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खुल कर ‘बातचीत’ करना और 'विश्वास' बनाए रखना एक अच्छे रिश्ते के लिए बहुत जरूरी हैं.
हम खुद को शब्दों और कार्यों के माध्यम से व्यक्त करने में सक्षम हैं, फिर भी हम में से कई लोग खुलकर अपनी बात नहीं करते और उम्मीद करते हैं कि हमारे पार्टनर हमारे दिमाग को पढ़कर समझ जाएंगे कि हम कैसा महसूस करते हैं.
मैंने खुद इस वजह से रिश्तों और दोस्ती को टूटते देखा है. मुझे लोग अक्सर कहते हैं कि मैं "ओवर शेयर" करती हूं और "बहुत एक्स्प्रेसिव" हूं. मेरे लिए अपनी फीलिंग्स को एक्सप्रेस करना कभी मुश्किल नहीं रहा है, लेकिन जब दूसरे ऐसा नहीं करते हैं, तो परेशानी हो जाती है.
हमें लगता है कि हमें हल्के में लिया जा रहा है या हमारी भावनाओं को समझा नहीं जा रहा है, अनसुना महसूस करना बहुत खराब होता है.
द काइट रनर नामक किताब में, खालिद होसैनी लिखते हैं, "जो लोग अपनी हर बात मीन (mean) करते हैं, वे सोचते हैं कि हर कोई ऐसा करता है."
ये शब्द भले ही हार्टब्रेकिंग हों, लेकिन क्या आप कह सकते हैं कि ये सही नहीं हैं?
"जब ऐसा नहीं होता है, या इस तरह से होता है, जिसकी आपको उम्मीद नहीं थी, तो क्रोध, हताशा, और रिजेक्ट किए जाने की भावना को पैदा हो सकती है. इससे रिश्ता और खराब हो जाता है और पार्टनर्स के बीच दूरी बढ़ जाती है," डॉ अजित पात्रा ने बताया.
तो फिर क्यों अभी भी कई लोग खुल कर अपनी बात रखने में संकोच करते हैं, जबकि हम सब जानते हैं कि अच्छे रिश्ते के लिए यह कितना जरूरी है?
क्या इसके पीछे का कारण डर है? हिचकिचाहट? या शायद उन्हें लगता हो कि वे अपने फीलिंग सही तरीके से एक्स्प्रेस नहीं कर पाएंगे.
क्या होता है जब काम स्पष्ट नहीं होता? आउटपुट वो नहीं आता जो चाहिए था और बार-बार बदलावों की आवश्यकता पड़ती है. यह फ्रस्ट्रेटिंग हो जाता है, है ना?
उसी तरह, रिश्ते में एकतरफा या अधूरे रूप से एक्सप्रेस किये गये कम्युनिकेशन में स्पष्टता का अभाव होता है, जिससे टकराव या अनावश्यक बाधाएं आती हैं, जबकि पहले ही इनसे आसानी से निपटा जा सकता था.
अजीत पात्रा ने बताया, "हेल्दी कम्युनिकेशन एक ऐसी चीज है, जो संघर्ष शुरू करने के बजाय दोनों के लिए बातचीत और समझौते का रास्ता बनाती है."
उन्होंने यह भी बताया कि खुल कर बातचीत "गुड कॉन्फ्लिक्ट" शुरू कर सकता है, जो गलतफहमियों को दूर करने में मदद करेगा और कपल के बीच विश्वास को बढ़ाएगा, जिससे लंबे समय तक चलने वाला और खुशहाल रिश्ता बन सकता है.
आज कल की युवा पीढ़ी लेबल से बचती है, ताकि जवाबदेही लेने से बच सकें, और संघर्ष को एक 'टॉक्सिक' चीज के रूप में देखते हैं.
क्योंकि, यह कहना कि 'हमें एक दूसरे को जवाब देने की जरूरत नहीं है क्योंकि हम वास्तव में एक साथ नहीं हैं,' ज्यादा आसान है.
मैं कोई विशेषज्ञ नहीं हूं, लेकिन डॉ अजित पात्रा के अनुसार, दो महत्वपूर्ण तरीके हैं, जो कम्युनिकेशन सुधारने में मदद कर सकते हैं:
कम्यूनिकेट करते समय अधिक असर्टिव होना
"बिना रुकावट पैदा किए पार्टनर की बात सुनना (जब तक कि रुकावट बिल्कुल आवश्यक न हो) निश्चित रूप से दूसरे व्यक्ति को खुश करेगा क्योंकि उन्हें नहीं लगेगा कि उनकी फीलिंग का अनदेखा नहीं किया जा रहा है और वे सुरक्षित महसूस करेंगे. इससे सुनने वाले को भी बिना किसी रुकावट के जवाब देने में मदद मिलेगी," डॉक्टर ने जोड़ा.
डॉ पात्रा ने कहा, "असर्टिव कम्युनिकेशन का मतलब है कि आप जानते है कि आपको क्या बोलना है या कैसे प्रभावी ढंग से अपनी बात रखनी है, और दोष दिए जाने पर भी आप बिना सीमाओं को पार किए अपनी बात अच्छे से एक्स्प्रेस कर पाते हैं".
अच्छी तरह से कम्यूनिकेट नहीं कर पाना हमेशा किसी की गलती नहीं होती है. बहुत से लोग वास्तव में अपने विचारों को शब्दों के रूप में या कार्यों के माध्यम से एक्स्प्रेस करने के लिए संघर्ष करते हैं, और इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं. यह एक ‘नेगलेक्टेड चाइल्ड’ होने का चाइल्डहुड ट्रॉमा हो सकता है, यह सही तरह से एक्स्प्रेस नहीं कर पाने के कारण अपने पार्टनर को खोने का डर हो सकता है, यह कुछ भी हो सकता है.
"यदि आप कोई समाधान नहीं दे सकते हैं, तो कोई बात नहीं, लेकिन जब वे खुद को व्यक्त करने की कोशिश कर रहे हों, तो अपने पार्टनर की आलोचना करके, ताना देकर या मजाक करके समस्या को और न बढ़ाएं," डॉ पात्रा ने कहा.
निष्कर्ष में, डॉ पात्रा ने कहा, "अगर आपको लगता है कि आपके पार्टनर को साइकॉलजिस्ट की मदद की जरूरत है, तो कृपया उन्हें बिना किसी झिझक के ले जाएं."
कभी-कभी मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे कॉग्निटिव एबिलिटी को प्रभावित कर सकते हैं और सिर्फ काउंसलिंग पर्याप्त नहीं है. हालांकि दवाएं इस स्थिति में सहायक हो सकती हैं, वास्तव में आपके पार्टनर को सबसे ज्यादा जरूरत आपकी है.
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