काफी धूमधाम के साथ शुरू हुए भारतीय महिला बैंक का विलय 1 अप्रैल से देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में हो जाएगा. इसके बाद भारतीय महिला बैंक के सभी अधिकारी और कर्मचारी एसबीआई के कर्मचारी हो जाएंगे.
आज से तीन साल पहले 1000 करोड़ रुपये की पूंजी के साथ तत्कालीन यूपीए सरकार ने भारतीय महिला बैंक की शुरुआत की थी. उत्साह इतना था कि पहली शाखा के उद्घाटन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी और वित्तमंत्री पी चिदंबरम शामिल हुए थे. पहली चेयरपर्सन ऊषा अनंत सुब्रह्मण्यम की अगुवाई में खोले गए भारतीय महिला बैंक के जरिए सरकार का मकसद महिलाओं के बीच बैंकिंग सर्विसेज और आंत्रप्रेन्योरशिप को बढ़ावा देना था.
फ्लॉप रहा महिला बैंक का आइडिया
लेकिन ये मकसद कितनी बुरी तरह नाकाम हुआ है, इसका अंदाजा इस बात से लग सकते हैं कि 3 साल में भारतीय महिला बैंक ने सिर्फ 192 करोड़ रुपये के लोन महिलाओं को दिए हैं, जबकि जिस एसबीआई में इसका विलय हो रहा है, उसने महिलाओं को 46,000 करोड़ रुपये का कर्ज दिया है.
यही नहीं, एसबीआई के देशभर में 126 एक्सक्लूसिव विमेन ब्रांच हैं, जबकि भारतीय महिला बैंक के सिर्फ 7. और तो और, एसबीआई के करीब 2 लाख कर्मचारियों में से करीब 22 परसेंट महिलाएं हैं. संयोग से इस वक्त एसबीआई की अगुवाई भी एक महिला के हाथ में है. देशभर में भारतीय महिला बैंक की 103 शाखाएं हैं और कुल बिजनेस महज 1600 करोड़ का है. (देखें ग्राफिक्स)
साफ है कि भारतीय महिला बैंक का आइडिया बिलकुल फ्लॉप रहा है. अगस्त 2015 से ही इसे बंद करने की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी, जबकि इसके कुछ प्रोडक्ट ऐसे भी थे, जो सिर्फ महिलाओं को ध्यान में रखकर लाए गए थे. किचन लोन, क्रेच लोन, होम-बेस्ड कैटरिंग लोन जैसे इनोवेटिव प्रोडक्ट्स के सहारे महिलाओं को इसकी तरफ आकर्षित करने की कोशिश थी. यहां तक कि दूसरे सरकारी बैंकों के मुकाबले सेविंग्स अकाउंट खोलने पर ज्यादा ब्याज का ऑफर भी था.
लेकिन सच ये है कि पिछले 3 साल में न तो सरकार की तरफ से, न ही भारतीय महिला बैंक की तरफ से खुद के प्रोमोशन पर ध्यान दिया गया.
कितने लोगों को तो ये मालूम भी न होगा कि देश में भारतीय महिला बैंक नाम से कोई बैंक भी है. इस बैंक के प्रति सरकार के रुख का अंदाजा इस बात से भी लगता है कि पहली चेयरपर्सन ऊषा अनंत सुब्रह्मण्यम को अगस्त 2015 में पंजाब नेशनल बैंक का सीएमडी बनाए जाने के बाद से ये पद खाली ही रहा.
जब इस बैंक की योजना बन रही थी, तब भी कई लोग थे, जो महिला बैंक के कॉन्सेप्ट से सहमत नहीं थे. उनका मानना था कि महिलाओं के फाइनेंशियल इनक्लूजन के लिए अलग से महिला बैंक बनाए जाने की जरूरत नहीं है. हालांकि इस कॉन्सेप्ट के पक्षधर लोगों का मानना था कि महिला ग्राहकों को वो बैंक ज्यादा लुभाएगा, जहां सिर्फ महिला कर्मचारी हों.
इस बहस में न भी पड़ें, तो भारतीय महिला बैंक की नाकामी की वजहें साफ दिखती हैं.
- इस बैंक की सभी शाखाएं शहरी इलाकों में खोली गईं, जहां पहले से ही बैंकिंग सर्विस अच्छी हालत में थी.
- अगर लक्ष्य फाइनेंशियल इनक्लूजन है, तो क्या ये बेहतर नहीं होता कि ग्रामीण इलाकों पर भारतीय महिला बैंक फोकस करता.
- साथ ही अगर वाकई एक नए बैंक को पुराने और स्थापित बैंकों के सामने खड़ा करने का लक्ष्य होता, तो योजना पुख्ता बननी चाहिए थी.
वजह चाहे जो हो, लेकिन 'महिलाओं का, महिलाओं के लिए और महिलाओं के द्वारा बैंक' की सोच सिर्फ नारे तक सीमित रह गई है. भारतीय महिला बैंक 1 अप्रैल, 2017 से अपनी मौजूदगी सिर्फ इतिहास के पन्नों में दर्ज करा पाएगा.
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