जीडीपी ग्रोथ के 11 साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंचने के सरकारी अनुमानों के बावजूद शेयर बाजार कुलांचे भर रहा है. निवेशक लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स और डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स को दो साल तक रोकने या पूरी तरह खत्म करने की उम्मीद लगाए बैठा है. साथ ही वह पर्सनल इनकम टैक्स में भी राहत चाहता है ताकि लोगों में हाथ में ज्यादा पैसा बचे और शेयर और फाइनेंशियल मार्केट में निवेश की ओर उनका रुझान बढ़े. आइए देखते हैं बाजार किन टैक्स सुधारों की ओर टकटकी लगा कर देख रहा है.
लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स (LTCG) से क्या मिलेगी निजात?
वित्त वर्ष 2004-05 में तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने लॉन्ग कैपिटल गेन्स टैक्स खत्म कर दिया था. लेकिन 2018-19 में मोदी सरकार के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसे फिर से लागू कर दिया था. अब एक साल में शेयरों में एक लाख से अधिक के मुनाफे पर दस फीसदी टैक्स लगता है. अगर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इस बजट में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स को खत्म कर देती है या फिर इस टैक्स को लगाने की अवधि एक साल से बढ़ा देती हैं तो यह मार्केट का सेंटिमेंट और बूस्ट कर सकता है. इससे बाजार में ज्यादा पैसा आएगा. इससे इकनॉमी को भी ताकत मिलेगी क्योंकि लिस्टेड कंपनियों को पूंजी जुटाने में आ रही दिक्कतें कम होंगी.
मौजूदा वक्त में यह बेहद जरूरी है क्योंकि सरकार चाहती है निजी निवेश में इजाफा हो और इकनॉमी का चक्र जरा रफ्तार पकड़े. निवेशक यह भी चाह रहे हैं कि सरकार भले ही इस टैक्स को खत्म न करे लेकिन इसकी दर अगर सात या पांच फीसदी कर दे तो भी बाजार की रौनक और बढ़ जाएगी
कुछ बड़े निवेशक चाहते हैं कि सरकार शेयरों को रखने की होल्डिंग पीरियड बढ़ा दे. यानी दो साल के बाद शेयर बेचने या ट्रांसफर करने पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगाए.
डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स भी हटना जरूरी
डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स यानी DDT मुनाफा कमाने वाली उन कंपनियों पर लगाया जाता है जो अपने निवेशकों को डिविडेंड यानी लाभांश देती है. यह कंपनियों पर अतिरिक्त बोझ है.क्योंकि कंपनियों के मुनाफे पर पहले ही टैक्स लग चुका होता है.
भारतीय कंपनियां इस वक्त 20 से 21 फीसदी का डिविडेंड टैक्स देती हैं.इसके अलावा अगर कंपनी की डिविडेंड इनकम प्रति वर्ष दस लाख रुपये से अधिक है तो अतिरिक्त दस फीसदी टैक्स लगता है. कंपनियों पर से यह टैक्स हटाया जा सकता है क्योंकि उन पर पहले ही कई टैक्स लगाए जा चुके होते हैं. हालांकि सरकार चाहे तो कंपनियों से यह बोझ हटा कर डिविडेंड हासिल करने वाले पर डाल सकती है.
पर्सनल इनकम टैक्स में छूट से भी बढ़ेगी बाजार की रौनक
आम लोगों की कमाई पर लगने वाले टैक्स में कमी का बेसब्री से इंतजार हो रहा है. भारतीय इकनॉमी इस समय डिमांड की कमी से जूझ रही है. लोगों की कंजप्शन की ताकत कम हो रही है. और इसका असर स्लोडाउन की शिकार इकनॉमी पर बोझ और बढ़ रहा है.
अगर सरकार टैक्स दरें कम करती हैं या स्लैब में इजाफा करती है तो लोगों के हाथ में ज्यादा पैसा बचेगा. यह पैसा कंज्यूमर मार्केट में आएगा और बाजार में चीजों की मांग बढ़ेगी. इसका संबंध रोजगार से भी है. मांग बढ़ने से उत्पादन भी बढ़ेगा और लोगों को रोजगार मिलेगा. पर्सनल इनकम टैक्स में कटौती फील गुड फैक्टर लाएगा और लोग ज्यादा खर्च करेंगे. बैंकों की इंटरबैंक लिक्वडिटी चार लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गई हैं. यानी बैंकों के पास पर्याप्त पैसा लेकिन लोग लोन नहीं ले रहे हैं. अगर टैक्स में कटौती होती है तो कंज्यूमर लोन मार्केट भी जोर पकड़ेगा. इससे बैंकों को सहारा मिलेगा और इकनॉमी को भी.
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