भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव की खबरों के बीच देश में इकनॉमी के मोर्चे पर भी हालात खराब हो चले हैं. मौजूदा वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में जीडीपी विकास दर में उम्मीद से कम 6.6 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज हुई है. उम्मीद 6.8 फीसदी की लगाई गई थी. पिछली पांच तिमाहियों में यह सबसे खराब प्रदर्शन है. दूसरी तिमाही में सात फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी.
आखिर इकनॉमी में स्लोडाउन की वजह क्या रही,आइए जानते हैं
- कंज्यूमर डिमांड में कमी- जनवरी में कार और टू-व्हीलर की बिक्री गिरी
- दिसंबर महीने की तुलना में जनवरी में एक्सपोर्ट में गिरावट
- एनबीएफसी सेक्टर के संकट की वजह से क्रेडिट ग्रोथ में कमी
- किसानों को फसलों के दाम मिलने में दिक्कत
- रूरल सेक्टर में डिमांड में आई कमी
- क्रोर इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर की ग्रोथ में भारी गिरावट
- ट्रेड वॉर के लेकर अंतरराष्ट्रीय बाजार की आशंकाएं
- अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम उम्मीद से कम घटे
याद रहे, आरबीआई ने वित्त वर्ष 2018-19 के 7.4 फीसदी ग्रोथ रेट के आकलन को नहीं बदला था. आरबीआई की ओर से जारी पॉलिसी स्टेटमेंट के दौरान आरबीआई में यह आकलन पेश किया था. हालांकि उसने ग्रोथ स्लो होने की आशंका जताई थी. इससे पहले सरकार (सीएसओ) की ओर से जारी आंकड़ों में भी ग्रोथ रेट का आकलन घटा कर 7.2 फीसदी से घटा कर 7 फीसदी कर दिया गया था.
आगे क्या होगा?
आगे सरकार के लिए हालात मुश्किल होंगे. सरकार ने अभी किसानों को डायरेक्ट कैश दिया है ताकि ग्रोथ को बढ़ावा मिले. लेकिन इससे सरकार का कर्जा बढ़ेगा. सरकार की कमाई और खर्चे का गैप यानी फिस्कल डेफिसिट बढ़ रहा है. सरकार इसे ज्यादा बढ़ने नहीं दे सकती. फिस्कल डेफिसिट को काबू में रखने के लिए सरकार पूंजीगत खर्चों में कमी करने को मजबूर होगी. जनवरी में यह 35 फीसदी गिर गया था. अब सरकार खर्च और घटाना चाहेगी जिससे ग्रोथ पर और नकारात्मक असर पड़ सकता है.
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