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गर्मी के मौसम में भी ऑफिस हो या सिनेमा हॉल या हो रेस्टोरेंट कोई न कोई एक पतली सी शॉल/स्टोल ओढ़े नजर आ ही जाता है. और अगर शॉल नहीं हो, तो हथेलियों को मलते या चाय/कॉफी की चुस्की से एसी की ठंड को भगाते दिख जाते हैं. जी हां, ऐसे कई लोग होते हैं, जो दूसरों की तुलना में ठंड ज्यादा महसूस करते हैं. इस परिस्थिति को कोल्ड इंटॉलरेंस (Cold Intolerance) कहते हैं.
आजकल सोशल मीडिया पर चल रहे कोल्ड इंटॉलरेंस (Cold Intolerance) से जुड़े मीम भी हमारा ध्यान इस ओर खींच रहे हैं.
अक्सर हमने ये सुना है कि अगर मां को ठंड लगती है, तो वो अपने साथ-साथ अपने बच्चे को भी एक परत गर्म कपड़े का पहना देती है. यकीन मानें, मेरे साथ भी ऐसा हुआ है.
क्या आपको भी ऑफिस या घर, मूवी हॉल या रेस्टोरेंट कहीं भी औरों से ज्यादा ठंड महसूस होती है? क्या आपके घर में भी एसी (AC) टेम्परेचर को लेकर हर दिन एक बहस छिड़ी रहती है? क्या आप भी ऑफिस का वो कोना पकड़ कर बैठना चाहते हैं, जहां एसी (AC) की ठंडक थोड़ी कम हो?
अगर हां, तो आज का हमारा आर्टिकल आपके लिए ही है. ऊपर पूछे गए सवालों के जवाब हमने एक्स्पर्ट्स से जानने की कोशिश की और पता लगाना चाहा कि कहीं ये किसी बीमारी का संकेत तो नहीं?
डॉ सुशीला कटारिया आगे कहती हैं कि जैसे अगर कोई ठंड के मौसम में पैदा हुआ है, तो हो सकता है उसे ठंड कम लगती हो और जो गर्मी के मौसम में पैदा हुआ है उसे ठंड के आते ही बेचैनी/असुविधा महसूस होने लगती हो. और इसमें हॉर्मोनस का भी रोल होता है. जिनका वजन ज्यादा होता है उन्हें फैट की एक परत ठंड से बचाती है.
सुरभि और उसका पति माधव बेडरूम एसी (AC) टेम्परेचर को लेकर अक्सर लड़ते थे. सुरभि से ठंड बर्दाश्त नहीं होती है और माधव से गर्मी. माधव कमरे का टेम्परेचर शिमला के तापमान से मिला कर रखना चाहता है, तो सुरभि गर्मी के मौसम में भी एसी को 28 डिग्री पर चलाती है. अंत में उन्होंने 2 अलग कमरे में सोने का फैसला कर हंसी-खुशी इस समस्या का रास्ता निकाला.
वहीं द्वारका के मणिपाल हॉस्पिटल में इंटरनल मेडिसिन की एचओडी एंड कंसल्टेंट डॉ चारु गोयल सचदेव कहती हैं,
जिन लोगों का शरीर कमजोर होता है और वजन कम होता है, उनको भी ज्यादा ठंड लगती है. औसत वजन वाले लोगों में फैट की मात्रा कम होती है, जिसकी वजह से शरीर को गर्माहट देने वाली ऊर्जा कम हो जाती है. इस वजह से भी ठंड का एहसास अधिक होता है.
नोएडा के फोर्टिस हॉस्पिटल में एंडोक्रिनोलॉजी के कंसल्टेंट डॉ अनुपम बिस्वास कहते हैं, "हां, कुछ लोगों को, दूसरों के मुकाबले, अधिक ठंड लगती है और इसका कारण आपके जीन हो सकते हैं.
"महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अधिक ठंड लग सकती है और इसका वैज्ञानिक कारण भी है. बराबर वजन के शरीर वाली महिलाओं में पुरुषों की तुलना में कम मसल मास होता है और त्वचा और मसल के बीच अधिक फैट होता है, जिसके कारण अधिक ठंड लग सकती है, क्योंकि त्वचा ब्लड वेसल से अधिक दूर रहती है" ये कहना है डॉ अनुपम बिस्वास का.
फरीदाबाद के QRG हॉस्पिटल में इंटरनल मेडिसन के कंसल्टेंट डॉ अनुराग अग्रवाल कहते हैं, "पुरुषों में महिलाओं के मुकाबले मसल मास ज्यादा होता हैं. अधिक मसल मास का अर्थ है अधिक मेटाबॉलिज्म जिससे अधिक गर्मी पैदा होती है. यही कारण है कि पुरुषों को कम ठंड लगती है. जिन महिलाओं में ज्यादा मसल मास होता है, वे भी अन्य महिलाओं से कम ठंडक महसूस करती हैं".
डॉ अनुपम बिस्वास ने कहा कि कोल्ड इंटॉलरेंस की शिकायत करने वाले लोगों की जांच करते समय एनीमिया, हाइपोथायरायडिज्म, डायबिटीज मेलिटस, पेरिफेरल आर्टरी डिजीज, एनोरेक्सिया और हाइपोथैलेमिक डिसऑर्डर जैसे पैथोलॉजिकल कंडीशन पर ध्यान रखना जरूरी है.
हाइपोथायरायडिज्म में बेसिक मेटाबोलिज्म कम होता है क्योंकि थाइरोइड में होर्मोनेस की कमी होती है, जिसकी वजह से ठंड लगती है.
एनीमिया एक बड़ा कारण हो सकता है. खून शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए जिम्मेदार होता हैं और अगर किसी कारणवश शरीर इनका पर्याप्त मात्रा में उत्पादन नहीं कर पाता है, तो ऐसे में दूसरों के मुकाबले ज्यादा ठंड लगती है.
एनोरेक्सिया एक ईटिंग डिसऑर्डर है और इसमें बार-बार वोमिटिंग होने की वजह से वजन कम हो जाता है. ऐसे लोगों में भी कोल्ड इंटॉलरेंस की समस्या रहती है.
डायबिटीज होने पर भी कोल्ड इंटॉलरेंस परेशान करता है.
पेरिफेरल आर्टरी डिजीज में किसी भी प्रकार की समस्या की वजह से शरीर के कुछ अंगों में जैसे पैरों, पीठ और हाथों की उंगलियों में खून का प्रवाह कम हो जाता है, जिसकी वजह से भी कोल्ड इंटॉलरेंस हाई रहता है.
विटामिन बी 12 की कमी भी शरीर में कोल्ड इंटॉलरेंस को बढ़ाती है.
कोल्ड इंटॉलरेंस का इलाज पूरी तरह से उसके कारण पर निर्भर करता है. जैसे अगर किसी को एनीमिया की वजह से यह समस्या है, तो अधिकतर मामलों में इसके लिए आयरन सप्लीमेंट्स दिए जाते हैं.
वैसे ही अगर किसी को हाइपोथायरायडिज्म के वजह से यह परेशानी है, तो उसे ओरल सिंथेटिक हार्मोन दिया जाता है.
एनोरेक्सिया के लक्षणों के आधार पर उसका इलाज चलता है, जो अक्सर एक लंबी प्रक्रिया होती है. इसमें लाइफस्टाइल और खान-पान पर विशेष ध्यान दिया जाता है.
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