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AIMIM प्रमुख और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने एबीपी न्यूज को 27 अगस्त को दिए इंटरव्यू में दावा किया कि दुनिया में केवल भारत (India) और पाकिस्तान (Pakistan) दो ऐसे देश हैं, जहां तालिबान (Taliban) बैन नहीं है. इंटरव्यू में ओवैसी से सवाल किया गया था कि तालिबान पर भारत सरकार को क्या करना चाहिए? इस सवाल का जवाब देते हुए ओवैसी ने ये दावा किया.
लेकिन, ये सच नहीं है. भारत, पाकिस्तान के अलावा अमेरिका, UK और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने भी आतंकी संगठनों की लिस्ट में तालिबान का नाम शामिल नहीं किया है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सेंक्शन लिस्ट में भी आतंकी संगठन के रूप में तालिबान का नाम नहीं है.
एबीपी न्यूज के इंटरव्यू में एंकर ने असदुद्दीन ओवैसी से अफगानिस्तान की हालिया स्थिति को लेकर सवाल किया - सरकार वेट एंड वॉच की बात कह रही है, सरकार और क्या करे? बंदूक लेकर चली जाए वहां पर?
इस सवाल का जवाब देते हुए ही ओवैसी ने पहले भारत की विदेश नीति पर कुछ सवाल उठाए और फिर ये दावा किया कि दुनिया में सिर्फ भारत और पाकिस्तान में ही तालिबान बैन नहीं है. इंटरव्यू में 8:00 मिनट के बाद उन्हें ये दावा करते हुए सुना जा सकता है.
केंद्रीय गृह मंत्रालय की ऑफिशियल वेबसाइट पर उन 42 आतंकी संगठनों की लिस्ट है, जो भारत में बैन हैं. ये सच है कि इस लिस्ट में तालिबान का नाम नहीं है.
द हिंदू अखबार में डिप्लोमेटिक मामलों की एडिटर सुहासिनी हैदर ने भी 2 सितंबर को ट्वीट कर कहा था कि भारत सरकार ने अब तक ये स्पष्ट नहीं किया है कि वह तालिबान को आतंकी संगठन मानती है या नहीं.
भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद तालिबानी नेता से दोहा में बातचीत की थी, जिसकी जानकारी विदेश मंत्रालय ने 31 अगस्त को दी थी. हालांकि, ये बातचीत पूरी तरह अफगानिस्तान में फंसे भारतीय नागरिकों की सुरक्षा और जल्द वापसी को लेकर केंद्रित थी.
अगस्त 2021 के आखिर में तालिबान से भारतीय राजदूत की इस बातचीत से पहले तालिबान को लेकर भारत की नीति पर यदि बात करें, तो भले ही भारत ने तालिबान को आतंकी संगठन घोषित न किया हो. लेकिन, कभी तालिबान को मान्यता भी नहीं दी. बीबीसी में प्रकाशित तालिबान पर भारत की नीति पर छपे एक लेख में बताया गया है कि भारत ने कंधार हाइजैक मामले से पहले या उसके बाद कभी तालिबान से औपचारिक बातचीत नहीं की. बीबीसी के लेख के मुताबिक,
पाकिस्तान और तालिबान की दोस्ती किसी से छिपी नहीं है. कभी सामने से तो कभी दरवाजे के पीछे से पाकिस्तान तालिबान का साथ देता आया है. अब जब तालिबान बंदूक के दम पर लोकतांत्रिक सत्ता को हटाकर अपनी सरकार का ऐलान करने जा रहा है तो पाकिस्तान के इंटेलिजेंस चीफ जनरल फैज हमीदकाबुल पहुंच चुके हैं.
अमेरिका और अफगानिस्तान की सरकारें अक्सर पाकिस्तान पर आरोप लगाती हैं कि तालिबान नेताओं के पाकिस्तान में हेडक्वार्टर हैं और पाकिस्तान की इंटेलिजेंस एजेंसी आईएसआई (ISI) तालिबान से सीधे संपर्क में रहती है.
असदुद्दीन ओवैसी ने दावा किया है कि सिर्फ भारत और पाकिस्तान ने ही तालिबान को बैन नहीं किया है. ये दावा सच नहीं है. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूनाइटेड किंगडम उन प्रमुख देशों में हैं जहां तालिबान को आतंकी संगठनों की सूची में शामिल नहीं किया गया है.
अमेरिकी सरकार की ऑफिशियल वेबसाइट पर अमेरिका द्वारा आतंकी घोषित किए गए संगठनों की लिस्ट है. इस लिस्ट में तालिबान के एक हिस्से तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) का तो नाम है. लेकिन, ''तालिबान'' का नाम नहीं है. यानी अमेरिका में पूरे संगठन को आतंकी नहीं माना गया है.
