मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Fit Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Pregnancy Tests List: गर्भधारण के दौरान कराए जाने वाले जांच

Pregnancy Tests List: गर्भधारण के दौरान कराए जाने वाले जांच

गर्भावस्था में कराए जाने वाली जांचों का उद्देश्य जल्दी से जल्दी किसी भी समस्या का पता लगाना होता है.

डॉ. रिश्मा ढिल्लों पई
फिट
Published:
<div class="paragraphs"><p>गर्भावस्था में की जाने वाली जांच महिला और आने वाले शिशु के लिए महत्वपूर्ण होती है.&nbsp;</p></div>
i

गर्भावस्था में की जाने वाली जांच महिला और आने वाले शिशु के लिए महत्वपूर्ण होती है. 

(फोटो: iStock)

advertisement

गर्भधारण एक स्त्री को होने वाला सुखद अनुभव है. उसके शरीर में होने वाले परिवर्तन, शिशु के पोषण की देख-रेख और प्रेग्नेंसी से जुड़ी समस्याओं के हल के लिए जांच की जरूरत होती है.

गर्भावस्था से पूर्व स्त्री को रुटीन टेस्ट जैसे हेमोग्लोबिन, ब्लड शुगर, थायरॉइड टेस्ट, ब्लड ग्रुप, रुबेल, थेलेसेमिया प्रोफाइल, एचआईवी, हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी टेस्ट एवं पेशाब की जांच करा लेने की सलाह दी जाती है, जिससे किसी मेडिकल या हॉर्मोनल समस्याओं के बारे में जानकारी प्राप्त होती है, जिसका गर्भावस्था से पूर्व उपचार करा लेना चाहिए.

सोनोग्राफी से आम समस्याओं का पता लगता है 

आम समस्याओं जैसे फाइब्रॉइड्स, एंडोमेट्रिओसिस आदि के लिए सोनोग्राफी भी कराना होता है, जिसका गर्भावस्था से पूर्व उपचार कराने की जरूरत हो सकती हैं.

गर्भधारण करते ही यह निर्धारित करने के लिए शीघ्र सोनोग्राफी करना महत्वपूर्ण है कि गर्भधारण गर्भाशय में है या ट्यूब (एक्टोपिक प्रेगनेन्सी) में है, क्योंकि ट्यूब में होने से भारी नुकसान हो सकता है. यह आमतौर पर ट्रांसवेजाइनल स्कैन (एक आंतरिक सोनोग्राफी) से किया जाता है, जो ट्रान्स एब्डोमिनल स्कैन कि तुलना में अधिक सही जानकारी देता है.

गर्भावस्था के 11-12 सप्ताह के बीच अधिकांश डॉक्टर विशेष रूप से न्यूकल ट्रांसलुसेंसी के लिए शिशु की जांच करने के लिए सोनोग्राफी की सलाह देते हैं.

यह गर्दन के पीछे फैट लेयर की माप करता है, जो डाऊन सिंड्रोम के लिए अच्छी स्क्रीमिंग जांच है. सोनोग्राफी में दिखने वाले नेसल बोन कि उपस्थिति भी शिशु में डाऊन सिंड्रोम का जोखिम कम करता है.

डाऊन और एडवर्ड्स सिंड्रोम की जांच 

इस चरण में प्रथम ट्रिमेस्टर सीरम– एक ब्लड टेस्ट जिसमें पीएपीपी–ए और बिटा एचसीजी की जांच की जाती है. यह उस जोखिम का निर्धारण करता है, जिससे शिशु में डाऊन सिंड्रोम और एडवर्ड्स सिंड्रोम के साथ-साथ न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट होता है. ये सभी शिशु में गंभीर जेनेटिक एवं डेवलपमेंटल डिफेक्ट हैं और इनकी आशंका होने पर कोरियन विलस बायोप्सी कर इस चरण में एक निर्णयात्मक डायग्नोसिस की जा सकती हैं. जहां प्लेसेंटा से एक छोटी बायोप्सी की जाती है और जेनेटिक समस्याओं के लिए विश्लेषण किया जाता है. 

