नोटबंदी का लॉन्ग टर्म में अच्छा असर होगा, लेकिन यह शॉर्ट टर्म में इकोनॉमी के लिए आफत है. इस पर जानकारों के बीच आम सहमति है. आखिर अक्टूबर-दिसंबर 2016 की तिमाही में देश की जीडीपी ग्रोथ कितनी कम रह सकती है? फाइनेंशियल ईयर 2016-17 की दूसरी छमाही में ग्रोथ कितनी रहेगी?
दुनिया के 50 बड़े देशों (जी20 और ब्रिक्स सहित) में भारत और चीन की जीडीपी ग्रोथ पिछले 25 साल में किसी भी तिमाही में कॉन्ट्रैक्ट नहीं हुई है, यानी इस दौरान उनकी जीडीपी ग्रोथ किसी भी क्वॉर्टर में माइनस में नहीं गई. इन 50 देशों में अमेरिका, जर्मनी, ब्राजील और साउथ अफ्रीका जैसे कम से कम आधे देशों को इस दौरान तीन बार नेगेटिव ग्रोथ का सामना करना पड़ा. पिछले 25 साल में भारत की सबसे कम जीडीपी ग्रोथ 1991 में 1.05 पर्सेंट थी.
अचानक 86% करेंसी वापस ली गई
पिछले साल 8 नवंबर के बाद भारत में क्या हुआ? सरकार ने अचानक 86% करेंसी वापस ले ली और इससे लोगों के पास खर्च करने लायक पैसे नहीं बचे. भारत में जो हो रहा है, वैसा दुनिया में आज तक कहीं नहीं हुआ है. हमारे देश ने आज तक कोई फिस्कल क्राइसिस नहीं देखा है, जबकि ग्रीस और इटली को 2010-2012 में इस संकट का सामना करना पड़ा था.
हमने कोई करेंसी शॉक नहीं देखा, जबकि 1997-98 में ईस्ट एशिया इससे गुजर चुका है. 2008 में अमेरिका ने बैंकिंग संकट देखा और भारत इस मर्ज से भी आज तक बचा हुआ है. इन सभी मामलों में संबंधित देशों की जीडीपी में 2.8% से 13% तक की गिरावट आई थी.
भारत के लिए अक्टूबर-दिसंबर 2016 तिमाही के जीडीपी ग्रोथ डेटा काफी अहमियत रखते हैं. इससे तय हो जाएगा कि भयानक झटका लगने पर हमारी ग्रोथ किस लेवल से नीचे नहीं जाएगी. 1991 के बाद भारत में किसी एक तिमाही में सबसे कम ग्रोथ जनवरी-मार्च 2001 में 4.9% रही थी. इस आर्टिकल में हम अक्टूबर-दिसंबर 2016 तिमाही की ग्रोथ का अंदाजा लगाने की कोशिश कर रहे हैं.
जीडीपी का मतलब क्या होता है?
रियल जीडीपी से किसी तय समय में प्रोड्यूस होने वाले सभी गुड्स और सर्विसेज की कीमत का पता चलता है. आदर्श स्थिति में हमें सबसे पहले नॉमिनल जीडीपी का अनुमान लगाना चाहिए, इसमें रियल जीडीपी में महंगाई दर को जोड़ा जाता है. उसके बाद भविष्य की महंगाई दर का अनुमान लगाना चाहिए. उसके बाद नॉमिनल जीडीपी में अनुमानित महंगाई दर को घटाकर आप रियल जीडीपी हासिल कर सकते हैं. आपको उन लोगों से सावधान रहना चाहिए, जो नॉमिनल जीडीपी और महंगाई दर का अनुमान दिए बिना रियल जीडीपी ग्रोथ की भविष्यवाणी करते हैं.
जीडीपी एस्टिमेट, प्राइवेट फाइनल कंजम्पशन एक्सपेंडिचर (PFCE), सरकार का फाइनल कंजम्पशन एक्सपेंडिचर (GFCE), ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन (GFCF) और नेट एक्सपोर्ट को जोड़ने से मिलता है. भारत की जीडीपी के लिए सबसे इंपॉर्टेंट फैक्टर PFCE है. हम एक्सपोर्ट से अधिक इंपोर्ट करते हैं, इसलिए जीडीपी में नेट एक्सपोर्ट का योगदान
नोटबंदी तक का डेटा
जुलाई-सितंबर 2015 के तीन महीनों में नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ 6.4% के लो लेवल तक चली गई थी. उसके बाद इसमें तेजी आई और जुलाई-अगस्त 2016 तिमाही में यह 12% पर पहुंच गई. पिछली बार इतनी नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ जनवरी-मार्च 2014 तिमाही में दिखी थी. प्राइवेट फाइनल कंजम्पशन एक्सपेंडिचर में बढ़ोतरी के साथ जीडीपी ग्रोथ में रिकवरी आई थी. इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है, क्योंकि पिछले 16 साल से PFCE ग्रोथ (मार्केट प्राइसेज पर) और नॉमिनल जीडीपी के बीच 0.66% तक का डायरेक्ट कनेक्शन रहा है.
PFCE के बारे में और बात करने से पहले जीडीपी के छोटे कंपोनेंट्स- गवर्नमेंट फाइनल कंजम्पशन एक्सपेंडिचर और ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन की बात करते हैं.
