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क्या कांग्रेस पर्दे के पीछे से कर रही महागठबंधन की मदद?

महागठबंधन और कांग्रेस, उत्तर प्रदेश की कुछ सीटों पर साथ में है, तो कहीं खिलाफ

आदित्य मेनन
चुनाव
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महागठबंधन और कांग्रेस, उत्तर प्रदेश की कुछ सीटों पर साथ में है, तो कहीं खिलाफ
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महागठबंधन और कांग्रेस, उत्तर प्रदेश की कुछ सीटों पर साथ में है, तो कहीं खिलाफ
(फोटो: क्विंट) 

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रविवार, 7 अप्रैल को सहारनपुर जिले के देवबंद कस्बे में एक विशाल रैली हुई जिसमें महागठबंधन के प्रमुख नेताओं, बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती, समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव और राष्ट्रीय लोक दल से पिता और पुत्र अजित सिंह और जयंत चौधरी ने हिस्सा लिया.

यह रैली एसपी, बीएसपी और आरएलडी की मजबूती और एकता का एक विशाल प्रदर्शन थी और यह कहा गया कि यह गठबंधन के पक्ष में मोमेंटम सेट करेगी.

दो दिन बाद कांग्रेस महासचिव और स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी वाड्रा ने सहारनपुर में एक रोड शो किया और लोगों की अच्छी-खासी भीड़ वहां पर इकट्ठी हुई.

सहारनपुर में ये दोनों घटनाएं कांग्रेस और महागठबंधन के बीच कड़ी टक्कर की तरफ इशारा करती हैं.

लेकिन क्या कांग्रेस और महागठबंधन उत्तर प्रदेश की सभी लोकसभा सीटों पर इतनी ही कड़ी टक्कर के साथ लड़ रहे हैं?

कांग्रेस के उम्मीदवारों के चयन पर बारीक निगाह डालने पर यह पता चलता है कि एक तरफ तो यह कुछ सीटों पर महागठबंधन के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है, लेकिन दूसरी तरफ ज्यादातर सीटों पर यह महागठबंधन की मदद कर रही है.

कांग्रेस की रणनीति

पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए प्रियंका गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपना महासचिव नियुक्त करने के बाद जल्द ही कांग्रेस ने उन सीटों की सूची तैयार की जिन पर पार्टी को फोकस करना चाहिए.

यह तय किया गया कि पार्टी 30 से कम सीटों पर फोकस करेगी और अपने 70 प्रतिशत रिसोर्स को इसके लिए इस्तेमाल करेगी और बचे हुए 30 प्रतिशत रिसोर्स को बची हुई 50 सीटों के लिए इस्तेमाल करेगी.

इन 50 सीटों का जो अनकहा पहलू है, वह यह है कि बीजेपी को हारने के लिए कांग्रेस चुपचाप महागठबंधन की मदद करेगी. दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस ने अपनी न्याय स्कीम पर उत्तर प्रदेश में उतना ज्यादा जोर नहीं दिया जितना कि अन्य राज्यों में दिया है.

कांग्रेस के कैंडिडेट सेलेक्शन के आधार पर हम उत्तर प्रदेश को तीन प्रकार की सीटों में बांट सकते हैं, जो महागठबंधन के साथ तीन अलग-अलग संभावित समीकरण पेश करती हैं:

  1. वे सीटें जहां कांग्रेस ने कमजोर उम्मीदवारों को उतारा है और सीधे तौर पर महागठबंधन को नुकसान नहीं पहुंचा रही है.
  2. वे सीटें जहां कांग्रेस ने मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है.
  3. वे सीटें जहां कांग्रेस ने गैर-मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है.

दूसरी और तीसरी कैटेगरी को अलग तरीके से देखे जाने की जरूरत है. कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवारों के खाते में जाने वाले वोट सीधे-सीधे महागठबंधन के हिस्से से जाएंगे. दूसरी तरफ, कांग्रेस के मजबूत गैर-मुस्लिम उम्मीदवार भाजपा के साथ-साथ महागठबंधन के वोटों में भी सेंध लगा सकते हैं.

तो एक तरफ, सीटों की दूसरी कैटेगरी जहां महागठबंधन और कांग्रेस के बीच एक घमासान है, दूसरी तरफ तीसरी केटेगरी में कंपिटीशन के साथ-साथ सहयोग भी हो सकता है जो कि परिस्थितियों पर निर्भर करता है.

आइये सीटों की तीनों कैटेगरी पर डिटेल में जाते हैं.

