क्या यह वर्ल्ड ट्रेड वॉर की शुरुआत है? अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले सप्ताह स्टील और एल्यूमीनियम के आयात पर 25 और 10 फीसदी टैरिफ लगाने का ऐलान कर दिया. जवाबी कार्रवाई करते हुए यूरोपियन यूनियन (ईयू) और चीन ने भी बदले की कार्रवाई की धमकी दे दी.
यूरोपियन यूनियन ने कहा है कि वह भी अमेरिकी निर्यात पर 25 फीसदी टैरिफ लगाएगा. हालांकि अमेरिका के स्टील आयात में चीन की हिस्सेदारी 2 फीसदी है. लेकिन उसने भी कहा है कि चीनी कारोबारी हितों को नुकसान पहुंचा तो वह भी चुप नहीं बैठेगा.
डोनाल्ड ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’की नीति के तहत स्टील और एल्यूमीनियम के आयात पर टैरिफ लगाने के फैसले से न सिर्फ उसके ट्रेड पार्टनरों के बीच खलबली मची है बल्कि खुद उन अमेरिकी कंपनियों को भारी नुकसान पहुंचने का खतरा पैदा हो गया है, जो स्टील और एल्यूमीनियम का इस्तेमाल करती हैं.
फाइनेंशियल टाइम्स के मुताबिक अमेरिका में 65 लाख लोगों का रोजगार उन उद्योगों से जुड़ा है जो स्टील और एल्यूमीनियम का इस्तेमाल करते हैं. 2002 में जब जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने स्टील आयात पर टैरिफ लगाया था तब अमेरिका में दो लाख नौकरियां चली गई थीं. खुद ट्रंप की रिपब्लिक पार्टी के कई सांसद मानते हैं कि राष्ट्रपति का यह फैसला अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए भारी नुकसानदेह साबित हो सकता है. इससे टैक्स सुधारों और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए हाल में उठाए गए कदम बेअसर हो जाएंगे.
कनाडा और ईयू में खलबली
ट्रंप के इस नए संरक्षणवादी कदम से सबसे बड़ा नुकसान अमेरिका के लंबे वक्त तक स्ट्रेटजिक पार्टनर रहे कनाडा और यूरोपियन यूनियन को होगा. अमेरिका सबसे ज्यादा स्टील कनाडा से मंगाता है. अमेरिका के स्टील आयात में उसकी 16 फीसदी हिस्सेदारी है. जबकि यूरोपियन यूनियन अमेरिका को 5.3 अरब यूरो यानी 6.5 अरब डॉलर स्टील का निर्यात करता है. एल्यूमीनियम निर्यात 1.1 अरब यूरो का है. ट्रंप ने टैरिफ लगाने का ऐलान राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर किया है. उनका कहना है कि सस्ता मेटल अमेरिका की मिलिट्री और इंडस्ट्री बेस को कमजोर कर रहा है. लेकिन यूरोपियन यूनियन का कहना है कि अमेरिका के स्टील का सिर्फ 3 फीसदी स्टील इसकी मिलिट्री करती है. यह पूरी तरह से अमेरिकी मैन्यूफैक्चरर्स को संरक्षण देने वाला कदम है.
ईयू ने चेतावनी दी है कि अगर अमेरिका ने अपने कदम नहीं रोके थे तो वह अमेरिका से आने वाले 2.8 अरब यूरो के सामानों पर 25 फीसदी टैरिफ लगाएगा. ईयू का यह कदम अमेरिका के कुछ प्रांतों में बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है. अमेरिकी के केंटुकी से बड़ी मात्रा में बॉरबन व्हिस्की यूरोप जाती है. इस तरह विस्कॉन्सिन राज्य के चीज़ का बड़ी तादाद में निर्यात होता है. इन पर टैरिफ लगा तो दोनों राज्यों में इन उद्योगों में काम करने वालों पर दबाव बढ़ सकता है. यह राजनीतिक मुद्दा बन सकता है. लेकिन लगता नहीं है कि ट्रंप इसकी परवाह करते हैं.
ट्रंप के फैसले पर सवाल
ट्रंप ग्लोबल व्यापार व्यवस्था की लगातार धज्जियां उड़ाने में लगे हैं. उन्हें लगता है हर कोई अमेरिकी को ठगने और उसका फायदा उठाने में लगा है. यही वजह है कि उन्होंने बराक ओबामा के नेतृत्व में शुरू किए गए ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप जैसे ग्लोबल कारोबारी संधि से अमेरिका के हाथ वापस खींच लिए और कनाडा और मैक्सिको जैसे देशों के साथ नाफ्टा कारोबारी समझौते में शर्तों को संशोधित करने का दबाव डाला. डब्ल्यूटीओ की भी उन्हें खास परवाह नहीं है और इसमें मौजूदा राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े प्रावधानों का इस्तेमाल करते हुए वह दूसरे देशों पर कारोबारी पाबंदियां लगाने का ऐलान करते रहे हैं.
