World Breastfeeding Week 2023: प्रीटर्म बेबी यानी जो गर्भावस्था के 37 सप्ताह से पहले पैदा हो जाता है. जितनी जल्दी बच्चा पैदा होता है, उसके शरीर के प्रत्येक अपरिपक्व अंग (immature organs) के साथ और भी अधिक समस्या होने की आशंका होती हैं. ऐसे बच्चों को उचित सुविधा मुहैया कराना, गर्भावस्था के दौरान मां को स्टेरॉयड उपचार देना, डिलीवरी के बाद देरी से गर्भनाल काटना, शुरुआत में ठीक से सांस लेने के लिए सपोर्ट और प्रारंभिक पोषण शुरू करना कुछ प्रमुख हस्तक्षेप हैं, जिसकी सहायता से 25 सप्ताह तक के समय से पहले जन्में शिशुओं को भी बचाना संभव होता है.
विश्व स्तनपान सप्ताह पर मैं समय से पहले पैदा हुए नाजुक शिशुओं के लिए उचित और समय पर दूध पिलाने के महत्व पर प्रकाश डालने जा रहा हूं.
मां का दूध है जीवन का अमृत
एक मानव शिशु के लिए मां के दूध से ज्यादा महत्वपूर्ण और कुछ भी नहीं हो सकता है. यह आसानी से पचने योग्य है और इसमें सभी आवश्यक पोषक तत्व (अच्छे विकास के लिए), संक्रमण-रोधी तत्व (जन्म से संक्रमण से सुरक्षा के लिए), हार्मोन और विकास कारक (चयापचय को बनाने करने के लिए) शामिल हैं.
डब्ल्यूएचओ (WHO) सहित सभी साइंटिफिक बॉडी ने दशकों से सभी शिशुओं को उनके जन्म के पहले घंटे के भीतर मां का दूध उपलब्ध कराने को 'गोल्डन ऑवर' लाभ कहा है.
बच्चा जितना छोटा पोषण की आवश्यकता उतनी अधिक
बच्चा बहुत छोटा है या समय से पहले पैदा हुआ है, तो स्तनपान के माध्यम से सीधे स्तन का दूध उपलब्ध कराना संभव नहीं हो सकता है और इस प्रकार, उन्हें अस्पताल और घर दोनों में वैकल्पिक आहार के तरीकों की आवश्यकता होती है. मां के दूध में प्रोटीन, खनिज और वसा अधिक होता है, जो शारीरिक और मानसिक विकास को सुनिश्चित करता है.
समय से पहले जन्में बच्चे के लिए दूध कैसे उपलब्ध कराएं?
समय से पहले जन्में बच्चे को कोलोस्ट्रम प्रदान करने के लिए जन्म के बाद जितनी जल्दी हो सके, मां का दूध देना शुरू कर देना चाहिए, जिसे अक्सर बच्चे का पहला टीकाकरण कहा जाता है, क्योंकि यह जीवित प्रतिरक्षा कोशिकाओं और एंटीबॉडी से भरा होता है.
समय से पहले जन्में बच्चे के लिए दूध इकट्ठा करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है. हालांकि, थोड़े से प्रयास से, अधिकांश माताएं अपने बच्चे को जीवन की अच्छी शुरुआत प्रदान कर सकती हैं. समय से पहले जन्में बच्चों को अक्सर अलग-अलग अवधि के लिए अपनी मां से अलग कर दिया जाता है, जिससे उन्हें अपनी मां का दूध पिलाना एक मुश्किल प्रक्रिया बन जाती है.
अधिकांश अस्पतालों में माताओं को मैन्युअल रूप से या इलेक्ट्रिक ब्रेस्ट पंप के माध्यम से दूध निकालने के लिए सुविधाजनक व्यवस्था दी जाती है.
दूध को तत्काल उपयोग के लिए एक स्टेराइल कप में या बाद में उपयोग के लिए साफ और बंद स्टेनलेस स्टील या कांच के कंटेनर में जमा किया जाता है और एक ठंडे बक्से में नर्सरी में ले जाया जाता है. इसे 24 घंटों के भीतर उपयोग करने के लिए फ्रीज किया जा सकता है और 6 महीने तक उपयोग करने के लिए फ्रोजन भी किया जा सकता है. पर्याप्त दूध की आपूर्ति प्रदान करने के लिए हर 2 से 3 घंटे में स्तन के दूध को पूरी तरह से निकालना आवश्यक है.
गर्म सेक लगाने से स्तनों को नरम करके और दूध नलिकाओं को फैलाकर दूध निकालने में मदद मिलती है. रक्त जमाव के कारण होनेवाले दर्द के मामले में, माताएं दूध पिलाने से पहले पेरासिटामोल जैसे हल्के एनाल्जेसिक का उपयोग कर सकती हैं.
दूध की अच्छी आपूर्ति बनाए रखने के लिए, माताओं को कंगारू देखभाल (त्वचा-से-त्वचा का सीधा संपर्क) प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जो न केवल दूध की कमी को खत्म करता है, बल्कि बच्चों में बेहतर वजन बढ़ाने में भी मदद करता है.
