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जी का जंजाल नहीं है GST, एक बार समझकर तो देखिए

देश का सबसे बड़ा टैक्स बदलाव कारोबार, व्यापार, खरीदार- सबकी लाइफ पर असर डालेगा. 

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एक जुलाई से जीएसटी लागू होने जा रहा है. इसे लेकर सारे संदेह खत्म हो चुके हैं. देश का सबसे बड़ा टैक्स बदलाव कारोबार, व्यापार, खरीदार- सबकी लाइफ पर असर डालेगा. इसलिए अब इससे बचने और आंख चुराने का फायदा नहीं.

इससे घबराइए नहीं, क्योंकि इसे समझना इतना मुश्किल भी नहीं है. जीएसटी की ए बी सी डी को आसान भाषा में कुछ ऐसे समझिए:

जीएसटी क्या है?

गुड्स एंड सर्विस टैक्स को हिंदी में वस्तु और सेवा कर कहा जाता है. यह एक तरह का वैल्‍यू एडेड टैक्स है, जो गुड्स और सर्विस में जब-जब वैल्यू जुड़ती है, उसके हर स्तर पर लगता है. यानी अगर गुड्स या सर्विस में कोई वैल्यू जुड़ी है, तो उसके मुताबिक उतना टैक्स जुड़ जाएगा.

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जीएसटी का असर

दावा है इससे टैक्स सिस्टम की खामियां दूर होंगी. खास तौर पर इसका मकसद टैक्स पर टैक्स को खत्म करना है. जीएसटी लागू होने के बाद तमाम तरह के दूसरे टैक्स हट जाएंगे. पहले होता था कि आप अगर मध्य प्रदेश में रहते हैं और तमिलनाडु में बनी कार खरीदते हैं, तो आपके ऊपर दोहरा टैक्स लगता था. एक तो तमिलनाडु का टैक्स, केंद्र का टैक्स यानी एक्साइज ड्यूटी और मध्य प्रदेश का बिक्री कर. लेकिन अब आपको सिर्फ एक ही टैक्स देना होगा. जीएसटी के दो बराबर हिस्से होंगे, एक केंद्र का होगा, दूसरा उस राज्य का, जहां आइटम बेचा गया है.

इनपुट टैक्स क्रेडिट क्या है?

सप्लाई चेन के हर स्तर पर आइटम की जितनी वैल्यू बढ़ती है, सिर्फ उस पर टैक्स लगता है. यानी पहले के स्तर पर जो टैक्स दिया गया है, उसकी वापसी क्लेम की जा सकती है. मान लीजिए कपड़े बनाने वाली कंपनी ने कच्चा माल खरीदते वक्त जो टैक्स दिया था, वो रिटर्न फाइल करते वक्त उसका रिफंड क्लेम कर सकता है.

इसी तरह कोई सर्विस प्रोवाइडर मान लीजिए डीटूएच कंपनी है, तो वो अपने प्रोडक्ट में इस्तेमाल आइटम, जैसे डिश एंटीना की खरीदी में दिए गए टैक्स के रिफंड का क्लेम कर सकती है.

जीएसटी कौन देगा?

ऐसे कारोबारी, मैन्युफैक्चरर और ट्रेडर, जिनका सालाना टर्नओवर 20 लाख रुपये से ज्यादा हो. यानी इस लिमिट के नीचे वाले कारोबारियों को जीएसटी रजिस्ट्रेशन कराने की जरूरत नहीं. पूर्वोत्तर और विशेष श्रेणी के राज्यों के लिए यह लिमिट 10 लाख रुपये है. लेकिन अंतरराज्यीय कारोबार के लिए कोई लिमिट नहीं है, इसमें जीएसटी लगेगा.

जीएसटी के बाद कौन से टैक्स खत्म होंगे?

प्रोडक्शन पर टैक्स, जैसे सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी, अतिरिक्त एक्साइज ड्यूटी, इंपोर्ट ड्यूटी जैसे काउंटरवेलिंग ड्यूटी, स्पेशल कस्टम ड्यूटी, सर्विस टैक्स, सेंट्रल सेस और सरचार्ज, राज्यों के टैक्स जैसे वैट, अंतरराज्यीय कारोबार में सेंट्रल सेल्स टैक्स, लग्जरी टैक्स, एंटरटेनमेंट टैक्स (स्थानीय निकायों के टैक्स को छोड़कर), विज्ञापन पर टैक्स, लॉटरी पर टैक्स, राज्यों के सेस, तमाम टैक्स खत्म हो जाएंगे. लेकिन बेसिक कस्टम ड्यूटी जस की तस रहेगी, क्योंकि जीएसटी का हिस्सा नहीं है.

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जीएसटी के फायदे

हर सामान और सर्विस पर लगने वाले टैक्स में पारदर्शिता आएगी. अभी तो जब कोई आइटम खरीदा जाता है, तो खरीदार को प्रोडक्ट के लेबल पर सिर्फ राज्य में लगा टैक्स ही नजर आता है. इसके अलावा क्या-क्या टैक्स जुड़ गए, कंज्यूमर को ये पता ही नहीं चलता.

एक जुलाई के बाद इसमें पारदर्शिता आ जाएगी. जो आइटम जीएसटी दर की जिस कैटेगरी में है, उसी के आधार पर टैक्स लगेगा. सबसे बड़ा फायदा होगा कि पूरा देश एक बाजार बन जाएगा. यानी देश में कहीं भी किसी भी आइटम की सप्लाई बेरोकटोक हो सकेगी, राज्यों की सीमाओं की तमाम रुकावटें खत्म हो जाएंगी.

