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भांग (Cannabis). गांजा (Weed). चरस (Charas) हशीश (Hash). पॉट (Pot). मारिजुआना (Marijuana). डेविल्स लैटूस (devil's lettuce). जैज कैबेज (Jazz Cabbage). इसे कई नामों से जाना जाता है और कई रूपों में इसका सेवन किया जाता है, लेकिन एक बात जिस पर ज्यादातर लोग आमतौर से एक राय हो सकते हैं वह यह है कि weed (गांजा) इन सबमें बेहतर है, इसके बहुत सारे इस्तेमाल हैं.
भांग के पौधे के कुछ हिस्सों का इस्तेमाल दवाएं (CBD ऑयल), पटुआ (सन) आधारित कपड़ा बनाने और कई तरह की बीमारियों के इलाज में किया जाता है. नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 के तहत भारत में भांग का मजे के लिए इस्तेमाल पर सख्त पाबंदी है. लेकिन इसके अपवाद भी हैं, जिनपर इस लेख में आगे हम बात करेंगे.
भांग के अलग-अलग हिस्सों का इस्तेमाल तमाम दवाओं और उत्पादों को बनाने में किया जाता है. कैनाबिस की तीन किस्में हैं- कैनाबिस सैटिवा (Cannabis Sativa), कैनाबिस इंडिका (Cannabis Indica), और कैनाबिस रुडेरालिस (Cannabis Ruderalis).
इन्हें आगे हजारों किस्मों में बांटा गया है.
सन 1753 में बॉटेनिस्ट कार्ल लिनायस (Carl Linnaeus) ने अपनी किताब स्पीशीज प्लांटेरम (Species Plantarum), जिसमें उस समय के पौधों की हर मालूम प्रजाति का नाम दर्ज किया गया था, में मारिजुआना को पौधे की केवल एक प्रजाति- कैनाबिस सैटिवा के नाम से दर्ज किया गया था. उनके हिसाब से कोई दूसरी किस्म नहीं थी, सिर्फ एक ही किस्म थी.
बायोलॉजिस्ट जीन-बैप्टिस्ट लैमार्क (Jean-Baptiste Lamarck) को जब भारत से मारिजुआना के नमूने दिए गए तो उन्होंने सन 1785 में कैनाबिस इंडिका की खोज की.
पौधे की छाल की मोटाई, पत्तियों के आकार और पौधे की ऊंचाई जैसी खास विशेषताओं के आधार पर लैमार्क ने तय किया कि इस पौधे को कैनाबिस सैटिवा से अलग वर्ग में रखा जाना चाहिए. इस तरह उन्होंने कैनाबिस इंडिका प्रजाति का नाम दिया.
मारिजुआना के इस्तेमाल के इतिहास में किसी बिंदु पर यह वर्गीकरण जो बनावट और अर्थशास्त्र पर आधारित था, इसका अर्थ यह भी था कि हर किस्म का असर अलग-अलग है.
दो किस्मों के बीच बुनियादी खासियत पौधों की बनावट है.
कैनाबिस सैटिवा के पौधों में चौड़ी, छोटी पत्तियां होती हैं, जिनके बीच कम दूरी होती है, जबकि कैनाबिस इंडिका के पौधे लंबे, पतले पत्तों वाले होते हैं, जिनके बीच ज्यादा दूरी होती है.
फिर इन दोनों को अलग-अलग असर के साथ हजारों किस्मों में उप-वर्गीकृत किया जाता है.
मोटे तौर पर, इंडिका और सैटिवा के बीच असर में बताया जाने वाला “अंतर” यह है कि इंडिका “शरीर को हाई”, आराम और बेहतर नींद देता है, जबकि सैटिवा किस्म को शारीरिक आराम के बजाय ज्यादा मानसिक असर वाला “दिमाग को हाई” देने वाला माना जाता है.
इस “हाई” को बनाने के लिए कंपाउंड्स डेल्टा-9-टेट्राहाइड्रोकैनाबिनोल (tetrahydrocannabinol या THC) और कैनबिडिओल (cannabidiol याCBD) जिम्मेदार हैं.
THC वह कंपाउंड है, जो आपको “हाई” देता है, जबकि CBD वह कंपाउंड है, जो रिलैक्सेशन का अहसास कराता है. मेडिकल इस्तेमाल में मारिजुआना या इसके डेरिवेटिव और अर्क में केवल CBD होगा या सिर्फ THC होगा या दोनों का मेल होगा, जो इसके लिए तय मकसद पर निर्भर करता है.
