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YouTuber जेडेन ऐशली (YouTuber Jaiden Ashlea) अपनी प्रेगनेंसी और बेटे के जन्म को लेकर सोशल मीडिया पर सुर्खियों में बनी हुई हैं. हाल ही में उन्होंने अपने बेटे की स्वास्थ्य स्थिति के बारे में बताया जिसके कारण उन्होंने उसे दो बार जन्म दिया. जैडेन ने बताया कि उनके बेटे को स्पाइना बिफिडा (spina bifida) था और उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं थी.
लेकिन, उन्हें ऑरलैंडो स्थित एक मेडिकल टीम मिली, जो ओपन फीटल सर्जरी (open fetal surgery) में माहिर है, यानी जो बच्चों के जन्म से पहले ही उनका ऑपरेशन करते हैं. फीटल सर्जरी, खास जन्म दोष वाले बच्चों के आगे के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करने के लिए गर्भाशय में एक अजन्मे बच्चे (भ्रूण) पर की जाने वाली एक प्रक्रिया है.
जैडेन ने बताया कि बच्चे को ओपन फीटल सर्जरी के बाद वापस गर्भ में डाला गया और 11 सप्ताह बाद फिर से उसका जन्म हुआ. दरअसल, गर्भावस्था के 19वें सप्ताह में बच्चे के स्पाइना बिफिडा का पता चला था. डॉक्टरों ने पहले बताया गया था कि बच्चा ब्रेन डेड होने वाला है.
फिर जेडेन ऐशली ऑरलैंडो में डॉक्टरों की एक टीम से मिली, जो ओपन फीटल सर्जरी से अजन्मे बच्चे की पीठ की न्यूरल-ट्यूब डिफेक्ट को ठीक कर सकते थे.जेडेन ऐशली पर ओपन फीटल सर्जरी के लिए सी-सेक्शन किया गया, बच्चे की स्पाइना बिफिडा डिफेक्ट को पूरी क्षमता से ठीक किया और फिर पेट को वापस बंद कर दिया.
वह कुछ और महीनों के लिए प्रेग्नेंट रहीं. ऐसा करने के कई दुष्प्रभाव भी होते हैं. एमनियोटिक फ्लूइड (Amniotic fluid) जो गर्भ में बच्चे को जीवन देता है, वो थोड़ा बहुत सर्जरी के दौरान बाहर निकल जाता है. ऐसा होने पर डॉक्टर उस क्षेत्र को सेलाइन से भर देते हैं, जिसके बाद वहां फिर से एमनियोटिक फ्लूइड बन जाता है.
फिट हिंदी ने ओपन फीटल सर्जरी और स्पाइना बिफिडा के बारे में फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, में प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की डायरेक्टर और वेल वुमन क्लिनिक की फाउंडर, डॉ नुपुर गुप्ता से विस्तार से बातचीत की.
बच्चे के जन्म से पहले, उसके जीवन के लिए खतरा पैदा करने वाले स्वास्थ्य संबंधी जन्म दोषों का इलाज करने के लिए यह सर्जरी की जाती है. मिसाल के तौर पर यदि किसी बच्चे को जन्म से पहले स्पाइना बिफिडा (spina bifida) के साथ निदान (diagnosis) किया गया है, तो ओपन फीटल सर्जरी (open fetal surgery) ऐसे में सहायक साबित होती है.
इस समस्या का पता गर्भावस्था के शुरू के 3-4 महीने में चल जाता है. लेवल 1 अल्ट्रासाउंड से इस तरह की समस्याओं का पता लग जाता है.
गर्भावस्था में 2 तरह के अल्ट्रासाउंड होते हैं. लेवल 1 और लेवल 2.
लेवल 1 अल्ट्रासाउंड गर्भावस्था के शुरू के तीसरे महीने में किया जाता है यानी 12 -13 हफ्ते की गर्भावस्था के दौरान. इस समय ब्रेन और स्पाइनल कॉर्ड के दोष सबसे पहले दिखाई देते हैं.
लेवल 2 अल्ट्रासाउंड गर्भावस्था के 18-20 हफ्ते के बीच में होता है. जिसमें किडनी, लिवर, हार्ट, बोने और दूसरे शारीरिक अंगों से जुड़े दोष का पता चलता है.
डॉ नुपुर गुप्ता ने बताया कि इस तरह की सर्जरी के साथ कई जोखिम या रिस्क भी जुड़े रहते हैं.
वो कहती हैं, “दुनिया में कम ही जगहों पर प्री नेटल सर्जरी/ओपन फीटल सर्जरी की व्यवस्था है. ये बहुत कठिन सर्जरी होती है. इसके लिए डॉक्टरों की बहुत बड़ी टीम चाहिए होती है और साथ ही यह बहुत महंगी सर्जरी होती है.”
सर्जरी से कुछ दिनों पहले से और कुछ दिनों बाद तक हॉस्पिटल में जा कर रहना होता है. वापस घर लौटने के बाद भी लगातार हॉस्पिटल और डॉक्टर के सम्पर्क में रहना होता है क्योंकि इस सर्जरी के साथ कई रिस्क भी जुड़े हैं.
डॉक्टर के बताए सर्जरी से जुड़े कुछ रिस्क :
2 बार सिजेरियन (cesarean) किया जाता है, यूट्रस खोलने के लिए. पहली बार बच्चे की सर्जरी के लिए दूसरी बार बच्चे की डिलीवरी के लिए.
एमनियोटिक फ्लूइड (Amniotic fluid), गर्भ में जिसमें बच्चा जीता है, वो सर्जरी के दौरान बाहर निकलता है. एमनियोटिक फ्लूइड की बाहर निकली हुई मात्रा की भरपाई के लिए सेलाइन (salin) डाला जाता है, जो आर्टिफिशियल है.
इन युटेरो में बच्चे की मृत्यु भी हो सकती है
प्रीमेच्योर लेबर (Premature labor)
सर्जरी सफल होने की संभावना 100 प्रतिशत नहीं होती है
ऐसी सर्जरी के लिए मल्टी डिसिप्लिनरी टीम चाहिए होती है. जिसमें फीटल सर्जन, न्यूरो सर्जन, कार्डियोलॉजिस्ट, नोनटोलॉजिस्ट, एनेस्थेटिस्ट, सोनोलोजिस्ट जैसे एक्स्पर्ट्स होते हैं.
जन्म दोष वाले बच्चों में, जन्म के बाद की जाने वाली सर्जरी से बेहतर परिणाम गर्भाशय में अजन्मे बच्चे की सर्जरी में ज्यादा देखी जाती है. अनुभवी डॉक्टरों की टीम द्वारा की जाने वाली ओपन फीटल सर्जरी एक नई उम्मीद जगाती है.
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