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार और खासकर एशियाई इलाके में आतंकवाद के मामलों पर बारीकी से नजर रखने वाले कबीर तनेजा से हमने संपर्क किया. कबीर कहते हैं कि ये सच है कि अमेरिका ने पूरे तालिबान संगठन को बैन नहीं किया है. इसकी वजह ये हो सकती है कि अमेरिका शुरुआत से ही तालिबान से समझौते की एक गुंजाइश बाकी रखना चाहता हो.
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) कई सारे संगठनों में से महज एक है, जो तालिबान के मनसूबों को कामयाब करने के लिए बनाए गए थे. TTP 2007 में बना और ये अधिकतर पाकिस्तान के खैबर पखतूनख्वा के साथ आदिवासी इलाकों में सक्रिय माना जाता है.
तहरीक-ए-तालिबान को बैन करने और तालिबान को बैन करने में अंतर है. इसके उदाहरण के तौर पर कनाडा सरकार द्वारा जारी की गई आतंकी संगठनों की ये लिस्ट देखी जा सकती है. चूंकि कनाडा ने तहरीक-ए-तालिबान और तालिबान दोनों को ही बैन किया है, इसलिए लिस्ट में दोनों का नाम है. वहीं अमेरिका ने सिर्फ तहरीक-ए-तालिबान को बैन किया है, तालिबान को नहीं, इसलिए अमेरिका द्वारा जारी आतंकी संगठनों की लिस्ट में तालिबान का नाम नहीं है.
ऑस्ट्रेलियाई सरकार की ऑफिशिल वेबसाइट पर भी आतंकी संगठनों की लिस्ट में तालिबान का नाम नहीं है.
यूनाइटेड किंगडम की सरकारी वेबसाइट पर दी गई जानकारी से भी यही पता चलता है कि यूके ने तालिबान के हिस्से तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) को तो अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन माना है. लेकिन, यूके की आतंकी संगठनों की लिस्ट में तालिबान का नाम शामिल नहीं है.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की सेंक्शन लिस्ट में एक संगठन के रूप में तालिबान का नाम नहीं है.
हां, UNSC ने जो आतंकियों की लिस्ट जारी की है, उसमें कई आतंकियों के विवरण में तालिबान का जिक्र है. लेकिन संगठन के तौर पर पूरी तरह तालिबान को यूएन ने बैन नहीं किया है. हालांकि हमें UNSC द्वारा 15 अक्टूबर, 1999 को जारी किया एक प्रस्ताव मिला, जिसमें तालिबानियों का यात्रा पर प्रतिबंध लगाया गया था. साथ ही किसी तरह की आर्थिक सहायता न दिए जाने की हिदायत दी गई थी.
एक्सपर्ट कबीर तनेजा इसपर कहते हैं -
हालांकि, गौर करने वाली बात ये भी है कि अफगानिस्तान में अपनी सरकार चलाने के लिए तालिबान ने जिस अंतरिम कैबिनेट की घोषणा की है, उस कैबिनेट में शामिल अधिकतर नेताओं को UNSC की सेंक्शन लिस्ट में आतंकी बताया गया है. खुद मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद जो नई तालिबान सरकार में प्रधानमंत्री है, वो यूनाइटेड नेशन्स की आतंकवादियों की लिस्ट में शामिल है. 2001 में अफगानिस्तान की पिछली सरकार में डिप्टी पीएम रहते हुए, बामियान में बुद्ध की पहाड़ों में बनी मूर्तियों के विनाश का आदेश देने वाला भी यही शख्स था.
जैसा कि हम देख चुके हैं कनाडा ने तालिबान को पूरी तरह बैन किया हुआ है. इसी तरह रूसी सरकार की आतंकी संगठनों की लिस्ट में ''तालिबान आंदोलन'' का नाम है. यानी रूस ने भी पूरे तालिबान को ही आतंकी संगठन माना है.
हालांकि, बीते कुछ सालों में रूस का तालिबान को लेकर स्पष्ट नरम रुख देखा गया है. तालिबान को रूस बातचीत के लिए आमंत्रित कर चुका है. अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद भी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने समझौते की संभावनाओं से इनकार नहीं किया.
मतलब साफ है असदुद्दीन ओवैसी का ये दावा सही नहीं है कि दुनिया में सिर्फ भारत और पाकिस्तान ही ऐसे देश हैं, जिन्होंने तालिबान को बैन नहीं किया है.
(इस दावे को लेकर हमने असदउद्दीन ओवैसी से संपर्क किया है. उनका जवाब आते ही स्टोरी को अपडेट किया जाएगा)
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