एनडीपीएस एक्ट भांग के मजे के लिए इस्तेमाल पर पाबंदी लगाता है, पौधे की पत्तियों और बीजों को कानून से छूट मिली है. इसलिए, तकनीकी रूप से ड्रग्स एंडकॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 के तहत भांग के पौधे की पत्ती से निकाला गया सीबीडीऑयल (CBD oil) गैरकानूनी नहीं है.
मेडिकल न्यूज टुडे के अनुसार, कैनाबिस सैटिवा की किस्मों का इस्तेमाल एनर्जी को बूस्ट करने, डिप्रेशन को कम करने, ध्यान केंद्रित करने और रचनात्मकता को बढ़ाने के लिए किया जाता है, जबकि कैनाबिस इंडिका की किस्मों का सेडिटिव असर होता है और यह भूख बढ़ाने और बेहतर नींद लाने में मदद करता है.
कई गुमराह सूत्रों का दावा है कि दो किस्मों, इंडिका और सैटिवा में अलग-अलग THC और CBD अनुपात हैं, और अलग हाई देते हैं. यह दावा पूरी तरह इंडिका या सैटिवा किस्मों पर आधारित है.
लेकिन शराफत से कहें तो यह पूरी तरह बकवास है.
साइकोफार्माकोलॉजी रिसर्चर और ह्यूमन एंडोकैनाबिनायड सिस्टम पर केंद्रित एकजैव प्रौद्योगिकी कंपनी फाइटेक्स (PHYTECS) के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. इथनरूसो (Dr. Ethan Russo) का कहना है कि यह दिखाने के लिए कोई वैज्ञानिक सबूत या आधार नहीं है कि इंडिका और सैटिवा किस्मों का अलग-अलग असर है. यह पूरी तरह इस पर आधारित है कि वे इंडिका या सैटिवा की किस्म के हैं.
डॉ. रूसो का कहना है कि फर्क बताने का इकलौता तरीका बायोकेमिकल जांच है, जो बता सकती है कि असल में पौधे में क्या है. इससे भी जरूरी बात यह है कि THC और CBD कंटेंट के साथ मिलकर भांग और टेरपीन (Terpenes) कंसनट्रेशन पौधे की क्षमता का निर्धारण करते हैं.
टेरपींस भांग को इसकी महक देते हैं. टेरपींस पौधे को पर्यावरण और दूसरे खतरों से बचाते हैं. इस बात को लेकर कई स्टडी की गई हैं कि टेरपींस पौधे की THC और CBD कंटेंट पर किस तरह असर डालते हैं, जिसे “अनुगामी असर” (entourage effect) कहा जाता है.
“एंटुअरेज इफेक्ट” भांग के सेवन से पैदा “हाई” को आड़ देने के लिए एक शब्दावली है. फिर भी हर हाल में भांग की एकमात्र किस्म जो बाकी दोनों से पूरी तरह अलग है, वह है कैनाबिस रूडेरालिस (Cannabis ruderalis).
रूडेरालिस (ruderalis) शब्द की जड़ें लैटिन रूडेरा (rudera) या रूडस (rudus) में हैं, जिसका मतलब है गांठ, मलबा, ढेर या कांस्य का अनगढ़ टुकड़ा.
कैनाबिस रूडेरालिस गांजा की एक प्रजाति है, जिसे पहली बार यूरोप में खोजा गया था. यह मूल रूप से रूस और मध्य यूरोप का पौधा है और कम THC कंटेंट और ज्यादा CBD कंटेंट की वजह से यह अलग है.
भांग की रुडेरालिस किस्मों को मुश्किल हालात में भी पनपने की क्षमता के लिए जाना जाता है, और इसे बहुत कम देखभाल की जरूरत होती है. इन्हें “एंटुअरेज इफेक्ट” यानी हाई होने के लिए नहीं लिया जाता है.
बल्कि इन्हें आमतौर पर डिप्रेशन, एन्जाइटी, PTSD, दर्द, ओपिओइड विड्राल और कई दूसरी समस्याओं के इलाज में सप्लीमेंटरी दवा बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
रूडेरालिस किस्म रूसी और मंगोलियाई संस्कृति दोनों में पारंपरिक चिकित्सा में इस्तेमाल के लिए मशहूर है.
भांग की रूडेरालिस किस्म अपने-आप फूल आने वाला पौधा है, जिसका मतलब है कि अन्य दो किस्मों के उलट, जिनमें सिर्फ फर्टिलाइजेशन के बाद फूल आते हैं, रूडेरालिस किस्म में बिना किसी बाहरी दखल के अपने आप फूल आते हैं.
भांग की रूडेरालिस किस्म का सेवन किए जाने से “झटका” नहीं लगेगा. बल्कि यह हाई के बिना सिर्फ आराम के अहसास को बढ़ाएगा.
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