सितंबर 2020 में भारत में एक दिन में COVID-19 के नए कन्फर्म्ड केस की संख्या करीब 100000 तक पहुंच गई थी. ऐसा लग रहा था कि कुछ ही वक्त में भारत COVID-19 के सबसे ज्यादा कन्फर्म्ड केस के मामले में अमेरिका को पीछे छोड़कर पहले नंबर पर पहुंच जाएगा. मगर 4 महीने बाद भारत में COVID-19 के नए मामलों की संख्या काफी कम हो गई. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 2 फरवरी को भारत में COVID-19 के 8635 नए कन्फर्म्ड केस ही सामने आए. यह 8 महीनों का सबसे कम आंकड़ा था.
ऐसे में सवाल उठ रहा है कि करीब 1.3 बिलियन आबादी वाले भारत में COVID-19 के नए मामलों की संख्या में इतनी बड़ी गिरावट आखिर आई कैसे?
NPR के मुताबिक, जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के हेल्थ इकनॉमिस्ट जिश्नु दास का कहना है, ‘’ऐसा नहीं कि भारत कम टेस्टिंग कर रहा है या चीजें रिपोर्ट नहीं हो रही हैं.’’
बता दें कि भारत में COVID-19 वैक्सीनेशन के पहले फेज की शुरुआत भी 16 जनवरी से हुई है. भारत में अभी जो वैक्सीन लोगों को दी जा रही हैं, उनकी दो खुराक 28 दिन के अंतराल पर दी जानी हैं. इस बीच COVID-19 के नए मामलों में बड़ी गिरावट को वैज्ञानिक एक 'रहस्य' मानते हैं. फिर भी कुछ ऐसे पहलू हैं, जो इस 'रहस्य' की गुत्थी सुलझा सकते हैं और जिन पर स्कॉलर भी ध्यान दे रहे हैं:
मास्क की अनिवार्यता
भारत उन देशों में से एक है, जहां सार्वजनिक स्थलों पर मास्क पहनना अनिवार्य किया गया. महामारी की शुरुआत में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी जनता से मास्क लगाने की अपील की. इस बीच, देश के कई हिस्सों में सक्रियता के साथ मास्क न पहनने वालों पर जुर्माना लगाने की कार्रवाई की गई.
NPR के मुताबिक, मुंबई का ही उदाहरण ले लें तो वहां की एक महिला ने बताया, ''जब भी वे (अथॉरिटीज) किसी व्यक्ति पर 200 रुपये का जुर्माना लगाते थे, तो वे उसे पहनने के लिए एक मास्क भी देते थे.'' उन्होंने कहा कि ऐसी धारणा है कि हम भारतीय नियम तोड़ने के लिए जाने जाते हैं, आप ट्रैफिक नियमों के मामलों में ही ऐसा देख सकते हैं, लेकिन जब महामारी के दौरान मास्क पहनने की बात आई तो पुलिस और निगरानी एजेंसियों ने अपना काम तेज कर दिया.
गर्मी और उमस
सितंबर में PLOS जर्नल में छपे सैकड़ों वैज्ञानिक लेखों के एक रिव्यू में पाया गया कि भारत की गर्म जलवायु भी COVID-19 संक्रमण कम करने का कारण नजर आती है. पेन्सिलवेनिया यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर इन्फेक्शियस डिसीज डायनैमिक्स की डायरेक्टर एलिजाबेथ मैकग्रॉ ने पिछले साल NPR को बताया था, ''जब हवा नम और गर्म होती है, तो ड्रॉपलेट जमीन पर ज्यादा तेजी से गिरते हैं और ट्रांसमिशन को कठिन बनाते हैं.'' (हालांकि, ट्रांसमिशन की विज्ञान अभी भी विकसित हो रही है.)
डेमोग्राफी और इम्युनिटी
भारतीयों की इम्युनिटी को लेकर मुंबई के ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में अर्बन पॉलिसी एक्सपर्ट सायली उदास कहती हैं, ''हम सभी के पास काफी अच्छी इम्युनिटी है! आप एक औसत भारतीय को देखिए, संभावित तौर पर उसे उसकी जिंदगी में किसी वक्त पर मलेरिया, टायफॉइड या डेंगू हुआ होगा.''
भारत की आबादी की काफी बड़ा हिस्सा युवा है. केवल 6 फीसदी भारतीय ही 65 साल से ज्यादा उम्र के हैं. देश की आधी से ज्यादा आबादी 25 साल से कम उम्र की है. जबकि कोरोना वायरस बुजुर्गों के लिए अपेक्षाकृत ज्यादा खतरनाक और जानलेवा है.
कई सीरो-सर्वे के नतीजों से भी संकेत मिले हैं कि भारत की बड़ी आबादी में कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित हो चुकी हैं.
हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली में पांचवें दौर के सीरो-प्रीवलेंस सर्वे के नतीजों से संकेत मिला कि राष्ट्रीय राजधानी की आबादी कोरोना वायरस संक्रमण के खिलाफ समूह प्रतिरोधक क्षमता (हर्ड इम्युनिटी) हासिल करने के करीब बढ़ रही है. अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में बताया गया कि सर्वे में शामिल 50 फीसदी से ज्यादा लोगों में COVID के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित हुई हैं.
बता दें कि समूह प्रतिरोधक क्षमता यानी हर्ड इम्युनिटी, उसे कहते हैं जब एक समूह के लोगों के वायरस से संक्रमित होने के बाद कई लोगों में इसकी प्रतिक्रिया में एंटीबॉडी बनने की वजह से इसके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है. ऐसे लोग संक्रमित व्यक्ति और अप्रभावित लोगों के बीच एक सुरक्षात्मक परत बन जाते हैं, जिससे वायरस संक्रमण की सीरीज टूट जाती है.
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