सरकार को उम्मीद है कि टैक्स चोरी कम होगी. अनुमान है कि लंबी अवधि में राज्य और केंद्र की आय में भारी बढ़ोतरी होगी. रिसर्च एजेंसियों के मुताबिक, एक बार जीएसटी सिस्टम पूरी तरह पटरी पर आ गया, तो जीडीपी ग्रोथ भी 1.5 परसेंट तक बढ़ सकती है. तमाम तरह के टैक्स हटने का फायदा ये होगा कि बहुत से आइटम में टैक्स का बोझ कम हो जाएगा, दाम कम हो जाएंगे.

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प्रोडक्ट जो अभी जीएसटी में शामिल नहीं

क्रूड ऑयल, डीजल, पेट्रोल, नैचुरल गैस, जेट फ्यूल को फिलहाल जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है. इन सभी आइटम को जीरो परसेंट कैटेगरी में रखा गया है, लेकिन पुराना टैक्स लगता रहेगा. इन सभी को कब जीएसटी के दायरे में लाना है, इसका फैसला केंद्रीय वित्तमंत्री की अगुआई वाली जीएसटी काउंसिल करेगी.

जीएसटी के दायरे से पूरी तरह बाहर प्रोडक्ट और सर्विस

रियल एस्टेट, शराब और बिजली पूरी तरह से राज्य के विषय हैं, इसलिए जीएसटी में शामिल नहीं किए जाएंगे. लेकिन लैंड लीजिंग जीएसटी के दायरे में होगा. इसी तरह शराब जीएसटी के बाहर है और इसे जीएसटी के दायरे में लाने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा.

एकीकृत जीएसटी (इंटीग्रेटेड जीएसटी या आईजीएसटी) क्या है?

अंतरराज्यीय सप्लाई वाले आइटम या सर्विस आईजीएसटी के दायरे में आएंगे. इसमें वसूल की गई जीएसटी के दो हिस्से होंगे, एक केंद्र का और दूसरा राज्य का. लेकिन इसे अलग अलग करना कंज्यूमर या कारोबारी का सिरदर्द नहीं होगा. जीएसटी नेटवर्क का सॉफ्टवेयर अपने आप ये हिस्सेदारी कर देगा.

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जीएसटी में इंपोर्ट की परिभाषा क्या होगी

इंपोर्ट को अंतरराज्यीय सप्लाई माना जाएगा और इसमें आईजीएसटी लगेगा. एक्सपोर्ट पर अलग से कोई टैक्स नहीं लगेगा, एक्सपोर्ट के लिए तैयार सामान में इस्तेमाल हुए कच्चे माल और सर्विस पर दिए गए टैक्स को रिफंड कर दिया जाएगा.

मुनाफाखोरी पर लगाम लगाने का तरीका

जीएसटी की आड़ में मैन्युफैक्चरर या कारोबारी और ट्रेडर को कीमतें बढ़ाकर मुनाफाखोरी से रोकने के लिए यह प्रावधान लाया गया है. अगर किसी आइटम में जीएसटी मौजूदा टैक्स के मुकाबले कम होगा, तो कंपनियों को उन आइटम के दाम घटाकर फायदा कंज्यूमर तक पहुंचाना होगा.

जीएसटी कानून के मुताबिक एंटी प्रॉफिटियरिंग अथॉरिटी बनाई जाएगी, जो मुनाफाखोरी की शिकायतों पर कार्रवाई करेगी. अगर किसी ने मुनाफाखोरी की है तो उसे टैक्स में कमी का फायदा कंज्यूमर को 18 परसेंट ब्याज समेत लौटाना होगा.

अगर खरीदार की पहचान नहीं हो पाती या उसका दावेदार नहीं होता, तो अतिरिक्त मुनाफे की वसूली होगी. अगर मामला बहुत गंभीर पाया गया तो मुनाफाखोरी करने वाले का जीएसटी रजिस्ट्रेशन रद्द किया जा सकता है.

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जीएसटी काउंसिल में फैसले कैसे होंगे?

जीएसटी काउंसिल के कोई फैसले केंद्र और राज्य सरकारों की सहमति के बगैर नहीं होंगे. किसी भी फैसले के लिए जीएसटी काउंसिल की बैठक में मौजूद 75 परसेंट वोट जरूरी हैं. केंद्र सरकार का वेटेज कुल पड़े वोटों का एक तिहाई होगा. बाकी सभी राज्यों का मिलकर वेटेज दो तिहाई होगा.

जीएसटी की दरें

कुल मिलकर 6 दरें होंगी. 0.25 परसेंट, 3 परसेंट, 5 परसेंट, 12 परसेंट, 18 परसेंट और 28 परसेंट

जीएसटी सेस

अलग अलग आइटम पर सेस के बहुत से रेट हैं. कुल मिलाकर सेस के एक परसेंट से लेकर 290 परसेंट तक हैं. सिगरेट, सिगार और तंबाकू प्रोडक्ट पर अलग रेट होंगे.

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जीएसटी और रिटर्न फाइलिंग

हर महीने की 10 तारीख तक पिछले महीने की बिक्री का स्टेटमेंट फाइल करना होगा. इसी तरह की गई खरीद या इनपुट का ब्योरा हर महीने की 15 तारीख तक दायर करना होगा. इनपुट टैक्स रिफंड के लिए हर महीने की 20 तारीख तक खरीद-बिक्री का पूरा ब्योरा यानी रिटर्न दायर करना होगा. कुल मिलाकर हर महीने तीन और साल में 37 बार फाइलिंग करनी होगी.

(अरुण पांडेय वरिष्ठ पत्रकार हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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