कैपिटल फॉर्मेशन
इकोनॉमी में नई कैपिटल एसेट्स फॉर्मेशन का पता GFCF से चलता है. इसमें फाइनेंशियल ईयर 2013 की तीसरी तिमाही के बाद से लगातार गिरावट आ रही है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (सीएमआईई) के डेटा से पता चलता है कि फाइनेंशियल ईयर 2017 की तीसरी तिमाही में पिछले 9 क्वॉर्टर्स की तुलना में इनवेस्टमेंट प्रपोजल की वैल्यू आधी रह गई थी.
ऐसा कोई संकेत नहीं दिख रहा है कि जनवरी-मार्च 2015 तिमाही के बाद से GFCF में जो गिरावट आ रही है, वह अक्टूबर-दिसंबर 2016 तिमाही में रुक जाएगी.
सरकारी खर्च
फाइनेंशियल ईयर 2017 की पहली छमाही यानी अप्रैल से सितंबर के बीच गवर्नमेंट फाइनल कंजम्पशन एक्सपेंडिचर का कंट्रीब्यूशन नॉमिनल जीडीपी में सामान्य से ज्यादा रहा. इस दौरान इसमें 20% से अधिक की ग्रोथ हुई. हालांकि, इसका ध्यान रखना चाहिए कि 30 नवंबर 2016 तक सरकार पूरे फाइनेंशियल ईयर के लिए तय फिस्कल डेफिसिट टारगेट के 86% तक पहुंच गई थी. इसलिए फाइनेंशियल ईयर 2017 की दूसरी छमाही यानी अक्टूबर 2016 से मार्च 2017 तक सरकार खुलकर पैसे खर्च नहीं कर पाएगी.
पिछले चार साल के डेटा भी इसकी गवाही देते हैं. जब भी फाइनेंशियल ईयर के पहले 6 महीनों में GFCE ग्रोथ 15-20% से ज्यादा रही, दूसरी छमाही में उसमें तेज गिरावट आई. सिर्फ फाइनेंशियल ईयर 2016 में ऐसा नहीं हुआ, जब GFCE ग्रोथ सभी चार तिमाहियों में एक बराबर थी. अगर यह मान लिया जाए कि सरकार इस फाइनेंशियल ईयर में फिस्कल डेफिसिट टारगेट को हासिल करेगी तो बचे हुए महीनों में GFCE ग्रोथ 6-8% से अधिक नहीं होनी चाहिए.
प्राइवेट खर्च
किसी एक तिमाही में भारत की सबसे कम प्राइवेट फाइनल कंजम्पशन एक्सपेंडिचर ग्रोथ 2% रही है. फाइनेंशियल ईयर 1999-2000 की दूसरी तिमाही में इसकी ग्रोथ इतनी थी. जीडीपी में सिर्फ PFCE अकेली चीज है, जो 1999-2000 के बाद कभी भी नेगेटिव नहीं रही है.
ऐसे में सवाल यह है कि क्या PFCE में अक्टूबर-दिसंबर 2016 तिमाही में नेगेटिव ग्रोथ दिखेगी? इसका जवाब एक सवाल में छिपा है.
9 नवंबर से 31 दिसंबर के बीच आखिर कितने परिवारों का खर्च पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले अधिक रहा है? असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले परिवारों का यह खर्च शायद बहुत कम रहा है.
अक्टूबर-दिसंबर 2016 और जनवरी-मार्च 2017 तिमाही में जीडीपी ग्रोथ कितनी रहेगी?
अगर यह मान लिया जाए कि जीडीपी के कंपोनेंट में मोटे तौर पर बदलाव नहीं होता और नेट एक्सपोर्ट जीरो रहता है (जो संभव नहीं है), तो अब तक हमने जो तर्क दिए हैं, उनके आधार पर अक्टूबर-दिसंबर 2016 क्वॉर्टर में जीडीपी वैल्यू का अनुमान लगाया जा सकता है. अगर सबसे अच्छे और सबसे बुरे अनुमान को छोड़ दें, तो इस तिमाही में नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ 1-4.5% के बीच रह सकती है.
अगर नोटबंदी का शॉक लंबे समय तक नहीं बना रहता है, तो हम जनवरी-मार्च 2017 तिमाही से ‘नॉर्मल’ ग्रोथ की उम्मीद कर सकते हैं. इस रिकवरी के साथ नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ 6-7% रह सकती है. अगर इस बीच महंगाई दर 1-2% भी रहती है तो मौजूदा फाइनेंशियल ईयर की दूसरी छमाही में रियल जीडीपी ग्रोथ 2-5% रह सकती है.
लंबा इंतजार
अक्टूबर-दिसंबर 2016 तिमाही के जीडीपी के पहले अनुमान अगले महीने जारी होंगे. हमने यहां जिन आंकड़ों का अनुमान दिया है, वे उससे काफी अधिक रह सकते हैं. दरअसल, जीडीपी के शुरुआती अनुमान के लिए पिछले के आंकड़ों को आधार बनाया जाता है. यह गलत अप्रोच है क्योंकि पहले नोटबंदी जैसी घटना नहीं हुई है.
इसलिए हमें अक्टूबर-दिसंबर 2016 तिमाही के जीडीपी के आंकड़ों के लिए रिवाइज्ड एस्टिमेट्स का इंतजार करना होगा. ये आंकड़े जनवरी 2018 में जारी होंगे. जरा सोचिए, नोटबंदी के इकनॉमी पर वास्तव में क्या असर हुआ है, इसे जानने के लिए आपको साल भर तक इंतजार करना होगा.
(दीप नारायण मुखर्जी फाइनेंशियल सर्विसेज प्रोफेशनल और आईआईएम कलकत्ता में फाइनेंस की विजिटिंग फैकल्टी हैं.)
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