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सोशल मीडिया से जुड़ी दुनिया की एक बड़ी आबादी 'क्वाइट क्विटिंग' (Quiet Quitting) नाम का एक ट्रेंड, जो कि नया नहीं पर, नए तरीके से सामने आया है से प्रभावित हो रही है.
दुनिया भर में बड़ी तादाद में युवा ऑफिस में वर्क कल्चर के बढ़ते दबाव और निजी जिंदगी में दखल के कारण या तो नौकरी छोड़ रहे हैं या सिर्फ उतना ही काम कर रहे हैं और काम को समय दे रहे हैं, जितने की उन्हें सैलरी मिलती है.
ऑफिस का काम और उससे जुड़े स्ट्रेस को अनुभव लगभग सभी ने किया होता है. ऐसा नहीं है कि स्ट्रेस बस ऑफिस के काम से ही होता या बढ़ता है. हमारी लाइफस्टाइल, बढ़ती महंगाई, आसपास का माहौल, रिश्ते और भी न जाने क्या-क्या स्ट्रेस के कारण होते है.
पर ऑफिस का स्ट्रेस एक ऐसा बुरा अनुभव है, जिसका कोई हल न निकाला जाए तो हर दिन और सालों साल उससे जूझना पड़ सकता है. जिसका बुरा असर केवल उस व्यक्ति के हेल्थ पर नहीं बल्कि परिवार, समाज और देश की अगली पीढ़ी पर भी पड़ता है.
बढ़ते स्ट्रेस और घटते वर्क लाइफ बैलेंस ने टिक-टॉक एप पर लगायी गयी 'क्वाइट क्विटिंग' (Quiet Quitting) की चिंगारी को आग में घी देने का काम किया है.
आइए जानते हैं कि क्वाइट क्विटिंग ट्रेंड कहां से और कैसे शुरू हुआ? क्वाइट क्विटिंग पर क्या है यंग प्रोफेशनल्स और साइकोलॉजिस्ट का कहना.
सोशल मीडिया पर चल रहे ट्रेंड और उससे जुड़े वाद-विवाद की मानें तो युवाओं का एक बड़ा वर्ग कहता है कि ऑफिस का वातावरण उनके मुताबिक नहीं है और वो काम के प्रेशर से जूझ रहे हैं. काम के प्रेशर की वजह से लोग अपने परिवार और ऑफिस के बीच संतुलन नहीं बना पा रहे हैं, जिसकी वजह से वो डिप्रेशन में जा रहे हैं.
दूसरी ओर कुछ लोगों का ये भी कहना है कि ये आलस्य को बढ़ावा देने वाला ट्रेंड है. कम काम करने का बहाना खोजने वाले इसे ट्रेंड का नाम दे रहे हैं.
इस ट्रेंड की शुरुआत सोशल मीडिया एप टिक-टॉक से हुई. एक टिक-टॉक इनफ्लुएंसर ने इसे शुरू किया, जिससे देखते ही देखते लोग जुड़ते चले गए. टिक-टॉक इनफ्लुएंसर ने वीडियो के माध्यम से लोगों को बताया कि अगर आप काम का ज्यादा प्रेशर ले रहे हैं, तो आप 'क्वाइट क्विटिंग' (Quiet Quitting) को जरूर अपनाएं.
इसमें बताया गया है कि जितनी आपकी सैलरी है, कंपनी को उतना ही समय देने की जरूरत है. उससे ज्यादा समय देकर आप अपनी पर्सनल लाइफ को नुकसान पहुंचा रहे हैं. दिन के 8 घंटे की जॉब को 12-14 घंटे देना गलत है.
ऑफिस में चाहे जितना भी हो काम आप अपने समय के मुताबिक काम खत्म करें. अगर काम पूरा नहीं होता है और आपकी छुट्टी का समय हो जाता है, तो आप अपने घर निकल जाए, बचा हुआ काम कल हो जाएगा.
गुरुग्राम के पीआर एजेंसी (PR Agency) में काम करने वाली मानवी फिट हिंदी को बताती हैं, "Quiet Quitting ट्रेंडिंग इसलिए है, क्योंकि अब लोग वर्क लाइफ बैलेंस की खोज में हैं. वो पूरा-पूरा दिन बैठकर ऑफिस का काम नहीं करते रहना चाहते. जिंदगी में और भी जरूरी बातें हैं, जिस पर वो ध्यान देना चाहते हैं. और उसके लिए जरूरी है वक्त. इसलिए जहां वर्कलोड हद से ज्यादा हो जाता है, वहां लोग धीरे-धीरे Quiet Quitting अपनाने लगते हैं".
"Quiet Quitting पॉजिटिव नहीं है, क्योंकि ये नौकरीपेशा लोगों में निराशा और उम्मीद की किरणों के मध्यम होने का प्रतीक है. ग्रोथ और सफलता से मुंह मोड़ने का ट्रेंड है और इसके लिए जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ बॉस या कंपनी होती है. इससे किसी का भला नहीं होने वाला है" ये कहना है बैंगलोर की एक आईटी कंपनी में काम कर रहे शायन विक्टर (बदला हुआ नाम) का.
