बुलेट ट्रेन का वक्त पर चलने के रास्ते में अड़चनों का अंबार खड़ा हो गया है. इसे 2022 तक दौड़ना है लेकिन जिस रफ्तार से प्रोजेक्ट का काम चल रहा है उससे लक्षण ठीक नहीं लगते.
प्रोजेक्ट लॉन्च हुए सालभर होगया है लेकिन जरूरत की 1400 हेक्टेयर में सिर्फ 1 हेक्टेयर जमीन ही प्रोजेक्ट के कब्जे में आई है. करीब 1.10लाख करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट को पीएम नरेंद्र मोदी के दिल के करीब माना जा रहा है.लेकिन किसानों के भारी विरोध की वजह से जमीन लेने में अड़चन ही अड़चन हैं.
भारत के पहले बुलेट प्रोजेक्ट में संकट
मुंबई से अहमदाबाद के बीच करीब 500 किलोमीटर का बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट भारत के लिए अनोखा है. जापान की शिंकसेन टेक्नोलॉजी पर चलने वाली बुलेट ट्रेन को 2022 तक पूरा होना है पर समय तेजी से निकल रहा है और जमीन हाथ में नहीं आ रही है.
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी के मुताबिक जमीन अधिग्रहण भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के रास्ते की मुख्य अड़चन है. 2018 में 2 लाख करोड़ रुपए के इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट पूरे हो जाने चाहिए थे.लेकिन सिर्फ 75 हजार करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट ही पूरे हो पाए हैं.
राजनीतिक एनालिस्ट नीलांजन मुखोपाध्याय के मुताबिक लोगों के विरोध की वजह से अगर प्रोजेक्ट में देरी होती है तो पीएम मोदी की इमेज पर बुरा असर होगा.
बुलेट प्रोजेक्ट
- अहमदाबाद से मुंबई सिर्फ 2 घंटे में
- दूरी करीब 500 किलोमीटर
- 2022 तक पूरा होना है
- लागत- 1.1 लाख करोड़ रुपए
- ट्रेन की अधिकतम स्पीड- 320 किलोमीटर प्रति घंटा
- ज्यादातर ट्रैक एलिवेटेड
- जमीन और अंडरग्राउंड भी रहेगा ट्रैक
- सबसे बड़ी टनल 21 किलोमीटर
- 7 किलोमीटर की टनल समंदर के अंदर
किसानों का समूह प्रोजेक्ट के खिलाफ
जापानी कंपनियों को लग रहा है कि बहुत दिनों बाद भारत में इतना बड़ा रेल प्रोजेक्ट हाथ आया है, इसलिए वो अपनी तरफ से कोई देरी नहीं होने देना चाहते.
किसानों के एक ग्रुप ने गुजरात हाईकोर्ट में प्रोजेक्ट के खिलाफ याचिका लगाई है जिसपर 22 नवंबर को सुनवाई होगी.
इस सबके बावजूद नेशनल हाई स्पीड रेल कॉरपोरेशन के प्रवक्ता धनंजय कुमार का दावा है कि प्रोजेक्ट तय वक्त पर ही पूरा होगा.
लेकिन ऐसा नहीं है कि जमीन अधिग्रहण की वजह से बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट सिर्फ भारत में फंसा है. इंडोनेशिया में जकार्ता और बंडुंग के बीच 600 करोड़ डॉलर का हाई स्पीड रेल प्रोजेक्ट फंस गया है. अगस्त 2016 में जकार्ता प्रोजेक्ट पर काम शुरू होना था लेकिन अगस्त 2018 तक 142 किलोमीटर लंबी रेल लाइन के लिए सिर्फ 8 परसेंट जमीन का ही अधिग्रहण हो पाया है.
अब तक मुश्किलों के बावजूद भारतीय हाईस्पीड रेल कॉरपोरेशन को उम्मीद है कि एक बार जमीन अधिग्रहण का काम होते ही प्रोजेक्ट रफ्तार पकड़ लेगा.
(इनपुट ब्लूमबर्ग)
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