्रैल को अमेरिकी खुफिया सैटेलाइट्स के जरिए यहां की फोटो निकाली गई और इस तरह दुनिया के सामने यह त्रासदी आई.
1 मई को सोवियत संघ ने कीव में होने वाले मई डे प्रोग्राम को रद्द कर दिया.
4 मई को लिक्विड नाइट्रोजन का छिड़काव किया गया. ताकि रिएक्टर ठंडे हो जाए.
6 मई को सोवियत संघ ने कीव में स्कूल बंद करने, बाहर न निकलने और पत्तेदार सब्जियों का सेवन न करने के आदेश दिए.
8 मई को कर्मचारियों ने 20 हजार टन रेडियोएक्टिव पानी को बेसमेंट से बाहर निकाला.
14 मई को तत्कालीन सोवियत संघ के राष्ट्रपति ने टीवी पर इस घटना के बारे में संबोधित किया.
25 से 29 अगस्त 1986 इंटरनेशनल अटॉमिक एनर्जी ने कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि यह घटना केवल मानवीय त्रुटि नहीं थी बल्कि सोवियत संघ द्वारा जो डिजाइन तैयार किया गया था उसकी भी खामी थी.
15 दिसंबर 2000 को इस संयंत्र की यूनिट 3 को बंद कर दिया गया. यूनिट 1 को 1996 में और यूनिट 2 को 1991 में बंद किया गया था.
दुर्घटनाग्रस्त रिएक्टर नंबर चार में अभी भी 200 टन यूरेनियम रखा है जिसकी वजह से यह आशंका है कि पुराने पड़ते कंक्रीट के खोल के टूटने से और रेडियोधर्मी विकिरण बाहर निकल सकती है. यहां की जमीन अभी भी प्रदूषित है. प्रदूषण की मात्रा पहले परमाणु बम हमले का शिकार हुए हिरोशिमा और नागासाकी के मुकाबले 20 गुना ज्यादा है.
कुछ दिनों पहले यूक्रेन पर हमले के बाद रूसी सैनिकों ने चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र पर कब्जा जमा लिया था. इसके बाद से यहां से होने वाले रेडिएशन में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई. इस क्षेत्र से होने वाले रेडिएशन पर नजर रखने वाली संस्थाओं के अनुसार यहां पर रेडिएशन बीस गुना तक बढ़ गया है. रेडिएशन में सबसे अधिक बढ़ोत्तरी क्षतिग्रस्त परमाणु रिएक्टर के नजदीक दर्ज की गई है.
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोल्दोमिर जेलेंस्की ने कहा है कि यूक्रेन के सैनिकों ने इसे बचाने के लिए संघर्ष किया ताकि 1986 की त्रासदी की पुनरावृत्ति न हो.
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