फिट हिंदी ने MyITreturn वेबसाइट के युवा जनरल मैनेजर अंशल ठाकुर से इस बारे में जानना चाहा तो उन्होंने उदाहरण दे अपनी बात कही, "जब आपका कर्मचारी काम देने पर आपसे सवाल करे और कुछ ऐसी बातें कहे कि आपका ही पहले का दिया हुआ काम कर रहा हूं, अब आप नया काम दे रहे हैं. आप बताएं कौन सा पहले करूं? ये पहले वाला काम रोक दूं? तब समझ जाना चाहिए कि ये Quiet Quitting के संकेत हैं".
वहीं कोलकाता के एक फर्म में मैनेजर आसिया रहमान कहती हैं, "आजकल यह इंटरनेट पर इसलिए इतना ट्रेंड कर रहा है, क्योंकि महामारी के दौरान लोग वर्क लाइफ बैलेंस बिलकुल भूल चुके हैं. मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बार-बार बर्नआउट जैसे मुद्दों पर ध्यान देने को कहा है, जो कई लोगों के वर्कहॉलिक होने के कारण होता है.
हैदराबाद के एक मीडिया हाउस में काम कर रही सोनम कहती हैं, "मेरे हिसाब से ऑफिस का काम पूरी मेहनत और ईमानदारी से निर्धारित समय पर करना और ऑफिस आवर खत्म होने पर पर्सनल लाइफ जीना Quiet Quitting का सही मतलब है. आज के युवा ऐसी ही जिंदगी की तलाश में हैं इसलिए ये ट्रेंड कर रहा है".
हम सभी ने टॉक्सिक वर्क एड्वाइस (toxic work advice) बहुत सुनी है, लेकिन हाल ही में बॉम्बे शेविंग कंपनी के सीईओ शांतनु देशपांडे की सलाह ने ऐसी सभी सलाहों को मात दे दी. 20 से 30 साल के युवाओं को दिन में बिना रोना-धोना किए 18 घंटे काम करने की सलाह ने सोशल मीडिया पर नयी बहस छेड़ दी.
आसिया कहती हैं, "यह युवाओं में प्रोडक्टिव काम कम करने का कारण बन सकता है. हमारा दिमाग भी एक मशीन की तरह है अगर उस मशीन में तेल जिसको हम अच्छा खाना और निर्धारित नींद बोलते है, न ले तो यह सब हमारे काम को बिगड़ सकता है. जितना जरूरी काम करना है उतना ही जरूरी अपने आप को टाइम देना और शरीर को रेस्ट देना भी है".
दिन के 12-14 घंटे ऑफिस के काम ने ऋचा को हॉस्पिटल के चक्कर लगवा दिए. फिट हिंदी को अपना हाल ऋचा ने कुछ ऐसे सुनाया.
ऋचा आगे कहती हैं, "मैंने रुचि खो दी, वजन बढ़ गया, नींद नहीं आती थी. भले ही मैंने जल्द अपनी नौकरी छोड़ दी, लेकिन मैं आज तक इसके परिणामों से जूझ रही हूं. क्योंकि शरीर और दिमाग को इस तरह के उच्च स्तर के तनाव से उबरने में समय लगता है".
"ऑफिस प्रेशर के कारण मैं हर रोज स्ट्रेस और प्रेशर महसूस करती थी. साथ ही मैं गिल्टी महसूस कर रही थी कि मैंने अपने बच्चे को पर्याप्त समय नहीं दिया या उसके लिए और अधिक कर सकती थी जो नहीं किया. मैंने सेल्फ केयर को प्राथमिकता नहीं दी, जिससे मेरे मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा" ये बताते हुए आसिया इमोशनल हो गयीं.
अंशल कहते हैं, "अगर एक एम्प्लॉई (employee) की तरफ से सोचूं तो ज्यादातर लोग अधिक सैलरी की महत्वकांक्षा हो जाने के कारण ऐसा सोचने लगते हैं. स्वाभाविक है और ये एक लिहाज से सही ही है क्योंकि समय के साथ जरूरतें भी बढ़ती हैं. पर एक एम्प्लॉयर (employer) के नाते उन्हें समझाना चाहता हूं कि किसी भी कंपनी में एक पद की सैलरी की एक सीमा होती है. जब तक आप अपने स्किल को और बेहतर नहीं बनायेंगे, नई-नई चीजें नहीं सीखेंगे, तो आप और आगे नहीं बढ़ पाएंगे".
इस लेख के दौरान जितने भी लोगों से बातचीत हुई सभी ने एक बात पर सहमति जताई कि एक डर लगा रहता है कि कहीं ऑफिस टाइम के बाद एक्स्ट्रा काम नहीं करने और छुट्टी के दिन काम को मना कर देने से बॉस नाराज हो जाए तो प्रमोशन और अप्रेजल पर तलवार गिर पड़ेगी, इस लिए वो चुप-चाप काम करते जाते हैं.
बढ़ती महंगाई, बीमारियां, सिर के ऊपर अपनी छत होने की ख्वाहिश, जिंदगी को अपने और अपनों के लिए पहले से बेहतर बनाने का सपना नौकरीपेशा वालों को दो धारी तलवार पर चलने के लिए मजबूर किए रहता है. एक तरफ जरूरतें और ख्वाहिशें हैं, तो दूसरी ओर अपनों के साथ सुकून के पल जीने की तमन्ना.
उम्मीद है, नए-पुराने ट्रेंड का पॉजिटिव असर लोगों पर हो और जिंदगी में जिसकी जो प्राथमिकता है उसे वो मिले.
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