1 फरवरी को वित्त मंत्री अरुण जेटली बजट पेश करेंगे. इस बजट से सभी को काफी उम्मीदें हैं क्योंकि ये 2019 चुनावों से पहले मोदी सरकार का आखिरी बजट होगा. तीन साल पहले वित्त मंत्री ने कहा था कि कॉरपोरेट टैक्स में कमी लाकर इसे 25 प्रतिशत किया जाना चाहिए. अभी कॉरपोरेट टैक्स 30 फीसदी है.
पीएचडी चैम्बर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री ने वित्त मंत्रालय से अपील की है कि कॉरपोरेट टैक्स को कम कर वादे के अनुसार 25 प्रतिशत के अंदर किया जाए. साथ ही ये भी मांग की है कि मिनिमम अलटरनेट टैक्स (एमएटी या न्यूनतम वैकल्पिक कर) में भारी कटौती हो.
इसके अलावा संस्था ने मेडिकल रीइंबर्समेंट की सीमा बढ़ाने की अपनी मांग दोहराई है और वेतनभोगी वर्ग के लिए इसे 15,000 रुपये से बढ़ाकर 50,000 रुपये करने की मांग की है.
मंत्रालय को दिए गए बजट से पहले के अपने ज्ञापन में चैम्बर ने कहा है कि 18.5 प्रतिशत एमएटी की मौजूदा दर सरचार्ज और सेस समेत 20 प्रतिशत के करीब बैठती है जो बहुत ज्यादा है. और 2018-19 के आगामी बजट प्रस्तावों में इसे सही किए जाने की जरूरत है.
पीएचडी चैम्बर के अध्यक्ष अनिल खेतान ने एमएटी दरों को सही किए जाने की मांग करते हुए कहा कि "एमएटी की शुरुआत के पीछे मकसद यही था कि शून्य टैक्स वाली सभी कंपनियों को टैक्स सीमा में लाया जाए, क्योंकि ये कराधान बहुत पहले 2000 में 7.5 प्रतिशत पर शुरू किया गया था."
चैम्बर ने ये भी कहा कि "वैसे तो सरकार की योजना है कि कॉरपोरेट टैक्स को चरणों में कम करके 30 प्रतिशत से 25 प्रतिशत पर लाया जाए, पर यह आवश्यक है कि टैक्स में कमी को तर्कसंगत बनाया जाए और टैक्स में अलग-अलग तरह की छूट को खत्म किया जाए और कॉरपोरेट टैक्स पेयर्स को प्रोत्साहन मिले. फाइनेंस एक्ट 2016 में कानून के संबंधित प्रावधानों को भी संशोधित कर दिया गया है, जिससे ये सुनिश्चित किया जा सके कि कंपनियों को उपलब्ध कटौतियों और प्रोत्साहनों को चरणों में खत्म किया जाए, ताकि यह कॉरपोरेट टैक्स की दर कम करने के सरकार के निर्णय के अनुकूल हो जाए."
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