नवजात को आईसीयू के अंदर दूध पिलाने की प्रक्रिया
समय से पहले जन्में बच्चों का पेट छोटा होता है, इसलिए वे एक समय पर थोड़ी मात्रा में ही फीड कर पाते हैं. शुरुआत में उन्हें प्रति आहार 1-2 मिलीलीटर मां का दूध/दाता का दूध दिया जाता है और पूर्ण आहार तक पहुंचने के लिए इस मात्रा को 5 से 7 दिनों में धीरे-धीरे बढ़ाया जाता है.
समय से पहले जन्में शिशुओं में कोई ऊर्जा भंडार नहीं होता है और इसलिए उनके शुगर को सामान्य सीमा में बनाए रखने के लिए उन्हें मापी गई मात्रा में भोजन और तरल पदार्थ दिए जाते हैं. पाचन तंत्र इमेच्योर और फीड इनटॉलेरेंस होने के कारण उल्टी और पेट में गड़बड़ी होना आम बात है.
एक बार पूर्ण आहार लेने के बाद, उन्हें पूरक (विटामिन डी, कैल्शियम, आयरन और दूसरे विटामिन) प्रदान किए जाते हैं, जो वजन बढ़ाने और विकास को गति देने की प्रक्रिया को शुरू करते हैं.
कई तरह के उथल-पुथल के साथ पूरी प्रक्रिया धीमी होती है, इसलिए माता-पिता को एक हेल्थ केयर टीम के समर्थन और मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है. ट्यूब फीड से लेकर चम्मच फीड तक इन्फेक्शन होने की स्थिति में कुछ शिशुओं को चूसने-निगलने की प्रतिक्रिया से तालमेल बैठाने में अधिक समय लग सकता है, जो 34 सप्ताह तक विकसित होता है.
इस चिंताजनक दौर से उबरने के लिए धैर्य बनाए रखना जरुरी है.
34 सप्ताह की मैचुरिटी और 1400 ग्राम के अनुमानित वजन पर, बच्चों को उनकी चूसने-निगलने-सांस लेने की क्षमताओं की जांच करने और स्तनपान के प्रोत्साहन के लिए नॉन-न्यूट्रिटिव सकिंग की अनुमति दी जा सकती है. सीधे स्तनपान तभी शुरू किया जा सकता है, जब बच्चे में चूसने और निगलने की तीव्र प्रतिक्रिया विकसित हो जाए और उसका वजन 1700 ग्राम से अधिक हो जाए.
क्या ऐसी कोई चीज है, जो दूध की आपूर्ति में सुधार कर सकती है?
यह एक प्रश्न है, जो अक्सर कई परेशान नई मांए पूछती हैं. यहां उनके लिए कुछ सुझाव दिए गए हैं.
हर दिन 4-5 लीटर तरल पदार्थ का पर्याप्त सेवन (सभी स्वस्थ पौष्टिक तरल पदार्थ) करें.
अनाज, दालें, सब्जियां, फल, दूध और मुर्गी का संतुलित आहार लें.
अधिक चीनी, मसाले, वसायुक्त भोजन और शराब से बचें.
जब भी संभव हो पर्याप्त नींद लें.
बहुत अधिक लोगों से मिलने जुलने से बचें (मां और बच्चे को दूध पिलाने के लिए गोपनीयता की आवश्यकता होती है).
आयरन, कैल्शियम, विटामिन डी और जिंक की खुराक 6 महीने तक लेनी चाहिए.
किसी भी हाल में बोतल से दूध पिलाने के प्रलोभन से बचें!
नवजात शिशुओं को विशेष रूप से जीवन के पहले महीने में स्तन का दूध देने के लिए बोतल का उपयोग करने से बचना महत्वपूर्ण है. इससे नवजात बच्चा भ्रमित हो सकता है, क्योंकि स्तन और बोतल से चूसने की तकनीक बहुत अलग होती है. इससे बाद में हो सकता है कि बच्चा स्तन की अपेक्षा बोतल से दूध पीना पसंद करने लगे और बाद में स्तनपान करे ही नहीं.
सुनिश्चित करें कि दूध पिलाने के दौरान स्तन से बच्चे की नाक बाधित न हों और जब तक शिशु और मां को सबसे आरामदायक स्थिति की पहचान नहीं हो जाती, तब तक दूध पिलाने के लिए अलग-अलग स्थितियों का प्रयोग करें. समय से पहले जन्म लेनेवाले अधिकांश शिशुओं को हर 2 से 3 घंटे में तब तक दूध पिलाया जाता है जब तक कि उनका वजन 2.5 किलोग्राम तक नहीं पहुंच जाता है. यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि दूध पिलाते समय शिशु सतर्क, जगा हुआ और शांत रहे.
'मां का दूध सबसे अच्छा उपहार है, जो आप अपने बच्चे को दे सकते हैं. यह प्यार, स्वास्थ्य और खुशी का उपहार है.'
(यह आर्टिकल चंडीगढ़, क्लाउड नाइन ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स में सीनियर कंसलटेंट- बाल रोग विशेषज्ञ और नियोनेटोलॉजिस्ट- डॉ. महेश हीरानंदानी, एमडी (पीजीआई) ने फिट हिंदी के लिये लिखा है.)
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