किसी ऐसे राज्य में जहां पार्टी का प्रभुत्व न हो लेकिन साल दर साल की मेहनत में सत्ता हासिल कैसे करते हैं ये बीजेपी से सीखा जा सकता है. हरियाणा, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा कई उदाहरण हैं. फिलहाल, बिहार चुनाव को ही देखते हैं. कभी बिहार गठबंधन में 'छोटे भाई' की भूमिका में रहने वाली बीजेपी, 15 साल से सत्ता के शीर्ष पर बैठे नीतीश के साथ मिलकर चुनाव तो लड़ रही है लेकिन अब राज्य में उसका दमखम किसी लिहाज से जेडीयू से कम नहीं है.
नतीजा साफ है- 6 अक्टूबर को एनडीए में सीटों के बंटवारे का ऐलान हुआ. बीजेपी के खाते में 121 सीटें हैं तो जेडीयू के खाते में 122. इसे देखकर लगता है कि 1 सीट ज्यादा है जेडीयू के खाते में. लेकिन जेडीयू अपने खाते की 7 सीटें तो जीतनराम मांझी की पार्टी HAM को थमा रही है, तो बचीं 115 सीटें. मनोज सहनी वाली विकासशील इंसान पार्टी, जिसे महागठबंधन में तवज्जो नहीं मिली उसे बीजेपी अपने कोटे से सीट देगी. बमुश्किल बीजेपी VIP को 5 सीटें दे दे तो वो भी काफी है. मतलब ये है कि बीजेपी कम से कम 116 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है और प्रैक्टिकल बात करें तो जेडीयू, बीजेपी से कम सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है.
ये तो हो गई ‘अंकगणित’ की बातें, जिसका मतलब सिर्फ सांकेतिक होगा. बड़ी चुनौती क्या है? बड़ी चुनौती है एलजेपी और बीजेपी के बीच कभी नीम-नीम कभी शहद-शहद होना.
किसकी-किससे टक्कर?
BJP-JDU-LJP के ‘रिश्ते’ को समझने से पहले देखते हैं कि बिहार में कौन-कौन साथ मिलकर किससे-किससे टक्कर ले रहा है. NDA का गणित तो आपने समझ लिया.
महागबंधन की बात करें तो चुनाव आरजेडी के नेतृत्व में लड़ा जा रहा है, सीएम चेहरे हैं तेजस्वी यादव. महागबंधन में सबसे ज्यादा 144 सीट आरजेडी के पास है.
तीसरा मोर्चा !
NDA और महागठबंधन के अलावा बिहार चुनाव में एक तीसरे मोर्चे ने भी आकार लिया है. उपेंद्र कुशवाहाकी पार्टी RLSP ने BSP और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के साथ मिलकर ये गठबंधन बनाया है. इसी गठबंधन में देवेंद्र यादव की पार्टी समाजवादी जनता दल डेमोक्रेटिक भी शामिल हुई है. तो कुल चार पार्टियां अब तक इस गठबंधन में शामिल हो गई है. अभी गठबंधन का नाम तय किया जाना बाकी है. कुछ और छोटी पार्टियां भी इस गठबंधन का हिस्सा बन सकती हैं.
इस बीच आरजेडी की सहयोगी रही झारखंड मुक्ति मोर्चा के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य भी 'बागी' मोड में नजर आ रहे हैं. उनका कहना है कि पार्टी ने फैसला लिया है कि वो हार के चकाई, झाझा, कटोरिया, धमदाहा, नाथनगर, मनिहारी, पीरपैंती विधानसभा सीट पर अपना उम्मीदवार उतारेगी. भट्टाचार्य का कहना है कि आरजेडी को पार्टी ने जरूरत से ज्यादा सम्मान दे दिया है, अब जेएमएम अकेले दम पर चुनाव लड़ेगी, आने वाले दिनों में कितने सीटों पर चुनाव लड़ा जाएगा, ये तय कर लिया जाएगा.
अब फिर से फ्लैशबैक में आते हैं!
क्रोनोलॉजी समझिए
- इन सब बातों को पहले एक के बाद एक पढ़िए
- जेडीयू के खिलाफ खुलकर है चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी
- एलजेपी ने एनडीए तक को छोड़ दिया है\
- लेकिन बीजेपी से नाराज नहीं है एलजेपी, पीएम मोदी के नेतृत्व की बात करते हैं, बीजेपी के नेतृत्व की बात करते हैं चिराग पासवान
- बिहार बीजेपी के जाने माने नेता राजेंद्र सिंह एलजेपी में शामिल हो गए हैं
- नीतीश कुमार 2014 लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए से अलग हुए थे तब भी एलजेपी बीजेपी के साथ थी, 2015 विधानसभा चुनाव में भी साथ थी. लेकिन 2016 में बीजेपी और जेडीयू दोबारा साथ आ गए. लेकिन तब भी एलजेपी बिहार सरकार में नहीं रही. अब एलजेपी बिहार में BJP की अगुवाई वाली सरकार चाहती है.
मतलब कि बीजेपी, जेडीयू के साथ चुनाव लड़ रही है और उसकी एलजेपी के साथ भी कोई ऐसी दुश्मनी नहीं रही है, वैसे भी एलजेपी के रामविलास पासवान को चुनावी मौसम वैज्ञानिक कहा जाता है. अब जब LJP, JDU और HAM उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ने जा रही है, BJP उम्मीदवारों को उसका समर्थन हासिल होगा, ऐसे में BJP का स्ट्राइक रेट उसके सहयोगियों की तुलना में बेहतर हो सकता है. चुनाव बाद सबके अपने रास्ते हैं, जो हमेशा खुले रहते हैं.
ऐसा नहीं है कि इन बातों से जेडीयू वाकिफ नहीं होगी या अंदरखाने कुछ चल नहीं रहा होगा लेकिन शायद पलटू का टैग कुछ करने से रोक रहा है? साथ ही चुनाव ठीक सामने है अब अकेले दम पर तैयारी जेडीयू के लिए मुश्किल है.
कुल मिलाकर इस पूरी कहानी से क्या शिक्षा मिलती है-
इतिहास से हम यही सीखते हैं कि हम इतिहास से कुछ नहीं सीखते- जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
शॉ की इन पंक्तियों का मतलब हमेशा मौजूं है. बीजेपी का ये रिकॉर्ड रहा है कि पार्टी ने एक के बाद कई राज्यों में जो पार्टियां मजबूत रहीं हैं उन रीजनल पार्टियों से समझौता किया. जैसे-जैसे वो आगे बढ़ती है सहयोगी दलों के नेताओं के वोट बैंक में सेंध लगाती है और फिर कुछ सालों में वो पहले नंबर की पार्टी बनकर उभर जाती है. गुजरात में जनता दल से समर्थन लेना बाद में सबसे बड़ी पार्टी बन जाना. फिर हरियाणा में आईएनएलडी के साथ गठजोड़, कर्नाटक में जेडीएस, महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ गठबंधन. ये सब उदाहरण हैं, जरा इन गठबंधनों का इतिहास झांकिए,रिजल्ट वही मिलेगा. बीजेपी साथियों के कंधे पर सवार होकर ऊपर चढ़ी है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)