8 नवंबर को नोटबंदी (Demonetisation) के 5 साल पूरे हो गए. पीएम मोदी (PM Modi) ने जब 500-1000 के नोटों को बंद करने का ऐलान किया था, तब कालेधन पर लगाम, अर्थव्यवस्था को डिजिटल बनाने जैसे तमाम बड़े दावे किए गए थे.
हालांकि 5 साल में जमीनी हालात क्या हैं, नोटबंदी का मकसद कितना सफल हुआ, इसे लेकर अब भी कई बड़े सवाल हैं. आइए जानने की कोशिश करते हैं कि नोटबंदी का मकसद कितना सफल हुआ.
कालेधन पर लगाम का दावा फेल
पीएम मोदी ने जिस वक्त नोटबंदी का ऐलान किया उस समय 500 और 1000 रुपए के कुल 15.41 लाख करोड़ रुपए के नोट चलन में थे, दावा था कि इसका एक बड़ा हिस्सा कालाधन है, जो नोटबंदी की वजह से चलन में वापस नहीं आ पाएगा. हालांकि 15.31 लाख करोड़ से ज्यादा के नोट बैंकों में वापस में आ गए.
यानी सिर्फ 10 हजार करोड़ रुपए के नोट बैंकों में वापस नहीं आ पाए. इनमें से भी बड़ा हिस्सा ऐसा था जो या तो किसी एजेंसी ने जब्त किया हुआ था या नेपाल जैसे पड़ोसी देश के बैंकों में जमा था.
नोटबंदी के वक्त चलन में जो कुल कैश था, उसकी वैल्यू का 85 फीसदी 500-1000 के नोट थे. सरकार ने नोटबंदी के बाद 500 के नए नोट के साथ-साथ 2000 रुपये का नोट भी जारी किया. पीटीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार 31 मार्च 2021 तक प्रचलन में जो कुल बैंक नोट हैं, उनकी वैल्यू का 85 फीसदी से ज्यादा हिस्सा 500-2000 के नोटों का है. यह स्थिति तब है जब वित्त वर्ष 2019-20 से 2000 के नोटों की छपाई बंद है.
आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार 2016 में 17.74 लाख करोड़ रुपये के नोट चलन में थे, 5 साल बाद 29 अक्टूबर, 2021 को यह बढ़कर 29.17 लाख करोड़ रुपये हो गया. यानी सरकारी आंकड़ों की मानें तो 2016 के मुकाबले कैश के चलन में 64 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि दर्ज की गई है.
डिजिटल पेमेंट
सरकार का दूसरा दावा डिजिटल पेमेंट को लेकर था. ये सच है कि डिजिल पेमेंट में 2016 से लेकर अब तक काफी ज्यादा बढ़ोतरी देखी गई है. अब छोटे-छोटे ट्रांजैक्शंस के लिए भी लोग डिजिटल पेमेंट का इस्तेमाल कर रहे हैं.
यूपीआई मोड से होने वाले लेनदेन का आंकड़ा अक्टूबर 2021 में 100 अरब डॉलर यानी 7.71 करोड़ को पार कर गया. अकेले अक्टूबर में 421 करोड़ से ज्यादा का लेन-देन हुआ है.
एक पहलू ये भी है कि जो ट्रांजैक्शंस फिलहाल यूपीआई मोड में हो रहे हैं, उनका एक हिस्सा पहले कार्ड के जरिए होता था. यानी कार्ड से होने वाले पेमेंट का बड़ा हिस्सा अब यूपीआई की ओर शिफ्ट हो गया है.
अनौपचारिक अर्थव्यवस्था घटी
हाल ही में आई एसबीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की अनौपचारिक अर्थव्यवस्था (Informal Economy) 2017-18 में 52.4 फीसदी से घटकर 15-20 फीसदी तक आ गई है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत की अनौपचारिक अर्थव्यवस्था यूरोप के करीब हो गई है. यानी अर्थव्यवस्था में औपचारिक क्षेत्र की हिस्सेदारी अब 80 फीसदी के करीब हो गई.
इस रिपोर्ट में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था कम होने और औपचारिक के तेजी से बढ़ने के मुख्य वजह नोटबंदी और उसके बाद उठाए गए तमाम कदमों को माना गया है. हालांकि इस रिपोर्ट पर एक्सपर्ट्स सवाल भी उठा रहे है. उनका कहना है आंकड़े तैयार करने के दौरान 'असंगठित अर्थव्यवस्था' की कोई परिभाषा नहीं दी गई. यानी किन-किन सेक्टर्स को असंगठित अर्थव्यवस्था में जोड़ा गया है.
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