भारतीय शेयर बाजार (Share Market Crash) के इतिहास में कई बार मार्केट के क्रैश होने की खबरें मिल जाएंगी लेकिन 2008 में जो शेयर मार्केट में गिरावट हुई वो इतिहास में दर्ज हो गई. 2022 में शेयर मार्केट में बड़ी गिरावट देखने को मिल रही है. 2021 में जहां Sensex के 60 हजार के अंक को पार करने की बात होती थी वो सेंसेक्स आज 52,000 के आसपास कारोबार कर रहा है. 2022 की ये कहानी 2008 में हुए मार्केट क्रैश की कहानी को याद दिलाती है.
चलिए आपको बताते हैं 2008 में शेयर मार्केट की क्या हालत थी.
21 जनवरी 2008 को BSE का सेंसेक्स 1408 अंक गिरा और 17,605 पर आकर बंद हुआ था. इसके बाद निवेशकों के लाखों रुपये डूब गए थे. यहां तक की बीएसई ने तकनीकी खराबी के कारण दोपहर 2:30 बजे ट्रेडिंग तक बंद कर दी थी.
मीडिया में "ब्लैक मंडे" के नाम से हेडलाइन छप रही थी. क्योंकि वैश्विक स्तर पर बाजार गिर रहा था. अमेरिका की अर्थव्यवस्था में मंदी होने की आशंका थी, विदेशी निवेशक अपना पैसा निकाल रहे थे, इसके अलावा अमेरिकी ब्याज दरों में कटौती हो रही थी, कमोडिटी बाजारों में अस्थिरता थी. इसी साल सितंबर में अमेरिका की वित्तीय फर्म 'लेमन ब्रदर्स' के दिवालिया होने की खबर भी आई थी. इसके बाद दुनियाभर की तमाम अर्थव्यवस्था को चोट पहुंची थी.
साल 2008 के आखिरी तक आते-आते सेंसेक्स 20,465 के स्तर से गिरकर 9,176 के स्तर पर आकर कारोबार कर रहा था. सेंसेक्स ने 20,000 के स्तर को सितंबर, 2010 में पार किया था.
2008 में सेंसेक्स का हाल-
2022 का मार्केट क्रैश 2008 की तुलना में कैसा है?
सेबी रजिस्टर्ड फाइनेंशियल एडवाइजर जितेंद्र सोलंकी ने क्विंट हिंदी से कहा कि, 2008 सबसे खराब वैश्विक आर्थिक संकटों में से एक था, जो कम आय वाले घर खरीदारों को उधार देने, ग्लोबल फाइनेंशियल इंस्टिट्यूशन द्वारा ज्यादा रिस्क लेने की वजह से पैदा हुआ था.
इस घटना ने दुनिया भर में कुछ बड़े फाइनेंशियल इंस्टिट्यूशन और इंटरनेशनल बैंक्स को तबाह किया. अब चूंकि इक्विटी बाजार इससे अलग-थलग नहीं हैं, इसलिए इस संकट ने दुनिया भर के बाजारों को को भी प्रभावित किया.जितेंद्र सोलंकी, सेबी रजिस्टर्ड फाइनेंशियल एडवाइजर
लंबे समय से शेयर मार्केट में निवेश करने वाले अश्विन दसिल्वा ने क्विंट हिंदी को बताया कि, 2008 में निवेशकों के पोर्टफोलियों में 50% की गिरावट थी. तब निवेशकों ने इक्विटी बाजार से पैसा निकाल कर म्यूचल फंड में डाला और अपने रिस्क को कम किया. अश्विन ने कहा कि अगर सरकार महंगाई को कंट्रोल कर लेगी तो जरूर मार्केट में सुधार देखने को मिलेगा.
जितेंद्र कहते हैं कि, 2008 में इक्विटी पोर्टफोलियो में तेजी से गिरावट आई थी. निवेशक कुछ ही दिनों में लगभग 25-30% की गिरावट के साथ भारी नुकसान में आ गए थे. निवेशकों में दहशत का माहौल था. लेकिन जो इस दौरान मार्केट में बने रहे बाद में उन्हें काफी फायदा हुआ. जितेंद्र ने कहा मार्केट रिकवरी की स्थिति में सालभर बाद आया.
चार्टेड अकाउंटेंट विशांक चौधरी ने क्विंट हिंदी को बताया कि, शेयर मार्केट को अच्छी स्थिति में आने में 3 साल लगे, 2009-10 में ये अच्छी स्थिति में आया. धीरे-धीरे कई देशों ने अपनी बैंकिंग पॉलिसी बदली (लोन देने की व्यवस्था में बदलाव किया), फाइनेंशियल पोजिशन को बदला जिसकी वजह से अर्थव्यवस्था में सुधार आया और फिर मार्केट के हालात बदले.
जितेंद्र ने आगे बताया कि वे 2008 और 2022 के क्रैश को एक साथ नहीं देखते. वो कहते हैं कि 2008 में बैंकिंग क्राइसिस था जिसका असर बाजार पर पड़ा. फिलहाल बाजार पर हम कोई ऐसा बड़ा प्रभाव नहीं देखते है, हांलाकि ऐसा कुछ अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता.
विशांक चौधरी कहते हैं कि, "देखिए 2007-08 में आर्थिक संकट था इसी वजह से मार्केट का ऊपर उठना आसान नहीं था. लेकिन जैसे ही दुनिया में फाइनेंशियल पालिसी बदली तो सब ठीक होने लगा. 2022 में जो हो रहा है उसके पीछे कोरोना महामारी बड़ी वजह है. कोरोना की वजह से जो समस्याएं पैंदा हुई हैं उसके ठीक होते ही मार्केट ट्रैक पर आ जाएगा. यह केवल शॉर्ट टर्म क्रैश है."
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