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भारत में तापमान में बहुत ज्यादा उतार-चढ़ाव कोई अनोखी बात नहीं है. लू, शीतलहर, लंबी चिलचिलाती गर्मी और हड्डियां कंपा देने वाली बर्फीली सर्दियां दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में जिंदगी का हिस्सा है.
अगर आप कभी जबरदस्त गर्मी और जबरदस्त सर्दी दोनों मौसमों से गुजरे हैं, तो आपको पता चल जाएगा कि हम किस बारे में बात कर रहे हैं- सर्दियों में किस तरह आपका मन लगातार घी-तेल से बना भारी-भरकम खाना जिसमें ढेरों चीजें पड़ी हों, खाने का करता है.
गर्मियों में भारी-भरकम, घी-तेल वाला खाने खाने का सिर्फ ख्याल भी आपको बेचैन कर देने वाले पेट भर जाने का अहसास करा सकता है.
तो, क्या चल रहा है भाई? गर्मियों में हमारी भूख क्यों कम हो जाती है? सर्दी अपने आप गर्म, पौष्टिक भोजन की चाहत क्यों जगा देती है? और गर्मी आपकी भूख पर कैसे असर डालती है?
आइए पता लगाते हैं.
यह समझने के लिए कि गर्मी आपकी बॉडी पर कैसे असर डालती है, आपको दो कॉन्सेप्ट को समझने की जरूरत है- थर्मोरेगुलेशन (thermoregulation) और थर्मोजेनेसिस (thermogenesis).
थर्मोरेगुलेशन (thermoregulation)- ‘थर्म’ शब्द ग्रीक भाषा से आया है, जिसका मतलब है गर्मी.
फिर भी याद दिलाने के लिए एक बार दोबारा बता दें: इंसानी शरीर का आंतरिक तापमान (internal temperature) लगभग 36.8 डिग्री सेल्सियस है, इसमें 0.5 डिग्री सेल्सियस कम या ज्यादा हो सकता है. अगर आपका आंतरिक तापमान 2-5 डिग्री तक बढ़ जाता है या घट जाता है, तो आप हाइपोथर्मिया (hypothermia) और फ्रॉस्टबाइट (frostbite) (अगर बहुत ठंड है) या हाइपरथर्मिया (hyperthermia) और हीटस्ट्रोक (heatstroke) (अगर बहुत गर्मी है) का शिकार हो सकते हैं.
जब बाहर का तापमान आपके आंतरिक तापमान से नीचे चला जाता है, तो आपका शरीर खुद को गर्म कर इसकी भरपाई करता है. जब बाहरी तापमान आपके आंतरिक तापमान से ज्यादा हो जाता है, तो आपका शरीर खुद को ठंडा रखने की कोशिश में पसीना बहाता है.
आपके आंतरिक तापमान पर कई वजहें असर डालती हैं, इनमें शामिल हैं:
बाहर का तापमान
कपड़े
एक्सरसाइज या कामकाज
खाना
सोना
कुछ खास दवाएं
फूड एक ऐसी खास वजह है, जो आपके शरीर के तापमान पर असर डालती है. यहीं पर दूसरा कॉन्सेप्ट आता है- थर्मोजेनेसिस (thermogenesis).
थर्मोजेनेसिस (thermogenesis) मेटाबोलिक एक्टिविटी है, जिससे गर्मी पैदा होती है.
आप जो खाना खाते हैं उसका असर आपके शरीर के तय तापमान पर भी पड़ता है. कुछ फूड पचाने के दौरान ज्यादा गर्मी पैदा करते हैं, जबकि बाकी कम.
इसे फूड के थर्मिक इफेक्ट (thermic effect of food TEF) या डाइट के चलते थर्मोजेनेसिस (diet-induced thermogenesis DIT) के नाम से जाना जाता है. फूड्स के बाई प्रोडक्ट के तौर पर पैदा गर्मी की मात्रा इस आधार पर घटती-बढ़ती है कि आप फैट, प्रोटीन या कार्बोहाइड्रेट्स ले रहे हैं या नहीं.
