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Breast Cancer Awareness Month: युवा महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर (Breast Cancer) के मामले बढ़ रहे हैं. हर 29 में से 1 महिला को ब्रेस्ट कैंसर का खतरा है. WHO के अनुसार, साल 2020 में दुनिया भर में 23 लाख महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर हुआ और इसकी वजह से 6.85 लाख से अधिक महिलाओं की जान चली गयी. ऐसे में आशंका है कि भारत में ब्रेस्ट कैंसर के मरीजों की संख्या साल 2025 में 2.32 लाख हो जाएगी.
पूरी दुनिया में अक्टूबर महीना, ब्रेस्ट कैंसर अवेयरनेस मंथ के रूप में मनाया जाता है. आइए जानते हैं डॉक्टर से क्या है ब्रेस्ट कैंसर? भारतीय महिलाओं में किस उम्र से शुरू हो जाता है? ब्रेस्ट कैंसर के लक्षण, रिस्क फैक्टर और इससे बचने के लिए क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?
ब्रेस्ट में शुरू होने वाला कैंसर, चाहे वह किसी भी प्रकार का हो, ब्रेस्ट कैंसर कहलाता है. यह किसी एक या दोनों ब्रेस्ट में हो सकता है. जब सेल्स में वृद्धि अनियंत्रित होती है, तो इसे कैंसर कहते हैं. यह ज्यादातर महिलाओं को प्रभावित करता है लेकिन पुरुषों में भी ब्रेस्ट कैंसर हो सकता है.
यह भी जानना जरूरी है कि ब्रेस्ट में होने वाली हर गांठ ब्रेस्ट कैंसर नहीं होती है. इनमें ज्यादातर बिनाइन होती हैं. वास्तव में, ये असामान्य विकास है और अक्सर यह लाइफ थ्रेटनिंग नहीं होता. लेकिन कई बार कुछ बिनाइन भी ब्रेस्ट कैंसर की आशंका बढ़ा सकते हैं.
डॉक्टर के अनुसार, भारत में ब्रेस्ट कैंसर के मरीजों के बचने की संभावना इसलिए कम होती है क्योंकि यहां इसका पता देर से चलता है. इसलिए, मरीज की जीवन रक्षा के लिए जरूरी है कि इसका पता शुरुआती स्टेज में चले.
म्यूटेबल
जो फैक्टर हमारे नियंत्रण में होते हैं उन्हें म्यूटेबल कहा जाता है, जैसे:
शारीरिक शिथिलता यानी फिजिकल इनएक्टिविटी- अगर किसी की फिजिकल एक्टिविटी कम है, तो उनमें ब्रेस्ट कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है.
मोटापा- अगर कोई मोटापे का शिकार है, तो भी ब्रेस्ट कैंसर की आशंका अधिक होती है, खासतौर से मेनपॉज के बाद ऐसा अधिक होता है.
हार्मोनल थेरेपी– कुछ महिलाएं गर्भनिरोधक गोलियां लेती हैं और इनकी वजह से भी ब्रेस्ट कैंसर का जोखिम बढ़ता है. लेकिन ऐसा कुछ ही अध्ययनों में पाया गया है और हरेक को ब्रेस्ट कैंसर का जोखिम नहीं होता.
लेट प्रेगनेंसी- 30 साल की उम्र के बाद प्रेग्नेंट होने वाली महिलाओं में भी इसकी आशंका बढ़ जाती है. ब्रेस्ट फीड नहीं करना- शिशु को ब्रेस्ट फीड नहीं करवाने वाली महिलाओं में भी इसका खतरा बढ़ जाता है.
खराब लाइफस्टाइल- शराब और सिगरेट पीना भी जोखिम बढ़ाते हैं, स्ट्रेस भी हानिकारक है.
इम्यूटेबल
जो फैक्टर्स हमारे नियंत्रण में नहीं हों उन्हें इम्यूटेबल कहा जाता है.
बढ़ती उम्र- इम्यूटेबल रिस्क फैक्टर्स में उम्र बढ़ने के साथ जोखिम बढ़ना प्रमुख है, लेकिन यह सभी पर लागू नहीं होता है.
जीन्स में म्यूटेशंस- जीन्स में म्यूटेशंस से भी कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है.
अर्ली पीरियड्स- जब पीरियड्स कम उम्र में यानी 12 से छोटी उम्र में शुरू हो गया हो.
लेट मेनोपॉज- जब मेनोपॉज देर से यानी 55 साल की उम्र के बाद शुरू हो.
अधिक ब्रैस्ट डेंसिटी- जोखिम का कारण ब्रैस्ट डेंसिटी भी है. अगर ब्रेस्ट सेल अधिक डैन्स होते हैं, तो कई बार मैमोग्राम से ट्यूमर्स का पता नहीं चल पाता और ऐसे में कई बार ये पकड़ में नहीं आते.
जेनेटिक कारण- नजदीकी रिश्तेदारों जैसे कि बहन, मां, बेटी या मां अथवा पिता के परिवारों में एकाधिक सदस्यों को ब्रेस्ट कैंसर या ओवेरियन कैंसर की शिकायत रही हो तो भी आपका जोखिम बढ़ सकता है.
डॉ नूपुर गुप्ता ने फिट हिंदी को बताया कि ऐसा जरुरी नहीं है कि हर महिला में ब्रेस्ट कैंसर के लक्षण एक जैसे हों. अलग-अलग औरतों में लक्षण अलग-अलग देखे जाते हैं.
ब्रेस्ट में या बगल में गांठ
ब्रेस्ट की त्वचा में किसी प्रकार का बदलाव होना और उसकी वजह से त्वचा में जलन या खुजली होना त्वचा भीतर की तरफ मुड़ना
निप्पल के आसपास की त्वचा में लाली दिखना
निप्पल अंदर की ओर मुड़ जाना
निप्पल से डिस्चार्ज
ब्रेस्ट के साइज या शेप में किसी प्रकार का बदलाव
ब्रेस्ट में दर्द, हालांकि आमतौर पर ब्रेस्ट में दर्द ब्रेस्ट कैंसर के सबसे आखिर में उभरने वाले लक्षणों में से है.
हमें हमेशा इन लक्षणों को लेकर सजग रहना चाहिए और इनका आभास होते ही जांच करवानी चाहिए. इनकी वजह से परेशान होने की बजाय तुरंत डॉक्टर से मिलें.
डॉक्टर आगे कहती हैं, "लेकिन कुछ पहलू ऐसे होते हैं, जिन पर कंट्रोल रखा जा सकता है". वे हैं:
स्वस्थ वजन
शारीरिक रूप से सक्रिय
शराब का सीमित मात्रा में सेवन
हार्मोनल गर्भनिरोधक गोलियां जैसे कि बर्थ कंट्रोल पिल्स या हार्मोनल थेरेपी या इंट्रायूटरिन डिवाइस का इस्तेमाल अपने डॉक्टर से पूछ कर करना.
अपने शिशुओं को ब्रेस्ट फीड कराना
परिवार में ब्रेस्ट कैंसर का इतिहास रहा हो, तो भी अपने डॉक्टर से पता करें कि आपको क्या करना चाहिए और आपको किस प्रकार की सावधानियां बरतनी चाहिए या आपको किस तरह की जांच करवानी चाहिए ताकि ब्रेस्ट कैंसर से बचाव हो सके.
अगर डॉक्टर को ब्रेस्ट में कोई गांठ मिलती है या निप्पल से डिस्चार्ज और ब्रेस्ट की त्वचा या टिश्यू में किसी प्रकार का बदलाव दिखायी देता है, तो वो आपको क्लीनिकल जांच के आधार पर कुछ टेस्ट कराने का सुझाव देते हैं. यह ब्रेस्ट का अल्ट्रासाउंड या मैमोग्राफी हो सकता है. अगर मरीज की उम्र 40 वर्ष से कम है, तो ब्रेस्ट अल्ट्रासाउंड ज्यादा उपयुक्त होता है और 40 वर्ष से अधिक की उम्र में मैमोग्राफी बेहतर होता है.
अगर अल्ट्रासाउंड या मैमोग्राम से ब्रेस्ट में गांठ का पता चलता है, तो डॉक्टर ब्रेस्ट से सेल्स या तरल द्रव्य का नमूना लेकर माइक्रोस्कोप की मदद से उसकी जांच करवाने की सलाह देते हैं. इसे FNAC या फाइन नीडल एस्पीरेशन साइटोलॉजी कहते हैं.
कुछ डॉक्टर टिश्यू को बेहतर तरीके से जांचने के लिए टू कट बायोप्सी की सलाह भी देते हैं. इन दिनों वैक्यूम-असिस्टेड बायोप्सी भी उपलब्ध है जिसे ओपीडी में भी करवाया जा सकता है. कुछ महिलाओं के मामले में कई बार ब्रेस्ट की एमआरआई जांच भी उपयोगी होती है, खासतौर से उस स्थिति में जबकि निदान को लेकर संदेह हो.
डॉ. नूपुर कहती हैं," ब्रेस्ट कैंसर के इलाज को कई भागों में बांटा गया है और अधिकांश महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर होने पर सर्जरी और अतिरिक्त इलाज की जरुरत होती है, जो कि सर्जरी से पहले या सर्जरी के बाद दिया जाता है. लेकिन डॉक्टर ही यह तय करेंगे कि मरीज के मामले में क्या सही है और इसका फैसला कैंसर के स्टेज, ग्रेड, ब्रेस्ट कैंसर के साइज, और हार्मोनों के प्रति टिश्यू की संवेदनशीलता जैसे कई पहलुओं पर निर्भर करेगा. साथ ही, मरीज के संपूर्ण स्वास्थ्य और उसकी प्राथमिकताओं को भी ध्यान में रखकर यह फैसला किया जाता है".
डॉक्टर के अनुसार, पुरुषों को भी हो सकता है. महिला हो या पुरुष, यदि उनके ब्रेस्ट हैं, तो वे ब्रेस्ट कैंसर के शिकार बन सकते हैं. पुरुषों में अपने जीवनकाल में ब्रेस्ट कैंसर की संभावना प्रति एक हजार में लगभग एक होती है. महिलाओं की तुलना में यह काफी कम है.
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