सीटें, जहां कांग्रेस महागठबंधन को नुकसान नहीं पहुंचा रही है

नीचे दिया गया मैप साफ तौर पर दर्शाता है कि ज्यादातर सीटों (हरे रंग में) पर कांग्रेस महागठबंधन को सीधे तौर पर नुकसान नहीं पहुंचा रही है. बल्कि इनमें से कई सीटों पर एसपी-बीएसपी-आराएलडी गठबंधन को फायदा पहुंचा सकती है. अब तक 56 ऐसी सीटें हैं जहां शायद कांग्रेस महागठबंधन को बहुत ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाएगी.

इन सीटों में आजमगढ़, कन्नौज, मैनपुरी, बागपत और मुजफ्फरनगर जैसी सीटें शामिल हैं जहां उन्होंने महागठबंधन के प्रति सम्मान दर्शाते हुए कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है, क्योंकि यहा से महागठबंधन के बड़े नेता चुनाव लड़ रहे हैं. पार्टी ने मायावती के सामने पेशकश की थी कि मायावती जहां कहीं से भी चुनाव लड़ें तो कांग्रेस उस सीट पर अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारेगी, लेकिन मायावती ने खुद चुनाव न लड़ने का फैसला किया.

इनमें से ज्यादातर सीटें ऐसी हैं जहां कांग्रेस कमजोर है और उसके पास मजबूत स्थानीय नेता नहीं हैं. बेशक इनमें कुछ ऐसी सीटें हो सकती हैं जहां कांग्रेस ने एसपी या बीएसपी के दलबदलू नेताओं को उतारा है और इन सीटों पर वे महागठबंधन को थोड़ा-बहुत नुकसान पहुंचा सकते हैं.

लेकिन ज्यादातर मामलों में ऐसा लगता है कि कांग्रेस महागठबंधन की संभावनाओं को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा रही है. आइए इनमें से कुछ सीटों पर नजर डालते हैं.

मेरठ

कांग्रेस ने यहां हरेंद्र अग्रवाल को टिकट दिया है, जो बीजेपी के प्रत्याशी राजेंद्र अग्रवाल की ही तरह वैश्य समुदाय से हैं. हाजी मोहम्मद याकूब यहां से महागठबंधन के उम्मीदवार हैं. यहां कांग्रेस के ज्यादातर वोट बीजेपी के कोटे से आएंगे. वहीं दूसरी तरफ हाजी मोहम्मद याकूब को मुस्लिम, दलित और जाट मतदाताओं का समर्थन मिलेगा, जो महागठबंधन का सबसे बड़ा वोट बैंक है. ये तीनों समुदाय मेरठ निर्वाचन क्षेत्र का 50 प्रतिशत हिस्सा हैं जिसके चलते हाजी मोहम्मद याकूब की संभावनाएं मजबूत हैं.

गौतम बुद्ध नगर

केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा का संसदीय क्षेत्र और बीजेपी का गढ़ होने के बावजूद पार्टी को महागठबंधन के सतबीर नागर से कड़ी टक्कर मिल रही है. यहां कांग्रेस ने डॉ. अरविंद सिंह चौहान को मैदान में उतारा है, जिनके बारे में ऐसा कहा जा रहा है कि वे बीजेपी के खाते में जाने वाले ठाकुर समुदाय के वोट हासिल करेंगे. वहीं दूसरी तरफ यह चर्चा है कि बीएसपी प्रत्याशी सतबीर को मुस्लिम, दलित, यादव के साथ-साथ कुछ गुर्जर वोट भी हासिल हो सकते हैं.

कैराना

मुस्लिम और जाट बहुल कैराना में कांग्रेस ने जाट उम्मीदवार हरेंदर मलिक को उतारा है, वहीं महागठबंधन ने एसपी से तबस्सुम हसन को टिकट दिया है. हसन को 2018 उपचुनाव में राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर यह सीट जीतने में कामयाबी मिली थी. बीजेपी ने कैराना में गंगोह से विधायक प्रदीप चौधरी को टिकट दिया है, वह भी जाट हैं. हसन के लिए यहां संभावनाएं बेहतर हैं, क्योंकि मुसलमानों, दलितों और जाटों व गुर्जरों का एक वर्ग उनके समर्थन में है.

गाजियाबाद

बीजेपी के वी.के. सिंह ने रिकॉर्ड मार्जिन के साथ गाजियाबाद सीट जीती थी लेकिन हैरतअंगेज तरीके से वह महागठबंधन के सुरेश बंसल से कड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं. कांग्रेस ने यहां से डॉली शर्मा को मैदान में उतारा है, जो बीजेपी के ब्राह्मण वोटों में सेंध लगा सकती हैं.

