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Breast cancer Awareness Month 2023: ब्रेस्ट कैंसर महिलाओं को प्रभावित करने वाला सबसे आम कैंसर है. ब्रेस्ट कैंसर स्क्रीनिंग (पता लगाना), कैंसर से बचने या उसे जानलेवा बनने से रोकने का एक सरल उपाय है. स्क्रीनिंग के तरीकों में कुछ समय पहले एक बेहद आसान और सटीक तरीका जुड़ा है, मेडिकल टैक्टाइल एग्जामिन यानी एमटीई (MTE).
नेशनल एसोसिएशन ऑफ ब्लाइंड (एनएबी) इंडिया, साइंस की बुनियादी समझ और जानकारी रखने वाली नेत्रहीन महिलाओं को इस स्क्रीनिंग के लिए चुनती है और फिर उन्हें ब्रेस्ट कैंसर स्क्रीनिंग के लिए ट्रेन किया जाता है.
मेडिकल टैक्टाइल एग्जामिनर (MTE) ब्रेस्ट कैंसर का पता कैसे लगाती हैं? किस उम्र की महिलाओं को ये जांच करानी चाहिए? ब्रेस्ट कैंसर की पहचान करने में एमटीई कितना मददगार है? एमटीई से कितने लोगों को फायदा हुआ है? एमटीई की क्या सीमाएं हैं? इन सभी सवालों के जवाब को जानने के लिए फिट हिंदी ने एक्सपर्ट्स से बात की.
एमटीई आमतौर पर नेत्रहीन महिलाएं होती हैं, जिन्हें ब्रेस्ट कैंसर का शुरुआत में ही पता लगाने के लिए स्तनों की जांच के लिए प्रशिक्षित किया गया होता है. उन्हें ब्रेस्ट एनटमी, फिजियोलॉजी, कैंसर की अवस्थाओं और कैंसर का पता कैसे लगाया जाए, इन तमाम पहलुओं के बारे में काफी विस्तार से बताया जाता है.
एमटीई के लिए जर्मन रिहैबिलिटेशन सेंटर द्वारा मान्य एक परीक्षा पास करना जरूरी होता है. इसके बाद, उन्हें कुछ चुनिंदा अस्पतालों जैसे सी के बिड़ला, मेदांता और टाटा मेमोरियल अस्पताल में इंटर्नशिप करनी होती है.
डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा कहते हैं, "अक्सर यह देखा गया है कि अगर कोई महिला नियमित रूप से अपने ब्रेस्ट की जांच करती रहे, तो वह करीब 2 सेमी आकार की गांठ को खुद पकड़ सकती है यानी यह स्टेज 2 कैंसर होता है. वहीं अगर रूटीन क्लीनिकल ब्रेस्ट जांच करवाती रहें तो हेल्थकेयर वर्कर द्वारा 1 सेमी के आकार की गांठ का भी पता लगाने की संभावना बढ़ जाती है".
इस नई और कारगर तकनीक में कुछ दृष्टिहीन महिलाओं को ब्रेस्ट एग्जामिनेशन के लिए ट्रेन्ड किया जाता है, जो अपने हाथों से छूकर (Tactile Sensation) ब्रेस्ट में मौजूद लंप यानी गांठ के बारे में पता लगाती हैं. ट्रेनिंग के बाद इन दृष्टिहीन महिलाओं को मेडिकल टैक्टाइल एग्जामिनर यानी कि एमटीई कहा जाता है.
भारत में, ब्रेस्ट कैंसर की सबसे प्रमुख उम्र (पीक एज) 45 वर्ष है, इसलिए स्क्रीनिंग की शुरुआत कम से कम दस साल पहले यानी लगभग 30-35 साल की उम्र से हो जानी चाहिए.
डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा फिट हिंदी से इसका कारण बताते हुए कहते हैं, "इसका कारण यह होता है कि युवतियों के स्तन में मिल्क डक्टल टिश्यू काफी अधिक संख्या में मौजूद होते हैं. इनकी वजह से मैमोग्राम में कैंसर का पता लगाना आसान नहीं होता. मेनोपॉज के बाद, 45-50 साल की महिलाओं में, जब स्तन में ये टिश्यू घटने लगते हैं और इनकी जगह फैट यानी चर्बी ले लेती है, तब मैमोग्राम से ब्रेस्ट कैंसर का पता शुरू में ही लग जाता है.
ब्रेस्ट कैंसर का पता शुरुआत में ही लगाने के लिए डॉक्टर हमेशा सेल्फ-ब्रेस्ट एग्जामिनेशन (एसबीए) की सलाह देते हैं यानी अपने स्तनों को भली-भांति देखना और उन्हें हाथों और उंगलियों से महसूस करना.
इस कारण युवतियों को किसी हेल्थकेयर वर्कर जैसे डॉक्टर, गायनेकोलॉजिस्ट या ट्रेन्ड नर्स से हर 6 महीने में या एक साल में अपनी जांच करवाने की सलाह दी जाती है. ऐसे में एमटीई बेहद मददगार साबित होती हैं.
एक्सपर्ट आमतौर पर सभी आयुवर्ग की महिलाओं के मामले में इस जांच की सिफारिश करते हैं. रूटीन जांच 30-35 वर्ष की उम्र से शुरू हो जानी चाहिए, लेकिन अच्छा तो यह होगा कि सभी आयुवर्ग के लिए इस प्रकार की जांच की जाए.
ब्रेस्ट कैंसर के मामले अब कम उम्र की युवतियों जैसे कि 26-27 साल, में भी सामने आने लगे हैं और यहां तक कि उनमें भी गैर-कैंसरकारी (बिनाइन) गांठ दिखायी देने लगी है.
डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा कहते हैं,
मेडिकल टैक्टाइल एग्जामिनेशन (एमटीई) प्रशिक्षित एग्जामिनर द्वारा किया जाता है. यह उसी प्रकार से किया जाता है, जैसे कि खुद ब्रेस्ट की जांच की जाती है, बस इतना अंतर होता है कि यह जांच प्रशिक्षित प्रोफेशनल्स द्वारा की जाती है, जो ब्रेस्ट के हर भाग की पूरी गहराई के साथ जांच करती हैं. इस जांच में, ब्रेस्ट को एनटॅमी के आधार पर अलग-अलग भागों में बांटा जाता है ताकि कोई भी भाग छूट न जाए.
डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा बताते हैं कि सी के बिड़ला अस्पताल में, कोविड-19 से पहले एमटीई टेस्ट शुरू हो गया था. चूंकि इस प्रक्रिया में स्पर्श जरूरी होता है, इसलिए कोविड के समय इसे रोक दिया गया था.
डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा आगे कहते हैं कि एमटीई जांच कर इस बात की पुष्टि करती हैं कि सब नॉर्मल है या नहीं. अगर उन्हें सब नॉर्मल लगता है, तो आपको अल्ट्रासाउंड या मैमोग्राम की जरूरत नहीं होती.
एमटीई काफी एफॉर्डेबल प्रक्रिया है. एमटीई आपको सही तरीके से सेल्फ-एग्जामिनेशन के बारे में सिखाती हैं. इस तरह, से अपने सीमित संसाधनों में ही लोग इनकी सेवाओं का सही लाभ ले पाते हैं.
एक्सपर्ट के अनुसार, एमटीई से कोई नुकसान नहीं होता है पर हां, एक एमटीई हर दिन केवल 5 से 6 जांच ही कर पाती हैं और प्रत्येक महिला की जांच में औसतन 40 मिनट का समय लगता है.
डॉ. सीमा सहगल आगे कहती हैं, "लेकिन यह नहीं कहा जा सकता है कि यह मैमोग्राफी से बेहतर तकनीक है क्योंकि ब्रेस्ट कैंसर जांच में मैमोग्राफी की अपनी भूमिका और महत्व है. हां, इतना जरूर है कि एमटीई ब्रेस्ट कैंसर का शुरुआती अवस्था में पता लगाने का अच्छा विकल्प होता है".
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