गर्भावस्था की प्रगति के साथ एक विस्तृत एनॉमली स्कैन, जो 3 या 4 बहुआयामी सोनोग्राफी है. उसे 18 सप्ताह में कराना चाहिए जो शिशु में किसी संभावित असामान्यताओं के लिए विस्तृत विवरण (detailed description) देने में सहयोगी होगा. इसके साथ ब्लड टेस्ट, ट्रिपल मार्कर किया जा सकता है. ये भी डाउन और एडवर्ड सिंड्रोम और न्यूटल ट्यूब डिफेक्ट के लिए एक स्क्रिनिंग टेस्ट है. यदि कोई जोखिम पाया जाता है, तो एम्नियोसेंटेसिस किया जा सकता है. इसमें शिशु के आसपास की अल्प मात्रा हटायी जाती है और किसी भी तरह के जेनेटिक डिफेक्ट की उपस्थिती की पुष्टि के लिए विश्लेषण किया जाता है. 

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

फिश (फ्लोरेसेंट इनसिटू हाइब्रिडाईजेशन) टेक्निक से पानी का विश्लेषण किया जा सकता है, जो प्रमुख समस्याओं कि जांच करती है. इसका परिणाम 2 दिनों में आता है. जबकि कार्योटाइपिंग में रिजल्ट आने में लगभग 2-3 सप्ताह का समय लगता है. यह प्रक्रिया काफी महंगी है और पानी निकालने के लिए गर्भाशय में निडल डाले जाने के कारण थोड़ी जोखिम भरी है. यदि परिणाम असामान्य शिशु का संकेत देते हैं, तो 20 सप्ताह तक गर्भावस्था का समापन ऑफर किया जा सकता है क्योंकि इसमें शिशु का गला घुंट सकता है.

गर्भावस्था की दूसरी छमाही में नॉन स्ट्रेस टेस्ट (NST)

गर्भावस्था के दूसरी छमाही में नॉन स्ट्रेस टेस्ट (NST) एक अन्य उपयोगी जांच हैं. यह सरल गैर आक्रामक टेस्ट है, जिसमें मां के पेट में एक ट्रांसड्यूसर रखा जाता है और शिशु के हृदय कि धड़कन के लिए ईसीजी के तरह की ट्रेसिंग की जाती है. यह शिशु के स्वस्थ और अस्वस्थ होने का संकेत देता है. क्योंकि यह हलचल के साथ शिशु के हृदय की धड़कन में परिवर्तन को पकड़ता है तब शिशु की तत्काल डिलीवरी कराने की जरूरत होती है. डिलीवरी की प्रक्रिया के दौरान शिशु के अच्छे होने में समस्याओं का पता लगाने के लिए प्रसव के दौरान उसी मशीन (इंट्रापार्टम मॉनिटरिंग) से दिल की धडकन की जांच की जा सकती है.

इन सभी जांचों का उद्देश्य जल्दी से जल्दी किसी भी समस्या का पता लगाना है क्योंकि तभी सबसे सुरक्षित और सर्वश्रेष्ठ उपचार किया जा सकता है. इन जांचों में खर्च है फिर भी अधिकांश लोग स्वस्थ और बेहतर गर्भावस्था और प्रसव की सुरक्षा के लिए इसे कराना पसंद करते हैं. जो लोग इसका खर्च नहीं उठा सकते उनके लिए BMC और सरकारी हॉस्पिटलों में इनमें से अधिकांश सुविधाएं भी ऑफर की जाती हैं.

(यह लेख डॉ. रिश्मा ढिल्लों पई, गायनेकोलॉजिस्ट और इनफर्टिलिटी विशेषज्ञ, लीलावती हॉस्पिटल और जसलोक हॉस्पिटल द्वारा फिट हिंदी के लिए लिखा गया है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT