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दुनिया भर में हर साल 20 अक्टूबर को वर्ल्ड ऑस्टियोपोरोसिस डे (World Osteoporosis Day) मनाया जाता है. इस खतरनाक बीमारी से बचने के लिए जागरूकता फैलानी जरूरी है. शुरुआत में इस बीमारी के लक्षणों का आसानी से पता नहीं चलता इसलिए इसे साइलेंट किलर भी कहते हैं.
ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) हड्डी की ऐसी बीमारी है, जो शरीर की हड्डियों को धीरे-धीरे खोखला और कमजोर बना देती है, जिसकी वजह से हड्डियों के टूटने की आशंका बढ़ जाती है. ऑस्टियोपोरोसिस होने पर हल्के से झटके या गिरने से भी फ्रैक्चर हो सकता है.
उम्र बढ़ने के साथ स्वस्थ और मजबूत जोड़ और हड्डियां आपको तंदुरुस्त बने रहने में मदद करते हैं. स्वस्थ हड्डियां मामूली गिरने के बाद फ्रैक्चर से बचती हैं. हालांकि चोट की रोकथाम और गठिया के विकास को हमेशा पूरी तरह से टाला नहीं जा सकता है लेकिन कुछ चीजें हैं, जो हम जीवन भर अपने जोड़ों की सुरक्षा के लिए कर सकते हैं.
ऑस्टियोपोरोसिस हड्डियों के स्वास्थ्य से जुड़ी एक ऐसी बीमारी है, जो समय के साथ खराब होती जाती है अगर इसका सही समय पर पता ना चले. इस बीमारी में हड्डियां बेहद कमजोर हो जाती हैं. बोन मास डेंसिटी (BMD) कम हो जाती है, जिससे हड्डियों के फ्रैक्चर होने का खतरा बढ़ जाता है. आमतौर पर, हड्डी लगातार टिशूओं को ठीक करती है. हालांकि ऑस्टियोपोरोसिस में पुरानी हड्डी की जगह नई हड्डी के टिशू विकसित नहीं हो पाते, जिससे हड्डियां इतनी कमजोर हो जाती हैं कि गिरने और हड्डी पर हल्का दबाव भी फ्रैक्चर का कारण बन सकता है.
हम यहां ऑस्टियोपोरोसिस होने के कुछ प्रमुख कारणों के बारे में बता रहे हैं:
खराब लाइफस्टाइल
कैल्शियम और विटामिन डी की कमी
कम बॉडी मास इंडेक्स होना
पुरानी बीमारियों का वापस आना
स्टेरॉयड और दवाओं की उच्च खुराक का लंबे समय तक सेवन करना
शुरुआत में ऑस्टियोपोरोसिस के लक्षणों का ठीक से पता नहीं चलता है. धीरे-धीरे लक्षण सामने आते हैं. उनमें से कुछ ये हैं:
कमजोर पकड़
भंगुर नाखून
धीरे-धीरे ये लक्षण और अधिक गंभीर हो जाते हैं, जिससे विकास संबंधी समस्याएं जैसे कि:
झुकी हुई मुद्रा
पीठ और गर्दन में दर्द
हड्डी की कमजोरी से संबंधित फ्रैक्चर खास कर कलाई, पीठ, कूल्हे या अन्य हड्डियों पर
मुंबई सेंट्रल के वॉकहार्ट हॉस्पिटल में कंसल्टेंट ऑर्थोपेडिक सर्जन एंड स्पोर्ट्स मेडिसिन एक्सपर्ट, डॉ. मोहित कुकरेजा फिट हिंदी से कहते हैं, "चलते-फिरते रहना सबसे अच्छा है. सक्रिय रहने से व्यक्ति के जोड़ लचीले और स्वस्थ रहते हैं. लंबे समय तक एक ही पोजीशन में रहने से बचें. काम के दौरान बीच-बीच में रुक कर जोड़ों को खींचते रहें. चलने, साइकिल चलाने, तैराकी जैसे कम प्रभाव वाले व्यायाम आपके जोड़ों को गतिशील रहने और उन अतिरिक्त वजन को कम करने में मदद कर सकते हैं जिनसे हमारी हड्डियों को नुकसान पहुंच सकता है".
पॉवर ट्रेनिंग और कंडीशनिंग एक्सरसाइज जोड़ों को तंदुरुस्त और उसके आसपास की मांसपेशियों को मजबूत रखने में मदद करते हैं. शरीर के विभिन्न अंगों जैसे गर्दन, पीठ, छाती और दूसरे अंगों के लिए कंडीशनिंग एक्सरसाइज असंतुलन, गिरने और फ्रैक्चर जैसी समस्याओं को रोकने के लिए एक मजबूत शरीर की संरचना (body composition) का निर्माण करते हैं.
डॉक्टर सलाह देते हैं कि किसी न किसी रूप में शारीरिक व्यायाम को अपनी दिनचर्या में शामिल जरूर करें. वजन घटाने वाले व्यायाम जैसे तैराकी, पैदल चलना और जॉगिंग करना बहुत फायदेमंद हो सकता है, जिससे हड्डियां और मांसपेशियां मजबूत और टोन्ड बनती हैं और ऑस्टियोपोरोसिस होने का खतरा कम रहता है. साथ ही, यह सूजन के जोखिम को कम करता है. योग के साथ-साथ कुछ प्रकार के खेलों को भी अपनी दिनचर्या में शामिल करना चाहिए.
अधिक वजन होने से घुटने, कूल्हे, टखने और पीठ जैसे शरीर का भार उठाने वाले जोड़ों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है. वजन के हर अतिरिक्त पाउंड से जोड़ों पर 4 पाउंड अतिरिक्त दबाव पड़ता है. एक आदर्श वजन और बीएमआई बनाए रखने से जोड़ों पर तनाव को रोकने में मदद मिल सकती है और जोड़ों को जल्दी खराब होने के जोखिम से बचाया जा सकता है.
एक स्वस्थ आहार का भी पालन करना चाहिए जो कैल्शियम, विटामिन डी और अन्य पोषक तत्वों से भरपूर हो. हरी पत्तेदार सब्जियां और डेयरी उत्पाद पोषक तत्वों का एक समृद्ध स्रोत हैं और इन्हें दैनिक आहार में अवश्य शामिल करना चाहिए.यदि कोई व्यक्ति स्वस्थ आहार का पालन कर रहा है, तो आवश्यक पोषक तत्वों की मात्रा आहार के सेवन से पूरी हो जाती है. हालांकि, डॉक्टर से सलाह लेने के बाद कोई कैल्शियम सप्लीमेंट भी लिया जा सकता है.
बैठने, खड़े होने और किसी भी काम को करते समय सही मुद्रा (posture) का पालन करते हुए हम अपनी जोड़ों पर तनाव कम कर सकते हैं. भारी वस्तुओं को उठाने या ले जाने में सावधानी बरतने से जोड़ को चोट या क्षति से बचाया जा सकता है. आरामदायक कुर्सी पर सीधे बैठकर काम करें.
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