पी चिदंबरम ने पकौड़ा नौकरी की चर्चा को दोबारा गरमा दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पर ताना मारते हुए पूर्व वित्तमंत्री ने कहा पकौड़ा तलने को नौकरी मानने वाले अनूठे आइडिया को कोई मानने को तैयार ही नहीं है.
बीजेपी सरकार पर आर्थिक नाकामी का आरोप लगाते हुए चिदंबरम ने कहा नरेंद्र मोदी सरकार ने सब कुछ अनोखा हो रहा है, पकौड़ा तलना नौकरी माना जा रहा है, बैंकिंग सिस्टम खुद बैंकरप्ट हो गया है और कैशलेस सोसाइटी के दावे में रिकॉर्ड कैश आ गया है.
जॉब पर कोई आंकड़ा भरोसेमंद नहीं
चिदंबरम ने कहा है बेरोजगारी बेतहाशा बढ़ रही है और इसके बारे में सिर्फ लेबर ब्यूरो का आंकड़ा भरोसेमंद कहा जा सकता है. लेबर ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक हर तिमाही सिर्फ कुछ हजार नए रोजगार जुड़ रहे हैं या फिर बन रहे हैं. जबकि अच्छे दिन में दावा था सालाना दो करोड़ रोजगार मुहैया कराने का.
चिदंबरम ने केंद्र सरकार से पूछा है कि अक्टूबर-दिसंबर 2017 तिमाही के लिए लेबर ब्यूरो के आंकड़े क्यों नहीं जारी किए गए?
इकनॉमी के टायर पंक्चर
चिदंबरम के मुताबिक इकनॉमी की गाड़ी के चार टायर में से तीन टायर एक्सपोर्ट, प्राइवेट इन्वेस्टमेंट और खपत पंक्चर हैं. इकनॉमी के सिर्फ एक टायर में हवा है, सरकार का भारी भरकम खर्चा. लेकिन वहां भी करेंट अकाउंट घाटा और फिस्कल घाटे में दबाव को देखते हुए सरकार के पास विकल्प ज्यादा नहीं है.
उनका दावा है कि नोटबंदी और जीएसटी ने देश की आर्थिक स्थिति को बहुत नुकसान पहुंचाया है और लोगों में इसका बहुत गुस्सा है. नोटबंदी की वजह से 2017-18 में जीडीपी ग्रोथ 8.2 परसेंट से घटकर 6.7 परसेंट रह गई. अकेले तमिलनाडु में 50 हजार छोटी इकाइयां बंद हो गईं जिससे 5 लाख नौकरियां चली गईं. इससे एक्सपोर्ट में भी भारी गिरावट आई.
बैंकिंग सिस्टम बैंकरप्ट
चिदंबरम के मुताबिक बैंकों का एनपीए 4 साल में 2.63 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 10.3 लाख करोड़ रुपए के नए शिखर पर पहुंच गया है. बैंक अब बड़े लोन देने से डर रहे हैं. बैंक बोर्ड ब्यूरो बुरी तरह से फेल साबित हुआ है. सरकार के पास बैंकों में पूंजी डालने के नए तरीके नहीं बचे हैं.
पेट्रोल-डीजल जीएसटी के दायरे में क्यों नहीं?
पूर्व वित्तमंत्री ने सवाल उठाया कि बीजेपी की राज्य सरकारें पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने के खिलाफ क्यों हैं? उन्होंने कहा कि ज्यादातर राज्यों में बीजेपी की ही सरकार हैं. इसके बाद भी बहानेबाजी का मतलब नहीं है.
चिदंबरम ने रिजर्व बैंक के कंज्यूमर कॉन्फिडेंस सर्वे का जिक्र करते हुए बताया कि 48 परसेंट लोगों को लगता है कि एक साल में आर्थिक स्थिति खराब हुई है. उनके मुताबिक इसी तरह फसलों का सही दाम नहीं मिलने की वजह से किसानों के मन में भी नाराजगी बढ़ रही है. फसलों को लागत का डेढ़ गुना मूल्य दिलाने का वादा भी जुमला साबित हुआ है. इस नाराजगी को दूर करने के लिए तुरंत कदम उठाने जरूरी हैं.
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