इसके अलावा आपके फूड में पानी की मात्रा भी उसके थर्मिक इफेक्ट पर असर डालती है. 2004 की एक स्टडी ने तमाम पोषक तत्वों और उनके TEF के बारे में यह जानकारी दी:
तो, संक्षेप में कह सकते हैं कि आपके द्वारा खाए जाने वाले फूड्स में पोषक तत्व अलग-अलग मात्रा में गर्मी पैदा करेंगे और आपके शरीर को अलग तापमान पर गर्म करेंगे.
फैट और प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट्स के मुकाबले ज्यादा थर्मोजेनिक होते हैं, और इसके नतीजे में इन्हें खाने के बाद वे आपको गर्म महसूस कराएंगे, यहां तक कि कभी-कभी शरीर को ठंडा रखने के लिए पसीना भी आएगा.
इसलिए आपको “मीट स्वीट्स (meat sweats)” का कुछ अनुभव होगा- जिसमें आपको प्रोटीन और/या कार्बोहाइड्रेट और फैट वाला फूड खाने के बाद पसीना आता है.
इसलिए गर्मियों में आपका बहुत ज्यादा फैटी मीट खाने का मन नहीं करता है(खासकर अगर आप भारत जैसे ट्रॉपिकल देश में रहते हैं). आपका शरीर परेशान करने वाली हालत तक गर्म हो जाता है.
तो जैसे-जैसे आपका कोर टैंप्रेचर बढ़ेगा, धीरे-धीरे आप ज्याद बेचैनी महसूस करेंगे.
अगर आप अपनी रोमजर्रा की एनर्जी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाते हैं, तब भी आप भूखा महसूस करते हैं, इस वजह से लगातार भूख का अहसास होगा, लेकिन आपको तेज भूख नहीं लगेगी (जब तक कि आप वर्कआउट या मध्यम स्तर की एक्सरसाइज नहीं करते).
यह सिर्फ अंदाजे या अधकचरे विज्ञान पर आधारित नहीं है. बाकायदा स्टडी की गई है और ऐसा साबित किया गया है कि गर्मी बढ़ने पर इंसान कम खाते हैं.
उदाहरण के लिए, अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों में सैनिकों की भूख पर गर्मी के असर को लेकर 1947 में हुई एक स्टडी के इस अंश को लें.
ट्रॉपिकल देशों में सैनिकों ने एक दिन में औसतन 3100 कैलोरी खाई, जबकि आर्कटिक क्षेत्र में सैनिकों ने एक दिन में करीब 4900 कैलोरी खाई.
ऐसे ही नतीजे 1964 में एक और स्टडी में सामने आए, जिसमें यूनाइटेड किंगडम में तैनात सैनिकों की तुलना में यमन में तैनात सैनिकों के खाने में 25 फीसद की कमी पाई गई.
आप इस प्रक्रिया में ढेर सारा इलेक्ट्रोलाइट्स गंवा देते हैं, और जैसा कि हमने पहले बताया है, जब सोडियम जैसे इलेक्ट्रोलाइट्स शरीर से निकलते हैं, तो आपका शरीर इन खोए हुए इलेक्ट्रोलाइट्स और लिक्विड को वापस पाने की पूरी कोशिश करता है.
और ऐसे में होता यह है कि ढेर सारे कम कैलोरी वाले फूड्स जैसे फल और पत्तेदार सब्जियां आपके शरीर की जरूरत को पूरा करने के लिए लिक्विड उपलब्ध कराते हैं.
तो संक्षेप में कह सकते हैं कि लोग ठंड में ऐसा खाना ज्यादा खाने की ख्वाहिश रखते हैं, जो रिच और फैट से भरा हो, जबकि गर्मियों में कम जरूरत है, खासकर जब वे पहले से ही उस गर्मी का असर कम करने की कोशिश कर रहे हों जो उन्हें झेलनी है.
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