स्टील और एल्यूमीनियम पर टैरिफ लगाते समय उन्होंने इस मामले में चिर-परिचित अंदाज दोहराया. ट्रंप ने कहा- लोगों को यह अंदाजा नहीं है दूसरे देशों ने अमेरिका के साथ किस कदर बुरा बर्ताव किया है. उन्होंने हमारी स्टील एल्यूमीनियम और दूसरी इंडस्ट्रीज को बरबाद करके रख दिया है. हम इन्हें आबाद करना चाहते हैं.
ट्रंप का यह कदम अमेरिका के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है लेकिन वह सुनने को तैयार नहीं हैं. ट्रंप प्रशासन में वे लोग हावी हैं जो कठोर कारोबारी प्रतिबंध के समर्थक हैं. इन लोगों पर यह आरोप लगाया जा रहा है के वे अमेरिकी अर्थव्यवस्था नहीं बल्कि कुछ चुनिंदा कंपनियों के बारे में सोच रहे हैं. लोगों का कहना है 2020 के चुनाव में ट्रंप की हार ही इसका इलाज है.
चीन से बड़ा पंगा लेकिन अभी नहीं छेड़ेंगे
ट्रंप चीन को अभी नहीं छेड़ना चाहेंगे. वैसे चीन के विशेष दूत दोनों देशों के बीच कारोबारी विवादों को सुलझाने के लिए जिस दिन वाशिंगटन में थे उसी दिन ट्रंप ने एल्यूमीनियम और स्टील पर टैरिफ लगाने की चेतावनी दी थी. चीनी सोलर पैनल की कथित डंपिंग से वह अंदर ही अंदर बेहद नाराज हैं और इस पर 30 फीसदी की ड्यूटी लगा चुके हैं. लेकिन अभी अगर उन्हें चीन को छेड़ा तो वह पलट कर बेहद कड़ी कार्रवाई कर सकता है.
चीन अमेरिकी सोयाबीन, मीट और मक्का का बड़ा आयातक है. साथ ही उसने हजारों बोइंग विमान खरीदे हैं. फिर भी चीन के साथ उसका 375 अरब डॉलर का व्यापार घाटा है. ट्रंप की यह दुखती रग है लेकिन वह चीन को छेड़ने की हिम्मत नहीं करेंगे. चीन अमेरिकी बैंकों, इंश्योरेंस कंपनियों और दूसरी सर्विस कंपनियों पर बैन लगा सकता है. इसके अलावा चीन के पास अमेरिका का 1.5 ट्रिलियन डॉलर के बांड हैं. अगर उसने इन बांड्स को डंप करना शुरू कर दिया तो अमेरिका को भारी नुकसान हो सकता है और वहां ब्याज दरें बढ़ सकती हैं. अगर कारोबारी मसलों को लेकर अमेरिका चीन से टकराता है तो उसे ज्यादा नुकसान होगा.
भारत क्या करेगा?
भारत ने अमेरिकी हार्ले डेविडसन बाइक पर आयात ड्यूटी घटा कर आधी कर दी है. इसके बावजूद ट्रंप संतुष्ट नहीं हैं. ट्रंप ने पीएम नरेंद्र मोदी से अमेरिकी आयात को सहूलियत देने की मांग की थी और भारत सरकार ने इसे पूरी भी की है. क्या अब भारत ट्रंप के स्टील पर टैरिफ घटाने के फैसले के बाद बदले की कार्रवाई करेगा. पहली बात तो यह कि भारत के स्टील उत्पादन का महज 2 फीसदी अमेरिका जाता है.
सेल के पूर्व चेयरमैन एस के रूंगटा ने भारतीय अखबार द टेलीग्राफ से कहा कि अमेरिका को स्टील निर्यात करना अब बेहद मुश्किल होगा. लेकिन भारतीय स्टील उद्योग पर टैरिफ बढ़ने का असर काफी कम होगा क्योंकि हम सिर्फ वहां स्टील पाइप भेजते हैं. हां, अमेरिकी स्टील उद्योग की लागतें जरूर बढ़ जाएंगी.
दूसरी बात, ये है कि भारत के पास चीन जैसी आर्थिक मजबूती नहीं है और न ही वह उसके बराबर अमेरिकी प्रोडक्ट का आयात करता है. अमेरिका से मौजूदा संबधों को देखते हुए भारत बदले की कोई कार्रवाई नहीं करेगा. और अगर उसने चीन, कनाडा और यूरोपीय यूनियन की देखादेखी कोई कदम उठाने की कोशिश की तो उसका अमेरिका के सामने टिकना मुश्किल होगा.
विश्लेषकों का कहना है कि भारत को इस लड़ाई में पड़ने की जरूरत नहीं है. और उसके पास इसका नैतिक आधार भी नहीं है क्योंकि खुद भारत ने 'मेक इन इंडिया' को संरक्षण देने के लिए उसने इस साल के बजट मे खुद ही कई चीजों के आयात पर ड्यूटी बढ़ा दी थी.
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