मुस्लिम, दलित और यादव एक साथ मिलकर यहां 40 प्रतिशत से ज्यादा जनाधार तैयार करते हैं और यह एसपी के उम्मीदवार को फायदा पहुंचा सकता है. इसके अलावा महागठबंधन को यहां गुर्जर वोट मिलने की भी संभावना है.

अमरोहा

मायावती और एचडी देवगौड़ा के बीच विशेष अरेंजमेंट के रूप में जनता दल (सेक्युलर) के नेता दानिश अली यहां बीएसपी प्रत्याशी के तौर पर मैदान में हैं. कांग्रेस ने पहले अमरोहा के पूर्व सांसद राशिद अल्वी, जो पहले बीएसपी में थे, को यहां से उतारा था.

लेकिन इस बात के डर से कि उनकी मौजूदगी से बीजेपी को फायदा पहुंचेगा, अल्वी ने इस रेस से किनारा कर लिया. उनकी जगह कांग्रेस ने सचिन चौधरी को टिकट दिया, जो दानिश अली को शायद नुकसान नहीं पहुंचाएंगे. अमरोहा महागठबंधन की सबसे मजबूत सीटों में से एक है और कांग्रेस के फैसले ने उनकी मजबूती को कायम रखने में मदद की है.

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संभल

संभल में भी कांग्रेस अमरोहा और मेरठ वाली रणनीति ही अपना रही है. पार्टी ने यहां मेजर जे.पी. सिंह, जो ठाकुर समुदाय से हैं, को टिकट दिया है और यह एक ऐसी सीट है जहां लगभग 50 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है.

महागठबंधन ने यहां से एसपी के दिग्गज नेता शफीकुर रहमान बर्क को मैदान में उतारा है. उनका सामना बीजेपी के परमेश्वर लाल सैनी से है.

अमरोहा की तरह संभल भी एक मजबूत महागठबंधन सीट के रूप में सामने आ रहा है.

रामपुर

रामपुर भी इसी कैटेगरी की एक सीट है, जहां एसपी के कद्दावर नेता मोहम्मद आजम खान अभिनेता से नेता बनीं जया प्रदा के सामने मैदान में हैं. जया प्रदा पहले एसपी से सांसद थीं जो अब बीजेपी के साथ हैं.

कांग्रेस ने एक ऐसी सीट जहां लगभग 50 प्रतिशत मुस्लिम हैं, सीनियर लीडर संजय कपूर को टिकट देकर मैदान में उतारा है. भूतपूर्व नवाबों, जो कांग्रेस के साथ हैं और कांग्रेस के धुर विरोधी हैं, के कुछ वफादार लोगों के अलावा बहुत कम मुसलमान ही होंगे जो आजम खान के खिलाफ वोट करेंगे.

ऐसा लगता है कि कांग्रेस आजम खान को यह सीट जीतने देने में खुश है.

कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवार

अब तक केवल नौ ही ऐसी सीटें हैं जहां से कांग्रेस ने मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया है, जैसा कि ऊपर मैप में लाल रंग में दर्शाया गया है.

चूंकि महागठबंधन लगभग पूरे के पूरे मुस्लिम वोट पर धाक लगाकर बैठा है, इसलिए ये वे नौ सीटें हैं जहां कांग्रेस गठबंधन को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती है.

गौर करने वाली बात ये है कि इन नौ सीटों में से छः सीटें- बिजनौर, सीतापुर, संत कबीर नगर, देवरिया और फरुखाबाद- बीेएसपी के कोटे में हैं और केवल तीन सीटें- बदायूं, मुरादाबाद और खीरी- एसपी के कोटे में हैं.

यहां दो पहलू हैं. पहला, कांग्रेस एसपी को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहती लेकिन बीेएसपी की कीमत पर अपना आधार फैलाने में इसे कोई परहेज नहीं है. इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता है क्योंकि बीएसपी सुप्रीमो मायावती पूरे चुनाव अभियान के दौरान कांग्रेस पर जमकर हमला करती रही हैं, जबकि अखिलेश यादव इस तरह की गतिविधि से बचते नजर आए हैं. बल्कि यह भी कहा गया कि अखिलेश यादव कांग्रेस को महागठबंधन में शामिल करने के पक्ष में थे.

दूसरा, कांग्रेस को उम्मीद है कि एसपी को बीएसपी की अपेक्षा मुसलमानों का ज्यादा समर्थन हासिल है इसलिए कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवारों को बीएसपी की सीटों के खिलाफ ज्यादा फायदा मिल सकता है.

मुस्लिम मतदाताओं से अपने वोट को न बटने देने की मायावती की खुली अपील का कारण ये फैक्टर्स और मुस्लिम वोटों के कांग्रेस में चले जाने का डर हो सकता है.

आइये डिटेल में इन सीटों पर नजर डालते हैं.

सहारनपुर

इस सीट पर बीजेपी के राघव लखनपाल, कांग्रेस के इमरान मसूद और बीएसपी के हाजी फजलुर रहमान के बीच तीन तरफा मुकाबला नजर आ रहा है. पहले चरण में शायद यह पहली सीट है जिसे कांग्रेस जीत सकती है. 2014 में मसूद ने बीजेपी के लखनपाल को एक अच्छी टक्कर दी थी और एसपी-बीएसपी दोनों को मिले वोटों से ज्यादा वोट प्राप्त किए थे, लेकिन इस बार हालात बदल चुके हैं.

महागठबंधन के बनने से मुस्लिम मतदाताओं में यह मेसेज गया है कि अगर बीजेपी को हराना है तो एसपी, बीएसपी और आरएलडी उम्मीदवारों को वोट करो. इसमें कोई हैरत की बात नहीं कि बीएसपी प्रमुख मायावती ने महागठबंधन को समर्थन देने लिए मुसलमानों से खुले तौर पर सहारनपुर के देवबंद में अपील की है.

सहारनपुर में बीजेपी के खिलाफ कम्पटीशन में दो चीजें हैं. पहली, रहमान और मसूद के बीच मुस्लिम वोटों की लड़ाई और दूसरी भीम आर्मी, जो यहां बहुत मजबूत है, और बीएसपी के बीच दलितों के बीच अपने प्रभाव की लड़ाई.

भीम आर्मी के नेता रविवार को देवबंद में महागठबंधन की विशालकाय रैली में मौजूद रहे, जिसे बीएसपी प्रमुख मायावती, एसपी प्रमुख अखिलेश यादव, आरएलडी अध्यक्ष अजित सिंह और जयंत चौधरी जैसे गठबंधन के टॉप लीडरों द्वारा संबोधित किया गया, लेकिन भीम आर्मी ने सहारनपुर में कांग्रेस के उम्मीदवार मसूद को समर्थन देने का फैसला किया है.

बिजनौर

बिजनौर में कांग्रेस महागठबंधन के साथ, खासतौर पर बीएसपी के साथ, सीधे-सीधे आमना-सामना करती हुई दिखाई देती है. पार्टी ने यहां बीएसपी के भूतपूर्व नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी को मैदान में उतारा है, जो कभी बीएसपी सुप्रीमो के करीबी सहायक हुआ करते थे.

सिद्दीकी यहां एक बाहरी व्यक्ति हैं क्योंकि वह बुंदेलखंड के बांदा से आते हैं लेकिन उन्हें मुस्लिम वोट मिलने की संभावना है जो अन्यथा महागठबंधन के उम्मीदवार मलूक नागर को जा सकता था.

नागर एक गुर्जर हैं और क्षेत्र में धनी और प्रभावी व्यक्ति होने के साथ एक मजबूत उम्मीदवार के रूप में जाने जाते हैं.

बीजेपी ने यहां से अपने मौजूदा सांसद कुंवर भारतेन्द्र सिंह को टिकट दिया है.

यहां महागठबंधन का गणित 40 प्रतिशत मुसलमानों, 17 प्रतिशत दलितों और साथ ही 7 प्रतिशत गुर्जरों पर आधारित है.

अगर सिद्दीकी यहां मुसलमानों का एक-तिहाई वोट पाने में कामयाब रहते हैं तो महागठबंधन को यहां जीत की उम्मीद रहेगी.

बदायूं

बदायूं में कांग्रेस ने एक मजबूत उम्मीदवार भूतपूर्व सांसद सलीम इकबाल शेरवानी को एसपी के धर्मेंद्र यादव के खिलाफ मैदान में उतारा है. धर्मेंद्र यादव अखिलेश के चचेरे भाई और मुलायम सिंह यादव के भतीजे हैं.

मुलायम सिंह के परिवार के सदस्यों के सामने कोई उम्मीदवार ना उतारने के फैसले को देखते हुए यह सीट कांग्रेस के लिए एक अपवाद है.

मजबूत गैर-मुस्लिम उम्मीदवार

इस कैटेगरी में 15 सीटें हैं. इसमें अमेठी और रायबरेली शामिल हैं, जहां महागठबंधन ने कांग्रेस परिवार एक लिए सम्मान व्यक्त करते हुए कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है.

