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अब अगले राष्‍ट्रपति ही तय करेंगे, उनके शाही सैलून का क्‍या होगा?

रेलवे हर साल राष्‍ट्रपति के इस वीवीआईपी सैलून के रख-रखाव पर मोटी रकम खर्च करती है. 

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देश का अगला राष्ट्रपति कौन होगा? इसका इंतजार देश के 125 करोड़ भारतीयों के साथ राष्ट्रपति की एक शाही सवारी को भी है. रेल की पटरियों पर दौड़ने वाली इस शाही सवारी को राष्ट्रपति का सैलून कहा जाता है. वो इलाके, जहां न तो सड़कों से पहुंचा जा सकता है, न हवाई जहाज से, वहां जाने के लिए देश के राष्ट्रपति अपनी इस खास ट्रेन का इस्तेमाल करते हैं.

राष्ट्रपति के इस्तेमाल के लिए ये ट्रेन हमेशा अलग से खड़ी रहती है. साथ ही किसी भी वक्त जाने के लिए भी पूरी तरह तैयार रहती है. लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि राष्ट्रपति की ये शाही ट्रेन पिछले 14 साल से यूं ही खड़ी है.

आखिरी बार साल 2004 में इसका इस्तेमाल तब देश के राष्ट्रपति रहे डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम ने किया था. उनके बाद राष्ट्रपति बनीं प्रतिभा देवी सिंह पाटिल और प्रणब मुखर्जी ने तो शायद अपनी शाही सवारी की शक्ल भी नहीं देखी होगी. हालांकि उनके आने के इंतजार में रेलवे ने इस सैलून हमेशा तैयार रखा.
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रेलवे को इंतजार है कि क्या देश के अगले राष्ट्रपति भी इस शाही ट्रेन की सवारी करना चाहेंगे या नहीं? हालांकि रेलवे ने अपनी तरफ से इस ट्रेन को पूरी तरह से नया और आधुनिक सुविधाओं से लैस करने के लिए 8 करोड़ रुपये की लागत वाला नया प्लान तैयार कर लिया है.

कैसा होता है राष्ट्रपति का सैलून?

भारतीय रेल, राष्ट्रपति की इस शाही सवारी में कोच संख्या 9000 और 9001 का इस्तेमाल करती है. ये दोनों रेलवे के ऐतिहासिक कोच हैं, जिनमें सुख-सुविधा और आराम का पूरा इंतजाम होता है. इन दोनों कोच में राष्ट्रपति के लिए ऑफिस और बेडरूम के साथ डाइनिंग रूम, विजिटर रूम और एक लाउंज भी है.

इन दो कोच के साथ छह और कोच भी लगते हैं, जिसमें राष्ट्रपति के स्टाफ, उनके सुरक्षाकर्मी और रेलवे के अधिकारी यात्रा के दौरान साथ चलते हैं.

साल 1956 में इस सैलून का निर्माण सेंट्रल रेलवे के माटूंगा वर्कशॉप में किया गया था. लेकिन काफी पुराना हो जाने की वजह से 2006 के बाद इन कोच को राष्ट्रपति के इस्तेमाल के लिए असुरक्षित घोषित कर दिया गया.

अब सैलून में और क्या नया होगा?

भारतीय रेलवे के नए प्लान को अगर राष्ट्रपति की इजाजत मिली, तो उनके सैलून में जर्मन कोच का इस्तेमाल किया जाएगा. इस कोच की खिड़कियां और दरवाजे बुलेटप्रूफ होंगे. राष्ट्रपति की सुविधा के लिए नया टेलीफोन एक्सचेंज तैयार किया जाएगा, जिसमें जीपीएस, जीपीआरएस और सैटेलाइट कम्यूनिकेशन जैसी सभी अत्याधुनिका सुविधाएं मौजूद होंगी. राष्ट्रपति के मनोरंजन के लिए नए जमाने का बड़ा टीवी और म्यूजिक सिस्टम भी लगाया जाएगा.

कुल मिलाकर राष्ट्रपति भवन का एक छोटा वर्जन बनाने की तैयारी है, जो पटरियों पर दौड़ेगा. इन सारी सुविधाओं के लिए रेलवे ने 8 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बनाई है.

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राष्ट्रपति ने सलून में कितनी बारी सवारी की?

रेलवे के मुताबिक, 1956 से लेकर अब तक राष्ट्रपति के सैलून का 87 बार इस्तेमाल हुआ है. इस शाही ट्रेन से सफर करने वाले राष्ट्रपतियों में देश के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, डॉक्टर एस राधाकृष्णन, डॉक्टर जाकिर हुसैन, वीवी गिरि, डॉक्टर एन संजीवा रेड्डी और डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम शामिल हैं.

आखिरी बार 2004 में तब राष्ट्रपति रहे एपीजे अब्दुल कलाम ने इस शाही सवारी का इस्तेमाल चंढीगढ़ से दिल्ली आने के लिए किया था. इससे पहले 2003 में भी उन्होंने ही बिहार के हरनौत से पटना आने के लिए इस सैलून का इस्तेमाल किया था.

तब वो हरनौत में रेल मरम्मत कारखाने का शिलान्यास करने गए थे. तब 26 साल बाद देश के किसी राष्ट्रपति ने अपनी इस सैलून का इस्तेमाल किया था.

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डॉक्टर कलाम के पहले 1977 में डॉक्टर एन संजीवा रेड्डी ने ही आखिरी बार इस सलून का इस्तेमाल किया था. डॉ कलाम के बाद 2008 में राष्ट्रपति बनीं प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने भी इस सैलून से सफर करने की इच्छा जाहिर की थी, लेकिन सुरक्षा कारणों से उनको इसकी इजाजत नहीं मिली.

रेलवे के मुताबिक, 2004 से आज तक सैलून का इस्तेमाल ही नहीं हुआ. इसके पीछे सुरक्षा एक अहम कारण जरूर है, लेकिन उसके अलावा भी कई और वजहें है. एक तो इसकी रफ्तार बहुत तेज नहीं है और इस वीवीआईपी सैलून की वजह से दूसरी ट्रेन की आवाजाही पर भी असर पड़ता है.

भारतीय रेल एक दिन में करीब 13,000 ट्रेन चलाती है, जिनमें रोजाना ढाई करोड़ यात्री सफर करते हैं. इसलिए भारतीय रेल ने जब राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास इस सैलून को करोड़ों की लागत से दोबारा तैयार करने का प्रस्ताव रखा, तो उन्होंने इसे खारिज कर दिया.

हालांकि हर साल इस वीवीआईपी सैलून के रख-रखाव पर रेलवे मोटी रकम खर्च करती है. लेकिन अब रेलवे अपने इस सफेद हाथी को बेहतर बनाने और फिर से पटरी पर दौड़ाने का एक नया प्लान तैयार कर चुकी है.

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हालांकि इस योजना पर अगले राष्ट्रपति की मुहर लगनी बाकी है. अगर उन्होंने भी रेलवे का प्रस्ताव ठुकरा दिया, तो बहुत मुमकिन है कि रेलवे सैलून सेवा को बंद कर दे. अगर ऐसा हुआ, तब भारतीय रेल के इस सफेद हाथी को शायद म्यूजियम में बदल दिया जाए. शायद तब आप अपने बच्चों को देश के पहले नागरिक की शाही सवारी दिखा सकेंगे.

(लेखिका सरोज सिंह @ImSarojSingh स्वतंत्र पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं. द क्विंट का उनके विचारों से सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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