इकनॉमिक सर्वे में बहुत सी बातें हैं. विकास दर क्या रहेगा, फिस्कल डेफिसिट कितना रहेगा, एक्सपोर्ट में कैसी तेजी रहेगी, महंगाई में कितना इजाफा होगा और अर्थव्यवस्था को कौन-कौन से संभावित खतरे हैं. लेकिन ये सारी तो रुटीन बातें हैं. हर सालाना सर्वे में इनका जिक्र होता है.
इस साल के सर्वे में कुछ खास बातें हैं. टैक्स वसूली के तरीके पर बड़ा अच्छा विश्लेषण है.
सर्वे में 10 नई बातें कही गई हैं. इनमें एक है टैक्स विवादों का कैसे निपटारा हो रहा है. इसमें गौर करने वाली बात यह है कि विवादों में टैक्स विभाग मुकदमा करने में तो काफी आगे है, लेकिन उसे सफलता 3 में से 1 मामले में ही मिलती है. साथ ही, उन मामलों की संख्या काफी कम है, जिनमें बड़ी रकम पर विवाद है. टैक्स विभाग छोटी रकम वाले मामलों में ज्यादा उलझी हुई है. सर्वे में सुझाव दिया गया है कम मुकदमों से ज्यादा बात बनेगी.
क्या इसका मतलब यह निकाला जाए कि 1 फरवरी को जो बजट पेश होना है, उसमें इसका खयाल रखा जाएगा. इसमें कोई दो राय नहीं है कि पिछले कुछ सालों में टैक्स प्रशासन में बदलाव आया है.
रिटर्न फाइल करना आसान हुआ है. फॉर्म भरना भी उतना मुश्किल नहीं. सब कुछ ऑनलाइन करने से टैक्स पेयर की सुविधा बढ़ी है. लेकिन टैक्स विवाद के मामलों में फिर भी कमी नहीं हो रही है. क्या वित्तमंत्री इस मामले में बड़ा ऐलान करेंगे?
मौजूदा राजनीतिक हालात को देखते हुए ऐसा होना मुमकिन दिखता है. हाल के दिनों में मिडिल क्लास ने बड़ी दिक्कतें झेली हैं. नोटबंदी के बाद जीएसटी के साथ एडजस्टमेंट- इन बड़े बदलावों ने बड़ी मुश्किलें बढ़ाईं.
अगर मान लिया जाए कि इसके बड़े फायदे होंगे, तो भी शॉर्ट टर्म में मिडिल क्लास के लिए राहत पहुंचाने वाली स्कीम की जरूरत महसूस की जा रही है. फिस्कल हालात को देखते हुए टैक्स दर में ज्यादा कटौती संभव नहीं दिख रहा है. हां, छूट की सीमा में 50 हजार रुपये तक की बढ़ोतरी हो सकती है. ऐसे में टैक्स विभाग का नया चेहरा अगर टैक्सपेयर्स के सामने आता है, तो इससे एक फील गुड तो आएगा ही.
रोजगारों की संख्या अनुमान से काफी ज्यादा
सर्वे में एक और नया आंकड़ा दिया गया है. वो है फॉर्मल सेक्टर में रोजगारी के बारे में. इस सरकार पर यह आरोप लगता रहा है कि कुछ सालों में नई नौकरियों के मौके काफी कम हुए हैं, बेरोजगारी की दर काफी बढ़ी है. सर्वे में एक नायाब आंकड़ा पेश किया गया है. सर्वे के मुताबिक संगठित क्षेत्र में रोजगारों की संख्या अनुमान से काफी ज्यादा है.
अगर ईपीएफओ में सदस्यता को बेंचमार्क रखा जाए, तो संगठित क्षेत्र में रोजगारों की संख्या अनुमान से 30 परसेंट ज्यादा यानी 7.5 करोड़ है. और अगर जीएसटी नेटवर्क में भागीदारी को मानक समझा जाए, तो संगठित क्षेत्र में रोजगारों की संख्या 12.7 करोड़ है.
अगर दूसरे आंकड़े को आधार बनाया जाए, तो देश के हर तीन में से 1 परिवार का कम से कम एक सदस्य संगठित क्षेत्र में रोजगार कर रहा है और उसकी सुविधाएं ले रहा है. देश में इतने लोगों के पास क्वालिटी जॉब है, ऐसा कम से कम दिखता नहीं है. लेकिन सर्वे के आंकड़े तो हमें यही बता रहे हैं.
सर्वे में एक बड़ी चिंताजनक बात कही गई है. सर्वे के अनुसार, मौसम में हो रहे बदलाव से खेती से हो रही आमदनी में अगले कुछ सालों में 20-25 फीसदी तक की कमी हो सकती है. इसका मतलब है कि खेती से जुड़े लोगों के लिए अच्छे दिन का इंतजार और भी लंबा हो सकता है.
सर्वे के मुताबिक, गांवों से शहरों की ओर पलायन होने से खेती में महिलाओं की भागीदारी काफी बढ़ी है. अब महिलाएं खेतों में काम भी कर रही हैं और खेती से जुड़े व्यवसाय में ज्यादा हिस्सा ले रही है. पता नहीं इसे गुड न्यूज समझा जाए या बैड न्यूज.
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