ADVERTISEMENTREMOVE AD

मोदी सरकार RBI एक्ट-7 पर अड़ी तो इस्तीफा दे सकते हैं उर्जित पटेल

क्या है रिजर्व बैंक एक्ट का सेक्शन-7

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

क्या रिजर्व बैंक गवर्नर उर्जित पटेल इस्तीफा दे सकते हैं? वित्तमंत्रालय और रिजर्व बैंक में इस बात की खूब अटकलें हैं कि अगर मोदी सरकार आरबीआई एक्ट के सेक्शन 7 को लागू करने के लिए अड़ गई तो उर्जित पटेल इस्तीफा दे सकते हैं.

क्या है RBI एक्ट सेक्शन-7

रिजर्व बैंक एक्ट के सेक्शन 7 के मुताबिक सरकार जनहित में रिजर्व बैंक को आदेश और निर्देश दे सकती है और सेंट्रल बैंक इन्हें मानने के लिए मजबूर है.

सरकार को लगता है कि बैंकों को कर्ज देने में पाबंदी लगाने और ब्याज दरों के मामले में रिजर्व बैंक उसकी सलाह की अनदेखी कर रहा है. लेकिन ये भी सही है कि आजाद भारत में किसी भी सरकार ने एक्ट के सेक्शन 7 का इस्तेमाल नहीं किया है.

अगर मोदी सरकार सेक्शन-7 लागू करती है तो ऐसा करने वाली वो पहली सरकार होगी. लेकिन सूत्र के मुताबिक गवर्नर उर्जित पटेल ने साफ कर दिया है कि ऐसा होने पर वो अपना पद छोड़ देंगे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

मोदी सरकार और रिजर्व बैंक के बीच तनातनी इतनी बढ़ गई है कि सरकार ने रिजर्व बैंक एक्ट की धारा 7 को लागू करने की चर्चा शुरू कर दी है. खबरें हैं कि ये कसरत महीने भर से चल रही है. बताया जा रहा है कि उर्जित पटेल ने भी तेवर सख्त करते हुए साफ कह दिया है कि ऐसा हुआ तो वो पद छोड़ देंगे.

मंगलवार को रिजर्व बैंक गवर्नर उर्जित पटेल और वित्तमंत्री अरुण जेटली मिले तब भी दोनों के बीच रिश्तों में दिल्ली जैसी धुंध छाई हुई थी.

‘बैंकों ने अंधाधुंध कर्ज बांटे और RBI ने नजरें घुमा लीं’

अरुण जेटली ने फाइनेंशियल स्टेबिलिटी डेवलपमेंट काउंसिल बैठक से पहले ही तल्खी जाहिर कर दी. उन्होंने एक दूसरे कार्यक्रम में रिजर्व बैंक को इस बात के लिए आड़े हाथों लिया कि 2008 से 2014 के बीच बैंक मनमाने कर्ज बांटते रहे और आरबीआई दूसरी तरफ देखता रहा. इसी वजह से बैंकिंग सेक्टर संकट में फंस गया है.

हालांकि जेटली जिन दिनों का जिक्र कर रहे थे, उस समय उर्जित पटेल गवर्नर नहीं थे, पर वो उस दौरान ताकतवर डिप्टी गवर्नर थे.

दूसरा कोई टाइम होता, तो जेटली की बातों का इतना बारीक मतलब नहीं निकाला जाता. लेकिन अभी मोदी सरकार और आरबीआई के बीच टेंशन है. ऐसे में जेटली ने जिस अंदाज से रिजर्व बैंक के लिए उखड़ी-उखड़ी बातें कीं और उसे आड़े हाथों लिया, उससे यही लग रहा है कि वित्त मंत्रालय और उर्जित पटेल के बीच दूरियां बहुत बढ़ गई हैं.

रिजर्व बैंक की ऑटोनॉमी से छेड़छाड़ नहीं करने की डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य की चेतावनी के बाद से रिश्तों में तनाव और बढ़ा है.
0

जेटली और उर्जित पटेल मिले

फाइनेंशियल स्टेबिलिटी एंड डेवलपमेंट काउंसिल की बैठक में रिजर्व बैंक गवर्नर के अलावा फाइनेंशियल मार्केट के दूसरे रेगुलेटर भी मौजूद थे. जाहिर है, इस मीटिंग में दोनों के बीच टेंशन की चर्चा नहीं हुई होगी.

लेकिन सूत्रों के मुताबिक, लोकसभा चुनाव में अब ज्यादा वक्त नहीं बचा है, इसलिए सरकार चाहती है कि आर्थिक संकटों से निपटने में रिजर्व बैंक सरकार का साथ दे. खासतौर पर इंडस्ट्री की ग्रोथ, महंगाई पर कंट्रोल, रुपए और ब्याज दरों को काबू में रखना रिजर्व बैंक की मदद के बगैर मुमकिन नहीं है.

FSDC की बैठक में ILFS डिफॉल्ट संकट से होने वाली दिक्कतों पर चर्चा हुई. रिजर्व बैंक को जिम्मेदारी दी गई है कि वो सिस्टम में नकदी की कमी नहीं आने दे. अगर ऐसा हुआ, तो दूसरे डिफॉल्ट का कुचक्र शुरू होने का खतरा है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

उर्जित पटेल चुपचाप चले गए

बैठक के बारे में यही कहा जा रहा है कि माहौल अच्छा था और रिजर्व बैंक ने यही भरोसा दिलाया कि ब्याज दर और दूसरे मामलों पर उसका रुख संतुलित रहेगा. लेकिन गवर्नर उर्जित पटेल बैठक के बाद मीडिया के किसी भी सवाल का जवाब दिए बगैर चले गए.

सरकार और रिजर्व बैंक, दोनों ने अपनी तरफ से टेंशन की खबरों का साफ तरीके से खंडन नहीं  किया है. हालांकि पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने दोनों से अपील की है कि एक-दूसरेको ज्ञान देने के बजाए मतभेद सुलझाएं.

सरकार रिजर्व बैंक से क्या चाहती है?

  • बैंकों लगी पाबंदियों में छूट दी जाए, जिससे वो ज्यादा से ज्यादा लोन दे सकें, जिससे ग्रोथ बढ़े
  • ब्याज दरों में बढ़ोतरी कुछ वक्त के लिए थाम दी जाए, जिससे कर्ज महंगा ना हो
  • छोटी इंडस्ट्री को आसान शर्तों पर कर्ज दिया जाए, ताकि नौकरियों में बढ़ोतरी हो
  • सरकार चाहती है कि रिजर्व बैंक डिविडेंड बढ़ाए, क्योंकि जानकारों का अनुमान है कि फिस्कल घाटा लक्ष्य को पार कर सकता है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

मोदी सरकार और रिजर्व बैंक के बीच रिश्तों में तल्खी दूर करने का सबसे अच्छा तरीका है कि इस बारे में साफ-साफ जानकारी दी जाए. अटकलें और शंकाएं इकनॉमी, शेयर बाजार और करेंसी तीनों के लिए घातक हैं. अगर सरकार चुनाव से पहले सब कुछ अच्छा-अच्छा चाहती है, तब भी उसे रिजर्व बैंक से मिल-बैठकर सुलह करने में भी फायदा है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें