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World Breastfeeding Week: हर 1 से 7 अगस्त को वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग वीक के रूप में मनाया जाता है. स्तनपान नवजात शिशु के लिए सबसे अच्छे आहारों में से एक है. स्तनपान मां को ब्रेस्ट कैंसर/सर्वाइकल कैंसर के खिलाफ लड़ने में मदद करता है. बच्चे को संक्रमण और मोटापे का शिकार होने से बचाता है. आम तौर पर यह अच्छे पोषण में भी सहायक होता है.
फिट हिंदी ने एक्सपर्ट्स से बात की और जाना स्तनपान कैसे मां और बच्चे के लिए कवच का काम करता है.
ब्रेस्टफीडिंग बच्चों के लिए अमृत के समान माना जाता है. जन्म के पहले कुछ दिनों में जो दूध आता है, उसे कोलोस्ट्रम कहा जाता है. गभार्वस्था के दौरान, मांओं के गर्भ में पल रहे भ्रूण की जरूरतें मां के हिस्से के पोषण से ही हो जाती हैं. लेकिन प्रसव के बाद उसका पूरा पोषण स्तनपान पर निर्भर होता है. स्तनपान करने वाले शिशु को पर्याप्त मात्रा में संतुलित पोषण मिलता है. इसके जरिए शिशु को कई तरह की एंटीबॉडीज भी मिलती हैं, जो नवजात को तरह-तरह के संक्रमणों, एलर्जी और दूसरे कई रोगों से बचने के लिए जरूरी इम्युनिटी प्रदान करती हैं.
स्तनपान कराने वाली माताएं ऑक्सीटॉसिन का स्राव करती हैं, जो गर्भाशय के कंट्रैक्शन, प्रसव के बाद ब्लीडिंग में कमी लाने, हार्मोनल बदलावों के साथ-साथ ब्रेस्ट टिश्यू कम करने, हड्डियों के रीकैल्सीफिकेशन के चलते कैंसर का जोखिम घटाने और ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा कम करने में भी मदद करता है.
स्तनपान से मां और शिशु को कई स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं और यह कई प्रकार के रोगों से उनका बचाव करता है. यहां तक कि जीवन में आगे चलकर भी कई प्रकार के रोगों से उन्हें सुरक्षा मिलती रहती है.
शिशुओं को
सांस संबंधी इन्फेक्शन
कान/आंख के इन्फेक्शन
गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल इन्फेक्शन
मूत्रनली के इन्फेक्शन
एलर्जी
अस्थमा
बचपन में होने वाला मोटापा
दांतों की सड़न
बार-बार जुकाम और खांसी
ल्युकीमिया या लिंफोमा
सडन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम
मांओं को बचाता है,
ब्रेस्ट या डिंबग्रंथि या एंडोमीट्रियल कैंसर
ऑस्टियोपोरोसिस
हाई ब्लड प्रेशर
टाइप 2 डायबिटीज
जिन एक्सपर्ट्स से हमने बात की उनके अनुसार, जिन शिशुओं को स्तनपान नहीं करवाया जाता उनका इम्यून सिस्टम कमजोर हो सकता है, जिससे संक्रमणों, एलर्जी, आंतों की सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है और यहां तक कि बाद के जीवन पर भी इसका असर पड़ता है.
आस्था ग्रोवर ने फिट हिंदी को बताया कि जब शिशु फार्मूला मिल्क पर निर्भर होते हैं, जो पोषण तो जरूर देता है लेकिन वह मां के स्तन से मिलने वाले दूध जैसा पौष्टिक आहार नहीं होता. साथ ही, स्तनपान नहीं करवाने पर मां के साथ शिशु के जुड़ाव पर भी असर पड़ सकता है, जो उसे सेप्रेशन एंग्ज़ाइटी का शिकार बना सकता है.
पब्लिक प्लेस और वर्क प्लेस पर अपने बच्चे को ब्रेस्टफीड कराने में कई महिलाएं असहज महसूस करती हैं. इसका सबसे बड़ा कारण है आसपास अनजान लोगों की घूरती हुई नजर. घर पर मां जब बच्चा चाहे बिना किसी परेशानी के उसे दूध पिलाती है पर, घर से बाहर ऐसा करने में उसे कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
डॉ. अपूर्वा ताड़ूरी कहती हैं, "ब्रेस्टफीडिंग मां का अधिकार है उससे कोई भी नही छीन सकता. मॉल, कैफे, दुकानें, रेलवे स्टेशन, रेस्टोरेंट और बस स्टेशन जैसे सार्वजनिक स्थानों में ब्रेस्टफीडिंग करने वाली माताओं के लिए अलग कमरे होने चाहिए. पॉजिटिव ब्रेस्टफीडिंग के बारे में जागरूकता के लिए पोस्टर फोटो लगाने चाहिए."
पब्लिक प्लेस पर ब्रेस्टफीड करना कई बार चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन यदि आप सही सुझावों को ध्यान में रखती हैं तो यह आसान है. आजकल किसी-किसी शॉपिंग मॉल, मल्टीप्लेक्स, ऑफ़िस, होटलों, अस्पतालों में ब्रेस्टफीडिंग रूम उपलब्ध है पर, संख्या अभी भी बहुत कम है.
ज्यादातर माताएं जब अपने काम पर वापस जाती हैं, तो अक्सर स्तनपान (breastfeeding) अचानक बंद कर देती हैं क्योंकि वे काम के साथ स्तनपान कराने के तरीकों से अनजान होती हैं. स्तनपान कराने वाली माताओं को उन सुविधाओं के बारे में जानने के लिए अपनी कंपनी के एचआर विभाग से बात करने की आवश्यकता है, जो फ्लेक्सी-आवर्स, डब्ल्यूएफएच (WFH) या काम पर पंपिंग ब्रेक के साथ बच्चे के लिए क्रेच या डे केयर जैसी सुविधाएं उपलब्ध करा सकते हैं.
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