अन्य बची 13 सीटों में कांग्रेस और महागठबंधन के बीच बातचीत के साथ-साथ कम्पटीशन की भी संभावना है. इन सीटों पर एसपी और बीएसपी के नजरिए में साफ अंतर नजर आता है. जबकि एसपी ने इनमें से कुछ सीटों पर कमजोर उम्मीदवार उतारे हैं, जहां कांग्रेस के लिए एक मौका है, वहीं बीएसपी इस रणनीति के साथ नहीं है.

एसपी कर रही है कांग्रेस की मदद

उदहारण के तौर पर, कानपुर में ऐसा कहा गया है कि एसपी ने कांग्रेस के श्रीप्रकाश जयसवाल के लिए लड़ाई आसान बनाते हुए एक कमजोर उम्मीदवार को टिकट दिया है. यह सीट वामपंथ का गढ़ हुआ करती थी, लेकिन 1990 में यह बीजेपी के हाथों में चली गई, जब तक कि जयसवाल ने 1999 में इसे अपने कब्जे में नहीं ले लिया. तबसे इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर देखी गई है, जबकि एसपी और बीएसपी यहां से कभी नहीं जीते हैं.

ऐसा लगता है कि एसपी यह समझ गई है और चुपचाप कांग्रेस की मदद करने का फैसला किया है. यहां तक कि 2017 विधानसभा चुनावों में भी, जिसमें कांग्रेस और एसपी गठबंधन में चुनाव लड़े थे, वे शहर में ज्यादातर सीटें जीतते हुए कानपुर में बीजेपी के रथ को रोकने में कामयाब रहे थे.

एक और सीट जहां ऐसा माना जा रहा है कि एसपी ने हल्का प्रयाशी मैदान में उतारा है, वह है उन्नाव, जहां अब कांग्रेस से अन्नू टंडन और मौजूदा सांसद साक्षी महाराज के बीच सीधी लड़ाई है.

कुशीनगर, जहां कांग्रेस के नेता आरपीएन सिंह मैदान में हैं, में भी एसपी ने एक कमजोर प्रत्याशी उतारा है. इससे आरपीएन सिंह और बीजेपी के विजय दुबे के बीच लगभग सीधी टक्कर होने की उम्मीद है.

आठ सीटें, जहां से कांग्रेस के गैर-मुस्लिम उम्मीदवारों के जीतने की सम्भावना है, एसपी के कोटे में आती हैं. एसपी ने इनमें से किसी भी सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा है, जो यह सूचित करता है कि पार्टी कांग्रेस को बहुत ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाना चाहती.

यहां तक कि खीरी जैसी लोकसभा सीट, जहां कांग्रेस उम्मीदवार जफर अली नकवी के लिए मौका बन सकता है, पर एसपी ने मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा नहीं किया है ताकि नकवी की संभावनाओं को नुकसान न पहुंचे.

बल्कि, अगर बदायूं और मुरादाबाद सीट को छोड़ दिया जाए तो एसपी और कांग्रेस एक-दूसरे को अन्य किसी सीट पर कुछ खास नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं.

बीएसपी बनाम कांग्रेस

दूसरी तरफ, बीसपा कांग्रेस को इसकी अहम सीट- धौरहरा में नुकसान पहुंचा सकती है. पार्टी ने यहां कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद के खिलाफ एक मुस्लिम उम्मीदवार अरशद अहमद सिद्दीकी को उतारा है. यहां 20 प्रतिशत मुस्लिम आबादी और 26 प्रतिशत दलित आबादी है जो बीएसपी को यहां मजबूत बनाता है.

धौरहरा और सहारनपुर ऐसी दो सीटें हैं, जहां बीएसपी कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकती है, ठीक वैसे ही जैसे कांग्रेस बीएसपी को बिजनौर, सीतापुर, संत कबीर नगर, देवरिया और फरुखाबाद की सीटों पर नुकसान पहुंचा सकती है.

इन समीकरणों से जो बड़ी तस्वीर सामने आती है वह यह है कि:

  • कांग्रेस महागठबंधन को 50 से ज्यादा सीटों पर नुकसान नहीं पहुंचा रही है. दरअसल कुछ सीटों पर यह गठबंधन की मदद कर सकती है.
  • कांग्रेस का एसपी और आरएलडी के साथ कम्पटीशन उतना कड़ा नहीं है जितना कि बीएसपी के साथ इसकी खींचतान.
  • कानपुर और उन्नाव जैसी सीटों पर एसपी चुपचाप कांग्रेस की मदद कर सकती है.
  • अगर वास्तव में कांग्रेस और महागठबंधन के बीच कुछ सीटों पर चुपचाप कोई डील हुई है तो बीजेपी उम्मीद से भी बेकार प्रदर्शन कर सकती है.

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